पी चिदंबरम का कॉलम: 'अर्थव्यवस्था' जो उन्हें विरासत में मिली है

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: June 17, 2019
श्रीमती निर्मला सीतारमण ने जिस तेजी से तरक्की की है, उसकी मैंने तारीफ की है। पार्टी प्रवक्ता (2010) से वे 2014 में वाणिज्य मंत्री बनीं और दिसंबर 2017 में रक्षा मंत्री और अब इस बार 2019 में वे देश की वित्त मंत्री बनी हैं। उनकी हरेक तरक्की एक उपलब्धि रही है। इससे और ज्यादा महिलाओं को यह साबित करने की प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे पुरुषों से कहीं कम सक्षम नहीं हैं।

किसी भी वित्त मंत्री के लिए शुरुआत बिल्कुल नए सिरे से नहीं होती है। पिछली सरकार की कमियों और असफलताओं का मिला-जुला रूप नए वित्त मंत्री के सामने होता है, इनमें कुछ मददगार होती हैं तो कुछ नुकसानदायक, कुछ मुश्किलें पैदा करती हैं और कुछ रोड़े अटकाती हैं! पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डा. अरविंद सुब्रमनियन वृद्धि दर के आंकड़ों को लेकर संशय व्यक्त कर चुके हैं और जीडीपी गणना के तरीकों की लंबे समय से आलोचना करते रहे हैं। इसपर पछतावे के लिहाज से काफी देर हो चुकी है। इसे एक तरफ कर दें, और बिना किसी पूर्वग्रह के आर्थिक हालत का जायजा लें। यहां कुछ तथ्य और संकेतक दिए जा रहे हैं।

मुद्रास्फीति कम, पर धीमी वृद्धि
मुद्रास्फीति की दर कम है। थोक मूल्य सूचकांक 3.07 फीसद पर है और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 3.05 फीसद पर। जरूरत से ज्यादा सख्त मौद्रिक नीति और वस्तुओं के दाम कम होने के कारण महंगाई दर कम है, लेकिन दोनों बदल रहे हैं। 

महंगाई जितने लंबे समय तक कम बनी रहेगी, सरकार का खर्च बढ़ सकता है, लेकिन क्या पैसा है? 
2018-19 में वृद्धि दर काफी तेजी से गिरी है। चार तिमाहियों में यह 8.0, 7.0, 6.6 और 5.8 फीसद रही। अप्रैल-जून 2019 की तिमाही में संभवतया यह और नीचे आएगी। कम वृद्धि का अनुमान लगाते हुए ही रिजर्व बैंक ने 2019-20 के लिए वृद्धि दर घटा कर 7.2 फीसद की भविष्यवाणी की है। 

2018-19 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.9 फीसद रही। 2018 में कृषि मजदूरी में 4.64 फीसद का इजाफा हुआ। हर साल दस हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इस साल अकेले महाराष्ट्र में ही अब तक आठ सै आठ किसान खुदकुशी कर चुके हैं। किसान अब और उपेक्षा बर्दाश्त नहीं करेंगे।

निवेश गायब
वृद्धि को बढ़ाने वाला सबसे प्रमुख कारक निवेश है। 2018-19 में भारत में आने वाला निवेश पिछले छह साल में पहली बार एक फीसद तक गिर कर 44.37 अरब अमेरिकी डॉलर पर आ गया। पिछले साल सकल स्थायी पूंजी निर्माण (चालू मूल्यों पर) 29.3 फीसद रहा था। प्रोमोटर निवेश करने से बच रहे हैं क्योंकि क्षमता का इस्तेमाल काफी कम रह गया है, उदाहरण के लिए, विनिर्माण क्षेत्र में यह छिहत्तर फीसद था।

2018-19 में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भी काफी पैसा निकाल लिया। एफआईआई ने पिछले साल तीन सौ अट्ठावन करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज्यादा पैसा निकाल लिया।

विनिर्माण क्षेत्र में मंदी है। विनिर्माण के लिए 2015-16 और 2018-19 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में वृद्धि दर 2.8, 4.4, 4.6 और 3.5 फीसद रही। अब वाहन निर्माताओं ने बिक्री घटने की बात कही है और उत्पादन में कटौती शुरू कर दी है।

एनडीए के राज में कारोबारी निर्यात सिर्फ 2018-19 में ही तीन सौ पंद्रह अरब अमेरिकी डॉलर के उस स्तर को पार कर पाया है जो 2013-14 में था। दुर्भाग्य से संरक्षणवाद बढ़ रहा है और व्यापार युद्ध का खतरा सामने है। नए वित्त वर्ष की शुरुआत ही बहुत खराब हुई है जब अप्रैल में कारोबारी निर्यात मात्र छब्बीस अरब अमेरिकी डॉलर का रहा।

बैंकिंग क्षेत्र की सेहत काफी बिगड़ी हुई है। मार्च, 2019 के अंत तक कुल एनपीए बकाया कर्ज का 9.3 फीसद था और अप्रैल 2014 से अब तक बैंक 5,55,603 करोड़ रुपए बट्टे खाते में डाल चुके हैं। दूसरी पारी में वित्त मंत्री बैंकिंग क्षेत्र के इस संकट के लिए यूपीए को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती हैं (जैसा कि उनके पूववर्ती वित्त मंत्री ऐसा करने के आदी हो चुके थे)।

बैंक जमा 9.4 फीसद की वृद्धि से बढ़ रहे हैं, लेकिन उधार में वृद्धि 13.1 फीसद की है। रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर और घटा दी है और वह चाहता है कि बैंक भी कर्जदारों के लिए अपनी दरों में कटौती करें। बैंक कर्जदारों के लिए दरें तब तक नहीं घटा सकते जब तक वे जमाकर्ताओं के लिए दरें कम न करें। ऐसा होने से जमा वृद्धि पर असर पड़ेगा। इसका कोई आसान समाधान नहीं है।

वित्तीय हालत चिंताजनक
2018-19 में व्यापार घाटा शून्य से 176.42 अरब डॉलर से नीचे चला गया। इससे चालू खाते के घाटे (कैड) पर दबाव बढ़ रहा है जो दिसंबर 2018 में (-) 51.8 अरब डॉलर था। चालू खाते का घाटा वह आंकड़ा होता है जिस पर विश्लेषकों और मुद्रा कारोबारियों की नजर होती है। वित्त मंत्री को भी इस पर नजर रखनी चाहिए।

2018-19 में कर राजस्वों में भी कमी आई है। एक फरवरी, 2019 का संशोधित अनुमान तो मजाक बन कर रह गया। संशोधित अनुमान 1484406 करोड़ रुपए था, जबकि आए कुल 1316951 करोड़ रुपए। जाहिर है, वित्त मंत्री अंतरिम बजट से बंधी नहीं रह सकती हैं। उसे नए सिरे अनुमान पेश करने होंगे। यह अच्छी शुरुआत नहीं है।

एनडीए के पांच सालों में वित्तीय घाटा सिर्फ 1.1 फीसद ही कम हुआ है। व्यापक खर्च कटौतियां सिर्फ जनवरी-मार्च, 2019 में ही की गईं। वरना 2018-19 में वित्तीय घाटा 4.1 फीसद तक पहुंच जाता, न कि 3.4 फीसद पर रहता। यदि अभी भी सरकार का प्रमुख लक्ष्य वित्तीय समावेशन है तो वित्त मंत्री को राजस्व (बिना तकलीफ पहुंचाए) और खर्च (बिना किसी को आहत किए) में बेहतर संतुलन बना कर चलना होगा।

लोगों की सबसे बड़ी चिंता तो बेरोजगारी को लेकर है, फिर भी ज्यादातर राज्यों में मतदाताओं ने भाजपा को वोट देकर फिर से सत्ता सौंपी है। यह मसला सरकार का फिर से पीछा करेगा। वित्त मंत्री के पहले बजट की परीक्षा ही इसी से होगी कि आर्थिक वृद्धि और रोजगार पैदा करने के लिए के लिए बजट में क्या संभावना है। रोजगार पर वित्त मंत्री को मुद्रा लोन, उबर चालरों और ईपीएफओ के आंकड़ों से नहीं लुभाना चाहिए। बेरोजगारी का पता लगाने का एक मात्र विश्वसनीय तरीका आवर्ती श्रम-बल सर्वे है। वित्त मंत्री को याद रखना चाहिए कि बेरोजगारी की दर 6.1 फीसद है जो पैंतालीस साल में सबसे ज्यादा है।

श्रीमती निर्मला सीतारमण को मौजूदा आर्थिक हालत विरासत में मिली है। वे हमारी शुभभकामनाओं और विश्व के तमाम सौभाग्यों की हकदार हैं।

[इंडियन एक्सप्रेस में ‘अक्रॉस दि आइल’ नाम से छपने वाला पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम। जनसत्ता में यह ‘दूसरी नजर’ नाम से छपता है। पेश है जनसत्ता का अनुवाद, साभार पर संशोधित। जनसत्ता में इसका शीर्षक है, “विरासत में मिली अर्थव्यवस्था”। इंडियन एक्सप्रेस में शीर्षक है, “दि इकनोमी दैट सी इनहेरीटेड?”।]

(पी चिदंबरम के साप्ताहिक कॉलम का हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने किया है।)

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