कश्मीर में 80% से अधिक पेलेट पीड़ित दृष्टि खो चुके हैं: अध्ययन

Written by Anees Zargar | Published on: November 11, 2022
अध्ययन में दृढ़ता से सलाह दी गई है कि नागरिकों पर पैलेट गन का इस्तेमाल न किया जाए


File Photo.
 
श्रीनगर: हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि पैलेट गन के शिकार ज़्यादातर लोगों की एक या दोनों आंखों की रोशनी चली गई है और उन पीड़ितों की आंखों में रोशनी न के बराबर रह गई है।

इस समय "पैलेट गन के घायलों के मैनेजमेंट, क्लिनिकल फाइंडिंग तथा और इससे जुड़ी घटनाओं की जांच" करने के लिए इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी द्वारा प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि इलाज के बाद अंतिम "बेस्ट-कॉरेक्टेड विजुअल एक्यूटि (बीसीवीए) बहुत मामूली तौर पर देख पा रहे थे या 82.4% पीड़ितों की आंखें ख़राब थीं।

इस रिपोर्ट के लेखक जिनमें मुख्य रूप से मुंबई के एक प्रमुख रेटिना सर्जन डॉ. एस नटराजन हैं। उन्होंने आंखों की रोशनी ख़त्म होने से बचने के लिए नागरिकों के ख़िलाफ़ पैलेट गन इस्तेमाल न करने का पुरज़ोर विरोध किया है।

उन्होंने आगे कहा कि, "ख़राब रोशनी, इलाज पर ज़्यादा ख़र्च और कामकाजी उम्र के इन युवा मरीज़ों में लंबे समय तक रोशनी वापस लाने की प्रक्रिया घायल व्यक्ति और समाज दोनों पर शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक-आर्थिक बोझ डालती है।"

हाल के अध्ययन में पाया गया है कि पीड़ितों में ज़्यादातर युवा पुरुष हैं जिनकी दोनों आंखें चोटिल हैं। इस अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि सर्जरी होना ज़रूरी था और शीघ्र इलाज के बावजूद "रोशनी ख़राब रही।"

इस रिपोर्ट को श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल के संस्थागत समीक्षा बोर्ड द्वारा मंज़ूरी दी गई थी। इस रिपोर्ट हेलेंसिकी की घोषणा के अनुसार तैयार किया गया था। हेलेंसिकी की घोषणा नैतिक सिद्धांतों का एक सेट है जिसे चिकित्सा अनुसंधान में मानव प्रतिभागियों की सुरक्षा का मार्गदर्शन करने के लिए वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित गया है।

यह अध्ययन 777 पीड़ितों के रिकॉर्ड पर आधारित है। इन पर जुलाई और नवंबर 2016 के बीच पैलेट गन का इस्तेमाल किया गया था जिससे उनकी आंखें चोटिल हो गई थीं। यह ऐसा समय था जब कश्मीर में 8 जुलाई, 2016 को आतंकी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद हिंसा में भारी वृद्धि हो गई थी।

इस अध्ययन में कहा गया है कि, "लैटरलिटी की बात करें तो मरीज़ों की एक आंख और दोनों आंख क्रमशः 94.3% और 5.7% चोटिल हैं। चोट की प्रकृति के मामले में, 76.3% आंखों में ओपन ग्लोब इंजरी थी, जबकि 23.7% में क्लोज्ड आई इंजरी थी।"

इस अध्ययन में आगे कहा गया है कि 67.7% क्लोज्ड ग्लोब इंजरी में आपात सर्जरी किया गया था, जबकि आपात प्राथमिक उपचार 91.1% ओपन ग्लोब इंजरी में की गई थी।

इसमें उल्लेख किया गया कि, "अधिकांश मरीज़ों (98.7%) को सर्जरी की आवश्यकता थी और उन्हें दाख़िले के दिन या अगले दिन सर्जरी की गई।"

पैलेट  गन को 2010 के आसपास कश्मीर में पारंपरिक बैलिस्टिक-आधारित हथियारों के ख़िलाफ़ विरोध को दबाने के लिए गैर-घातक साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया था। तब से, हज़ारों युवाओं पर पैलेट गन से गोलियां मारी गई हैं और क़रीब से गोली मारने के चलते कथित तौर पर कई की तो मौत भी हो गई है। सैकड़ों लोगों के कम से कम एक या दोनों आंखों की रोशनी जाने के बाद छर्रों का इस्तेमाल करने को लेकर विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने जम्मू-कश्मीर में अधिकारियों की गंभीर आलोचना की है। पीड़ितों में 18 महीने से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं।

दक्षिण कश्मीर के पैलेट गन के एक पीड़ित जिनकी एक आंख की रोशनी पूरी तरह से जा चुकी है उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके जैसे पीड़ितों के लिए समस्याएं तब से और बढ़ गई हैं। शुरुआत में हमदर्दी होती है लेकिन बाद में पीड़ित न केवल रोशनी खो देते हैं बल्कि वे अपने परिवार, दोस्त और रिश्तेदार भी खो देते हैं।

पीड़ित ने अधिकारियों की कार्रवाई के डर के कारण नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, "अधिकारियों की ओर से उत्पीड़न होता है जो उनकी हिंसा का शिकार होने के बावजूद कभी ख़त्म नहीं होता है। यह निरंतर जारी रहता है। अगर यह रुक जाता है तो यह राहत की बात होगी।”

Courtesy: Newsclick

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