NRC के खौफ ने असम में एक और जान ले ली

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 1, 2020
बारपेटा से फ़याज़ल हक नामक व्यक्ति एक हृदयहीन राज्य प्रदत्त संस्थागत हत्या का नवीनतम शिकार बन गया।



असम में एनआरसी का खामियाजा भुगत रहे लोगों में से एक और व्यक्ति ने जान दे दी। 42 वर्षीय फ़याज़ल हक ने कथित रूप से अपनी जान दे दी, जो एनआरसी से संबंधित चिंता और पीड़ा का सामना करने में असमर्थ था।

होक एक शहरी मजदूर था जो बारपेटा जिले के कोडोमटोला में अपने घर पर मृत पाया गया। उसने कथित तौर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके परिवार में अब उसकी पत्नि जो खुद एक दिहाड़ी मजदूर है और 12 व 7 साल की दो बेटियाँ हैं।

“उनके परिवार ने बताया कि उनके खिलाफ डी वोटर का मामला था, जिसके परिणामस्वरूप उनका नाम NRC से बाहर कर दिया गया था। वह अपनी नागरिकता साबित करने के लिए काफी दौड़धूप कर रहा था लेकिन सफलता नहीं मिली। सीजेपी वालंटियर मोटिवेटर माजिदुल इस्लाम कहते हैं कि वह एक महीने से काफी उदास हो गया और पूरी उम्मीद व ताकत खोने के बाद अपनी जान ले ली।

पुलिस ने कल उसके घर का दौरा किया और हक का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।

CJP पिछले एक साल से इन संस्थागत हत्याओं की जानकारी संकलित कर रहा है। उम्मीद खोने वाले लोग विशेषतौर पर आर्थिक रूप से पिछड़े और सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों से हैं। ये भागदौड़ के बाद ये मान लेते हैं कि उनके पास अपनी जान लेने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इनमें बहुत से दिहाड़ी मजदूर हैं जिनके परिवार में भूखे रहने की नौबत है क्योंकि असम के कुख्यात फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स के सामने पेश होने के कारण वे काम पर नहीं जा पाते हैं। ये एफटी, बदले की भावना से प्रतिकूल निर्णय पारित करने के लिए कुख्यात हैं, जो अभियुक्तों की अनुपस्थिति में, या दस्तावेजों में मामूली विसंगतियों के कारण लोगों की नागरिकता को संदिग्ध करार देते हैं। कई बार यह भी सामने आता है कि एफटी अभियुक्तों के वास्तविक माता-पिता को अनुमानित माता-पिता करार दे देते हैं।

यह सब बेहद अपमानजनक, बोझिल, समय लेने वाला है और अपनी रोजी चला रहे लोगों को पुलिस के हवाले करने के लिए काफी है। एक डिटेंशन सेंटर में अमानवीय स्थितियों के बीच रहने के लिए मजबूर लोग भय के चलते ही अपनी जान ले लेते हैं।

एनआरसी की अंतिम अद्यतन सूची अगस्त 2019 में जारी की गई थी, और इसमें 19 लाख से अधिक लोगों को छोड़ दिया गया। भाजपा की अगुवाई वाली असम सरकार ने कथित तौर पर इस एनआरसी को केवल इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि बड़ी संख्या में बहिष्कृत बंगाली हिंदू थे, जो धार्मिक विभाजन की उनकी राजनीति के लिए एक संभावित वोट बैंक थे। लेकिन असम के लोग सरकार की भेदभावपूर्ण विभाजन की मंशा के खिलाफ खड़े हैं। यही कारण है कि जब बांग्लादेश, असम सहित तीन पड़ोसी देशों से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को वैध बनाने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पारित किया गया था, तो यहां की जनता ने अपनी पूरी शक्ति के साथ इसे खारिज करते हुए रक्षा मुहिम शुरू की।

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