अब सर्विलांस स्टेट बनने जा रहा भारत, आरोग्य सेतु ऐप से आपकी हर गतिविधि पर नजर रखेगी सरकार

Written by Girish Malviya | Published on: May 8, 2020
भारत अब सर्विलांस स्टेट बनने जा रहा है जहाँ आपकी हर गतिविधियों पर सरकार की नजर बनी रहेगी, आप कहा जा रहे है? क्या खा रहे है? क्या पी रहे हैं? क्या बोल रहे है? आपकी विचाधारा क्या है? सब बातों पर बिग बॉस की नजर है BIG BOSS WATCHING YOU !



इस आरोग्य सेतु एप्प की सिक्योरिटी को लेकर रोज नए नए तथ्य सामने आ रहे हैं जिनसे यह खुलासा हो रहा है कि यह बिल्कुल भी सुरक्षित नही है हालांकि सरकार इसकी सुरक्षा का दावा कर रही हैं। आज फ्रांस के एक हैकर और साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट इलियट एल्डर्सन ने दावा किया था कि आरोग्य सेतु एप की सुरक्षा में खामियां हैं। इलियट एल्डर्सन ने आज आरोग्य सेतु एप को हैक करने का भी दावा किया है। इलियट एल्डर्सन ने ट्वीट करके कहा है कि आरोग्य सेतु एप एक ओपन सोर्स एप है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि पीएमओ ऑफिस में पांच लोगों की तबीयत खराब है और यह जानकारी उन्हें आरोग्य सेतु एप से ही मिली है। यह वही है जिन्होंने पिछले साल आधार की सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़े किए थे

आरोग्य सेतु एप्प को दरअसल सर्विलांस स्टेट की तरफ ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है। कोरोना के बहाने जिस तरह से हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आरहण किया जा रहा है उस पर तुरंत चेत जाने की आवश्यकता है। कल जो नोएडा में हुआ है वही पूरे देश मे होने वाला है। वहाँ के पुलिस उपायुक्त ने अपने एक आदेश में कहा है कि लॉकडाउन 3.0 के दौरान जो भी स्मार्टफोन यूज़र घर से बाहर निकलता है, तो उसके फोन में आरोग्य सेतु ऐप का होना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो व्यक्ति पर कानूनी एक्शन भी लिया जा सकता है।

यह तो बात हुई नोएडा की, लेकिन अब अन्य राज्यों ने भी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वालों पर इस एप को अपने फोन में इंस्टॉल करने की बाध्यता लागू कर दी है, जिस तरह से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के सभी कर्मियों के लिए भी इस एप को इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया गया है। वह आश्चर्यजनक है इसमे सबसे बड़ी बात यह है कि संबंधित कंपनी के प्रमुख की जिम्मेदारी होगी कि वो सभी कर्मियों के फोन में इस ऐप का होना सुनिश्चित करें। अगर वो ऐसा नही करता है तो निदेशक, प्रबंधक, सचिव या किसी अन्य अधिकारी की ओर से कोई लापरवाही साबित होने पर उसे दंडित करने का भी प्रावधान है।

यानी एक तरफ तो आप बिना किसी कानूनी आधार के इस एप्प को अनिवार्य कर रहे हो और वही इंस्टाल नही कराने पर दंडात्मक प्रावधान कर रहे हो।

डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 और एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 केंद्र और राज्य सरकारों को काफी ज्यादा अधिकार देते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नही है कि आप किसी की निजता का उसकी प्राइवेसी का अतिक्रमण करो.....एपिडेमिक डिसीजेज एक्ट, जिसका इस्तेमाल आदेशों को लागू करवाने के लिए अभी राज्य सरकारें कर रही हैं, तब भी सरकार को इस तरह के ऐप के जरिए लोकेशन डाटा इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देता।

ये ऐप लोगों का डेटा और उनकी आवाजाही को रिकॉर्ड करता है तो निजता के अधिकार का मामला बनता है। केंद्र या राज्य सरकार या फिर डीएम अगर ऐसा आदेश देते हैं, तो साफ बताना पड़ेगा कि आदेश का लीगल आधार क्या है। ऐसा न करने पर आदेश सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार पर फैसले का उल्लंघन होगा।

अक्सर ऐसी सर्विलांस एप्प का बचाव करते हुए लोग ताइवान, साउथ कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों में मौजूद इसी तरह की ऐप का हवाला देते हैं लेकिन वो भूल जाते हैं कि वहाँ की सरकारें ऐसी आक्रामक निगरानी प्रक्रिया को अपनाने से पहले पारदर्शिता का पूरा ध्यान रखती हैं। इन सभी देशों में निजी डाटा की सुरक्षा को लेकर एक ढांचा तैयार है, जो कि डाटा जमा करने की प्रक्रिया, उसके इस्तेमाल और गोपनीयता की सुविधाओं में कमी पर सरकार की जवाबदेही तय करता है।

लेकिन भारत में ऐसा कोई फ्रेमवर्क तैयार नही है, सरकार ने 2019 में जो निजी डाटा संरक्षण विधेयक पेश किया था वो आज भी संयुक्त संसदीय समिति की जांच से गुजर रहा है। इस निजी डाटा संरक्षण अधिनियम के पहले प्रारूप में बुनियादी तौर पर सहमति पर जोर था। लेकिन आज बिल का जो प्रारूप है उसके तहत खास परिस्थितियों में, जिसमें मेडिकल इमरजेंसी भी शामिल है, डाटा के इस्तेमाल के लिए सहमति को अपवाद के तौर पर रखा गया है।

यानी साफ है कि ऐसे प्रावधानों का हवाला देकर जल्द ही सरकार एक अध्यादेश के जरिए इस आरोग्य सेतु एप्प को अनिवार्य करने का आदेश जारी भी कर सकती हैं। इसी बात की सम्भावनाए सबसे अधिक लग रही है और मेडिकल इमरजेंसी के नाम पर न्यायालय भी इसे सही ठहरा सकता है।

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