केंद्र सरकार ने संसद को जानकारी दी कि पिछले पांच वर्षों में कितने आरटीआई आवेदनों में सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, क्योंकि केंद्रीय सूचना आयोग इस तरह का डेटा तैयार नहीं करता। कार्यकर्ताओं का कहना है कि आरटीआई कानून का उद्देश्य धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है और लंबित आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

सरकार ने संसद को बताया है कि बीते पांच वर्षों में कितनी आरटीआई आवेदनों का बिना जवाब लौटाया गया या जानकारी देने से इनकार किया गया, इस संबंध में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि केंद्रीय सूचना आयोग ऐसे डेटा का संकलन नहीं करता।
राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के तहत तृणमूल कांग्रेस के सांसद ऋतब्रत बनर्जी ने पूछा़ था कि पिछले पांच वर्षों में आरटीआई कानून, 2005 के तहत कितनी अर्ज़ियां दायर हुईं, कितनी खारिज की गईं, कितनी बिना जवाब रह गईं या जिनमें सूचना देने से इनकार किया गया और वर्ष-दर-वर्ष कितनी अर्ज़ियों का जवाब दिया गया, इसका विस्तृत ब्यौरा क्या है।
बिना जवाब रह जाने या सूचना देने से इनकार की गई अर्ज़ियों की संख्या से जुड़े प्रश्न के उत्तर में कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि ‘केंद्रीय सूचना आयोग ने स्पष्ट किया है कि वह इस तरह का कोई डेटा संकलित नहीं करता।’
हालांकि, अपने उत्तर में सिंह ने दायर, खारिज और निस्तारित आरटीआई अर्ज़ियों का आंकड़ा प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कुल 17,50,863 आरटीआई अर्ज़ियां दायर हुईं, इनमें से 67,615 खारिज कर दी गईं और 14,30,031 अर्ज़ियों का उत्तर दिया गया।
सिंह ने यह भी जानकारी दी कि वर्ष 2022-23 में कुल 16,38,784 आरटीआई अर्जियां दायर की गईं, जिनमें से 52,662 को खारिज किया गया और 13,15,222 अर्ज़ियों का उत्तर दिया गया।
वर्ष 2021-22 में कुल 14,21,226 आरटीआई अर्जियां दायर की गईं, जिनमें से 53,733 को खारिज किया गया और 11,31,757 अर्जियों का उत्तर दिया गया।
उनके उत्तर में बताया गया कि वर्ष 2020-21 में 13,33,802 और 2019-20 में 13,74,315 आरटीआई आवेदन दायर किए गए थे। 2019-20 में 10,86,657 आवेदनों का उत्तर दिया गया, जबकि उस वर्ष कितने आवेदनों के जवाब नहीं दिए गए, इसका विस्तृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
द वायर ने लिखा, केंद्र सरकार ने यह जानकारी उपलब्ध नहीं कराई कि किन-किन आरटीआई आवेदनों में सूचना देने से इनकार किया गया था।
यह मुद्दा हाल ही में इसलिए चर्चा में आया है क्योंकि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023 को पिछले महीने चरणबद्ध रूप से लागू करने के लिए अधिसूचित किया गया। इस कानून की धारा 44(3) आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(j) में संशोधन करती है, जिसके परिणामस्वरूप अब सभी व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करने से छूट मिल जाती है।
इसके अलावा, 14 सितंबर से केंद्रीय सूचना आयोग केवल दो सूचना आयुक्तों के साथ कार्य कर रहा है, जबकि मुख्य सूचना आयुक्त और आठ अन्य सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े हैं।
पारदर्शिता पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसी स्थिति ने ऐसा माहौल पैदा कर दिया है, जो आरटीआई कानून के मूल उद्देश्य को कमजोर कर देता है।
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सरकार ने संसद को बताया है कि बीते पांच वर्षों में कितनी आरटीआई आवेदनों का बिना जवाब लौटाया गया या जानकारी देने से इनकार किया गया, इस संबंध में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि केंद्रीय सूचना आयोग ऐसे डेटा का संकलन नहीं करता।
राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के तहत तृणमूल कांग्रेस के सांसद ऋतब्रत बनर्जी ने पूछा़ था कि पिछले पांच वर्षों में आरटीआई कानून, 2005 के तहत कितनी अर्ज़ियां दायर हुईं, कितनी खारिज की गईं, कितनी बिना जवाब रह गईं या जिनमें सूचना देने से इनकार किया गया और वर्ष-दर-वर्ष कितनी अर्ज़ियों का जवाब दिया गया, इसका विस्तृत ब्यौरा क्या है।
बिना जवाब रह जाने या सूचना देने से इनकार की गई अर्ज़ियों की संख्या से जुड़े प्रश्न के उत्तर में कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि ‘केंद्रीय सूचना आयोग ने स्पष्ट किया है कि वह इस तरह का कोई डेटा संकलित नहीं करता।’
हालांकि, अपने उत्तर में सिंह ने दायर, खारिज और निस्तारित आरटीआई अर्ज़ियों का आंकड़ा प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कुल 17,50,863 आरटीआई अर्ज़ियां दायर हुईं, इनमें से 67,615 खारिज कर दी गईं और 14,30,031 अर्ज़ियों का उत्तर दिया गया।
सिंह ने यह भी जानकारी दी कि वर्ष 2022-23 में कुल 16,38,784 आरटीआई अर्जियां दायर की गईं, जिनमें से 52,662 को खारिज किया गया और 13,15,222 अर्ज़ियों का उत्तर दिया गया।
वर्ष 2021-22 में कुल 14,21,226 आरटीआई अर्जियां दायर की गईं, जिनमें से 53,733 को खारिज किया गया और 11,31,757 अर्जियों का उत्तर दिया गया।
उनके उत्तर में बताया गया कि वर्ष 2020-21 में 13,33,802 और 2019-20 में 13,74,315 आरटीआई आवेदन दायर किए गए थे। 2019-20 में 10,86,657 आवेदनों का उत्तर दिया गया, जबकि उस वर्ष कितने आवेदनों के जवाब नहीं दिए गए, इसका विस्तृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
द वायर ने लिखा, केंद्र सरकार ने यह जानकारी उपलब्ध नहीं कराई कि किन-किन आरटीआई आवेदनों में सूचना देने से इनकार किया गया था।
यह मुद्दा हाल ही में इसलिए चर्चा में आया है क्योंकि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023 को पिछले महीने चरणबद्ध रूप से लागू करने के लिए अधिसूचित किया गया। इस कानून की धारा 44(3) आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(j) में संशोधन करती है, जिसके परिणामस्वरूप अब सभी व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करने से छूट मिल जाती है।
इसके अलावा, 14 सितंबर से केंद्रीय सूचना आयोग केवल दो सूचना आयुक्तों के साथ कार्य कर रहा है, जबकि मुख्य सूचना आयुक्त और आठ अन्य सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े हैं।
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