यूपी चुनाव: अमित शाह की रैली में निषादों ने दिखाया रौद्र रूप, कुर्सियां तोड़ीं

Written by Navnish Kumar | Published on: December 20, 2021
तीन दिन पहले शुक्रवार को रमाबाई मैदान में आयोजित केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली में निषादों का गुस्सा फूट पड़ा। वादे के अनुरूप आरक्षण की घोषणा न होने से निषाद समाज के लोगों का धैर्य जवाब दे गया और गुस्सा फूट पड़ा। कुर्सियां तोड़ी गईं। कुर्सियों को इधर उधर फेंकते हुए निषादों ने दो टूक कहा कि आरक्षण नहीं तो बीजेपी नहीं।



दरअसल लोगों को बताया गया था कि रैली में अमित शाह निषाद (मछुआरा) समाज के लिए आरक्षण की घोषणा करेंगे। जो नहीं हुई तो लोगों ने उनके साथ धोखा करने के आरोप लगाए और कुर्सियां तोड़कर गुस्सा जाहिर किया। अमित शाह की सभा से निकलने के बाद अनुसूचित जाति के आरक्षण की आस लगाए बैठे निषाद समाज के तमाम लोगों ने बीजेपी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया। शाह की सभा से निकले लोगों ने कहा कि वह अपनी जाति का आरक्षण चाहते हैं और अगर यह नहीं मिला तो बीजेपी को वोट नहीं देंगे। निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद ने भी इसको लेकर नाराजगी जताई है और सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है।

अमित शाह की रैली में आरक्षण को लेकर कोई ऐलान न होने से निषाद समाज के लोगों का गुस्सा कैमरों में कैद हो गया। निषाद पार्टी के समर्थक भाजपा को वोट न देने की बात कहते दिखाई दिए। वहीं, संजय निषाद ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा है कि अगर भाजपा को निषाद समाज का वोट चाहिए, उन्हें इस समाज के लोगों का ख्याल भी रखना होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पत्र में निषाद पार्टी प्रमुख ने कहा है, ”गृह मंत्री ने कहा कि सरकार बनने पर हमारे मुद्दों का समाधान होगा, लेकिन कुछ मुद्दों का सरकार बनने से पहले हल निकलेगा तो इसका विशेष फायदा निषादों को होगा, ये मुद्दा आरक्षण का है।” संजय निषाद ने आगे कहा है, ”रैली में मुझपर भरोसा जताते हुए मेरे कार्यकर्ता आए थे, मैंने भी कहा था कि बीजेपी हमारे मुद्दों की वकालत करती आई है। आज अमित शाह को कुछ न कुछ इस पर बोलना चाहिए था।”



रमाबाई मैदान में आयोजित रैली में निषाद समाज के लिए आरक्षण की घोषणा होनी थी। इसी ख़ास घोषणा को लेकर यहां हज़ारों की संख्या में निषाद समाज के लोग आए थे, लेकिन ऐसी कोई घोषणा न होने से संजय निषाद भी खासे नाराज दिखे। संजय निषाद ने कहा, ‘’मेरे कार्यकर्ता मुझ पर भरोसा करके रैली में आए। मंच पर मैंने कहा भी कहा था कि बीजेपी हमारे मुद्दों की वकालत करती आई है। बीजेपी आज मालिक है। अमित शाह जी को आज कुछ न कुछ कहना चाहिए था। अमित शाह ने कहा कि सरकार बनने पर हमारे मुद्दों का हल होगा, लेकिन कुछ मुद्दों को सरकार बनने से पहले हल होंगे तो विशेष फायदा निषादों को होगा। ये आरक्षण का मुद्दा है।’’ संजय निषाद ने आगे कहा, ‘’हमारा समाज अमित शाह और मुझसे खुश था। 2022 में बीजेपी को सरकार बनानी है तो निषादों के युवाओं का ख्याल रखना होगा। अमित शाह जब बोल रहे थे तो हमारे लोग हाथ हिला रहे थे कि आरक्षण नहीं तो वोट नहीं, लेकिन हमने मना किया। कुछ लोगों ने बीजेपी के साथ रहने के लिए मना किया। 160 सीटों पर निषाद जगे हुए हैं, लेकिन हमारा प्रभाव 400 सीटों पर है। मैं बीजेपी के साथ हूं।’’

संजय निषाद ने कहा, ‘‘हमारा आरक्षण जब देश आजाद हुआ, उस वक्त से ही लागू है। 1992 तक ये आरक्षण हमें मिलता रहा है। बहुजन समाज पार्टी ने इसे लूटने का प्रयास किया। सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट भी कहती है कि जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। हमें कुछ मिलना नहीं है, संविधान में जो इस आरक्षण पर धूल पड़ी थी, बस वही हटाई जा रही है।’’ हालांकि बाद में संजय निषाद ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि निषादों के सभी मुद्दों को हल करेंगे। उन्होंने कहा कि लम्बी प्रक्रिया है इसलिए समय लग रहा है लेकिन बीजेपी के साथ रहकर ही आने वाले समय में आरक्षण पाया जा सकता है। डॉ संजय निषाद ने कहा कि ओम प्रकाश राजभर कुछ भी कहें लेकिन वो बीजेपी की ही नैया पार लगाने का काम करेंगे। उधर बिहार के मंत्री मुकेश सहनी के दुकान चलाने के आरोप पर डॉ संजय निषाद ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बीजेपी सत्ता में है और सत्ता में बैठी पार्टी ही निषादों को आरक्षण दे सकती है। उन्होंने कहा कि सपा बसपा के एजेंट उनकी रैली के फ़र्ज़ी वीडियो सोशल मीडिया में फैला रहे हैं। 

खास है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में निषाद समाज ओबीसी की श्रेणी में आते हैं जबकि दिल्ली और दूसरे राज्य में अनुसूचित जाति में शामिल हैं। ऐसे में लंबे समय से निषाद समाज को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल कराने की मांग उठ रही है। बिहार में तो केंद्र सरकार साफ मना कर चुकी है कि निषाद समाज को एससी में शामिल नहीं किया जाएगा, लेकिन यूपी में निषाद समाज की उम्मीदें लगी हुई हैं। निषाद समाज के लोगों का दावा है कि 1961 में जनगणना के लिए केंद्र सरकार ने एक मैनुअल सभी राज्य सरकारों को भेजा था, जिसमें कहा गया था कि केवट, मल्लाह जाति को मझवार में गिना जाए। इस संबंध में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को कुछ जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अधिसूचना भेजी थी। ऐसे में पिछले 70 सालों में निषादों को कभी एससी में शामिल किया गया, तो कभी पिछड़ा वर्ग में गिना गया। दिसंबर 2016 में तत्कालीन सपा सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के आरक्षण अधिनियम-1994 में संशोधन कर केवट, बिंद, मल्लाह, नोनिया, मांझी, गौंड, निषाद, धीवर, बिंद, कहार, कश्यप, भर और राजभर को ओबीसी की श्रेणी से एससी में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। केंद्र सरकार ने इसे न तो स्वीकार किया और न ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मुहर लगाई। 

इससे पहले मुलायम सिंह यादव ने 2007 चुनाव से पहले इन्हीं 17 जातियों को एससी में शामिल कराने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा था। वहीं अब 2022 चुनाव से ठीक पहले निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल कराने की मांग उठी है, वो बीजेपी की गले ही फांस बन गया है। बीजेपी सरकार निषाद समाज की जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का कदम उठाती है तो पहले से शामिल दलित जातियों की नाराजगी बढ़ सकती है। दलित समुदाय की तमाम जातियां जैसे पासी, बाल्मीकि, धोबी जो बीजेपी के वोटबैंक बन गए हैं.. ये बीजेपी नाराज हो सकता है। यही नहीं राजभर जैसी दूसरी अतिपिछड़ी जातियां भी एससी में शामिल होने की मांग तेज कर देंगी। इसीलिए केंद्र की मोदी सरकार बिहार में इससे कदम पीछे खींच चुकी है और यूपी में भी खामोशी अख्तियार कर रखा है। अब बीजेपी पूर्वांचल में राजभर समाज के बाद निषादों का साथ नहीं छूटने भी देना चाहती है। इसलिए बैठकों और मंथन का दौर जारी है। 

ऐसे में लाख मंथन की बात हो लेकिन फिलहाल निषादों के आरक्षण का मुद्दा बीजेपी और डॉ संजय निषाद दोनों के गले की फांस बनता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए अगर बीजेपी को जातिगत समीकरण की जुगत बिठानी है तो उसे चुनाव से पहले निषाद समाज के अनुसूचित जाति के आरक्षण का सम्मानजनक हल तलाशना ही होगा। वैसे यह इतना आसान भी नहीं है। कुल मिलाकर एक तरफ कुआं और एक तरफ खाई की स्थिति है। ऐसे में यह मुद्दा बीजेपी के लिए चुनाव में कितनी बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है, को बीजेपी भी बखूबी जान समझ रही है।

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