दीवाली की छुट्टी के बाद आज अखबार आए और आज के पहले पन्ने की दो खबरें सबको मालूम थीं, वही हैं। एक खबर तो दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी अबू-बकर अल-बगदादी (48) के मारे जाने की है। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इस घोषणा से पहले तीन बार रूस, सीरिया, इराक की सेना भी बगदादी के मारे जाने का एलान कर चुकी है। दूसरी खबर यूरोपीय यूनियन की संसद के 27 सदस्यों के कश्मीर जाने की है। यह खबर दो कारणों से महत्वपूर्ण है - कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा के बाद देश के सांसदों और कश्मीर के नेताओं को कश्मीर नहीं जाने देना और कश्मीर को भारत का अंदरुनी मामला बताने के बावजूद विदेशी सांसदों को कश्मीर जाने देना - अपने आप में अजीब है और "नामुमकिन मुमकिन है" कहने वाले राज में ही हो सकता है। ऐसे में गोदी मीडिया में इसकी प्रस्तुति दिलचस्प होनी ही थी।
आइए, आज इस खबर की प्रस्तुति और शीर्षक का स्वाद लेते हैं। इस खबर के कारण कश्मीर जो पहले पन्ने पर बहुत कम होता था, पहले पन्ने पर नजर आ रहा है। कुछ अखबारों ने यूरोपीय सांसदों के कश्मीर जाने की 'पुरानी' खबर सीधे इसी शीर्षक से नहीं छापी है पर 'फिर' ट्रक चालक की हत्या पहले पन्ने पर आ गई है। भले पहली दफा की हत्या पहले पन्ने पर नहीं थी। खबरों के लिहाज से पहली बार हत्या हो तो महत्वपूर्ण होती ही है दोबारा हो जाए तो और महत्वपूर्ण है। इसलिए पहली हत्या को नहीं छापना या पहले पन्ने पर नहीं छापना और दूसरी को पहले पन्ने पर छापना सब संपादकीय विवेक और स्वतंत्रता का मामला है। सब को सही ठहराया जा सकता है।
आइए देखें, कश्मीर के अंदरुनी मामले में विदेशी सांसदों को दखल देने की अनुमति के मूल मुद्दे से भटकाने और भटकते हुए अखबारों ने क्या शीर्षक लगाए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि शीर्षक का मकसद, "विदेशी सांसद कश्मीर जाएंगे" की पुरानी खबर को नया बनाना भी हो सकता है। अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, ईयू सांसद प्रधानमंत्री से मिले, जम्मू और कश्मीर का दौरा आज शुरू करेंगे। इसके साथ ही छोटा सा बॉक्स है, ट्रक ड्राइवर की हत्या। इसमें अंदर लिखा है कि यह ऐसी चौथी हत्या है। कश्मीर में सब ठीक है कि बीच चौथी हत्या पहले पन्ने पर नौ लाइन में निपटा देना और विस्तृत खबर अंदर होना साधारण नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है, ईयू के सांसद आज जम्मू व कश्मीर जाएंगे, नाराज विपक्ष ने सरकार से कहा, आपने हम नहीं जाने दिया। इंडियन एक्सपप्रेस ने इसके साथ सिंगल कॉलम में ट्रक ड्राइवर की हत्या की खबर छापी है। इसका शीर्षक है, एक और ट्रक चालक मारा गया, ग्रेनेड हमले में 19 जख्मी। एक्सप्रेस में यह खबर ठीक-ठाक लंबी है और दो बाईलाइन के साथ अगले पन्ने पर जारी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्षक में अनुमति शब्द का पयोग किया गया है जो सरकार के विशेषाधिकार या विशेषाधिकार के उपयोग को रेखांकित करता है। मुख्य शीर्षक है, "सरकार ने 27 यूरोपीय सांसदों को कश्मीर दौरे की अनुमति दी"। इंट्रो है, सांसदों का दौरा उनकी निजी हैसियत से है। मैं नहीं जानता इसका मतलब क्या है और वे सांसद की हैसियत से जाते तो क्या अलग होता या और निजी हैसियत से वे विदेशी रह जाते हैं कि नहीं। और भारतीय विपक्षी सांसद की श्रेणी में आ जाते हैं क्या? अखबार ने एमपीज यानी सांसदों को सिंगल इनवर्टेड कॉमा में रखा है। इसका मतलब है कि यह सूचना उसकी नहीं है, किसी ने दावा किया है।
द टेलीग्राफ में इस खबर का शीर्षक है, यूरोप के सांसदों का स्वागत है, भारत के सांसदों का नहीं। फ्लैग शीर्षक है, दक्षिणपंथियों के प्रभुत्व वाले प्रतिनिधिमंडल को श्रीनगर के निजी निजी दौरे पर जाने की अनुमति। अखबार ने इसके साथ सांसदों की तस्वीर और उनका नाम छापा है जिसे प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है। अखबार ने इन सांसदों का परिचय उनके नाम के आधार पर दो वर्गों में काराया है - एक है, दक्षिणपंथी, चरम दक्षिणपंथी या जनवादी तथा दूसरा वर्ग है गैर दक्षिणपंथी। अखबार ने उस यूरोपीय सांसद की भी पहचान की है जो अपनी टिप्पणियों में कश्मीर पर मोदी सरकार के स्टैंड का समर्थन कर चुके हैं। अखबार ने तस्वीर के ऊपर लिखा है, प्रधानमंत्री जी, क्यों नहीं उन्हें दिल्ली घूमने दिया जाए, कश्मीर पर एक रिपोर्ट तैयार करके विमान किराया बचाया जाए। इनका झुकाव कहता है कि इनमें से ज्यादातर आपको निराश नहीं करेंगे। खास बात यह है कि कुल 27 सांसदों में सिर्फ चार गैर दक्षिणपंथी हैं।
नवभारत टाइम्स ने इस खबर का लोकलुभावन शीर्षक लगाया है. दुनिया को कश्मीर का सच दिखाने की पहल। इसके साथ दो तस्वीरें हैं जिनके ऊपर द शीर्षक है, सोपोर के बस अड्डे पर धमाके में 20 जख्मी और दूसरा, आज घाटी का दौरा करेंगे ईयू के 20 सांसद। इस फोटो का कैप्शन है, मोदी ने यूरोपीय सांसदों से कहा कि आतंकवाद के खिलाफ सभी देशों को एक मंच पर आना होगा। मुझे लगता है कि आज की इस खबर में यह सबसे महत्वपूर्ण लाइन है और अखबारों को अगर सरकार की सेवा करनी है या समर्थन वाली लाइन ही लेनी है तो इसे प्रमुखता देना चाहिए था। यही वह आधार है जिसके सहारे आप कश्मीर जैसे अंदरूनी मामले में विदेशी सांसदों की निजी घुसपैठ करा सकते हैं। अब निजी घुसपैठ मुझे मालूम हो गई तो मैंने लिख दिया कायदे से इस तथ्य की कोई जरूरत ही नहीं रही। जब आतंकवाद खत्म करने पर 'काम' हो रहा है तो सब ठीक है। और इस मामले में प्रधानमंत्री की योग्यता, क्षमता और नीयत पर तो किसी को शक है नहीं। कुल मिलाकर, अखबार सरकार की सेवा या भक्ति भी कायदे से नहीं कर रहे हैं और यह प्रतिभा की कमी के कारण हो रहा होगा।
दैनिक हिन्दुस्तान ने इस खबर को एक गंभीर खबर की तरह पेश किया है, "आतंकी पनाहगाह देशों पर सख्ती हो : मोदी।" खबर के मुताबिक, उन्होंने यह बात यूरोपीय संघ (ईयू) के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल से कही। मोदी ने कहा कि आतंकवाद कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति होनी चाहिए। ईयू प्रतिनिधिमंडल के जम्मू-कश्मीर दौरे से पूर्व हुई इस मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी मौजूद थे। ईयू प्रतिनिधिमंडल ने उपराष्ट्रपति एम वेंकैया. नायडू से भी मुलाकात की।
अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, ईयू सांसदों के दौरे से पहले घाटी में आतंकी हमला, 20 घायल। अखबार ने लिखा है, जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा हटने के बाद किसी विदेशी दल का पहला दौरा। मुझे याद नहीं है कि हिन्दी अखबारों में किसी देसी दल के दौरे की खबर पहले पन्ने पर छपी हो। इस संबंध में मुझे 14 अक्तूबर की अपनी एक पोस्ट का शीर्षक याद आता है, “सूफी मिशन पर घाटी में बवाल” शीर्षक खबर कहीं दिखी? कहने की जरूरत नहीं है कि अभी तक कश्मीर की खबरें अखबारों में सामान्य रूप से नहीं छप रही थीं और आज सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश है। यह कोशिश जारी रहेगी या ऐसे ही कभी-कभी होगी यह भविष्य बताएगा।
दैनिक जागरण का शीर्षक अपने लक्ष्य और मकसद के अनुरुप सबसे स्पष्ट और बगैर किसी लाग-लपेट के है। मुख्य शीर्षक है, पाकिस्तान के दुष्प्रचार की हवा निकालेगा ईयू सांसदों का दल (हालांकि, मेरे जैसे जिन पाठकों को पाकिस्तान के दुष्प्रचार की हवा नहीं लगी उनके लिए दैनिक जागरण को पाकिस्तान के दुष्प्रचार की खबर भी देनी चाहिए थी, पर वह अलग मुद्दा है)। अखबार ने प्रमुखता से लिखी बातों में यह नहीं बताया है कि यूरोपीय सांसदों का यह दौरा उनकी निजी हैसियत से है बल्कि इसे 'कूटनीति' कहा है और उपशीर्षक है, अनुच्छेद 370 हटने के बाद आज कश्मीर पहुंचेगा विदेशी दल। दैनिक जागरण की प्रस्तुति से लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और एनएसए डोभाल ने 28 सदस्यीय यूरोपीय सांसदों के दल से मुलाकात कर कश्मीर में जो सब ठीक है उसे प्रचारित प्रसारित करने का अभियान शुरू किया है।
दैनिक भास्कर में इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, अनुच्छेद 370 हटाने के बाद ईयू सांसदों के दौरे से एक दिन पहले घाटी में दो आतंकी हमले (सब ठीक है के दावे का क्या हुआ, इसपर कुछ नहीं है)। मुख्य शीर्षक है, अनंतनाग में ट्रक ड्राइवर की हत्या, सोपोर में अटैक, 20 लोग घायल। अखबार ने मोदी यूरोपीय सासंदों से मिले और कांग्रेस ने कहा, यूरोपीय सांसदों को कश्मीर भेजना भारतीय संस्कृति का अपमान - शीर्षक से दो खबरं इसके साथ ही छापी हैं। यह खबर दूसरे अखबारों में प्रमुखता से नहीं है। यह विपक्ष की प्रतिक्रिया तो है ही, इसके साथ इसके महत्व को आप समझ सकते हैं। फिर भी इसे नहीं छापना या कहीं, अलग अंदर छापना आजकल की पत्रकारिता की विशेषता या जरूरत है।
नवोदय टाइम्स में इस खबर को आतंक के मददगारों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी शीर्षक से छापा है। इसके साथ राहुल गांधी की तस्वीर और ट्वीट भी है। एक अलग खबर, पठानकोट एयरबेस पर पहुंचे मोदी इसके साथ ही है जबकि कश्मीर में फिर ट्रक चालक की हमला और ग्रेनेड हमले में 20 घायल शीर्षक खबरें अलग और ऊपर हैं। या कहें सेकेंड लीड हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
आइए, आज इस खबर की प्रस्तुति और शीर्षक का स्वाद लेते हैं। इस खबर के कारण कश्मीर जो पहले पन्ने पर बहुत कम होता था, पहले पन्ने पर नजर आ रहा है। कुछ अखबारों ने यूरोपीय सांसदों के कश्मीर जाने की 'पुरानी' खबर सीधे इसी शीर्षक से नहीं छापी है पर 'फिर' ट्रक चालक की हत्या पहले पन्ने पर आ गई है। भले पहली दफा की हत्या पहले पन्ने पर नहीं थी। खबरों के लिहाज से पहली बार हत्या हो तो महत्वपूर्ण होती ही है दोबारा हो जाए तो और महत्वपूर्ण है। इसलिए पहली हत्या को नहीं छापना या पहले पन्ने पर नहीं छापना और दूसरी को पहले पन्ने पर छापना सब संपादकीय विवेक और स्वतंत्रता का मामला है। सब को सही ठहराया जा सकता है।
आइए देखें, कश्मीर के अंदरुनी मामले में विदेशी सांसदों को दखल देने की अनुमति के मूल मुद्दे से भटकाने और भटकते हुए अखबारों ने क्या शीर्षक लगाए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि शीर्षक का मकसद, "विदेशी सांसद कश्मीर जाएंगे" की पुरानी खबर को नया बनाना भी हो सकता है। अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, ईयू सांसद प्रधानमंत्री से मिले, जम्मू और कश्मीर का दौरा आज शुरू करेंगे। इसके साथ ही छोटा सा बॉक्स है, ट्रक ड्राइवर की हत्या। इसमें अंदर लिखा है कि यह ऐसी चौथी हत्या है। कश्मीर में सब ठीक है कि बीच चौथी हत्या पहले पन्ने पर नौ लाइन में निपटा देना और विस्तृत खबर अंदर होना साधारण नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है, ईयू के सांसद आज जम्मू व कश्मीर जाएंगे, नाराज विपक्ष ने सरकार से कहा, आपने हम नहीं जाने दिया। इंडियन एक्सपप्रेस ने इसके साथ सिंगल कॉलम में ट्रक ड्राइवर की हत्या की खबर छापी है। इसका शीर्षक है, एक और ट्रक चालक मारा गया, ग्रेनेड हमले में 19 जख्मी। एक्सप्रेस में यह खबर ठीक-ठाक लंबी है और दो बाईलाइन के साथ अगले पन्ने पर जारी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्षक में अनुमति शब्द का पयोग किया गया है जो सरकार के विशेषाधिकार या विशेषाधिकार के उपयोग को रेखांकित करता है। मुख्य शीर्षक है, "सरकार ने 27 यूरोपीय सांसदों को कश्मीर दौरे की अनुमति दी"। इंट्रो है, सांसदों का दौरा उनकी निजी हैसियत से है। मैं नहीं जानता इसका मतलब क्या है और वे सांसद की हैसियत से जाते तो क्या अलग होता या और निजी हैसियत से वे विदेशी रह जाते हैं कि नहीं। और भारतीय विपक्षी सांसद की श्रेणी में आ जाते हैं क्या? अखबार ने एमपीज यानी सांसदों को सिंगल इनवर्टेड कॉमा में रखा है। इसका मतलब है कि यह सूचना उसकी नहीं है, किसी ने दावा किया है।
द टेलीग्राफ में इस खबर का शीर्षक है, यूरोप के सांसदों का स्वागत है, भारत के सांसदों का नहीं। फ्लैग शीर्षक है, दक्षिणपंथियों के प्रभुत्व वाले प्रतिनिधिमंडल को श्रीनगर के निजी निजी दौरे पर जाने की अनुमति। अखबार ने इसके साथ सांसदों की तस्वीर और उनका नाम छापा है जिसे प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है। अखबार ने इन सांसदों का परिचय उनके नाम के आधार पर दो वर्गों में काराया है - एक है, दक्षिणपंथी, चरम दक्षिणपंथी या जनवादी तथा दूसरा वर्ग है गैर दक्षिणपंथी। अखबार ने उस यूरोपीय सांसद की भी पहचान की है जो अपनी टिप्पणियों में कश्मीर पर मोदी सरकार के स्टैंड का समर्थन कर चुके हैं। अखबार ने तस्वीर के ऊपर लिखा है, प्रधानमंत्री जी, क्यों नहीं उन्हें दिल्ली घूमने दिया जाए, कश्मीर पर एक रिपोर्ट तैयार करके विमान किराया बचाया जाए। इनका झुकाव कहता है कि इनमें से ज्यादातर आपको निराश नहीं करेंगे। खास बात यह है कि कुल 27 सांसदों में सिर्फ चार गैर दक्षिणपंथी हैं।
नवभारत टाइम्स ने इस खबर का लोकलुभावन शीर्षक लगाया है. दुनिया को कश्मीर का सच दिखाने की पहल। इसके साथ दो तस्वीरें हैं जिनके ऊपर द शीर्षक है, सोपोर के बस अड्डे पर धमाके में 20 जख्मी और दूसरा, आज घाटी का दौरा करेंगे ईयू के 20 सांसद। इस फोटो का कैप्शन है, मोदी ने यूरोपीय सांसदों से कहा कि आतंकवाद के खिलाफ सभी देशों को एक मंच पर आना होगा। मुझे लगता है कि आज की इस खबर में यह सबसे महत्वपूर्ण लाइन है और अखबारों को अगर सरकार की सेवा करनी है या समर्थन वाली लाइन ही लेनी है तो इसे प्रमुखता देना चाहिए था। यही वह आधार है जिसके सहारे आप कश्मीर जैसे अंदरूनी मामले में विदेशी सांसदों की निजी घुसपैठ करा सकते हैं। अब निजी घुसपैठ मुझे मालूम हो गई तो मैंने लिख दिया कायदे से इस तथ्य की कोई जरूरत ही नहीं रही। जब आतंकवाद खत्म करने पर 'काम' हो रहा है तो सब ठीक है। और इस मामले में प्रधानमंत्री की योग्यता, क्षमता और नीयत पर तो किसी को शक है नहीं। कुल मिलाकर, अखबार सरकार की सेवा या भक्ति भी कायदे से नहीं कर रहे हैं और यह प्रतिभा की कमी के कारण हो रहा होगा।
दैनिक हिन्दुस्तान ने इस खबर को एक गंभीर खबर की तरह पेश किया है, "आतंकी पनाहगाह देशों पर सख्ती हो : मोदी।" खबर के मुताबिक, उन्होंने यह बात यूरोपीय संघ (ईयू) के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल से कही। मोदी ने कहा कि आतंकवाद कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति होनी चाहिए। ईयू प्रतिनिधिमंडल के जम्मू-कश्मीर दौरे से पूर्व हुई इस मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी मौजूद थे। ईयू प्रतिनिधिमंडल ने उपराष्ट्रपति एम वेंकैया. नायडू से भी मुलाकात की।
अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, ईयू सांसदों के दौरे से पहले घाटी में आतंकी हमला, 20 घायल। अखबार ने लिखा है, जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा हटने के बाद किसी विदेशी दल का पहला दौरा। मुझे याद नहीं है कि हिन्दी अखबारों में किसी देसी दल के दौरे की खबर पहले पन्ने पर छपी हो। इस संबंध में मुझे 14 अक्तूबर की अपनी एक पोस्ट का शीर्षक याद आता है, “सूफी मिशन पर घाटी में बवाल” शीर्षक खबर कहीं दिखी? कहने की जरूरत नहीं है कि अभी तक कश्मीर की खबरें अखबारों में सामान्य रूप से नहीं छप रही थीं और आज सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश है। यह कोशिश जारी रहेगी या ऐसे ही कभी-कभी होगी यह भविष्य बताएगा।
दैनिक जागरण का शीर्षक अपने लक्ष्य और मकसद के अनुरुप सबसे स्पष्ट और बगैर किसी लाग-लपेट के है। मुख्य शीर्षक है, पाकिस्तान के दुष्प्रचार की हवा निकालेगा ईयू सांसदों का दल (हालांकि, मेरे जैसे जिन पाठकों को पाकिस्तान के दुष्प्रचार की हवा नहीं लगी उनके लिए दैनिक जागरण को पाकिस्तान के दुष्प्रचार की खबर भी देनी चाहिए थी, पर वह अलग मुद्दा है)। अखबार ने प्रमुखता से लिखी बातों में यह नहीं बताया है कि यूरोपीय सांसदों का यह दौरा उनकी निजी हैसियत से है बल्कि इसे 'कूटनीति' कहा है और उपशीर्षक है, अनुच्छेद 370 हटने के बाद आज कश्मीर पहुंचेगा विदेशी दल। दैनिक जागरण की प्रस्तुति से लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और एनएसए डोभाल ने 28 सदस्यीय यूरोपीय सांसदों के दल से मुलाकात कर कश्मीर में जो सब ठीक है उसे प्रचारित प्रसारित करने का अभियान शुरू किया है।
दैनिक भास्कर में इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, अनुच्छेद 370 हटाने के बाद ईयू सांसदों के दौरे से एक दिन पहले घाटी में दो आतंकी हमले (सब ठीक है के दावे का क्या हुआ, इसपर कुछ नहीं है)। मुख्य शीर्षक है, अनंतनाग में ट्रक ड्राइवर की हत्या, सोपोर में अटैक, 20 लोग घायल। अखबार ने मोदी यूरोपीय सासंदों से मिले और कांग्रेस ने कहा, यूरोपीय सांसदों को कश्मीर भेजना भारतीय संस्कृति का अपमान - शीर्षक से दो खबरं इसके साथ ही छापी हैं। यह खबर दूसरे अखबारों में प्रमुखता से नहीं है। यह विपक्ष की प्रतिक्रिया तो है ही, इसके साथ इसके महत्व को आप समझ सकते हैं। फिर भी इसे नहीं छापना या कहीं, अलग अंदर छापना आजकल की पत्रकारिता की विशेषता या जरूरत है।
नवोदय टाइम्स में इस खबर को आतंक के मददगारों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी शीर्षक से छापा है। इसके साथ राहुल गांधी की तस्वीर और ट्वीट भी है। एक अलग खबर, पठानकोट एयरबेस पर पहुंचे मोदी इसके साथ ही है जबकि कश्मीर में फिर ट्रक चालक की हमला और ग्रेनेड हमले में 20 घायल शीर्षक खबरें अलग और ऊपर हैं। या कहें सेकेंड लीड हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)