रडार वाले स्क्रिप्टेड इंटरव्यू में ढेरों गलतियां; अखबार छाप नहीं रहे, लोग “शिक्षित समर्थकों” पर हंस रहे हैं

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: May 14, 2019
तय सवाल-जवाब वाले टेलीविजन इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए गए गलत, झूठे और अविश्वसनीय जवाब पर तरह-तरह के चुटकुले चल रहे हैं और दिल्ली के अखबार बता रहे हैं ममता बनर्जी की मीम बनाने वाली महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची और इसपर आज सुनवाई होगी। आप जानते हैं कि भाजपा की युवा इकाई की समन्वयक प्रियंका शर्मा को इस मामले में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है (नवोदय टाइम्स)। इससे पहले कि मैं इंटरव्यू की और गड़बड़ियां बताऊं यह जानना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख, दिव्या स्पंदना ने एक वीडियो क्लिप ट्वीट करते हुए आरोप लगाया है कि टेलीविजन चैनल न्यूज नेशन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू स्क्रिप्टेड था (यानी सवाल जवाब तय थे)। ऐसे में जवाब गलत होने के खास मायने हैं और उनका मजाक भी उड़ रहा है पर दिल्ली के अखबार शर्म और डर से छाप नहीं रहे हैं।

आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फरवरी के अंत में “मेरा बूथ, सबसे मजबूत” कार्यक्रम किया था। भाजपा का दावा था कि यह दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी वीडियो कॉन्फ्रेंस है। इस क्रम में जब फरीदाबाद के एक मतदान केंद्र में भाजपा के पोलिंग एजेंट ने गड़बड़ी की और चुनाव रद्द करके पुनर्मतदान का आदेश दिया गया है तो खबर का महत्व अलग है। पर यह खबर कई अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। दैनिक भास्कर में यह खबर पहले पन्ने पर है लेकिन पार्टी का नाम नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर है और भाजपा का नाम शीर्षक में है। दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर खबर अंदर होने की सूचना है और शीर्षक में तो नहीं, खबर में भाजपा का नाम है।

दिव्या स्पंदना ने जो क्लिप ट्वीट किया है उसमें कुछ कागज दिखाई देते हैं। इनमें से एक में हिंदी में कविता छपी है और साथ ही में ‘सवाल संख्या 27’भी लिखा है। इस कागज पर जो सवाल लिखा है, वही सवाल इंटरव्यू करने वाले ने पूछा है। दिव्या स्पंदना ने कहा है कि वीडियो को तीसरे सेकंड पर पॉज करके देखें कि कागज पर सवाल और उसका जवाब भी लिखा है। द टेलीग्राफ ने इसपर विस्तृत खबर की है। वीडियो के अनुसार पीएम से पूछा जाता है, क्या आपने पिछले पांच साल में कुछ लिखा है? जवाब में पीएम बताते हैं कि वे कभी-कभार लिखते हैं। आज भी मैंने (.... से) आते समय एक कविता लिखी है। वे किसी से कागज मांगते हैं, कहते हैं लिखावट अच्छी नहीं है पर टाइप की हुई कविता नजर आती है। कविता के ऊपर 27 नंबर सवाल नजर आता है। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे समझ में आ जाता है कि प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस क्यों नहीं करते। कांग्रेस ने इसपर यही तंज किया है।

पहली बार इंटरव्यू का यह अंश देखते हुए मैंने ध्यान नहीं दिया कि ऊपर ही सवाल भी लिखा है। बाद में दिव्या स्पंदना के ट्वीट से यह सच उजागर हुआ। हालांकि, कंप्यूटर प्रिंटआउट देकर प्रधानमंत्री ने क्यों कहा कि उनकी लिखावट खराब है – यह तो वही बता सकते हैं। इंटरव्यू का एक और सवाल सोशल मीडिया में चर्चा में है और अखबार न जाने क्यों छापने में शर्मा रहे हैं। टेलीग्राफ ने इसपर आज फिर विस्तार से खबर की है। सोशल मीडिया के अनुसार इंटरव्यू में पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने 1987-88 में डिजिटल कैमरे से आडवाणी की कलर फोटो ली और फिर गुजरात से दिल्ली ई-मेल किया। टेलीग्राफ ने लिखा है, (मोदी जी ने कहा) ... मैंने पहली बार 1987-88 में डिजिटल कैमरे का उपयोग किया था। उस समय बहुत कम लोगों के पास ई मेल था। आडवाणी जी की एक मीटिंग (गुजरात के एक तहसील में) थी। मैंने आडवाणी जी कि तस्वीर उतारी और दिल्ली ट्रांसमिट कर दिया। अगले दिन रंगीन तस्वीर छपी थी। आडवाणी जी चकित थे।

अखबार के मुताबिक सोशल मीडिया पर कुछ लोगों की अटकल है कि मोदी जी पोलरायड कैमरा को डिजिटल कैमरा से कंफ्यूज कर गए होंगे। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के साथ भारत में पहला डिजिटल कैमरा 1995 में बाजार में बिक्री के लिए जारी किया गया था। उससे भी पहले अगर किसी ने विदेश से लाकर उपहार दिया हो तो उन दिनों डिजिटल कैमरे की कीमत 1000 डॉलर थी। सवाल उठता है कि एक स्वयंभू गरीब और ईमानदार के पास उस समय इतना महंगा कैमरा क्यों था और क्या उपहार (रिश्वत) मिला था। जहां तक 1987-88 में ईमेल करने और दिल्ली के अखबार में उसके छपने तथा आडवाणी जी के चकित होने की बात है - अखबार ने लिखा है, मोदी ने नहीं कहा है कि उन्होंने आडवाणी की फोटो ईमेल की। मोदी जी ने ट्रांसमिटेड शब्द का इस्तेमाल किया है। उस समय तेजी से फोटो ट्रांसमिट करने का एक तरीका यह था कि फैसिमाइल टेक्नालॉजी का उपयोग किया जाता। पर तब मोदी ने कहा है कि आडवाणी चकित थे। अगर फोटो फैसिमाइल तकनीक से भेजी गई और आडवाणी वाकई चकित थे तो इसका मतलब हुआ कि उन्हें नहीं पता था कि गुजरात के गांव में उस समय फैसिमाइल टेक्नालॉजी उपलब्ध थी।

कुछ लोगों का मानना है कि भाषणों से लेकर पब्लिक मीटिंग तक में प्रधानमंत्री क्या बोलेंगे, यह पहले से तय होता है। इस इंटरव्यू के लिए भी अगर सवाल जवाब पहले से तय थे तो ये गलतियां कैसे हुईं? क्या यह किसी भी तरह वोट जुटाने के लिए किया गया स्टंट है? हालांकि, ऐसा होता तो यह सब अखबारों में छपता। नहीं छपने का अर्थ यह हो सकता है कि सोशल मीडिया और वायर सर्विस वालों को इधर फंसा दिया जाए और अखबारों में ऊल-जलूल वोट बटोरू मसाला परोसा जाए। अखबारों में जो छप रहा उससे इस आशंका को दम मिलता है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया ऐसी खबरों में व्यस्त न हो तो अखबारों में जो छप रहा है उसी का पोस्टमॉर्टम होता है।

मैं पहले लिख चुका हूं कि सैम पित्रोदा से कैसे 1984 के दंगों के मामले में हुआ तो हुआ बोलवा लिया गया और फिर योजनाबद्ध ढंग से उसपर हंगामा मचाया गया। सैम पित्रोदा ने उसपर माफी मांग ली है। और राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा कि सैम पित्रोदा ने गलती की और 1984 के दोषियों को सजा होनी चाहिए। यह सब तब जब 2002 के गुजरात दंगों की कोई चर्चा नहीं है। बिलकिस बानो के मामले में अपराधियों को सजा होने और उसे अच्छा-खासा मुआवजा देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद। यही नहीं, आतंकवादी गतिविधि में लिप्त होने के कारण साध्वी प्रज्ञा को टिकट देने और हिन्दू आतंकवाद को सिरे से नकारने वाली सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी 1984 के दोषियों को सजा दिलाने की बात करती है – "84 के दंगों के आरोपियों को बख्शा नहीं जाएगा : मोदी" (नवोदय टाइम्स) और 2002 के दंगों की बात ही नहीं करती जबकि वहां भी आरोपी हिन्दू ही हैं।

इस लिहाज से नवभारत टाइम्स में आज की लीड और उसका शीर्षक शर्मनाक है। अखबार का शीर्षक है, “पित्रोदा का बयान शर्मनाक : राहुल” दूसरी लाइन है, “डांटने का ये दिखावा क्यों : मोदी”। क्या आप समझ सकते हैं कि पित्रोदा की गलती के लिए राहुल गांधी को क्या करना चाहिए और डांटने का ये दिखावा है तो 35 साल पुराने मामले में आरोप किस मकसद से लगाए जा रहे हैं। मुझे तो समझ में नहीं आया। ऐसी ही एक खबर दैनिक जागरण में है, “देश गालीभक्ति से चलेगा या राष्ट्रभक्ति से, जनता करेगी फैसला – मोदी”। वैसे तो यह चुनावी भाषण है और वोट खेंचू डायलॉग भी अच्छा हो सकता है पर यह भाषण रतलाम में दिया जाए और नई दिल्ली के जागरण में पहले पन्ने पर सेकेंड लीड बने ऐसी खबर तो नहीं ही है।

इसके मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर छपी यह खबर ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ममता बनर्जी का मीम बनाने में गिरफ्तार पश्चिम बंगाल युवा भाजपा नेता प्रियंका शर्मा की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच सुनवाई करेगी। लेकिन दैनिक जागरण में लीड है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा - रमजान में नहीं बदलेगा मतदान का समय। उपशीर्षक है, मतदान का समय तय करना चुनाव आयोग का काम है। इसके अलावा सात चरण में होने वाले चुनाव के छह चरण बीतने के बाद न तो इस मांग का कोई मतलब है ना इसे नहीं माने जाने का। ऐसे में इसे लीड बनाने की कोई तुक नहीं समझ में आती है जबकि यह खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर भी प्रमुखता से नहीं है।

ऐसा ही शीर्षक अमर उजाला का है, "हुआ तो हुआ ... अब बुहत हुआ : मोदी"। पांच कॉलम को चार कॉलम बनाकर छापे गए इस शीर्षक के नीचे ढाई-ढाई कॉलम में दो खबरें हैं। “प्रधानमंत्री बोले - यह केवल तीन शब्द नहीं, कांग्रेस का अहंकार है”। दूसरी खबर है, “पित्रोदा को शर्म आनी चाहिए सार्वजनिक माफी मांगें : राहुल”। कहने की जरूरत नहीं है कि ये चुनावी रैली के भाषण हैं और अखबारों में पहले भी छप चुके हैं। अमर उजाला में इन खबरों को पढ़ते हुए मुझे सुनिश्चित होना पड़ा कि मैंने कहीं पुराना अखबार तो नहीं उठा लिया है। आज के अखबार में ये पुरानी खबर छापने की तुक मुझे तो नहीं समझ में आई और मोदी जी का भाषण (आरोप) छापना ही था तो मायावती का जवाब भी छाप देते जो सिर्फ दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर है।

दैनिक भास्कर ने फ्लैग शीर्षक फिर बिगड़े बोल के तहत कमल हासन और मायावती की दो खबरें छापी हैं। एक का शीर्षक है, “लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस कर बोलीं मायावती - राजनीतिक लाभ के लिए मोदी ने पत्नी को छोड़ा। इसपर निर्मला सीतारमण, अरुण जेटली आदि को एतराज है पर मुझे लगता है कि अब प्रधानमंत्री को कुछ टक्कर मिल रही है। देखता हूं अभी दो तीन दिन और है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)

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