RTI का बाजा बजाकर 'पारदर्शिता' का ज्ञान पेलती सरकार की सेवा में लगे अखबार

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: November 27, 2019
ऐसे सरकार की सेवा में लगे हैं अखबार, आरटीआई कानून का बाजा बजाकर पारदर्शिता पर भाषण



जलेबी बनाने वाली राजनीति का भाषण। क्या शानदार शीर्षक और उपशीर्षक है। चुनावी बांड के खिलाफ जो थोड़ा बहुत छपा है उसे यह खबर कितनी अच्छी तरह धो देती है। कोई पार्टी संगठित रूप से क्यों चाहेगी कि जनता नहीं पढ़े और पढ़ने लिखने वालों से उसे चिढ़ क्यों होगी - उसे इस खबर को पढ़कर समझा जा सकता है। अपनी तमाम कमजोरियों को श्रेय के रूप में प्रस्तुत करना - नेता की योग्यता हो सकती है। पर पार्टी का मुखपत्र हुए बिना उसे उसी तरह छाप देना नामुमकिन को मुमकिन करना ही है।

आज मैंने एक पोस्ट में लिखा है कि किसी भी अखबार ने महाराष्ट्र में सरकार और भाजपा की हार को हार नहीं लिखा है। मात खा गई, पिट गई, ठुक गई तो बिल्कुल नहीं। और फिर यह प्रचारक का प्रचार - दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर। महाराष्ट्र पर कहानियां अब भी घूम रहीं हैं, आगे भी घूमेंगी जो बताएंगी कि कैसे उसमें कुछ गलत नहीं था और कैसे विरोधी दलों ने जो किया वह गलत है। पर वह बाद की बात है। अभी देखिए, खबर में लिखा है, पीएम मोदी ने कहा, "इन लोगों की चली होती तो देश में जीएसटी भी कभी लागू नहीं हो पाता। हमने राजनीतिक लाभ-हानि की चिंता किए बिना इसे लागू किया। आज सामान्य नागरिक से जुड़ी 99 प्रतिशत चीजों पर पहले के मुकाबले औसतन आधा टैक्स लग रहा है।"

निश्चित रूप से ऐसी खबर और दावों को छापने संपादकीय विवेक और आजादी का मामला है और मैं उसपर सवाल नहीं उठा रहा। मैं जो नहीं छप रहा है उसकी बात कर रहा हूं। इस खबर से प्रधानमंत्री ने क्या किया? यही ना कि जिस जीएसटी से उद्योग धंधे चौपट हुए, किसी को कोई लाभ नहीं हुआ, बगैर तैयारी के लागू किया गया उसका भी प्रचार, उसका भी श्रेय। अगर टैक्स कम हुआ तो किस चीज की कीमत कम हो गई? क्या जीएसटी का लाभ यह हो सकता है कि महंगाई कम हुई है? प्याज 100 रुपए किलो और टोमैटो केचअप की कीमत दो-पांच रुपए कम हो जाने से किसका भला हुआ।

मीडिया प्याज पर बोलेगा नहीं और यह दावा छापेगा कि जीएसटी से टैक्स कम हो गया है। उसकी कोई तुलना नहीं, कोई ठोस खबर नहीं। टैक्स आधा करने से देश के खजाने को क्या लाभ हुआ? किस लिए किया गया? ना कोई पूछेगा ना बताया जाएगा हिन्दी के अखबार अपना काम कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि यह पीटीआई की खबर है और अनुवाद भी अच्छा है। एक खबर के रूप में इससे कोई शिकायत नहीं हो सकती है पर प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने वाले प्रधानमंत्री किसी टीवी कार्यक्रम में ऐसे दावें करें और उसे पहले पन्ने पर बगैर किसी सवाले के प्रमुखता से छापा जाए तो इसे रेखांकित किया जाना चाहिए।

 

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