वृंदा करात ने मांग की है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से चोरी-छिपे और चालाकी से जारी किए गए आदेश को सार्वजनिक किया जाए। उनका कहना है कि यह कदम मोदी सरकार की ओर से वनाधिकार कानून 2006 को कमजोर करने की कोशिश है।
माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर जंगलों में रहने वाले जनजातीय समुदाय के संरक्षण को मजबूती देने की मांग की है। उन्होंने मोदी को लिखे पत्र में पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से जारी आदेश के उन प्रावधानों को तुरंत वापस लेने की मांग की है, जो जंगलों में रहने वाले जनजातीय समुदायों और दूसरे लोगों के संरक्षण के कानूनी प्रावधानों को कमजोर करते हैं
दरअसल पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से 28 मार्च, 2017 को जारी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण आदेश बाघों की मौजूदगी वाले संवेदनशील इलाके में रहने वाले आदिवासियों और अन्य निवासियों के कानूनी अधिकारों का सरासर उल्लंघन है।
वृंदा करात वनाधिकार कानून पर बनी संसद की प्रवर समिति की सदस्य हैं। साथ ही उन्होंने उन संशोधनों को भी लागू करवाने में अहम भूमिका निभाई है, जो वन्य जीव संरक्षण संशोधन कानून, 2006 का हिस्सा बने हैं। इन प्रावधानों का इस मामले से सीधा संबंध है।
ताजा मुद्दा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन की ओर से 28 मार्च 2017 को जारी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकारण (एनटीसीए) की ओर से टाइगर रेंज राज्यों के सभी चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन को एक निर्देश जारी करने से संबंधित है। यह बेहद आश्चर्य की बात है इस आदेश के व्यापक प्रभाव के बावजूद इसे मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया।
सबरंगइंडिया के पास इस विवादास्पद आदेश की प्रति है, जिसे यहां पढ़ा जा सकता है order that may be read here.
वृंदा करात ने कहा है कि इस आदेश के जरिये चोरी-छिपे इस तरह के वन क्षेत्र में रहने वाले अधिकारों पर वार किया गया है। यह आदेश इस चिट्ठी के साथ नत्थी है। आशंका है इस आदेश के जरिये एक्ट में इस तरह के संशोधन के प्रयास किए जाएंगे जिससे जनजातीय लोगों के अधिकार कमजोर हो जाएं।
वृंदा करात की चिट्ठी में निम्नलिखित बिंदुओ की ओर ध्यान दिलाया गया है-
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और एनसीटीए को वनाधिकार कानून लागू करने का कोई अधिकार नहीं है। इस कानून को लागू करने की एक मात्र नोडल एजेंसी जनजातीय मामलों का मंत्रालय है। लेकिन इसके भी निर्देशों को वनाधिकार कानून और नियमों के अनुकूल होना होगा। इसलिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इस तरह के सर्कुलर जारी करने का कोई अधिकार ही नहीं है।
- वन्य जीव संरक्षण संशोधन कानून, 2006 की धारा 38 (ओ) के तहत एनटीसीए को अधिकार और शक्तियां मिली हैं। इसमें खास तौर पर कहा गया है- ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया जाएगा, जो स्थानीय लोगों खास कर अनुसूचित जनजातियों के लोगों के अधिकारों में हस्तक्षेप करेगा या इस पर प्रभाव डालेगा। लेकिन यह आदेश सीधे इस प्रावधान का उल्लंघन करता है।
- इस कानून के प्रावधान 38वी (5) में जनजातीय और जंगल में रहने वाले दूसरे निवासियों के संदर्भ में कहा गया है कि जब तक जनजातीय और अन्य लोगों के अधिकारों के संरक्षण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक इस तरह का कोई संरक्षित इलाका तय नहीं किया जाएगा। इसलिए यह आदेश इन प्रावधानों का सीधा उल्लंघन है। यह जनजातीय लोगों के अधिकारों को मान्यता देने से पहले ही वन्य जीवों के रहने वाले इलाकों के बारे में अधिसूचना जारी करता है।
- वनाधिकार कानून की धारा 3 (1) में कहा गया है कि जनजातीय लोगों के अधिकार परिभाषित हैं। इसमें कहा गया है के ये अधिकार जंगल में संपूर्ण वन क्षेत्र में लागू होते हैं। इसका कोई अपवाद नहीं है। उपरोक्त आदेश बाघों के रहने वाले संवेदनशील इलाकों में जनजातीय अधिकारों को लेकर गैरकानूनी तौर पर अपवाद कायम करना चाहता है।
- जो इलाके वन्यजीवों के हिसाब से संवेदनशील घोषित किए गए हैं, उसके लिए वनाधिकारी कानून की धारा 4(2) के तहत विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसमें उन शर्तों का जिक्र किया गया है, जिनके आधार पर जनजातीय अधिकारों के संबंध में परिवर्तन या उन्हें पुनर्बहाल किया जा सकता है।
वृंदा करात की ओर से पीएम को लिखी गई चिट्ठी का पूरा पाठ
प्रिय श्री नरेंद्र मोदी मोदी जी
मैं यह चिट्ठी गहरी निराशा के साथ लिख रही हूं। हाल में वनों में रहने वाले जनजातीय और अन्य समुदायों के लोगों के संरक्षण के कानूनी प्रावधानों को कमजोर करने के जो कदम उठाए गए हैं, मैं उस संदर्भ में आपका ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं।
मैं वनाधिकार कानून पर संसद की सेलेक्ट कमेटी की मेंबर हूं। मैं उन अहम संशोधनों को आगे बढ़ाने में सक्रिय रूप से शामिल रही हूं जो वन्य जीव संरक्षण संशोधन कानून 2006 का हिस्सा बने। यह जनजातीय लोगों के अधिकार के संरक्षणों से साफ तौर पर जुड़ा है। यही वजह है कि मैं आपको इस विषय पर लिखने को बाध्य हुई।
फौरी मुद्दा ताजा मुद्दा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन की ओर से 28 मार्च 2017 को जारी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकारण (एनटीसीए) की ओर से टाइगर रेंज राज्यो के सभी चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन को एक निर्देश जारी करने से संबंधित है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस आदेश के व्यापक प्रभाव के बावजूद इसे मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया। यह उन लोगों को अंधेरे में रखने का कदम है जिनके अधिकार इस आदेश से प्रभावित होंगे। मैं आपको इसकी एक प्रति भेज रही हूं। आशंका है यह आदेश के जरिये एक्ट में इस तरह के संशोधन के प्रयास किए जाएंगे जिससे जनजातीय लोगों के अधिकार कमजोर हो जाएं। इस आदेश में साफ कहा गया है कि वन्यजीवों के निवास से जुड़े संवेदनशील इलाकों में नोटिफिकेशन से जुड़े निर्देशों में बाघों की मौजूदगी वाले संवेदनशील इलाकों में जनजातीय लोगों से संबंधित अधिकार (वनाधिकार कानून) नहीं माने जाएंगे।
कुल मिलाकर एनटीसीए का आदेश सरासर गैरकानूनी है। राज्य या केंद्र सरकार का कोई भी अधिकारी जो वनाधिकार कानून की मान्यता में बाधा बनता है वह अऩुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति ( अत्याचार निरोधक) कानून का उल्लंघन करता है। लिहाजा उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
मैंने पहले भी भाजपा शासित प्रदेशों महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में कैंपा एक्ट समेत गैरकानूनी ग्रामीण वन कानूनों की ओर आपका ध्यान दिलाया है। जनजातीय संगठनों के लगातार विरोध के बावजूद यह कानून लागू किया जा रहा है। यह करोड़ों जनजातीय लोगों के अधिकारों और उनके संरक्षण से जुड़े कानूनों की सीधी अवमानना है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। लिहाजा मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि इस गैरकानूनी आदेश को तुरंत रद्द किया जाए और इसके जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो। मैं वनाधिकार कानून की ओर से सुनिश्चित किए गए अधिकारों को भी तुरंत लागू करने की मांग करती हूं।
सादर
वृंदा करात