यूआईडी-आधार पर सरकार ने मीडिया और जनता दोनों को गुमराह किया

Published on: March 29, 2017
मोदी सरकार की ओर से सभी जरूरी सेवाओं के लिए आधार नंबर अनिवार्य करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के रुख पर मोदी सरकार के रवैये के मामले में गुमराह करने का खेल जारी है। इस मामले में सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच एक बार फिर टकराव के आसार बन गए हैं।

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27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के 44वें चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहड़ की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच के आधार से जुड़ा मामला पेश किया गया। हालांकि मामले की सुनवाई के बाद बेंच ने कोई फैसला नहीं दिया। बेंच में चीफ जस्टिस खेहड़ के अलावा जस्टिस एच.एल दत्तू और जस्टिस संजय किशन कौल शामिल हैं। याचिकादाताओं की ओर से सीनियर वकील श्याम दीवान ने बेंच को पहले के आदेश के जरिये की जानकारी देने के साथ यह बताया कि आधार के मामले को 42वें चीफ जस्टिस एच एल दत्तू की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने बेहद जरूरी मामला करार दिया था। चीफ जस्टिस खेहड़ को संवैधानिक बेंच के 15 अक्टूबर 2015 के आदेश के पैरा पांच के बारे में बताया गया। क्योंकि 23 दिसंबर, 2013 से लेकर अब तक तीन जजों की बेंच ने कभी आधार मामले की सुनवाई नहीं की। अब आधार मामले पर अगली सुनवाई 3 अप्रैल, 2017 को हो सकती है।

उस समय संवैधानिक बेंच ने कहा था- हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि आधार कार्ड स्कीम पूरी तरह स्वैच्छिक है और तब तक अनिवार्य नहीं बनाई जा सकती जब तक इस पर पूरी तरह फैसला नहीं हो जाता। यहां तक कि अगर जस्टिस खेहड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच को अगर आधार मामले पर फैसला देने के लिए बाध्य किया गया है या फिर पहले के आदेश को उलटने का दबाव बनाया गया है तो भी यह संभव नहीं है। क्योंकि तीन जजों की बेंच पांच जजों की बेंच को ओवररूल नहीं कर सकती है और न ही उनके आदेश में संशोधन कर सकती है। ज्यादातर मीडिया ने आधार मामलों पर गलत रिपोर्टिंग की है। वैसे ही जैसे वित्त विधेयक 2017 की रिपोर्टिंग के दौरान की थी। वित्त विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के जरिये मोदी सरकार ने राज्यों और नागरिकों की आवाज को दबाने की कोशिश की है। इसके जरिये संघवाद और संविधान पर जैसे हमले हुए हैं, वैसे पहले कभी नहीं हुए थे। ज्यादातर मीडिया, भाषा के जरिये की जाने वाली गड़बड़ी को पकड़ने में नाकाम रहा। जहां स्वैच्छिक को अनिवार्य बना दिया गया और छिपाई जा रही चीजों की जगह पारदर्शिता समझा गया।
 
मीडिया कोर्ट के निर्देश की रिपोर्ट करने में बिल्कुल नाकाम रहा। कोर्ट के निर्देश में कहा गया था- केंद्र सरकार रेडियो, टेलीविजन नेटवर्कों समेत सभी तरह के इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में इस बात का व्यापक प्रचार करेगी कि देश के नागरिकों के लिए आधार कार्ड हासिल करना अनिवार्य नहीं है। किसी भी लाभ को हासिल करने के लिए आधार कार्ड पेश करना अनिवार्य नहीं है।

मीडिया ने इसे इतने गलत तरीके से रिपोर्ट किया कि राज्यसभा में यूआईडी-आधार से जुड़ी बहस में सदस्यों ने यह सोच कर चर्चा की कि सुप्रीम कोर्ट ने वास्तव में आज इस पर कोई फैसला दिया है। 27 मार्च को माकपा सीताराम येचुरी और तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु राय ने राज्यसभा में यह सोच कर चर्चा कर रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट ने यूआईडी-आधार पर कोई आदेश दिया है। मीडिया की मिस रिपोर्टिंग की वजह से दोनों ने सरकार की आलोचना की। यह पहली बार नहीं है कि  टीएमसी और माकपा ने लोगों के व्यापक हित में हाथ मिलाया है। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से इसके खिलाफ प्रस्ताव पर भी दोनों एकमत थे। इसके अलावा बीएसपी सतीश चंद्र मिश्रा ने भी टीएमसी के सांसद के रुख का समर्थन किया। राज्यसभा में 28 मार्च को भी इस पर बहस होगी और शायद 29 को भी। लेकिन इस बीच मीडिया की ओर से की गई मिस रिपोर्टिंग से काफी नुकसान हो चुका है।
 
वास्तिवकता तो यह है कि तीन जजों की बेंच संवैधानिक बेंच के आदेश से इतर कोई और आदेश जारी करने में सक्षम नहीं हो सकती थी। लिहाजा यह समझ से परे है कि संबंधित वकील क्यों मामले को अपर्याप्त संख्या वाली बेंच के सामने रख रह रहे हैं। जबकि अदालत के आदेश से साफ है कि मामले की सुनवाई पर्याप्त संख्या वाली बेंच यानी तीन से ज्यादा न्यायाधीशों की बेंच ही कर सकती है। क्योंकि तीन से ज्यादा जजों वाली बेंच ही इसकी सुनवाई के लिए सक्षम है। 27 मार्च की कोर्ट की वेबसाइट में दी जानकारी के मुताबिक मामले को ज्यादा बड़ी बेंच ही सुन सकती है। ऐसे में क्या पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने मामले को नहीं उठाया जाना चाहिए था। क्या इसे सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से हटाए जाने की चल रही लगातार कोशिश में से एक माना जाना चाहिए।

देखा जाए तो यूआईडी/आधार के खिलाफ करीब 13 मामलों को एक एक साथ मिला दिया गया है। इसके अलावा वित्त विधेयक के तौर पर आधार के खिलाफ एक अलग मामला है। आने वाले दिनों में इस केस की दोबारा सुनवाई हो सकती है। बहरहाल मीडिया की विश्वसनीयता के लिए यह सही होगा कि ऐसे मौकों पर मिस रिपोर्टिंग न हो। और तब तक रिपोर्ट न किया जाए, जब तक कोर्ट का आदेश पूरी तरह पढ़ न लिया जाए।

न सिर्फ मीडिया ने नागरिकों को गुमराह किया। बल्कि दूरसंचार विभाग (संचार मंत्रालय) ने एक पत्र जारी कर कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर सभी मौजूदा सब्क्राइवर्स की 100 फीसदी ई-केवाईसी बेस्ड वेरिफेशन जरूरी है। इस पत्र को जारी करते समय 6 फरवरी के कोर्ट के आदेश को आंशिक तौर पर उल्लेख किया गया।

कोर्ट के आदेश के पैरा 5 में कहा गया था – हमारे सामने जो तथ्य रखे गए हैं उसके आधार पर नए सब्सक्राइवरों के पतों की जांच और पहचान सुनिश्चित करने के लिए याचिका में किए गए आवेदन पर सुनवाई हुई। भविष्य में एक साल के भीतर मौजूदा सब्सक्राइवरों की पहचान सुनिश्चित करने का काम पूरा हो जाएगा। संचार मंत्रालय की चिट्ठी से ऐसा लगा कि दो सदस्यीय बेंच का फैसला 5 सदस्यीय बेंच के आदेश के ऊपर मान्य होगा।

गौरतलब है कि तीन सदस्यीय बेंच की अगुवाई कर रहे 44वें चीफ जस्टिस ने कहा कि जहां तक 42वें चीफ जस्टिस का अनुरोध के आधार पर नई संवैधानिक बेंच गठित करने की कोई जरूरत नहीं है। इस पांच सदस्यीय बेंच में जस्टिस एम वाई इकबाल, जस्टिस  सी नगप्पन, जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस अमिताभ राय शामिल हैं। लेकिन यह कोर्ट के लिखित आदेश का हिस्सा नहीं है।

आदेश में कहा गया है- चूंकि इस मामले की तात्कालिकता का महत्व है और यह काफी जरूरी है। लिहाजा चीफ जस्टिस मामले की अंतिम सुनवाई के लिए जल्द ही बेंच का गठन करें। लेकिन सवा साल से ज्यादा हो गए, संवैधानिक बेंच ने कोई जवाब नहीं दिए।

 इस बेंच का गठन भारत सरकार की ओर से कुछ स्पष्टीकरण और संशोधनों के लिए दायर आवेदन पर विचार  के लिए था। यह तीन जजों की बेंच की ओर से 11.08.2015 को जारी आदेश पर स्पष्टीकरण के लिए था।  

हाल के घटनाक्रमों से साफ है कि अनुचित संख्या वाली चीफ जस्टिस की बेंच की ओर से सुनवाई संवैधानिक शुचिता और न्यायिक अनुशासन के खिलाफ है। जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस सी नागप्पन की तीन सदस्यीय बेंच ने अपने आदेश में कहा था- मामले की तार्किकता को देखते हुए इसे पर्याप्त संख्या वाली बेंच को रेफर किया जाता है।

जहां तक  राज्यसभा में अरुण जेटली की ओर से वित्त विधेयक 2017-18 में संशोधनों का प्रस्ताव है तो इस पर विचार करने के बाद इसे लौटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने यूआईडी-आधार पर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन पर पैदा सवालों के बीच इन प्रस्तावों को पेश किया।

विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें
Dr Gopal Krishna, Member, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL). CFCL had appeared before the Parliamentary Standing on Finance that examined and trashed the Aadhaar Bill, 2010. Mb: 9818089660, 08227816731, E-mail: 1715krishna@gmail.com(link sends e-mail)
        
Kalpana Sharma Independent Journalist/Columnist Email: sharma.kalpana@yahoo.com/kalpu.sharma@gmail.com Blog: http://kscribe-kalpanasharma.blogspot.com/
 

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