दहेज मांगने वालों में यह अमर वाक्य है- मैंने एक-एक पैसा जोड़कर बेटे को पढ़ाया है

Written by मिथुन प्रजापति | Published on: May 29, 2018
कितना भी सिर पटक लिया जाए, कितना भी मन को समझा लिया जाए पर सच तो यही है कि दुनिया में गरीब होने का दुःख अलग है और गरीबी में लड़की का बाप होना कोढ़ में खाज जैसा है. 



एक मेरे जानने वाले हैं. बड़े सीधे व्यक्ति हैं. जिंदगी में कुछ नहीं कमा पाए. बदनसीबी से पूर्वजों की छोड़ी प्रॉपर्टी भी नहीं थी. दो बेटियां थी, उनको पढ़ाने और घर संभालने में ही उम्र खप गयी. अब उनके ब्याह की चिंता थी. लड़कियां पढ़ी-लिखी थीं, खूबसूरत थीं पर बाप गरीब था इसलिए रिश्ता नहीं मिल रहा था. वे प्रेम विवाह भी कर सकती थीं लेकिन गरीबों के लिए समाज अपने मानक बदल लेता है. कोई  बड़े घर का प्रेम विवाह करे तो गांव देश कहता है- 'अरे बड़े आदमी हैं, उनकी तो बात ही निराली है' और प्रेम विवाह कोई गरीब घर का लड़का या लड़की कर ले तो वही गांव देश कहता है- कमबख्तों ने नाक कटा दी गांव की.

लड़कियों ने बाप का खयाल रखा. प्रेम विवाह नहीं किया. गांव देश की नाक सुरक्षित बनी रही. एक साहब कोई रिश्ता बता गए. लड़के का परिवार भी कुछ महीनें पहले तक गरीब हुआ करता था पर अब लड़का आईएएस हो चुका है. वे गरीब अब भी हैं पर उनके पास आईएएस लड़का है. लड़की का बाप रिश्ता लेकर गया. मामला जमा नहीं. सब ठीक था बस लड़का आईएएस हो चुका था. उसकी कीमत बढ़ गयी थी.  लड़की के बाप ने बहुत हाथ पैर जोड़े पर मामला जमा नहीं. लड़के वालों की तरफ से एक ही जवाब आता- हमनें एक-एक पैसा जोड़कर पढ़ाया है. दहेज मांगने वालों में यह अमर वाक्य है- मैंने एक-एक पैसा जोड़कर पढ़ाया है. लड़की का बाप उदास मन से लौट आया. 

यही भारतीय संस्कृति है. आदमी  बड़ा हो जाता है तो दहेज ज्यादा लेता है. उसकी हैसियत बढ़ जाती है. वह बेटी के बाप से निर्मल वाक्य में कह देता है- भगवान का दिया सबकुछ है, क्या कमी है हमारे पास ?  बस हमारी हैसियत के हिसाब से जो समझना दे देना. 
ये हैसियत शब्द लड़की के बाप के गले में फंदे की तरह पड़ जाता है और वह मरते दम तक उसे नहीं छुड़ा पाता.

एक समान जाति के लड़के और लड़की में प्रेम हो गया. बात शादी की तक आ गयी. लड़के के बाप ने कहा-  एक लाख लेंगे, नहीं तो पचास हजार दे दो और एक मोटरसाइकिल.

लड़की बहस पर आ गयी. वह लड़के पर भड़क उठी. उसने कहा- हमनें तो प्रेम किया था फिर शादी के वक्त दहेज की बात कहां से आ गयी. लड़के ने लटके हुए मुंह से कहा- वो बाप जी जाने. 

लड़की ने पूछा- मतलब आप बाप जी को समझा नहीं सकते?

लड़के ने कहा- हम बाप जी से बहस नहीं कर सकते.

लड़की गुस्से में लाल होते हुए कहा- फिर प्रेम करने से पहले बाप से परमिशन क्यों नहीं लिया ?

लड़का निरुत्तर सा बाप की तरफ देखता रहा पर बाप जी पर इसका फर्क नहीं पड़ा. वे तो एक लाख के चक्कर  में थे. 

इस एक लाख के चक्कर ने  न जाने कितने जोड़े बर्बाद किये हैं. एक नौकरशाह  पर देश का भार होता है पर वह दहेज मांग रहे बाप के खिलाफ नहीं बोल पाता. जो बाप के खिलाफ जाकर दहेज का विरोध न कर पाया व देश के नागरिकों के प्रति ईमानदार रहेगा मुझे इसपर शक होता है. 

कोई कहता है मुझे दहेज में बस सवा रुपये दे देना. मैं कहता हूँ दहेज क्यों ? जब आपको दहेज नहीं पसंद तो सीधा विरोध कीजिए. सवा और ढाई  के चक्कर मे ये बुराई समाज से खत्म नहीं हो रही. अब जरूरत है हर तरह के दहेज के विरोध की. चाहे वह सवा रुपये हो या सवा लाख.

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