सरकार ने समिति बनाई, अखबारों ने फैला दिया लेकिन इलेक्टोरल बांड पर सन्नाटा

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: June 6, 2019
अर्थव्यवस्था में सुस्ती और बेरोजगारी से चिन्तित सरकार ने समिति बनाई, अखबारों ने फैला दिया लेकिन इलेक्टोरल बांड पर सन्नाटा; जागरण ने लिखा, शायद पहली बार ... हिन्दुस्तान की नजर में मोदी मोर्चे पर !

आज के अखबारों में कोई बड़ी खबर नहीं है। द टेलीग्राफ, इंडियन एक्सप्रेस में उनकी अपनी एक्सक्लूसिव खबरें हैं पर सरकारी खबरों में लीड बनाने लायक कोई खास खबर न होने से अंग्रेजी और हिन्दी के ज्यादातर अखबारों ने रोजगार और विकास में तेजी लाने के लिए दो समितियां बनाने की सरकारी खबर को लीड बनाया है। राजस्थान पत्रिका में सूखे की खबर लीड है और दैनिक जागरण में पाकिस्तान के विदेश सचिव अचानक दिल्ली पहुंचे लीड है। दोनों अखबारों में मंत्रियों की समिति बनाने की खबर सेकेंड लीड है। दैनिक भास्कर में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अमर उजाला में भी नहीं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे अपने संवाददाताओं की बाईलाइन के साथ एक्सक्लूसिव खबर की तरह छापा है और अंदर लिखा भी है, मामले की जानकारी रखने वाले दो सरकारी अधिकारियों ने यह बात नाम न छापने की शर्त पर बताई। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि इससे संबंधित आधिकारिक अधिसूचना अभी आनी है। यानी अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। फिर भी, टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि समिति बनाकर प्रधानमंत्री ने संकेत दिए हैं कि वे अर्थव्यवस्था की दो महत्वपूर्ण चुनौतियों से निपटने का इरादा रखते हैं।

द टेलीग्राफ में भी यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। टेलीग्राफ में इलेक्टोरल बांड की खबर आज फिर लीड है। इसमें बताया गया है कि मई महीने में कोलकाता में 370 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड की बिक्री की खबर पूरे मामले का शुरुआती हिस्सा भर है। असल में भारतीय स्टेट बैंक की कोलकाता मुख्य शाखा ने मार्च 2018 से मई 2019 की 14 महीने की अवधि में 1389 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड बेचे हैं। यह आंकड़ा मुंबई के बाद दूसरा है। अखबार ने लिखा है कि देश भर में 5851 करोड़ रुपए के बांड बिके हैं और कोलकाता में बिके बांड का मूल्य 23.7 प्रतिशत है जबकि बंगाल में लोकसभा सीटों की संख्या सिर्फ सात प्रतिशत है। अखबार ने उद्योग के उद्योग से जुड़े सूत्रों के हवाले से लिखा है कि स्थानीय दानदाताओं ने इतने पैसे दिए होंगे इसकी संभावना कम है और अनुमान है कि इतनी बड़ी राशि बंगाल के बाहर से आई होगी। आपको लग सकता है कि कोलकाता में ये बांड उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों के लिए खरीदे गए होंगे। पर इस मामले में तथ्य यह है कि इन राज्यों में एसबीआई की शाखा है और वे भी इलेक्टोरल बांड बेचने के लिए अधिकृत हैं। आप जानते हैं कि लोकसभा की एक सीट के लिए चुनाव खर्च की सीमा 70 लाख रुपए है। ऐसे में सवाल उठता है कि राजनीतिक दलों को इतने पैसों की जरूरत क्यों पड़ी और दान देने वालों ने इतनी उदारता क्यों दिखाई। और अखबार क्या कर रहे हैं?

इस संबंध में क्विन्ट हिन्दी की खबर के मुताबिर देश में लोकसभा चुनावों के दौरान सिर्फ मई महीने में 822 करोड़ रुपये से ज्यादा के इलेक्टोरल बांड बेचे गए। इनमें सबसे ज्यादा 370 करोड़ रुपये के बांड बंगाल में बिके। पुणे के आरटीआई कार्यकर्ता विहार दुर्वे को मिली आरटीआई जानकारी के मुताबिक यह 6 से 24 मई के बीच इलेक्टोरल बांडकी बिक्री का आंकड़ा है। इसी आऱटीआई जानकारी के आधार पर कल टेलीग्राफ ने भी खबर छापी थी और आज फिर फॉलो किया है। दुर्वे को आरटीआई एप्लीकेशन के जवाब में मिली जानकारी के अनुसार कोलकाता में बिके इलेक्टोरल बांड का ब्रेक-अप दिया गया है। सबसे ज्यादा यानी 370 करोड़ रुपये से ज्यादा के बांडकी बिक्री कोलकाता में एसबीआई के मेन ब्रांच में हुई। इस हिसाब से 2019 और 2018 में कुल 5851 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड बेचे जा चुके हैं। सबसे ज्यादा राजनीतिक चंदा 2019 में इलेक्टोरल बांडके जरिये ही दिया गया है। लेकिन यह कोई नहीं जानता कि ये चंदा देने वाले कौन हैं और इसका सबसे ज्यादा फायदा किस पार्टी को हुआ है। ईमानदार पार्टी ने राजनीतिक चंदा का ऐसा जुगाड़ किया है जिसमें कोई पारदर्शिता नहीं है। इसलिए इलेक्टोरल बांड पर सवाल उठ रहे हैं। पर खबर?

हिन्दी के अखबारों में ऐसी खबरें नहीं के बराबर छपती हैं। जो छपती हैं वो अक्सर सरकारी होती हैं। आज जिस खबर को हिन्दी के साथ अंग्रेजी अखबारों ने भी लीड बनाया है वह कुछ अखबारों में पहले पन्ने पर है ही नहीं। और नवभारत टाइम्स ने इसे लीड बनाया है तो शीर्षक है, रोजगार पर अब नई गिनती होगी, रेहड़ी वाले भी गिने जाएंगे। उपशीर्षक है, विकास और रोजगार बढ़ाने के लिए मोदी ने दो कमेटियां बनाईं। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार ने मान लिया है कि इन क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है जबकि पिछले कार्यकाल तक सरकार मान ही नहीं रही थी कि नौकरियां कम हुई हैं और पकौड़े बेचना क्या रोजगार नहीं है का मशहूर उदाहरण दिया गया था। बाद में यह भी कहा गया कि एक ट्रक बिकता है तो कितने लोगों को नौकरी मिलती है और ऑटो कोई रखने के लिए तो खरीदता नहीं है जैसे पहले ऐसा किया जाता हो। पर आलोचना करने की हिम्मत अखबारों की तब भी नहीं थी, अब भी नहीं है। और समिति बनी है तो खबर है। लीजिए, पढ़िए। दैनिक जागरण ने इसे गंभीरता से छापा है।

शीर्षक है, रोजगार और विकास के लिए मोदी सरकार ने बढ़ाए कदम। इस खबर में अन्य सूचनाओं समेत यह भी बताया गया है, "सरकार ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में घटकर 5.8 फीसद पर आ गयी थी जो बीते पांच साल में न्यूनतम है। जीडीपी की सालाना वृद्धि दर भी पिछले वित्त वर्ष में घटकर 6.8 फीसद के स्तर पर आ गई है जबकि सरकार ने 7.2 का लक्ष्य रखा था। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में कृषि और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई। ... सरकार के समक्ष दूसरी बड़ी चुनौती रोजगार के अवसर बढ़ाने की है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की ताजा रिपोर्ट बताती है कि देश में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसद हो गई है जो बीते 45 साल में सर्वाधिक है।" क्या आपको चुनाव से पहले यह सब पता था? क्या आपको यह सब बताया गया था? अखबार ने लिखा है, "यह शायद पहला मौका है जब निवेश, विकास दर और रोजगार जैसे मुद्दों पर पीएम की अध्यक्षता में कैबिनेट समितियों का गठन किया गया है।"

इसमें दिलचस्प यह है कि अखबार ने खुद ही लिखा है कि बेरोजगारी की दर 45 साल में सर्वाधिक है। फिर भी सरकार की प्रशंसा करने के लिए लिख रहा है, "यह शायद पहला मौका है जब .... गठन किया गया है।" राजस्थान पत्रिका में इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, अर्थव्यवस्था में सुस्ती और बढ़ती बेरोजगारी से चिन्ता। मुख्य शीर्षक है, रोजगार और विकास में तेजी लाने को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में समितियां। अमर उजाला में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अखबारों की यह स्थिति क्रिकेट और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की खबरों के बावजूद या कारण हैं।

द टेलीग्राफ की खबरें कल और आज की।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
 

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