चोरी के आरोप में पकड़े गए झारखण्ड के खरसावां निवासी तबरेज अंसारी उर्फ सोनू को पीट-पीट कर मार डालने की खबर सोशल मीडिया पर मैंने कल देखी थी। कल ही, राजस्थान के बाड़मेर में राम कथा के दौरान पंडाल गिरने से 14 लोगों की मौत की खबर आई थी। आज पंडाल गिरने से मौत की खबर तो लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है लेकिन युवक को मारे जाने की खबर नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर छोटी सी है जबकि अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में लीड है। टेलीग्राफ ने रामकथा की खबर पहले पन्ने पर नहीं छापी है। पहले पन्ने पर फोटो और कैप्शन है, खबर अंदर के पन्ने पर है। मुमकिन है दूसरे अखबारों में इस खबर को प्राथमिकता नहीं मिलने का कारण यह हो कि घटना कल की नहीं है, पुरानी है। पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज, एसएन शुक्ला को हटाने की मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश की टाइम्स ऑफ इंडिया की कल की खबर आज नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर है।
चोरी के आरोप में पकड़े गए युवक से भीङ ने नाम पूछा और फिर जय श्री राम, जय हनुमान का नारा लगवाया। इसके बावजूद पीटती रही। पिटाई के दो वीडियो हैं। एक उजाले में और दूसरा अंधेरा होने के बाद। इससे लगता है कि उसकी पिटाई लंबे समय तक हुई थी। बुधवार की सुबह उसे पुलिस को सौंपा गया था। द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक पुलिस से कहा गया कि वह गिर गया था। इससे चोट लगी है। उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। शनिवार को इलाज के लिए उसे दो अस्पतालों में ले जाया गया पर उसी दिन उसकी मौत हो गई। इस मामले में कथित रूप से भीड़ का नेतृत्व करने वाले 23 साल के पप्पू मंडल को गिरफ्तार किया गया है।
ऐसा नहीं है कि यह मॉब लिन्चिंग या जय श्रीराम का नारा लगाने के लिए कहने और नहीं कहने पर मार दिए जाने का कोई सामान्य मामला है। यह चोरी के आरोप में पकड़े जाने और फिर नाम से धर्म पता चलने के बाद भीड़ द्वारा पिटाई (जो सार्वजनिक रूप से होती है) और फिर झूठ बोल कर पुलिस को सौंप दिए जाने तथा पुलिस द्वारा आखिरकार जख्मी तबरेज को न्यायायिक हिरासत में भेज दिए जाने का एक असामान्य मामला है। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि सरायकेला के सब डिविजनल पुलिस अधिकारी अविनाश कुमार ने दावा किया कि तबरेज ने पुलिस को पिटाई के बारे में नहीं बताया। इसमें दोनों ही बातें महत्वपूर्ण हैं। भीड़ की पिटाई का शिकार युवक पुलिस को पिटाई की बात क्यों नहीं बताएगा? उसे किसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं होगी या फिर और पीटे जाने का डर होगा। मुझे नहीं पता असल में क्या कारण रहा होगा पर नहीं बताने का कोई कारण तो होगा ही - या फिर पुलिस झूठ बोल रही है। अगर यह मान भी लिया जाए कि युवक ने नहीं बताया होगा तो भी उसे पुलिस को यही बता कर सौंपा गया था कि वह गिर गया था और उसे चोट लग गई है - क्या ऐसे मामले में मेडिकल कराने का नियम या जरूरत नहीं है?
न्यायिक हिरासत में भेज दिए जाने का मतलब है और भी लोगों ने तबरेज की चिकित्सीय स्थिति नहीं देखी जो उन्हें देखना चाहिए था। और जेल वालों ने घायल जख्मी को यूं ही स्वीकार कर लिया? बिना मेडिकल, जख्मों और शारीरिक स्थिति को देखे और रिकार्ड किए बिना। जेल में उसकी हालत खराब हुई तो उसे अस्पताल भेजा गया। जाहिर है, उसे समय पर इलाज नहीं मिला और इसमें कइयों की लापरवाही है। भीड़ की हिंसा तो अपनी जगह, अधिकारियों की लापरवाही का क्या होगा? क्या यह जानना, बताना, देखना जरूरी नहीं है कि ऐसा मुस्लिम नाम होने के कारण ही हुआ या यह व्यवस्था का हिस्सा बन गया है। मेरा मानना है कि पिटाई भले मुस्लिम होने के कारण हुई लेकिन उसके बाद जो सब हुआ वह किसी के भी साथ हो सकता था - और यह गंभीर प्रशासनिक लापरवाही तथा चूक है। निश्चित रूप से इसे ठीक करने का जिम्मा राज्य सरकार का है पर राज्य सरकारें क्या ऐसा मामलों में कोई दिलचस्पी लेती हैं?
देश में सब कुछ ठीक है, के दावों के बीच यह घटना चिन्ताजनक स्थिति की ओर इशारा कर रही है। अमूमन मीडिया के कारण ऐसे मामले नहीं होते थे या ऐसे मामले सामने आ जाते थे पर अब या मुद्दा ही नहीं है। खबर ही नहीं है। मीडिया पर सत्ता के पक्ष में झुके होने का आरोप है और इसपर किसी का ध्यान नहीं है। पर उसका असर दूसरे कामों पर भी हो रहा है। अगर आप समझते हैं कि तरबेज की जगह किसी दुर्घटना में घायल कोई युवक होता तो पुलिस ने उसके साथ सही व्यवहार किया होता और उसे समय पर इलाज मिलता तथा वह बच जाता तो ठीक है पर लगता है कि तरबेज की जगह आप भी हो सकते थे और भले आपको भीड़ की पिटाई का सामना न करना पड़े पर दुर्घटना तो हो ही सकती है – और तब अफसोस की कर पाएंगे, देर हो चुकी होगी। आइए, राम कथा सुनते हुए जिनका निधन हुआ उनकी खबर भी देख लें।
दैनिक भास्कर सोमवार को नो निगेटिव अखबार होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सोमवार को बुरी खबर नहीं छापी जाएगी। छपती है, उसके साथ सूचना होती है, निगेटिव न्यूज – सिर्फ वही नकारात्मक खबर जो आपको जानना जरूरी है। यह खबर पहले पेज पर तीन कॉलम में और फिर सातवें पेज पर छह कॉलम में है। इसके साथ दो कॉलम में एक खबर है, दर्दनाक हादसा : बिजली कटवाई, पर करंट नहीं कटा, क्योंकि ऑटोमेटिक जेनरेटर ऑन हो गया। यह व्यवस्था संबंधी भारी चूक है। एक पंडाल में बिजली ऑफ करने पर जेनेरेटर अपने आप ऑन हो जाने की व्यवस्था की जरूरत ही नहीं थी और अगर इतनी तगड़ी व्यवस्था की गई तो इससे बचाव की भी ऐसी ही व्यवस्था होनी चाहिए थी। जो जाहिर है नहीं थी। और मुमकिन है इस कारण मरने वालों तथा घायलों की संख्या इतनी ज्यादा हो। पंडाल में बिजली की ऐसी तगड़ी व्यवस्था कि जेनरेटर ऑटोमेटिक ऑन हो जाए और आंधी में पंडाल गिर जाए। दोनों कैसे हो सकता है? असल में यह दुर्घटना को निमंत्रण देना है।
व्यवस्थापकों ने अगर ऐसी व्यवस्था की थी और रामकथा सुनने के लिए बुजुर्गों को बुलाया था तो दुर्घटना की स्थिति में क्या करना है यह नहीं ही बताया होगा। भीड़ वाली सभी जगहों पर भीड़ इकट्ठा होने औऱ कार्यक्रम शुरू होने से पहले दुर्घटना की स्थिति में क्या करना है यह बताया जाना चाहिए। मुझे नहीं पता इस मामले में कानूनन क्या स्थिति है पर जमशेदपुर में अपने स्कूल के पूर्व छात्रों के मिलन समारोह में गया था तो कार्यक्रम शुरू होने से पहले ये निर्देश दिए गए थे। मेरा स्कूल टाटा मोटर्स का है और कार्यक्रम के दौरान कंपनी के अग्निशमन विभाग के लोग दमकल गाड़ी के साथ मौजूद रहे। ठीक है कि कि यह आमतौर पर नहीं होता है लेकिन इसकी मांग और जरूरत कौन बताएगा? यह वैसे ही है जैसे हर उड़ान से पहले दुर्घटना की स्थिति में क्या करना है यह बताया जाता है। विमान दुर्घटनाएं तंबू में होने वाली दुर्घटनाओं के मुकाबले कम होती हैं पर सुरक्षा के मामले में लापरवाही ज्यादा है। देश में जब भ्रष्टाचार था, सरकारें काम नहीं करती थीं – तब की बात अलग थी। अब जब सब ठीक है तो इस तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जहां तक अखबारों की बात है, दैनिक भास्कर ने यह जानकारी दी है, कइयों में यह भी नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
चोरी के आरोप में पकड़े गए युवक से भीङ ने नाम पूछा और फिर जय श्री राम, जय हनुमान का नारा लगवाया। इसके बावजूद पीटती रही। पिटाई के दो वीडियो हैं। एक उजाले में और दूसरा अंधेरा होने के बाद। इससे लगता है कि उसकी पिटाई लंबे समय तक हुई थी। बुधवार की सुबह उसे पुलिस को सौंपा गया था। द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक पुलिस से कहा गया कि वह गिर गया था। इससे चोट लगी है। उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। शनिवार को इलाज के लिए उसे दो अस्पतालों में ले जाया गया पर उसी दिन उसकी मौत हो गई। इस मामले में कथित रूप से भीड़ का नेतृत्व करने वाले 23 साल के पप्पू मंडल को गिरफ्तार किया गया है।
ऐसा नहीं है कि यह मॉब लिन्चिंग या जय श्रीराम का नारा लगाने के लिए कहने और नहीं कहने पर मार दिए जाने का कोई सामान्य मामला है। यह चोरी के आरोप में पकड़े जाने और फिर नाम से धर्म पता चलने के बाद भीड़ द्वारा पिटाई (जो सार्वजनिक रूप से होती है) और फिर झूठ बोल कर पुलिस को सौंप दिए जाने तथा पुलिस द्वारा आखिरकार जख्मी तबरेज को न्यायायिक हिरासत में भेज दिए जाने का एक असामान्य मामला है। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि सरायकेला के सब डिविजनल पुलिस अधिकारी अविनाश कुमार ने दावा किया कि तबरेज ने पुलिस को पिटाई के बारे में नहीं बताया। इसमें दोनों ही बातें महत्वपूर्ण हैं। भीड़ की पिटाई का शिकार युवक पुलिस को पिटाई की बात क्यों नहीं बताएगा? उसे किसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं होगी या फिर और पीटे जाने का डर होगा। मुझे नहीं पता असल में क्या कारण रहा होगा पर नहीं बताने का कोई कारण तो होगा ही - या फिर पुलिस झूठ बोल रही है। अगर यह मान भी लिया जाए कि युवक ने नहीं बताया होगा तो भी उसे पुलिस को यही बता कर सौंपा गया था कि वह गिर गया था और उसे चोट लग गई है - क्या ऐसे मामले में मेडिकल कराने का नियम या जरूरत नहीं है?
न्यायिक हिरासत में भेज दिए जाने का मतलब है और भी लोगों ने तबरेज की चिकित्सीय स्थिति नहीं देखी जो उन्हें देखना चाहिए था। और जेल वालों ने घायल जख्मी को यूं ही स्वीकार कर लिया? बिना मेडिकल, जख्मों और शारीरिक स्थिति को देखे और रिकार्ड किए बिना। जेल में उसकी हालत खराब हुई तो उसे अस्पताल भेजा गया। जाहिर है, उसे समय पर इलाज नहीं मिला और इसमें कइयों की लापरवाही है। भीड़ की हिंसा तो अपनी जगह, अधिकारियों की लापरवाही का क्या होगा? क्या यह जानना, बताना, देखना जरूरी नहीं है कि ऐसा मुस्लिम नाम होने के कारण ही हुआ या यह व्यवस्था का हिस्सा बन गया है। मेरा मानना है कि पिटाई भले मुस्लिम होने के कारण हुई लेकिन उसके बाद जो सब हुआ वह किसी के भी साथ हो सकता था - और यह गंभीर प्रशासनिक लापरवाही तथा चूक है। निश्चित रूप से इसे ठीक करने का जिम्मा राज्य सरकार का है पर राज्य सरकारें क्या ऐसा मामलों में कोई दिलचस्पी लेती हैं?
देश में सब कुछ ठीक है, के दावों के बीच यह घटना चिन्ताजनक स्थिति की ओर इशारा कर रही है। अमूमन मीडिया के कारण ऐसे मामले नहीं होते थे या ऐसे मामले सामने आ जाते थे पर अब या मुद्दा ही नहीं है। खबर ही नहीं है। मीडिया पर सत्ता के पक्ष में झुके होने का आरोप है और इसपर किसी का ध्यान नहीं है। पर उसका असर दूसरे कामों पर भी हो रहा है। अगर आप समझते हैं कि तरबेज की जगह किसी दुर्घटना में घायल कोई युवक होता तो पुलिस ने उसके साथ सही व्यवहार किया होता और उसे समय पर इलाज मिलता तथा वह बच जाता तो ठीक है पर लगता है कि तरबेज की जगह आप भी हो सकते थे और भले आपको भीड़ की पिटाई का सामना न करना पड़े पर दुर्घटना तो हो ही सकती है – और तब अफसोस की कर पाएंगे, देर हो चुकी होगी। आइए, राम कथा सुनते हुए जिनका निधन हुआ उनकी खबर भी देख लें।
दैनिक भास्कर सोमवार को नो निगेटिव अखबार होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सोमवार को बुरी खबर नहीं छापी जाएगी। छपती है, उसके साथ सूचना होती है, निगेटिव न्यूज – सिर्फ वही नकारात्मक खबर जो आपको जानना जरूरी है। यह खबर पहले पेज पर तीन कॉलम में और फिर सातवें पेज पर छह कॉलम में है। इसके साथ दो कॉलम में एक खबर है, दर्दनाक हादसा : बिजली कटवाई, पर करंट नहीं कटा, क्योंकि ऑटोमेटिक जेनरेटर ऑन हो गया। यह व्यवस्था संबंधी भारी चूक है। एक पंडाल में बिजली ऑफ करने पर जेनेरेटर अपने आप ऑन हो जाने की व्यवस्था की जरूरत ही नहीं थी और अगर इतनी तगड़ी व्यवस्था की गई तो इससे बचाव की भी ऐसी ही व्यवस्था होनी चाहिए थी। जो जाहिर है नहीं थी। और मुमकिन है इस कारण मरने वालों तथा घायलों की संख्या इतनी ज्यादा हो। पंडाल में बिजली की ऐसी तगड़ी व्यवस्था कि जेनरेटर ऑटोमेटिक ऑन हो जाए और आंधी में पंडाल गिर जाए। दोनों कैसे हो सकता है? असल में यह दुर्घटना को निमंत्रण देना है।
व्यवस्थापकों ने अगर ऐसी व्यवस्था की थी और रामकथा सुनने के लिए बुजुर्गों को बुलाया था तो दुर्घटना की स्थिति में क्या करना है यह नहीं ही बताया होगा। भीड़ वाली सभी जगहों पर भीड़ इकट्ठा होने औऱ कार्यक्रम शुरू होने से पहले दुर्घटना की स्थिति में क्या करना है यह बताया जाना चाहिए। मुझे नहीं पता इस मामले में कानूनन क्या स्थिति है पर जमशेदपुर में अपने स्कूल के पूर्व छात्रों के मिलन समारोह में गया था तो कार्यक्रम शुरू होने से पहले ये निर्देश दिए गए थे। मेरा स्कूल टाटा मोटर्स का है और कार्यक्रम के दौरान कंपनी के अग्निशमन विभाग के लोग दमकल गाड़ी के साथ मौजूद रहे। ठीक है कि कि यह आमतौर पर नहीं होता है लेकिन इसकी मांग और जरूरत कौन बताएगा? यह वैसे ही है जैसे हर उड़ान से पहले दुर्घटना की स्थिति में क्या करना है यह बताया जाता है। विमान दुर्घटनाएं तंबू में होने वाली दुर्घटनाओं के मुकाबले कम होती हैं पर सुरक्षा के मामले में लापरवाही ज्यादा है। देश में जब भ्रष्टाचार था, सरकारें काम नहीं करती थीं – तब की बात अलग थी। अब जब सब ठीक है तो इस तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जहां तक अखबारों की बात है, दैनिक भास्कर ने यह जानकारी दी है, कइयों में यह भी नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)