केरल के बाद उत्तराखंड में बारिश ने मचाई तबाही, 47 मरे, यूपी की तराई बैल्ट में फसलें बर्बाद

Written by Navnish Kumar | Published on: October 20, 2021
केरल के बाद उत्तराखंड में तीन दिनों की भारी बारिश और भूस्खलन ने कहर ढा दिया है। तबाही का आलम यह है कि कुमाऊं क्षेत्र में आई इस प्राकृतिक आपदा में 47 लोगों की मौत हो गई है। कई लोग लापता हैं। उत्तराखंड के नैनीताल, हल्द्वानी, ऊधम सिंह नगर और चंपावत जिले में बारिश और भूस्खलन तबाही लेकर आया है। इनमें से 28 लोग नैनीताल और 6-6 लोगों की मौत अल्मोड़ा एवं चंपावत जिलों में हुई। 1-1 शख्स की मौत पिथौरागढ़ और ऊधम सिंह नगर जिले में हुई है। भारी बारिश से हुई तबाही में 47 लोग अब तक जान गंवा चुके हैं। 


केरल में तबाही का मंजर

अधिकारियों के अनुसार, उत्तराखंड में मंगलवार को सोमवार को कम से कम छह लोगों की जान चली गई थी और मंगलवार को 35 और लोग मारे गए। इनमें से कम से कम 30 तो सबसे बुरी तरह प्रभावित नैनीताल में ही 6 अलग अलग हादसों में मारे गए। नैनीताल में बादल फटने से कई स्थानों पर भूस्खलन हुआ और कई इमारतें टूट गईं। नैनीताल के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, अभी तक 47 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है और कई लापता हैं। बताया कि दूरदराज के इलाकों में काफी बड़े पैमाने पर तबाही हुई है। एक स्थानीय अधिकारी ने बताया कि मरने वालों में से पांच तो एक ही परिवार के सदस्य थे जिनका घर भूस्खलन के बाद जमीन में दब गया। भारी बारिश के कारण नैनीताल का संपर्क भी उत्तराखंड के दूसरे इलाकों से टूट गया था, लेकिन इसे अब बहाल कर दिया गया है। नैनी झील उफना गई है जिसका पानी आसपास के इलाकों तक पहुंच गया है। अल्मोड़ा में भूस्खलन के बाद एक घर पर बड़े बड़े पत्थर और मिटटी की दीवार के गिर जाने से उसके अंदर पांच लोगों की मौत हो गई। सोमवार को दूर दराज के दो और जिलों में कम से कम छह और लोग मारे गए थे।

मौसम विभाग ने कहा कि सोमवार को कई इलाकों में 400 मिलीमीटर से भी ज्यादा बारिश हुई थी, जो बाढ़ और भूस्खलन का कारण बनी। पिछले 24 घंटों में भारी से अत्यधिक भारी बारिश के कारण उत्तराखंड के बड़े हिस्से, खासकर कुमाऊं क्षेत्र में भारी बाढ़, भूस्खलन और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा है। 200-400 मिमी, और कुछ 500 मिमी से भी अधिक। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, जिन जिलों में भारी से अत्यधिक भारी बारिश हुई, उनमें चंपावत, नैनीताल, उधमसिंह नगर, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पौड़ी और चमोली शामिल थे। ऐसी कई रिपोर्टे थीं कि लोगों ने बारिश को बादल फटना कहा। लेकिन आईएमडी केवल एक घंटे में 100 मिमी या उससे अधिक की बारिश को बादल फटना बताता है।

उत्तराखंड में 24 घंटे की बारिश का पिछला रिकॉर्ड पंतनगर के पास था, जिसमें 10 जुलाई 1990 को 228 मिमी बारिश हुई थी, लेकिन अब यह वर्तमान 403.2 मिमी बारिश से टूट गया है। आईएमडी देहरादून के आंकड़ों में कहा गया है कि वेधशाला में 25 मई, 1962 से रिकॉर्ड हैं, जब इसे वहां स्थापित किया गया था। इसी तरह मुक्तेश्वर में, जहां 1 मई, 1897 को वेधशाला स्थापित की गई थी, पिछला रिकॉर्ड 18 सितंबर, 1914 को 254.5 मिमी बारिश का था, जो 340.8 मिमी बारिश के वर्तमान रिकॉर्ड से टूट गया।

आपदा के मद्देनजर ऐहतियाती तौर से राज्य में सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया और सभी धार्मिक और पर्यटन गतिविधियों को भी रोक दिया गया है। टीवी और सोशल मीडिया पर नैनीताल झील के पास घुटनों तक पानी में चलते हुए लोगों के वीडियो नजर आ रहे थे। ऋषिकेश में गंगा नदी में उफान के भी कई वीडियो आ रहे थे। रामगढ़ में कोसी नदी में बाढ़ के कारण एक रिसोर्ट में 100 से ज्यादा पर्यटक फस गए थे। राज्य और केंद्रीय आपदा मोचन के अलावा राहत और बचाव कार्य के लिए सेना को भी बुला लिया गया है। सेना के हेलीकॉप्टरों की भी मदद ली जा रही है। मृतकों के परिवार वालों के लिए चार लाख रुपए और जिनके घर नष्ट हो गए उनके लिए 1.9 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की गई है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बारिश से बेहाल इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया। उन्होंने प्रभावित लोगों से बातचीत की और जानमाल के नुकसान का आकलन किया। बारिश में मारे गए लोगों के लिए बीजेपी सरकार ने 4-4 लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया है. जिनका घर ध्वस्त हुआ है, उन्हें 1.10 लाख रुपये मिलेंगे। मवेशियों को मारे जाने पर भी क्षतिपूर्ति दी जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फोन पर सीएम धामी से आपदा से उपजे हालातों को लेकर चर्चा की है. केंद्र सरकार ने हरसंभव मदद का भरोसा भी दिया है। दूसरी ओर, खराब मौसम और लगातार बारिश के बावजूद नैनीताल में बंद सड़कों को खोल दिया गया है, मलबे हटा दिए गए हैं और पर्यटक स्थल का संपर्क बहाल कर दिया गया है। फंसे हुए पर्यटक कालाढूंगी और हलद्वानी के रास्ते अपने घरों की ओर रवाना हो रहे हैं। 

हालांकि राहत की बात यह कि भारत मौसम विज्ञान विभाग ने भविष्यवाणी की है कि पिछले कई दिनों में उत्तराखंड में रिकॉर्ड तोड़ बारिश के कारण जो व्यापक तबाही बरपी है, बुधवार से इसमें काफी कमी आने की संभावना है। 18 से 19 अक्टूबर की सुबह के बीच, उत्तराखंड के कई स्थानों पर 24 घंटे की अवधि में अब तक की सबसे भारी बारिश दर्ज की गई। नैनीताल, चंपावत और पंचेश्वर में 500 मिमी से अधिक वर्षा हुई, जबकि कई अन्य क्षेत्रों में 400 मिमी से अधिक वर्षा दर्ज की गई। लेकिन राज्य के लिए सबसे बुरा समय खत्म हो सकता है। आईएमडी ने कहा कि राज्य के कुछ हिस्सों में मंगलवार रात तक बारिश जारी रहने की संभावना है, जिसके बाद तीव्र बारिश की गतिविधि पूर्व की ओर उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में स्थानांतरित होने की संभावना है। आईएमडी ने कहा कि इन सभी जगहों पर, जहां पिछले कुछ दिनों से बारिश हो रही है, भारी से बहुत भारी बारिश की संभावना है। 

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, “पूर्वी हवाएं उत्तरी झारखंड, बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रचलित निम्न दबाव प्रणाली के साथ चलेंगी। नतीजतन, बुधवार को मुख्य रूप से पूर्वोत्तर, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारी बारिश की संभावना है, ”आईएमडी के एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा। जहां गुरुवार से पूर्वी भारत में बारिश में कमी होने की संभावना है, वहीं बारिश की गतिविधि बड़े पैमाने पर दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत में स्थानांतरित हो जाएगी, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में बुधवार और गुरुवार को महत्वपूर्ण वर्षा होने की उम्मीद है। आईएमडी ने इन राज्यों में 'येलो' अलर्ट जारी किया है। आईएमडी के अधिकारियों ने कहा, "बंगाल की खाड़ी से पुरवाई के मजबूत होने से केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी पर 23 अक्टूबर तक असर पड़ेगा। पश्चिमी विक्षोभ जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश सहित उत्तरी राज्यों को प्रभावित करना जारी रखेगा, जहां मंगलवार को बर्फबारी हुई थी।

उत्तर प्रदेश की तराई बैल्ट भी बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुई है। यहां तीन दिनों से हो रही बारिश में धान व आलू आदि की फसलों को खासा नुकसान पहुंचा है। 19 अक्टूबर को राज्य में 28.5 मिलीमीटर बारिश हुई, जो सामान्य से 1679 फीसदी अधिक है। 1 अक्टूबर से 19 अक्टूबर के बीच राज्य में 80.5 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई है, जबकि सामान्य बारिश 29 मिमी रहती है। 19 अक्टूबर को सबसे अधिक बारिश बरेली में 211.1 मिमी रिकॉर्ड की गई। खास है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश व मध्य उत्तर प्रदेश में धान की कटाई तेजी से जारी थी। ज्यादातर किसान अब कटाई शुरू कर रहे हैं, उन्हें भारी नुकसान हो सकता है। इस भीषण बारिश और तेज हवाओं से धान की फसल खेत में ही तहस-नहस हो गयी है। सीतापुर लखीमपुर आदि कई जगह किसान की कटी पड़ी फसल थ्रेसिंग या पिटाई के इंतजार में खेत या खलिहान में थी उसे भी नुकसान पहुंचा है। इस वर्ष उप्र में करीब 60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सीतापुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर लहरपुर ब्लॉक के किसानों ने बताया कि धान व गन्ना की बुआई के लिए बैंक से लाखों रुपए लोन लिया था। किसान राजेश बताते हैं, "दो एकड़ धान की फसल खेत में पकी खड़ी है। आंधी और बारिश से पूरी फसल तहस-नहस हो गयी। गन्ना भी लगभग बेकार हो गया है। सोचा था फसल उठते ही बैंक का लोन चुका देंगे लेकिन लोन तो दूर अब लागत ही निकल आए बड़ी बात है। सीतापुर में 19 अक्टूबर को 44.8 मिमी बारिश हुई। जबकि अक्टूबर में अब तक 100.7 मिमी बारिश हो चुकी है, जो सामान्य से 164 फीसदी अधिक है। सिर्फ धान ही नहीं, अगेती आलू जो बोया जा चुका था, वो खेत में सड़ जाएगा। इसी तरह अगेती सरसों को भी नुकसान है। 20 अक्टूबर से गन्ना मिल शुरू हो रहे हैं, लेकिन उसे पहले गन्ना को भी नुकसान है। वहीं सब्जियों की फसलों में गोभी, बैंगन, कुम्हड़ा और कद्दू की फसल पर भी इस बारिश और तेज हवाओं का गहरा असर पड़ा है। लगातार बारिश, नमी से सब्जियों की तैयार नर्सरी भी सड़ रही है। इस पूरे साल समय से पहले मानसून आया जिससे किसान दलहन और तिलहन फसल की बुवाई समय से नहीं कर सके. अभी हुई बारिश से खेत में तैयार फसल बर्वाद हो गयी। 


यूपी के बुलंदशहर जिले में अगेती आलू की फसल तबाह


बुलंदशहर जिले में कटे पड़े धान की तबाह फसल


बारिश से बर्बाद आलू का खेत

सीतापुर कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के प्रभारी डा दयाशंकर श्रीवास्तव बेमौसम हुई बारिश पर कहते हैं, "इस वर्ष मानसून जून महीने में निर्धारित समय सीमा से 15 दिन पहले ही आ गया था जिस वजह से किसान खरीफ में जो दलहन और तिलहन की फसल की बुआई करता है वो नहीं कर पाया। उस समय मेंथा की कटाई चल रही थी बारिश होने की वजह से तेल पर्याप्त मात्रा में नहीं निकल पाया। इस बार अक्टूबर महीने में जितनी बारिश हुई है मेरी जानकारी के अनुसार 10-15 सालों में इतनी बारिश कभी नहीं हुई। यही नहीं, उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के चलते वहां के हालात बिगड़ रहे हैं जिसके बाद बैराज से पानी छोड़ा गया है, जिससे यूपी के कई जिलों में बाढ़ आ सकती है। ये पानी भी फसलों को नुकसान पहुंचाएगा। नदियों के आसपास रहने वाले लोगों के लिए अलर्ट जारी किया गया है। डूब और तराई वाले इलाकों से निकलकर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए कहा गया है। किसान मजदूर संगठन के सदस्य एवं लखीमपुर के किसान नेता अंजनी दीक्षित व अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के रजनीश बताते हैं कि लखीमपुर और पीलीभीत तराई बार्डर के क्षेत्र हैं। यहां बारिश के अलावा उत्तराखंड और नेपाल की कई नदियों का पानी आ जाता है। इस समय नदियों में पानी आने से धान के हजारों एकड़ खेत लबालब भर गये हैं। तेज हवा से गन्ना गिर गया है। 



लखीमपुर के जिलाधिकारी डॉ अरविंद कुमार चौरसिया ने ज़िले में बाढ़ को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की। उन्होंने कहा, दो दिन से जारी बारिश के चलते जनपद की नदियां उफान पर हैं। उत्तराखंड के बनबसा बैराज से 5 लाख 33 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। इतना पानी  2013 में जब छोड़ा गया था तो 181 गांवों में पानी घुसा। रात 10  बजे के बाद शारदा नदी का जलस्तर तेजी बढ़ेगा, जो 2 से ढाई मीटर ऊपर जा सकता है। आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक जेपी गुप्ता ने बताया, पश्चिमी विक्षोभ के कारण ये बारिश हुई है। पिछले दो दिनों में जो बारिश हुई है उस तरह की बारिश अब नहीं होगी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में आज और कल हल्की बारिश होगी। 21 अक्टूबर से मौसम सामान्य हो जाएगा। फरुखाबाद, कन्नौज की आलू बेल्ट में सितंबर में अगेती बुआई का समय था उस समय भी बारिश हो गयी थी जिस वजह से किसान अगैती आलू की बुआई नहीं कर पाए थे। अभी जब दोबारा किसानों ने आलू की बुआई की तो फिर बारिश हो गयी। फरुखाबाद जिला कृषि अधिकारी डॉ राकेश कुमार सिंह कहते हैं, जिले में लगभग 42 हजार हेक्टेयर आलू का रकबा है। इस बारिश से अगैती आलू की फसल पूरी तरह से डिस्टर्ब हो गयी है। यूपी में सितंबर अक्टूबर महीने में इतनी बारिश कभी नहीं हुई जितनी इस वर्ष हुई है।

बात केरल की करें तो, पिछले कुछ वर्षों से केरल लगातार प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बना है। उसमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। समुद्र तटीय इलाकों में बारिश होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन पिछले कई दिनों से लगातार जैसी बारिश हुई है और उसके बाद जिस तरह कोट्टायम और इडुक्की जैसे जिलों में कई जगह भूस्खलन हुए वह एक नया प्राकृतिक रूझान दिखाते हैं। बारिश और भूस्खलनों से केरल में कई लोगों के मारे जाने की खबर है। दर्जनों लोगों के शव बरामद किए जाने की सूचना मीडिया रिपोर्टों में दी गई है। इसके अलावा काफी संख्या में लोगों के लापता होने की खबर है। कई लोगों के घर बह गए। कई लोग अपनी गाड़ियों के साथ बह गए। कोट्टायम और इडुक्की के अलावा कन्नूर, पलक्कड़, कोल्लम, पथनमथिट्टा, आलपुर्रा जैसे जिले भी भारी बारिश से प्रभावित हुए हैं। राज्य सरकार का दावा है कि चार हजार से अधिक लोगों को मुसीबत से बचाया गया। उन्हें राज्य में खोले गए 156 राहत शिविरों में ले जाया गया है। सभी प्रभावित जिलों में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) के कर्मी, राज्य आपदा कर्मी, सेना, नौसेना और वायुसेना के कर्मी राहत और बचाव के काम में लगे हुए हैं।

बारिश की वजह से राज्य के सभी बांध और जलाशय भी भर गए हैं। पूरे राज्य में चेतावनी जारी करनी पड़ी। मौसम विभाग ने कहा है कि शनिवार को केरल के पास दक्षिणपूर्वी अरब सागर में कम दबाव का क्षेत्र बन गया था। अब यह क्षेत्र उतना गंभीर नहीं दिखा जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि इतनी भारी बारिश होगी। तो हकीकत यह है कि केरल में अक्सर मानसून के दौरान इस तरह के हालात बन रहे हैं। 2018 में राज्य में भारी बारिश के बाद भयंकर बाढ़ आई थी, जिसे लगभग 100 सालों में सबसे बुरी बाढ़ बताया गया था। तब 480 लोग मारे गए थे। पर्यावरणविदों के अनुसार, केरल समेत पूरे पश्चिमी घाट के इलाके को पारिस्थितिक रूप से अति संवेदनशील माना जाता है। यहां जंगलों की कटाई और सड़कों और इमारतों के निर्माण के दुष्प्रभाव अब जाहिर हो रहे हैं। फिर इस पहलू पर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लेकिन ऐसा करना खतरनाक है। सरकारों को पर्यावरण संबंधी पहलुओं को गंभीरता से लेना चाहिए। वरना, ऐसे विनाश आम कहानी बने रहेंगे। 

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