दलित युवक को गोली मार पुलिस ने पिता को दिया था ऑफरः मुस्लिम का नाम ले लो 10 लाख मिलेंगे

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 14, 2019
नई दिल्ली। जिस पुलिस को कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए रखा जाता है वह ही कानून की धज्जियां उड़ाए और संवैधानिक मूल्यों को तहस नहस करे तो क्या कहेंगे। पुलिस का ऐसा ही कारनामा बताया है 2 अप्रैल के भारत बंद में अपने बेटे को खोने वाले एक पिता ने। रामलीला मैदान में रविवार को दो अप्रैल, 2018 में भारत बंद के दौरान मारे गए दलितों की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गाजियाबाद के सत्यशोधक संघ, भीम आर्मी के एक गुट द्वारा आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में मृतकों और घायलों के परिजनों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में पहुंचे कई पीड़ितों ने इस दौरान अपनी आप बीती सुनाई। 

द टेलीग्राफ में छपी एक खबर के मुताबिक ऐसे ही एक पीड़ित सुरेश कुमार ने कहा कि उनके बेटे को एक पुलिस अधिकारी ने गोली मार दी और बदले में उनसे कहा गया कि वह दलित युवक के हत्यारे के रूप में किसी भी मुस्लिम शख्स का नाम ले लें। इसके बदले में उन्हें दस लाख रुपए की पेशकश की गई।

ऐसे ही एक और पुलिस की गोली का शिकार हुए दिहाड़ी मजदूर कहते हैं कि उन्हें भाजपा सरकार से किसी मुआवजे की उम्मीद नहीं है। कुमार कहते हैं कि पुलिस की गोली लगने की वजह से वह अब मजदूरी करने में भी सक्षम नहीं हैं। रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए बहुत से दलितों ने अन्याय और कठिनाईयों की कई कहानियां बताईं। 

ये वो लोग हैं जिन्होंने भारत बंद में किसी ना किसी रूप से हिस्सा लिया और प्रशासन की क्रूरता का शिकार हुए। इस विरोध प्रदर्शन में 13 लोगों की जान चली गई जबकि दो हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए। रामलीला मैदान में इनके परिजनों को बहुजन सम्मान महासभा में सम्मानित किया गया।

भारत बंद के दौरान पुलिस गोलीबारी में दस लोगों की मौत हो गई। ये लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट के बदलाव के खिलाफ विरोध कर रहे थे। विरोध के दौरान एक बच्ची की मौत जलती बाइक में गिरने की वजह से हो गई। इसके अलावा दो लोगों की मौत कथित तौर पर ऊंची जाति द्वारा दो दिन बाद हिंसा में हो गई थी। इसीलिए रामलीला मैदान के आयोजन में 13 ‘शहीद भीम सैनिकों’ की मूर्तियां लगाई गईं। इन मूर्तियों को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, बुद्ध और सम्राट अशोक की बड़ी मूर्तियों के सामने रखा गया जिन्हें बाद में पीड़ितों के मूल स्थानों पर ले जाया जाएगा।

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