पांचवे चरण में अब एक दिन ही प्रचार कर पाएंगी ममता, आयोग के बैन के विरोध में धरने पर बैठीं

Written by Navnish Kumar | Published on: April 13, 2021
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग की तरफ से प्रचार पर 24 घंटे की रोक का तीखा विरोध किया है। ममता बनर्जी ने बैन लगने के बाद कहा कि वो मंगलवार को दोपहर 12 बजे से धरने पर बैठेंगी। बता दें कि अल्पसंख्यकों से एकजुट होकर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए वोट डालने की अपील करने के चलते, चुनाव आयुक्त ने रिटायरमेंट से ठीक पहले, ममता बनर्जी के चुनाव प्रचार पर 24 घंटे का बैन लगा दिया है। ये बैन सोमवार शाम 8 बजे से मंगलवार रात 8 बजे तक लागू रहेगा। 



यही नहीं, चुनाव प्रचार खत्म होने की अवधि में बदलाव को मिलाकर देखें तो ममता पांचवे चरण के लिए अब केवल एक दिन ही चुनाव प्रचार कर सकेंगी। खास है कि चुनाव आयोग ने पांचवें चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार खत्म होने की अवधि में भी बदलाव किया है और अब 72 घंटे पहले यानि 14 अप्रैल की शाम को ही प्रचार खत्म करना होगा। जबकि अभी तक मतदान के लिए तय अवधि खत्म होने से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद होता था।

ममता बनर्जी ने ट्विटर के जरिए चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि मैं आयोग के गैर-लोकतांत्रिक और असंवैधानिक फैसले के विरोध में धरना करूंगी। उन्होंने कहा कि वो कोलकाता की गांधी मूर्ति के सामने 12 बजे से धरना करेंगी।

इससे पहले बीते बुधवार को चुनाव आयोग ने ममता को नोटिस जारी कर हुगली में चुनाव प्रचार के दौरान सांप्रदायिक आधार पर वोट मांगने को लेकर 48 घंटे में जवाब मांगा था। लेकिन ममता ने इस नोटिस का जवाब नहीं दिया। बल्कि चुनाव आयोग के रुख को एकतरफा बताते हुए कहा कि चाहे 10 नोटिस भेज दें, वह अपना रुख नहीं बदलेंगी।

आरोप है कि तीन अप्रैल को, बनर्जी ने हुगली में ताराकेश्वर की चुनाव रैली के दौरान कहा था, 'विश्वविद्यालयों तक के लिए कन्याश्री छात्रवृत्ति है। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए शिक्षाश्री है। सामान्य वर्ग के लिए स्वामी विवेकानंद छात्रवृत्ति है। अल्पसंख्यक समुदाय के मेरे भाइयों और बहनों के लिए एक्यश्री है और मैंने इसे दो करोड़ 35 लाख लाभार्थियों को दिया है। मैं हाथ जोड़कर अपने अल्पसंख्यक भाई-बहनों से अपने वोट शैतान को नहीं देने और अपने वोट को बंटने नहीं देने की अपील करती हूं जिसने भाजपा से पैसे लिए हैं। मैं अपने हिंदू भाई-बहनों से भी कहूंगी कि भाजपा को सुनने के बाद खुद को हिंदू और मुस्लिम में न बांटें।

चुनाव आयोग ने कहा कि उसने पाया है कि उनका भाषण जन प्रतिनिधित्व कानून और आचार संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

इसी से चुनाव आयोग ने उनके प्रचार पर मंगलवार रात आठ बजे तक के लिए रोक लगा दी है। बता दें कि पश्चिम बंगाल में चार चरणों की वोटिंग हो चुकी है। पांचवें चरण के लिए 17 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। छठे चरण के लिए 22 अप्रैल, सातवें चरण के लिए 26 अप्रैल और आठवें चरण के लिए 29 अप्रैल को वोट डाले जाने हैं। 

बैन के मद्देनजर ममता बनर्जी की आज (मंगलवार) होने वाली रैली आदि कार्यक्रमों में बदलाव किए गए हैं। बताया जा रहा है कि ममता अब मंगलवार को होने वाली तय चुनावी रैली के लिए उत्तर बंगाल नहीं जाएंगी। बल्कि ममता बैन के ठीक चौबीस घंटे पूरे होने पर रात 8 बजे के बाद साल्ट लेक में बिधाननगर प्रत्याशी सुजीत बोस के लिए जनसभा को संबोधित करेंगी। ममता बारासात में अपने प्रत्याशी चिरंजीत चक्रवर्ती के लिए प्रचार करेंगी। 

इस सबसे खास यह भी है कि चुनाव आयोग ने पांचवें चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार खत्म होने की अवधि में भी बदलाव किया है जिसके चलते अब 72 घंटे पहले ही प्रचार खत्म करना होगा। जबकि मतदान के लिए तय अवधि खत्म होने से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद होता है। आयोग ने हालात के मद्देनज़र इसे बढ़ाकर 72 घंटे कर दिया है, यानी अब 17 अप्रैल को होने वाले पांचवें चरण के मतदान के लिए प्रचार 15 अप्रैल के बजाए 14 अप्रैल की शाम को ही खत्म हो जाएगा।

उधर, चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए टीएमसी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने कहा कि लोकतंत्र की हर संस्था से समझौता किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें चुनाव आयोग की निष्पक्षता के बारे में हमेशा संदेह था। लेकिन, आज इसने जो भी दिखावा किया है, वह स्पष्ट है। अब यह स्पष्ट है कि चुनाव आयोग मोदी/शाह के इशारे पर और सीधे उनके आदेश के तहत काम कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि यह देश के लोकतंत्र के लिए काला दिन है। उन्होंने कहा कि आयोग बिल्कुल कमजोर पड़ चुका है। हमें हमेशा मालूम था कि हम बंगाल जीत रहे हैं।’’ उन्हीं के सुर में सुर मिलाते हुए एक अन्य पार्टी नेता कुणाल घोष ने आयोग के फैसले पर कहा कि आयोग भाजपा की शाखा की भांति बर्ताव कर रहा है। यह पाबंदी ज्यादती है एवं इससे अधिनायकवाद की बू आती है। आयोग का एकमात्र लक्ष्य बनर्जी को चुनाव प्रचार से रोकना है क्योंकि भाजपा पहले ही हार भांप चुकी है।

दूसरी ओर, देखें तो ऐसा पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग की निष्पक्षता कठघरे में हो बल्कि उस पर तो केंद्रीय सत्ता की तरफदारी का आरोप एक आम बात रही है। लेकिन पश्चिम बंगाल के चुनाव के संदर्भ में देखें तो इस बार वह निष्पक्षता का दिखावा तक नहीं कर रही है और लगता है कि उसे लोकलाज की चिंता भी रह नहीं गई है। ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग का काम किसी तरह चुनाव करा देना भर रह गया है और ऐसे में एक आशंका यह है कि आयोग की इस शारीरिक और जुबानी हिंसा की अनदेखी करने का असर चुनाव बाद विस्फोटक न हो जाए! 

बता दें कि 9 अप्रैल को चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को केंद्रीय सुरक्षा बलों पर गलत बयानबाजी के आरोप में दूसरी बार नोटिस भेजा। ममता बनर्जी केंद्रीय सुरक्षा बलों पर बीजेपी की मदद पहुंचाने का आरोप लगाती रही हैं। इसके पहले आयोग ने 7 अप्रैल को भी एक नोटिस अल्पसंख्यक अपने मतों का विभाजन न होने दें, को लेकर दिया गया था। इस पर उल्टा ममता ने आयोग पर यह आरोप लगाया कि वह बीजेपी की तरफ से चुनाव प्रचार कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ शिकायत क्यों नहीं दर्ज करता है?

दरअसल 6 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक चुनाव रैली में कहा कि यदि उन्होंने भी हिंदुओं को एकजुट करने और उन्हें बीजेपी के पक्ष में वोट देने के लिए कहा होता तो चुनाव आयोग की तरफ से उन्हें नोटिस मिल जाता। इस तरह, उन्होंने भी चुनाव के दौरान हिंदू मतों का धुर्वीकरण करने से जुड़ा बयान दे ही दिया, लेकिन आयोग ने उन्हें नोटिस नहीं भेजा। 

ममता बनर्जी का आरोप है कि उन्होंने आयोग को बीजेपी नेताओं की अवैधानिक गतिविधियों से जुड़ी कई शिकायतें भेजीं, लेकिन किसी तरह की कार्रवाई करनी तो दूर आयोग ने उन्हें कोई उत्तर तक नहीं दिया है। वहीं देखा जाए तो ममता बनर्जी के जिस बयान पर उन्हें आयोग द्वारा पहला नोटिस भेजा गया था वह चार दिनों बाद 7 अप्रैल को आयोग ने संज्ञान में लिया था। मतलब यह कि नोटिस आयोग द्वारा 3, 4 या 5 अप्रैल को भेजने की बजाय जब भेजा तब प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक सभा में ममता के बयान को लेकर आयोग को घेरा। इस तरह, प्रधानमंत्री ने अपने बयान से दो निशाने साधे। एक तो उन्होंने हिंदुओं को एकजुट करके बीजेपी को वोट देने का संकेत किया और दूसरा आयोग को ममता पर कार्रवाई करने के लिए भी कहा और उसके अगले दिन आयोग ने भी बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी की शिकायत पर ममता को नोटिस भेज दिया।

जानकार कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की भूमिका को अलग से देखने की बजाय हमें इसे अन्य संवैधानिक संस्थाओं के केंद्रीय सत्ता के दबाव में आने और काम करने के रुप में देखना चाहिए। इसके पहले भी जब पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव आठ चरणों में कराने की घोषणा हुई थी तब भी सभी विपक्षी दलों ने आयोग पर यह आरोप लगाया था कि उसने यह पूरा कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बनाया है। कोरोना लॉकडाउन की गाइडलाइन का निरंतर  उल्लंघन भी इसी दबाव का नतीजा है। इसी तरह, चुनावी सभाओं में नेताओं की बयानबाजी और भाषा की बात करें तो इस मामले में भी चुनाव आयोग ने जैसे आंखें बंद कर ली हैं। कारण यह है कि व्यक्तिगत मर्यादा के उल्लंघन के मामले में आयोग द्वारा प्रधानमंत्री के उन बयानों के आधार पर उन्हें नोटिस भेजा जा सकता था जिसमें वह ममता बनर्जी को ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर एक तरह से उन्हें छेड़ या चिढ़ा रहे हैं और उनका यह कमेंट काफी विवादित माना जा रहा है। इसके अलावा, जिस प्रकार बीजेपी के चुनाव अभियान में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाकर और मंदिर दर्शनों के जरिए सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है उसे लेकर भी आयोग गंभीर नजर नहीं आ रहा है।

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