भारतीय जनता पार्टी लगातार महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करती रही है, लेकिन जब चुनावों में टिकट देने की बारी आई तो उसके सुर बदल गए।
कहने को तो भाजपा नेता अब भी अपने को महिलाओं का पक्षधर बताते हैं, लेकिन महिलाओं को टिकट देने में उन्हें दिक्कत होती है।
सवाल उठने लगा है कि भाजपा को महिलाओं को टिकट देने से डर क्यों लगता है? इसमे कोई दो राय नहीं कि भाजपा जिस विचारधारा की समर्थक है, उसमें महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई तक का अधिकार नहीं दिया जाता, लेकिन बदलते दौर में काफी कुछ बदला ही है।
महिला आरक्षण की प्रबल पक्षधर होने का दावा करने वाली भाजपा की असलियत इसी बात से जाहिर होती है कि उसने मध्यप्रदेश में 230 सीटों में से केवल 25 यानी 11 प्रतिशत ही टिकट महिलाओं को देना जरूरी समझ है। यहां तक कि महिला मोर्चे की प्रमुख नेताओं को भी टिकट के लायक नहीं समझा गया।
वैसे पिछले यानी 2013 के चुनावों में भी भाजपा का यही रवैया था, लेकिन तब भी 28 महिलाएं टिकट पाने में सफल हो गई थीं। इस बार और ज्यादा कटौती हो गई। शिवराज सरकार में 5 महिला मंत्रियों में से भी दो मंत्रियों माया सिंह और कुसुम महदेले को इस बार टिकट नहीं दिया गया है।
यही स्थिति राजस्थान में है, जहां 200 सीटों में से केवल 23 पर भाजपा ने महिलाएं उतारी हैं जो कि 11.5 प्रतिशत ही बैठती हैं। 2013 के चुनावों की तुलना में राजस्थान में भी महिलाओं के टिकटों में कटौती हुई है। 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने 26 महिलाओं को टिकट दिए थे, जबकि इस बार 3 टिकट कम कर दिए हैं।
राजस्थान में जिन महिलाओं को टिकट दिया भी है, वे भी अधिकतर पूर्व राजघरानों की हैं। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने उतरी महिलाओं में पूर्व महारानियां-वसुंधरा राजे, कल्पना देवी, पूर्व राजकुमारियां- सिद्धि कुमारी, कृष्णेंद्र कौर, दीपा कुमारी शामिल हैं।
कहने को तो भाजपा नेता अब भी अपने को महिलाओं का पक्षधर बताते हैं, लेकिन महिलाओं को टिकट देने में उन्हें दिक्कत होती है।
सवाल उठने लगा है कि भाजपा को महिलाओं को टिकट देने से डर क्यों लगता है? इसमे कोई दो राय नहीं कि भाजपा जिस विचारधारा की समर्थक है, उसमें महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई तक का अधिकार नहीं दिया जाता, लेकिन बदलते दौर में काफी कुछ बदला ही है।
महिला आरक्षण की प्रबल पक्षधर होने का दावा करने वाली भाजपा की असलियत इसी बात से जाहिर होती है कि उसने मध्यप्रदेश में 230 सीटों में से केवल 25 यानी 11 प्रतिशत ही टिकट महिलाओं को देना जरूरी समझ है। यहां तक कि महिला मोर्चे की प्रमुख नेताओं को भी टिकट के लायक नहीं समझा गया।
वैसे पिछले यानी 2013 के चुनावों में भी भाजपा का यही रवैया था, लेकिन तब भी 28 महिलाएं टिकट पाने में सफल हो गई थीं। इस बार और ज्यादा कटौती हो गई। शिवराज सरकार में 5 महिला मंत्रियों में से भी दो मंत्रियों माया सिंह और कुसुम महदेले को इस बार टिकट नहीं दिया गया है।
यही स्थिति राजस्थान में है, जहां 200 सीटों में से केवल 23 पर भाजपा ने महिलाएं उतारी हैं जो कि 11.5 प्रतिशत ही बैठती हैं। 2013 के चुनावों की तुलना में राजस्थान में भी महिलाओं के टिकटों में कटौती हुई है। 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने 26 महिलाओं को टिकट दिए थे, जबकि इस बार 3 टिकट कम कर दिए हैं।
राजस्थान में जिन महिलाओं को टिकट दिया भी है, वे भी अधिकतर पूर्व राजघरानों की हैं। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने उतरी महिलाओं में पूर्व महारानियां-वसुंधरा राजे, कल्पना देवी, पूर्व राजकुमारियां- सिद्धि कुमारी, कृष्णेंद्र कौर, दीपा कुमारी शामिल हैं।