प्रिय गोरक्षकों ब्रश करने, च्यूंग गम चबाने और टी-20 देखने से पहले गोमाता के बारे में सोच लो

Written by Farhan Rahman | Published on: August 11, 2016

गोरक्षकों के नाम खुली चिट्ठी

 
प्रिय गोरक्षकों,

मैं जानता हूं कि आजकल आप लोग ताकत के नशे में चूर हैं। 2014 में सत्ता परिवर्तन के साथ ही आप लोग और मजबूत हो गए हैं। मैं यह भी समझता हूं कि आप लोगों में अचानक यह उबाल अचानक नहीं आया है। इसके पीछे आपकी लंबी भावनात्मक कसमसाहट रही है। आप मानते हैं कि जिसने भी आपकी गोमाता का अपमान किया हो। उसे प्रताड़ित किया हो मारा हो, उसे दंडित किया जाए। मैं इस बात को समझता हूं कि आप ऐसे लोगों को सबक सिखाने के अभियान पर निकले हैं।

मेरा इरादा आपको कोई लेक्चर देने का नहीं है। न मैं आपकी हिप्पोक्रेसी का मजाक उड़ाना चाहता हूं। एक तरफ तो आप पवित्र गाय की रक्षा के लिए दलितों और मुसलमानों को मार रहे हैं तो दूसरी ओर आपकी सरकार पिंक रेव्यूलेशन को बढ़ावा देकर भारत को सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बनाना चाहती है। लेकिन हमारे पास कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका आपको जवाब देने की जरूरत नहीं है। ये सवाल आप अपने आप से पूछें।

सबसे पहले अपने डेली रूटीन से शुरू करें।
सुबह उठकर आप जिस टूथपेस्ट का इस्तेमाल करते हैं तो क्या सुनिश्चित कर लेते हैं कि इसमें ग्लीसिरिन न हो। वो ग्लीसिरिन जो आपकी पवित्र गाय से न बनी हो। आप जो ग्लीसिरिन इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें गाय की चर्बी न हो। 

मैन्यूफैक्चरर्स यह दावा कर सकते हैं यह ग्लीसिरिन पेड़-पौधे(सोयाबीन या पाम) से बनी है लेकिन यह आप कैसे पक्का करेंगे कि वे मुनाफा कमाने के लिए चर्बी का इस्तेमाल नहीं करेंगे। क्योंकि पेड़ –पौधे से बनी ग्लीसिरिन ज्यादा महंगी होती है।

क्या आपने पता किया है कि आप जो माउथवाश, सेविंग क्रीम, च्यूंगगम, हेयर क्रीम, शैंपू, कंडीशनर, मायस्चराइजर आदि का इस्तेमाल करते हैं वह गाय से न निकला हो। दरअसल पेंथोनोल, अमीनो, एसिड या विटामीन बी या तो जानवरों से हासिल होता है या पौधों से। इसलिए इन चीजों को इस्तेमाल करने से पहले इसकी पड़ताल कर लें कि इनके स्त्रोत क्या हैं। कपड़ों को नरम करने के लिए जो चीज इस्तेमाल की जाती है इसमें सूखी चर्बी यानी डिमिथाइल अमोनियम क्लोराइड मिली होती है। इसका स्त्रोत क्या है।

ब्रश कर लिया आपने। अब चाय पीने की बारी है। लेकिन रुकिये, तय कर लीजिये कि जो चीनी आप इसमें इस्तेमाल करेंगे उसे गाय की हड्डी से तो साफ नहीं किया गया है।

अब नाश्ते की बात आती है। क्या लेना पसंद करेंगे। छोले-पूड़ी। लेकिन पहले यह तय करें कि जिस रिफाइंड तेल में पूड़ी तली जाएगी, उसमें चर्बी कि मिलावट न हो। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस देशभक्त सरकार को आपने उत्साह से चुना है उसने चर्बी की मिलावट पर 32 साल पहले इंदिरा गांधी सरकार में लगा बैन हटा दिया है। उस दौरान वनस्पति तेल में चर्बी की मिलावट की बात आई थी।

अब ड्राइंग रूम की ओर रुख करते हैं। आपके ड्राइंग रूम में जो बेहतरीन सोफा रखा है उसमे जानवरों से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया हो। जिस ग्लू से प्लाइवुड को साटते हैं या इसे लेमिनेट करते हैं, वह जानवरों की हड्डियों से बना हो सकता है। जी हां, यह जानवरों की हड्डियों, टिश्यू, खाल को उबाल कर बनाया जाता है। यानी गाय, भैंसों और सूअर की हड्डियों से। यह ठीक है कि आजकल सिथेंटिक ग्लू भी उपलब्ध है। लेकिन यह कैसे पता करेंगे कि आपके फर्नीचर में कौन सा ग्लू इस्तेमाल हुआ है।
अब सफर की बात करते हैं। आप कार, बाइक या बस से सफर करते होंगे। लेकिन टायर बनाने वाली कंपनियां इसके निर्माण में स्टेरिक एसिड का इस्तेमाल करती हैं। उबड़-खाबड़ सड़कों पर यह टायर को  अपने शेप में रखने में मदद करता है। स्टेरिक एसिड का इस्तेमाल कॉस्मेटिक, मोमबत्तियों, ल्यूब्रीकेंट्स, डियोडरेंट, क्रीम और फ्लेवरिंग एजेंट्स में इस्तेमाल किया जाता है।

शॉपिंग में आप प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इसमें स्लीप एजेंट्स का इस्तेमाल होता है, जो प्लास्टिक को स्मूद बनाता है ताकि यह रगड़ न खाए। या स्लीप एजेंट चर्बी से ही बनते हैं। हालांकि पॉलिमर्स पेट्रोलियम से बनते हैं। लेकिन प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर्स अक्सर इसकी क्वालिटी बढ़ाने के लिए जानवरों से बनाई चीजों का इसमें इस्तेमाल करते हैं। कच्चे पॉलिमर की प्रोसेसिंग में भी इसका इस्तेमाल होता है। स्लीप एजेंट के लिए पेड़-पौधे का इस्तेमाल होता है लेकिन आप कैसे तय करेंगे कि मल्टीनेशनल कंपनियां इसका ही इस्तेमाल कर रही हैं। क्या वे महंगा कच्चा माल का इस्तेमाल कर अपना सामान महंगा करने का जोखिम उठाएंगी। क्या वे सिर्फ आपकी भावनाओं का सम्मान करने के लिए पेड़-पौधे से बने महंगे कच्चे माल का इस्तेमाल करेंगी।

अब आपके मुख्य काम की बात करते हैं। जैसे दलित, मुस्लमों और महिलाओं की पिटाई करना। लेकिन यह निश्चित कर लें कि पिटाई की चक्कर में आप चोट न खा बैठें। लेकिन अगर चोट लग भी गई है और आपको कैप्सूल की जरूरत पड़े तो इस्तेमाल करने से पहले सोचिएगा। क्योंकि कैप्सूल का खोल एनिमल प्रोटीन से बना होता है। कैप्सूल जिलेटिन से बनाए जाते हैं। जिलेटिन गाय की खाल, लिगामेंट्स (हड्डियों का जोड़), हडडियां, और नसों को उबाल कर बनाया जाता है। अगर आपको स्टिच लगाने की जरूरत पड़े तो जिस धागे का इस्तेमाल किया जाता है वह गायों की आंतों से बनी होती हैं। पश्चिमी देशों ने अब संक्रमण और मेड काउ डिजीज जैसी बीमारी से बचने के लिए आंतों से बने सर्जिकल धागे का इस्तेमाल बंद कर दिया है। लेकिन भारत में यह निश्चित नहीं है कि इस धागे का इस्तेमाल न हो।

क्या आप जानते हैं कि जो दवा आप ले रहे हैं उसमें गाय, भैंस या सूअर के अंगों का इस्तेमाल हुआ है। अगर आप हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन के शिकार हैं तो डॉक्टरों के कहने पर आपको हेपारिन लेना पड़ सकता है। हेपारिन खून को पतला करने का काम करता है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह कैसे बनता है। यह बनाया जाता है गाय के फेफड़ों और सूअरों की आंत से। अगर डाइबिटीज के मरीज हैं और इंसुलिन का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सूअरों के पैंक्रियाज से बनाया जाता है। बहुत सारे वैकसीन चिकन का भ्रूण से बनाए जाते हैं। या फिर गिनी पिग के सीरम या भ्रूण से।

अरे, आप तो परेशान हो गए। मन हल्का करने के लिए आइए आईपीएल का कोई मैच देख लेते हैं। लेकिन जरा रुकिये जो गेंद इसमें इस्तेमाल होती है, उसकी लेदर गाय की खाल या बछड़े की खाल से तैयार होती है। कुछ ज्यादा ही परेशान हो गए। टेंशन हटाने के लिए सिगरेट पीना चाहें तो पी सकते हैं। लेकिन यहां भी मुसीबत है। सिगरेट  के फिल्टर वाली रूई में सूअर के खून का इस्तेमाल होता है। खैर, इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि आप तो मुसलमान नहीं है। लेकिन अगर गुटखा खाते हों तो सावधान हो जाइए। गुटखे में जो सस्ती सुपारी इस्तेमाल होती है, वो जानवरों की खाल साफ करने के बाद छोड़ी गई होती है। जाहिर है दो रुपये में आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। फ्रेश सुपारी की उम्मीद कर रहे हैं। जरा गुटखा बनाने वाली कंपनियों के एड्रेस देखें। ज्यादातर के पते कानपुर के हैं। क्या देश में सबसे अधिक टैनरीज यहीं नहीं है। सोच लीजिये सस्ता गुटखा बनाने वाली कंपनियों के लिए सस्ती सुपारी कहां से आती होगी। चलिए, छोड़िये। जो जेली बीन्स और कैंडी आप अपने बच्चों के लिए ले जाते हैं। क्या वे शाकाहारी होती हैं। जरा चेक करिए। ज्यादातर जेली बीन्स और कैंडी में जानवरों की हड्डी का इस्तेमाल होता है। आपकी महिलाएं जो लिपिस्टक इस्तेमाल करती हैं वे सूअर की चर्बी से बनी होती हैं। और गाय की चर्बी का इस्तेमाल योगर्ट, आइसक्रीम और आई शेडो में भी होता है।

मैं ऐसे सैकड़ों प्रोडक्ट का नाम गिना सकता हूं। जिनमें गाय या चर्बी का इस्तेमाल होता है। लेकिन मेरा मानना है कि मैंने अपनी बात साफ कर दी है। ये केवल दलित और मुस्लिम ही नहीं है जो आपका धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं। कॉरपोरेट दुनिया जो कर रही है वो आप सोच भी नहीं सकते। इसलिए उन गरीबों पर हमला कर क्या होगा, जो मरे हुए जानवरों की खाल निकालने का काम रोजी-रोटी के लिए करते हैं। ये तो एजेंट हैं, जो कंपनियों को इस तरह का माल सप्लाई करते हैं। कंपनियां जानवरों की खाल, हड्डियों और चर्बी का इस्तेमाल कर सामान बनाती हैं और मुनाफा कमाने के लिए आपको बेचती है। असली धंधा तो कॉरपोरेट कंपनियां कर रही हैं। लेकिन क्या आप उन पर हमला करने की सोच भी सकते हैं। क्या आप उन कंपनियों की ओर से बनाई जाने वाले सारे प्रोडक्ट इस्तेमाल करना बंद कर देंगे।

आप कह सकते हैं कि आप तो सिर्फ बीफ खाना रोकना चाहते हैं। लेकिन गायों की हड्डियों, आंतों, खुरों और खालों और चर्बी का क्या करेंगे, जिनका इस्तेमाल कर कंपनियां अपने प्रोडक्ट बेचती हैं।

इसलिए क्या मैं आपसे यह उम्मीद कर सकता हूं कि आप जियो और जीने दो का सिद्धांत का पालन करेंगे। इस दुनिया में हर किसी के लिए जगह है। क्या आप अपनी सांप्रदायिक सनक से बरसों से चले आ रहे आपसी संबंधों को खत्म नहीं कर रहे हैं।
नफरत करना छोड़िए। अपने पड़ोसियों से प्रेम कीजिये। उन दोस्तों के प्रति उदार हों जो आपके समुदाय के नहीं हैं। अपने देशवासियों से प्रेम कीजिये।

हां, जाते-जाते एक बात और। खुशी में कभी पटाखे न चलाएं। पर्यावरण की बेहतरी के लिहाज से ऐसा नहीं कह रहा हूं। दरअसल पटाखों को मेटल पाउडर से कोट करने के लिए जिस एल्यूमीनियम और आयरन की जरूरत होती है उसमें स्टेरिक एसिड का इस्तेमाल होता है और यह आपको फिर बताने की जरूरत है कि यह एसिड कैसे बनता है।  

फरहान रहमान झारखंड सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर हैं।

[1] http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/gujarat-violence-in-saurashtra-kills-policeman-dalit-youth-commits-suicide-2924408/  
[2] http://www.thehindu.com/news/national/india-on-top-in-exporting-beef/article7519487.ece
[3] http://www.treehugger.com/green-food/9-everyday-products-you-didnt-know-had-animal-ingredients.html
[4] http://newlynatural.com/blog/2009/07/animal-glycerin-vs-veggie-glycerin/
[5] http://www.vrg.org/nutshell/faqingredients.htm
[6] http://gentleworld.org/hidden-animal-fats/
[7] http://www.huffingtonpost.in/entry/sugar-vegan-bone-char-yikes_n_6391496
[8] http://www.thehindu.com/news/national/amid-beef-row-buffalo-tallow-export-booms/article7938266.ece
[9] http://www.peta.org/living/beauty/animal-ingredients-list/
[10] https://www.britannica.com/technology/adhesive
[11] http://roogirl.com/20-everyday-items-that-contain-animal-ingredients/
[12] http://myplasticfreelife.com/2010/08/is-there-animal-fat-in-your-plastic-bag/
[13] https://en.wikipedia.org/wiki/Capsule_(pharmacy
[14] https://en.wikipedia.org/wiki/Catgut_suture
[15] http://naturallysavvy.com/live/10-most-common-and-kinda-gross-animal-ingredients-found-in-prescription-medications
[16] http://www.npr.org/sections/health-shots/2013/03/13/174205188/is-your-medicine-vegan-probably-not
[17] https://en.wikipedia.org/wiki/Heparin
[18] http://scroll.in/article/759544/why-only-outrage-against-beef-cricket-balls-shoes-tablas-contain-cow-parts-too
[19] http://timesofindia.indiatimes.com/life-style/health-fitness/health-news/Cigarette-filters-have-pigs-blood/articleshow/5742789.cms
[20] http://www.peta.org/living/beauty/cosmetic-ingredients/
[21]http://www.alternet.org/story/145144/ice_cream_has_meat_in_it_7_'vegetarian'_foods_that_actually_contain_meat_products
[22] http://www.thehindu.com/features/magazine/whats-behind-that-glass-of-milk/article4675921.ece

 

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