किसान आंदोलन से बदलेंगे वेस्ट यूपी के राजनीतिक समीकरण, भाजपा के जाट नेताओं की चुनौती बढ़ी!

Written by Navnish Kumar | Published on: February 2, 2021
मेरठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक उर्वर रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर का राजनीतिक संदेश यहीं से गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यहीं से शुरूआत हुई और केंद्र में फिर से भाजपा की सरकार बनी।



लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 दोनों में भाजपा ने रालोद को शिकस्त दी। बागपत रालोद की राजनीति का केंद्र रहा है। भाकियू और किसानों ने भाजपा के पक्ष में मतदान कर नया समीकरण बनाया था। यहां तक कि लोकसभा चुनाव में रालोद सुप्रीमो चौ. अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। 

हालांकि किसान आंदोलन के बाद से माहौल तेजी से बदल रहा है। किसान आंदोलन के बीच मुजफ्फरनगर की महापंचायत में नरेश टिकैत ने भरे मंच से यह कहना कि चौ. अजित सिंह को हराकर हमने गलती की है, अपने आप में बहुत कुछ साफ कर देता हैं। 

अब भले भाकियू अराजनीतिक संगठन हो, लेकिन राष्ट्रीय लोकदल से उसकी नजदीकी नए समीकरण बना सकती है। किसान आंदोलन पर चढ़ते सियासी रंग से विपक्षी दलों को संजीवनी की आस है। यही वजह है कि रालोद ही नहीं सपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी किसान आंदोलन में सक्रिय हो गई हैं।

यही नहीं, रालोद से इतर भी कई जाट नेता जिस तरह से अपने मतभेद भुलाकर साथ आ रहे हैं, उसने भाजपा और उसके जाट नेताओं की भी नींद उड़ा दी है। बदले माहौल ने पश्चिमी उप्र के भाजपा नेताओं को सर्दी में पसीना पसीना कर दिया है। लिहाजा पार्टी नए सिरे से रणनीति बनाने को मजबूर है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और नोएडा से विधायक पंकज सिंह को मेरठ का जिला व महानगर प्रभारी बनाना इसी रणनीति का हिस्सा है। पंकज सिंह मेरठ में रहते हुए आसपास के जनपदों को भी साधेंगे। उनके पिता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की पश्चिम की किसान राजनीति में गहरी पैठ रही है। भाकियू नेता राकेश और नरेश टिकैत भी उनके करीबी हैं।

भाजपा के जाट नेताओं के लिए यह परीक्षा का समय है। बागपत से सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह, मुजफ्फरनगर सांसद व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजीव बालियान के साथ ही पंचायतराज मंत्री और पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह सहित क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल की जिम्मेदारी पार्टी स्तर पर ज्यादा अहम हो गई है।

दूसरी ओर, स्व. महेंद्र सिंह टिकैत के करीबी साथी रहे व 24 गांव के चौधरी बाबा गुलाम मोहम्मद जौला के साथ आने से 'जाट-मुस्लिम' का पुराना समीकरण भी ज़िंदा होता दिख रहा है, जो दंगो में टूट गया था और भाजपा को वेस्ट यूपी में राजनीति की उर्वर जमीन मिली थी। मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के दौरान गुलाम मोहम्मद ने ख़ुद को भाकियू से अलग कर लिया था और भारतीय किसान मज़दूर मंच की शुरुआत की थी। 

राकेश टिकैत की भावुक अपील के बाद, बाबा गुलाम मोहम्मद जौला खुद चलकर किसान आंदोलन में शामिल हुए तो जयंत चौधरी ने मंच पर बाबा के पैर छूकर और नरेश टिकैत ने बाबा के गले लगकर, वेस्ट यूपी की राजनीति में नई संभावनाओं को भी जन्म दे दिया है।

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