पुण्य तिथि पर स्मृति विशेष- सामाजिक न्याय के लिए केदारनाथ सिंह का संघर्ष...

Written by Satyendra PS | Published on: December 12, 2017
बात 18 दिसम्बर 1990 की है। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू किए जाने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी) की सरकार गिर गई थी। गोरखपुर के तमकुही कोठी मैदान में मांडा के राजा और 1989 के चुनाव के पहले देश के तकदीर विश्वनाथ प्रताप सिंह की सभा होने वाली थी। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद वीपी सरकार गिर गई। उसके बाद सामाजिक न्याय के मसीहा का पहला मेगा शो गोरखपुर में हुआ।

एक जनसभा के दौरान एंकरिंग करते हरवंश सिंह भल्ला (बाएं), केदारनाथ सिंह (बाएं से दूसरे) विश्वनाथ प्रताप सिंह, मुलायम सिंह यादव और मुफ्ती मोहम्मद सईद (बैठे हुए क्रमशः बाएं से दाएंं. नीचे लेखक- सत्येंद्र पीएस

पिपराइच के विधायक केदारनाथ सिंह को सभा का संयोजक बनाया गया, महराजगंज के सांसद हर्षवर्धन सिंह कार्यक्रम करा रहे थे। कुल मिलाकर कार्यक्रम में तत्कालीन विधायक केदारनाथ सिंह, हर्षवर्धन और मार्कंडेय चंद की अहम भूमिका थी।

प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, जो जनता दल (स) में चले गए थे। इसका गठन चंद्रशेखर ने जनता दल को तोड़कर किया था। चंद्रशेखर करीब 40 सांसदों के साथ कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री थे।

गोरखपुर में सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की गई। इसी बीच 17 दिसंबर को एक अज्ञात सा संगठन सवर्ण लिबरेशन फ्रंट उभरा। उसने चेतावनी दी कि किसी भी हालत में वीपी की सभा नहीं होने दी जाएगी। अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण लागू होने का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पिछले दरवाजे से विरोध कर रही थी। यही हाल कांग्रेस का था। आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठन खुलेआम आरक्षण के विरोध में मैदान में कूद पड़े थे।

सवर्ण लिबरेशन फ्रंट ने सिर्फ धमकी ही नहीं दी, बल्कि सभा के एक दिन पहले केदारनाथ सिंह के आवास परिसर में बम विस्फोट भी कराया। इस मामले में न तो किसी का नाम सामने आया, न गिरफ्तारी हुई। हालांकि पुलिस व्यवस्था और सख्त कर दी गई। केदारनाथ सिंह ने मीडिया में बयान जारी कर ऐलान किया कि सभा हर हाल में और हर कीमत पर होगी। इस तरह की कायराना हरकत करने से अब पिछड़ा वर्ग दबने वाला नहीं है।

कुल मिलाकर आरक्षण विरोधियों व आरक्षण समर्थकों के बीच सीधी जंग शुरू हो चुकी थी। निशाने पर थे सैंथवार समाज से आने वाले पिछड़े वर्ग के एकमात्र ताकतवर नेता केदारनाथ सिंह।

सभा के रोज सवर्ण लिबरेशन फ्रंट ने जनता कर्फ्यू लगा दिया। हंगामे को देखते हुए प्रशासन ने भी स्कूल कॉलेजों को बंद कराना ही उचित समझा। सुबह सबेरे से आरक्षण विरोधियों व आरक्षण समर्थकों के बीच जंग छिड़ चुकी थी।

सवर्ण लिबरेशन फ्रंट ने जगह जगह बम विस्फोट कराए। यहां तक कि जनसभा के स्थल तमकुही कोठी मैदान में भी सभा में आए लोगों को निशाना बनाकर बम फेंके गए। प्रशासन के हाथ पांव फूले हुए थे। जनता दल के स्थानीय नेताओं और आरक्षण समर्थकों की एक दिन पहले से ही शिकायत आने लगी थी कि डीजल और पेट्रोल की आपूर्ति रोक दी गई है, जिससे कि ट्रैक्टर ट्रालियों में भरकर लोग तमकुही मैदान में न पहुंच सकें। इसके बावजूद किसी न किसी माध्यम से शहर और आसपास के इलाकों से पचास हजार से ऊपर लोग जनसभा में पहुंच चुके थे।

उस समय केदारनाथ सिंह के समर्थन में पहुंचने वाले संजय कुमार सिंह बताते हैं कि उनके पिता जी खुद ट्रैक्टर ट्राली में लोगों को भरकर तमकुही मैदान आए थे। डीजल की कमी की बात स्वीकार करते हुए बताते हैं कि उनके ट्रैक्टर में इत्तेफाक से तेल भरा हुआ था, साथ ही दो रोज पहले ही कंटेनर में भी डीजल भरकर लाया गया था, क्योंकि गेहूं की सिंचाई का मौसम चल रहा था।

संजय बताते हैं कि उनके पिताजी ने पूरा डीजल कई रिश्तेदारों, परिचितों के ट्रैक्टर में डलवाया। यहां तक कि अपने ट्रैक्टर में से भी डीजल निकालकर जीप और ट्रैक्टरों में डालने के लिए दिया, जिससे कि लोग सभा स्थल तक पहुंच सकें और वहां से वापस लौट सकें। लेकिन हंगामा बढ़ते देख प्रशासन ने 12 बजे के बाद गोरखपुर के चारों तरफ शहर में प्रवेश करने वाली सड़कों की नाकेबंदी कर दी और जनता दल के झंडे डंडे से लैस आम लोगों की गाड़ियों, ट्रैक्टरों को बाहरी इलाके में रोका गया और उन्हें वापस भेजा जाने लगा।

तमकुही कोठी मैदान के बगल में ही केदारनाथ सिंह का सरकारी बंगला था, जिसमें दर्जनों गाड़ियों की पार्किंग थी। संघी ब्रिगेड के जितने छोटे मोटे समूह थे, सभी आरक्षण के विरोध में सक्रिय थे। जिधर से जनता दल नेताओं के वाहन निकलते, पथराव शुरू हो जाते।

केदारनाथ सिंह के पुत्र अजय सिंह ने खुद मोर्चा संभाल रखा था। सभा के संयोजक के रूप में सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को उनका निर्देश था कि मांडा नरेश को एक पत्थर नहीं लगना चाहिए, उसके लिए जो भी करना पड़े, वह करें। अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचाया जाए।

इसी बीच अजय सिंह को सूचना मिली कि कुछ संघी गुंडे बंगले में घुसने की कोशिश कर रहे हैं और हाते में खड़े वाहनों पर पत्थर फेंकने की कवायद में हैं।

अजय ने अपने ड्राइवर से तत्काल आवास की ओर गाड़ी मोड़ लेने को कहा। जैसे ही वाहन रुका, उन्हें निशाना बनाकर बम फेंका गया। किसी तरह से वह बचे, लेकिन एक छर्रा उनके पैर में लग गया था।

पुरानी याद दिलाने पर अजय सिंह ने हंसते हुए बताया कि उनका ड्राइवर डर के मारे बेहोश हो गया था। लगा चिल्लाने, साहब हम मर गए, बाल बच्चेदार आदमी हैं, मेरे परिवार का क्या होगा। हालांकि बाद में पता चला कि उसे बम का एक छर्रा भी नहीं लगा था।

अजय सिंह पर बम फेके जाने तक जीप में बैठे युवा धड़ाधड़ उतर चुके थे। यह तो नहीं पता चला कि बम किसने फेंका था, लेकिन सामने पड़ा विश्व हिंदू परिषद का महानगर मंत्री आनंद कुमार गुप्ता। उसे युवाओं ने पीटना शुरू किया और पथराव कर रहे उसके अन्य सहयोगियों को भी दौड़ाया, जो एकाध हॉकी और थप्पड़ खाने के बाद भागने में सफल हो गए। गुप्ता की जमकर पिटाई हो गई।

उस समय के अखबारों का रुख देखें। स्थानीय अखबार स्वतंत्र चेतना ने “विश्व हिंदू परिषद के मंत्री की असमाजिक तत्वों द्वारा पिटाई” शीर्षक से खबर चलाई। इसमें लिखा गया...

“विहिप महानगर मंत्री आनंद कुमार गुप्त आज अपराह्न लगभग ढाई बजे अपने व्यक्तिगत कार्य से पार्क रोड की सड़क से होते हुए जा रहे थे। जनता दल विधायक केदारनाथ सिंह के घर के सामने उनके लड़के और भतीजे जो कि 8-10 लोगों के साथ सड़क के किनारे खड़े थे, उन्होंने आनंद कुमार गुप्त को देखते ही कहा कि यह विश्व हिंदू परिषद का महामंत्री है, बचकर जाने न पाए। और इतना कहते ही सब लोगों ने स्कूटर धर लिया और आनंद कुमार को ईंटों से मारने लगे। जिससे उनका सर फट गया तथा अन्य जगहों पर भी गंभीर चोटें आईं। भारतीय जनता पार्टी सिविल लाइंस के वार्ड मंत्री श्री रविंद्र कुमार मौर्य ने इस घृणित कृत्य की घोर निंदा करते हुएए कहा कि तुरंत ही अपराधियों को गिरफ्तार किया जाए अन्यथा हम आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।”

स्वतंत्र चेतना अखबार ने सर पर पट्टी बांधे गुप्ता की फोटो भी छापी। अखबार ने कथित रूप से पिटाई करने वाले लोगों का नाम दिया, मौर्य के हवाले से अपराधी लिखा। लेकिन अखबार ने विधायक के पुत्र से बात करने की जहमत भी नहीं उठाई कि आखिर वहां पर क्या हुआ। केवल स्वतंत्र चेतना ही नहीं, करीब सभी अखबारों का रुख सवर्ण लिबरेशन फ्रंट को हीरो बताने वाला था। वीपी की सभा की रिपोर्टिंग भी उसी लहजे में की गई। जनसभा को फ्लॉप शो बताया गया।

वीपी सिंह ने उस रैली में कहा, “भूख एक ऐसी आग है कि जब वह पेट तक सीमित रहती है तो अन्न और जल से शांत हो जाती है और जब वह दिमाग तक पहुंचती है तो क्रांति को जन्म देती है। इस पर गौर करना होगा। गरीबों के मन की बात दब नहीं सकती और अंततः उसके दृढ़ संकल्प की जीत होगी।” सिंह ने कहा, “गरीबों की कोई बिरादरी नहीं होती। दंगों में मारे जाने वाले लोग हिंदू और मुसलमान नहीं, हिंदुस्तान के गरीब लोग हैं। गरीबों के साथ हमेशा अत्याचार होते रहे हैं। इस शोषण अत्याचार को बंद करके समाज के पिछड़े तबके के लोगों को ऊपर उठाना होगा।”

इस सभा के दौरान चौधरी अजीत सिंह का सर फट गया, शरद यादव को भी चोटें आईं। अजीत सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय की ओर कदम बढ़ाने पर इस तरह की बाधाएं आती रहेंगी और हम इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने भी सामाजिक न्याय के प्रति निष्ठा जताते हुए घोषणा की कि बिहार सरकार हर हाल में ओबीसी आरक्षण लागू करेगी। लालू प्रसाद और पूर्व गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के भाषण के दौरान सभा स्थल पर बम फेके गए, जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए।

इस बीच सभा स्थल पर मंच पर चढ़ने की कवायद कर रहे लिबरेशन फ्रंट के गुंडों को पीटने के लिए विधायकों तक को सामने आना पड़ा। यह आश्यर्यजनक, लेकिन सत्य है कि मीडिया में खबरें भरी पड़ी हैं कि पुलिस ने आरक्षण के विरोध में प्रदर्शन, पथराव, बमबाजी कर रहे छात्रों की पिटाई की, लेकिन यह भी खबर है कि पूर्व प्रधानमंत्री, दर्जनों पूर्व कैबिनेट मंत्री, बिहार तत्कालीन मुख्यमंत्री के मंच पर गुंडे चढ़ गए और वह बम और पत्थर मारते रहे। पुलिस उन्हें रोकने में नाकाम रही।

जब मंच पर गुंडे चढ़ गए तो विधायक केदारनाथ सिंह ने मोर्चा संभाला और गुंडों को पीटना शुरू कर दिया। उसके बाद मार्कंडेय चंद ने भी मंच पर चढ़े गुंडों की पिटाई करनी शुरू की और मंच से उन्हें खदेड़ दिया गया।


फिर क्या था! जनसभा में आए लोगों ने भी मोर्चा संभाल लिया। जिन लाठियों में झंडे बांधकर लाए गए थे वे लाठियां, बांस निकल गए और पिछड़े वर्ग के लोगों ने मोर्चा संभालकर गुंडों को रोका। पत्थरबाजों को दौड़ा दौड़ाकर मारा। शरद यादव ने जनसभा में ही कहा कि आज की घटनाओं के पीछे भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा विश्व हिंदू परिषद का हाथ है।

उस दौर में पहले नंबर पर रहे आज अखबार की रिपोर्टिंग का भी रुख जानना जरूरी है, जिसे कांग्रेसी अखबार माना जाता रहा है। अखबार ने “वीपी सिंह के राजनीतिक उत्थान के बाद पतन का भी साक्षी बना गोरखपुर” शीर्षक से खबर लिखी, जो कुछ इस तरह थी..

“पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के राजनीतिक उत्थान का जहां गोरखपुर साक्षी रहा, वहीं उसने आज उनका पतन भी देख लिया। वोट की राजनीति के चलते सैकड़ों निर्दोष छात्र छात्राओं को अग्निस्नान तथा आत्महत्या के लिए मानसिक रूप से बाध्य करने के जिम्मेदार वीपी सिंह ने जब 15 माह पहले गोरक्षनाथ की धरती पर कदम रखा था तो यहां की जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया था। लेकिन मंडल के चक्कर में देश में जातिवाद की खाईं पैदा करने वाले वीपी और उनके सहयोगियों ने यहां के लोगों का गुस्सा भी आज देखा और अनुभव किया।

लोकतांत्रिक वामपंथी मोर्चा के बैनर पर आज स्थानीय तमकुही मैदान में बने सभास्थल पर बैठे वीपी सिंह, अजित सिंह, शरद यादव, मुफ्ती मोहम्मद सईद और शरद यादव के अंगरक्षक समेत कई लोग घायल हो गए।

आज नगर के पूर्वी भाग में  बम, कट्टा, आंसू गैस, लाठी, ईंट, पत्थर आदि दोपहर से सायंकाल तक चलते रहे। जगह जगह छात्रों ने सड़कों पर अवरोध खड़े किए। गड़बड़ी उस समय शुरू हुई जब आरक्षण विरोधियों द्वारा सभा में व्यवधान डालने की कोशिश की गई और महराजगंज के सांसद हर्षवर्धन ने मंद से लठैतों को पूर्व मंत्रियों की सुरक्षा के लिए चलने को ललकारा।

सभास्थल पर कार से आ रहे पूर्व केंद्रीय मंत्रियों पर पथराव किया गया और बम फेंके गए। परिणामस्वरूप शरद यादव और मुफ्ती मोहम्मद सईद घायल हो गए। जिस समय अजित सिंह मंच पर चढ़ रहे थे,  तभी एक पत्थर से उनके सिर में चोटें आईं। शरद यादव का अंगरक्षक टॉमस गंभीर रूप से घायल हो गया। अपराह्न लगभग ढाई बजे जिस समय अजित सिंह घायल होने के बाद मंच पर बैठे, मंच के पास तेज विस्फोट हुआ। सौभाग्य से कोई घायल नहीं हुआ।

इससे पूर्व आज अपराह्न 12.20 बजे तमकुही मैदान के पश्चिमी सड़क पर जमी भीड़ पर जब पुलिस ने लाठी चार्ज किया, उसी समय पहला बम विस्फोट हुआ। यह स्थान मंच से लगभग 200 गज दूर था। इसके बाद सभास्थल के पूर्वी छोर से आरक्षण विरोधियों की बड़ी भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिससे मंच पर भी कुछ पत्थर आए और वहां बैठे जद नेता रणजीत सिंहराज घायल हुए। मंच पर भगदड़ मच गई और देखते देखते पूरा मंच खाली हो गया। इसी पथराव में बिहार से आए एक वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विष्णु प्रसाद यादव भी घायल हो गए।

सवर्ण आर्मी लिबरेशन फ्रंट ने आज जनता कर्फ्यू का एलान किया था। कल रात भी कई बम विस्फोट हुए थे।

वीपी सिंह तथा बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को हवाई अड्डे से भारी पुलिस सुरक्षा व्यवस्था में सभास्थल तक लाया गया। लालू यादव के भाषण के समय भी बम विस्फोट और सभा में पथराव की अनेक घटनाएं हुईं।

आज अपराह्न 12 बजे से आंदोलनकारी सक्रिय हो गए। पथराव, बमबाजी कर सभा को कई बार भंग करने का प्रयास किया। आंदोलनकारियों ने आज नगर में अनेक वाहनों को आग लगा दी तथा जिलाधिकारी आवास पर जमकर पथराव किया जिससे जिलाधिकारी की कार का शीशा टूट गया।

वीपी सिंह के भाषण के समय पूर्ण शांति रही, लेकिन इससे पूर्व शरद यादव के भाषण के समय से ही पुलिस ने लोगों को सभा स्थल पर जाने से रोक दिया था। भय और आतंक के माहौल के कारण लोग धीरे धीरे सभा स्थल से खिसकने लगे। शरद यादव के भाषण के समय सभास्थल पर जमकर ढेलेबाजी हुई।

बाहर से लाए गए जद कार्यकर्ता डंडों में झंडा लगाकर मुकाबले के लिए पूरी तरह से तैयार होकर आए थे। वीपी के भाषण के समय सभास्थल पर श्रोताओं की संख्या बहुत कम रही। पुलिस द्वारा लाठीचार्ज तथा आंदोलनकारियों के पथराव में दर्जनों घायल हो गए। घायलों में कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।

श्री सिंह को सभास्थल तक नहीं पहुंचने देने की धमकी दे चुके छात्रों को हटाने के लिए विश्वविद्यालय छात्रावासों में घुसकर पुलिस ने छात्रों की पिटाई की। उत्तेजित छात्रों ने पुलिस पर जमकर पथराव किया। बाद में सब इंसपेक्टर की मोटरसाइकिल पर बम फेका, जिससे उसमें आग लग गई। हॉस्टल रोड को पूरी तरह घेर लिया। वीपी इसी मार्ग से सभास्थल तक गए।”

यह उस दौर की सबसे संतुलित रिपोर्ट थी, जिसे पढ़कर अहसास किया जा सकता है कि अखबार, उसमें लिखने वालों व लोकतंत्र के अन्य कथित झंडाबरदारों का उस दौर में क्या रुख था।

यह पिछड़े वर्ग की सामाजिक जागरूकता न होने का परिणाम था कि आरएसएस व उसके अनुषांगिक संगठनों ने ओबीसी तबके से जुड़े तबकों को ही आरक्षण के विरोध में खड़ा कर दिया था।

एक तरह से देखा जाए तो आज जहां मराठा, कापू, पाटीदार, जाट, गूर्जर बड़े पैमाने पर आंदोलन चला रहे हैं और हजारों की संख्या में लोगों की पिटाई हो रही है, सैकड़ों की जान चली गई, गुप्ता और मौर्य मुफ्त में बगैर आंदोलन के आरक्षण पा गए। आज भी पिछड़े वर्ग के ज्यादातर लोग आरक्षण के पीछे अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वालों की न तो कद्र करते हैं और न ही उन्हें सम्मान देते हैं। इन लोगों की पीढ़ियां आरक्षण की मलाई चाभ रही है और पिछड़े वर्ग की जिंदगी संवारने वाले मसीहाओं को विस्मृत कर चुकी है।

गोरखपुर में हुई वीपी की इस जनसभा के बाद केदारनाथ सिंह निशाने पर आ गए। स्वाभाविक है कि आरक्षण विरोधियों के निशाने पर वह थे ही, आरक्षण समर्थकों ने भी उनकी भरपूर उपेक्षा की। ओबीसी तबके की ओर से ओबीसी आरक्षण का विरोध लगातार जारी था। ओबीसी तबके की ज्यादातर जातियों का यह मानना था कि आरक्षण होने से उनका जातीय डिमोशन हो गया है और वह अनुसूचित जाति/जनजाति बना दिए गए हैं।

जनता दल के नेता शरद यादव ने 25.08.1992 से 6.11.92 तक मंडल रथ यात्रा निकाली। इसका मकसद न सिर्फ यह बताना था कि सरकार ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर साजिश न करे, साथ ही पिछड़ा वर्ग भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो। शरद यादव ने घोषणा की, “हम वर्तमान केंद्र की सरकार को खबरदार करना चाहते हैं कि हमें उनकी नीयत का पता है। हमें यह भी पता है कि अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास मंडल कमीशन द्वारा उत्पन्न पिछड़े व दलितों के जागरण को कब्र में भेजने की यह चतुर द्विज चाल है।”

शरद ने जनता को यह बताने की कोशिश की कि किस तरह से पिछड़े वर्ग के खिलाफ साजिश कर उन्हें सरकारी नौकरियों में नहीं जाने दिया। आरक्षण की नींव को समझाया। स्वतंत्रता के 40 साल बाद भी उच्च सेवाओं में देश में पिछड़े वर्ग की 60 प्रतिशत आबादी की नौकरियों में 5 प्रतिशत से भी कम हिस्सेदारी और नीति निर्धारक सरकारी पदों पर प्रतिनिधित्व न होने का मसला उठाया।

केदारनाथ सिंह ने भी पूर्वांचल में पिछड़ों की आबादी को जागरूक करने का बीड़ा उठा लिया। सबसे तीखा विरोध उन्हें खुद अपनी जाति के लोगों से उठाना पड़ा। गरीबी और बहुत कठिन जीवन जी रहे लोगों को संपन्न तबका बरगला रहा था कि आरक्षण पाने से वह जातीय पद सोपान में अनुसूचित जाति/ जनजाति के समकक्ष खड़े हो जाएंगे। सिंह ने पिछड़े वर्ग, खासकर अपनी  जाति के  लोगों को यह समझाने में शेष जिंदगी खर्च कर दी कि आरक्षण पाने से कोई जाति नीची नहीं होती। समाज में कुर्मी समुदाय की भी बहुत प्रतिष्ठा है, साजिशन उन्हें सरकार के उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।

इसके साइड इफेक्ट भी हुए। जनता पार्टी में वित्त मंत्री मधुकर दिघे से भारी मतों से कांग्रेस (जे) से चुनाव जीतकर 1980 में विधानसभा से औपचारिक राजनीति की शुरुआत करने के बाद केदारनाथ सिंह का राजनीति में ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा था। उन्होंने उसके बाद लगातार राजनीति में नए आयाम स्थापित किए। कांग्रेस की आंधी में वह महराजगंज से लोकसभा चुनाव लडे। उस दौर में जहां लोग कांग्रेस के ऐरे गैरे प्रत्याशियों से एक लाख से ऊपर के मतों के अंतर से हार रहे थे, केदारनाथ सिंह महराजगंज से महज डेढ़ हजार वोट से चुनाव हारे थे। वीपी ने जब कांग्रेस से निकलकर अलग दल बनाया तो पूर्वांचल में उन्होंने केदारनाथ सिंह को अपने पाले में लाने की हर संभव कवायद की। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 1980 में जगजीवन राम की कांग्रेस (जे) के 18 विधायक जीतकर आए थे, और सदन में उन विधायकों के नेता थे केदारनाथ सिंह। आखिरकार वीपी की भारी भरकम कवायदों के बीच कांग्रेस जे का जनता दल में विलय हो गया। विलय के मौके पर आयोजित जनसभा में वीपी के अलावा मुफ्ती मोहम्मद सईद, संजय सिंह, मुलायम सिंह यादव सहित जनता दल के तमाम दिग्गज नेता तमकुही कोठी मैदान में जमा थे। केदारनाथ सिंह 1989 में पिपराइच विधानसभा से फिर से चुनकर विधायक बन गए। वीपी के खास रहे केदारनाथ सिंह उस समय मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए। उन्हें संगठन का काम सौंपा गया। यहां तक कि विधायी कार्रवाई में भी केदारनाथ सिंह अहम माने जाते थे। 1989 में वर्तमान समाजवादी नेता आजम खां ने विधानसभा में राज्यपाल का अभिभाषण फाड़ डाला तो उनके खिलाफ कार्रवाई की तलवार लटकने लगी। उसमें भी केदारनाथ सिंह ने पूरे मामले की बाकायदा ड्राफ्टिंग की और विधायी नियमों व विधायकों के अधिकार को स्पष्ट कराने में अहम भूमिका निभाई। आखिरकार आजम खां के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने पाई।

हालांकि 1990 के आरक्षण आंदोलन के बाद केदारनाथ सिंह को कभी पूर्वांचल में उभरने नहीं दिया गया। उन्हें उन पिछड़ों ने ही लगातार उपेक्षित किया, जिनके हक के लिए उन्होंने लाठियों, गोलियों व बम का मुकाबला किया।

केदारनाथ सिंह पिपराइच से भी लड़े, जहां अमूमन 80 प्रतिशत दलित और पिछड़े वर्ग के लोग हैं। उसके बाद वह गोरखपुर से सांसद का चुनाव भी लड़े। लेकिन पिछड़े तबके ने कभी उनका साथ नहीं दिया और लगातार चुनाव हारते रहे। यह अलग बाद है कि समाजवादी पार्टी के पुरोधा मुलायम सिंह यादव ने उन्हें अपने साथ बनाए रखा और भरपूर सम्मान भी दिया। इतना ही नहीं, किन्ही वजहों से एक बाद केदारनाथ सिंह सपा से नाराज हो गए। उस समय उन्हें तत्कालीन बसपा पुरोधा कांशीराम ने अपने पास बुलाया और बसपा से उन्हें न सिर्फ टिकट दिया, बल्कि पार्टी कैडर को पूरी तरह से सक्रिय होकर साथ देने का निर्देश भी दिया।  लेकिन उसके बाद वह न कभी सांसद चुनाव जीते, न विधायक का।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले सबसे बड़े योद्धा के रूप में केदारनाथ सिंह का नाम प्रमुख है। हाशिए पर खड़ा समाज हमेशा उनकी चिंता का विषय रहा। उनके समर्थक आज भी सम्मान से उन्हें “बाबू जी” कहते हैं।

केदारनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के राजपुर गांव के एक संपन्न परिवार में हुआ। उनके पिता श्रवण कुमार सिंह इलाके के जमींदार थे। भारत के स्वतंत्र होने के पहले राजपुर, महुअवा, कुन्नूर (बोदरवार) तक करीब 50 वर्ग किलोमीटर के इलाके की जमींदारी उनके प्रशासन क्षेत्र में आती थी। उनकी माता रामरती सिंह भी एक संपन्न जमींदार परिवार की थीं। अत्यंत सुविधासंपन्न परिवार में 7 सितंबर 1938 को जन्मे केदारनाथ सिंह की शिक्षा दीक्षा में कोई कमी नहीं रही और उन्हें बेहतरीन कॉलेजों में पढ़ने का मौका मिला। लेकिन पिपराइच के दलित पिछड़े बहुत इलाके की गरीबी ने उनके दिलो दिमाग पर गहरा असर डाला। शुरुआत में जहां उनके पिता ने परोक्ष रूप से स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की, स्वतंत्रता के बाद पिपराइच क्षेत्र से कांग्रेस के नेता अक्षयबर सिंह को लगातार 3 बार चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभाई, वहीं केदारनाथ सिंह ने कांग्रेस से अलग वंचित तबके की आवाज बनना उचित समझा। शारदा सिंह से विवाह के बाद वह पारिवारिक जीवन में उतरे। इस उनके 4 पुत्र हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। बड़े पुत्र अजय कुमार सिंह उर्फ राकेश सिंह सैंथवार समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं और हाल तक राम आसरे विश्वकर्मा के नेतृत्व में पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रहे। दूसरे नंबर के पुत्र अजित कुमार सिंह लखनऊ में बसे हैं और एक सफल कारोबारी हैं। डॉ आशीष कुमार सिंह दांत के चिकित्सक हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते हैं। वहीं सबसे छोटे पुत्र अमित कुमार सिंह बेंगलूरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं।

केदारनाथ सिंह अंतिम समय तक वंचित तबके की लड़ाई लड़ते रहे। देश में सांप्रदायिक हिंसा की प्रयोगशाला रहे गोरखपुर में उन्होंने लगातार समरसता के लिए आवाज बुलंद की। केदारनाथ सिंह का सपना था कि 100 में 85 प्रतिशत वंचित आबादी को उसका हक मिले और वह इसके लिए लगातार संघर्ष करते रहे। भले ही चुनावी राजनीति ने उन्हें खारिज कर दिया, लेकिन वह अंत तक सच्चे समाजवादी नेता बने रहे। उनका सपना बना रहा कि लोग जाति की मानसिकता से उबरकर वर्ग हित में सोचें और पिछड़ा वर्ग जातियों में विभाजित न होकर वर्ग के रूप में उभरे। यह सपना देखते और इस सपने पर काम करते हुए उन्होंने भले ही अपना चमकता राजनीतिक जीवन कुर्बान कर दिया और सभी सुख, सुविधाएं उनसे दूर होती गईं लेकिन जीवन के आखिरी पल तक बाबू जी आम लोगों के दिलों में बसे रहे। गरीबों, वंचितों के बाबू जी का 13 दिसंबर 2012 को निधन हो गया। पिछड़ा वर्ग भले ही जातियों के खांचे में हिचकोले खा रहा है, लेकिन पिछड़े वर्ग का बुद्धिजीवी तबका अभी भी केदारनाथ सिंह के उस सपने पर काम करने में लगा हुआ है कि लोग जातियों का खांचा छोड़कर वर्गीय हित की ओर बढ़ें और समतामूलक समाज स्थापित कर राष्ट्रनिर्माण में अहम भूमिका निभाएं।  

लेखक पत्रकार हैं। यह आर्टिकल हस्तक्षेप डॉट कॉम से साभार लिया गया है। 

बाकी ख़बरें