वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में शुरू हुए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट के चलते कई लोगों के घर उनकी आंखों के सामने ध्वस्त हो गए। इतना ही नहीं अब यह ध्वस्तीकरण क्रारमाइकेल लाइब्रेरी तक पहुंच चुका है। काशी जिस प्राचीनतम संस्कृति के लिए विख्यात है, कॉरीडोर प्रोजेक्ट उसे पूरी तरह से लील रहा है।
2014 में स्वघोषित गंगा मां के लाल बनकर वाराणसी पहुंचे नरेंद्र मोदी को जनता ने भारी बहुमत से जिताया था। लेकिन मोदी ने बाबा विश्वनाथ के नाम पर काशी के विध्वंस का जिस तरह से बीड़ा उठाया है उससे जनता नाराज है। काशी में दुकानदारों ने अपनी दुकानों पर पैंफ्लेट लगवा लिए हैं जिसमें लिखा है, 'एक ही भूल, कमल का फूल, मोदी जी एक काम करो, पहले रोटी का इंतेजाम करो'। ये पैंफ्लेट दुकानदारों की बर्बादी की कहानी कहते नजर आते हैं।
जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मणिकर्णिका घाट और ललिता घाट के बीच स्थित दलित बस्ती में रहने वाले रचित कनौजिया कभी भी अपने आशियाने की ऐसी तस्वीर नहीं देखना चाहते थे। इस क्षेत्र में उनका परिवार करीब छह पीढ़ियों से रह रहा था। अरसे से जिसे वे अपना घर कहते थे, अब उसका अस्तित्व ही नहीं रहा। अब जो वहां बचा था, वह सिर्फ टूटे हुए घरों का मलबा है। कनौजिया कहते हैं कि इस जगह को आनंद वन के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन काशीवासियों में अब कोई आनंद रहा ही नहीं।
काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट ने मार्च में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को रास्ता देने के लिए लोगों से अपने घर छोड़ने को कहा था। इस प्रोजेक्ट का मकसद यात्रियों को काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा के घाटों तक पहुंचने के लिए सीधा रास्ता उपलब्ध कराना है। कनौजिया का घर उन 230 घरों में शामिल है, जिन्हें गिरा दिया गया। शहर से करीब 10 किमी दूर रह रहे कनौजिया कहते हैं, ‘हमें कहा गया था कि मुआवजा दिया जाएगा और हमारी बात सुनी जाएगी, लेकिन जो मुआवजा मिला, उससे हम खुश नहीं हैं। हमें शहर से दूर ले जाकर गांवों में बसा दिया गया। जब से घर टूटे हैं, रोजगार भी चला गया। अगर सरकार नौकरी दे नहीं सकती तो हमें हमारे रोजगार से दूर भी नहीं करना चाहिए।’
मंदिर ट्रस्ट के सीईओ विशाल सिंह कहते हैं, ‘मूल मकसद नदी से मंदिर तक के रास्तों की चौड़ाई बढ़ाना था, ताकि श्रद्धालुओं को सहूलियत हो। मकान मालिकों को घर की कीमत का दोगुना और किराएदारों को अधिकतम 10-10 लाख रुपए मुआवजा दिया गया।’ बता दें कि जलासेन घाट की इस दलित बस्ती में लोग कई तरह के व्यवसाय करते थे। इनसे पुक्का महल (मध्यकालीन दौर में गंगा के पश्चिमी घाटों के किनारे बनी कॉलोनी) में रहने वाले लोगों की दैनिक जरूरतें पूरी होती थीं। बीएचयू में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. रामाज्ञा शशिधर के मुताबिक, यहां रहने वालों में मल्लाह, डोम आदि समुदायों की आमदनी गंगा किनारे होने वाले कामों से ही जुड़ी है।
सेवानिवृत्त कर्मचारी आरपी सिंह बताते हैं, ‘दलित कभी भी काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास नहीं रहे, इसलिए यहां उनकी जड़ें उतनी मजबूत नहीं हैं। वाराणसी के आसपास के ग्रामीण इलाकों में आज भी दलित और उच्च जाति के लोग अलग-अलग रहते हैं।’
बीजेपी कार्यकर्ता रजनीश सिंह कहते हैं कि कॉरिडोर के चलते किसी को समस्या नहीं होगी। उन्होंने कहा, ‘मैं आपको चुनौती देता हूं। आपको ऐसा एक भी शख्स नहीं मिलेगा, जिसे अपना घर टूटने को लेकर किसी भी तरह का दुख होगा।’ वहीं, कनौजिया कहते हैं, ‘शुरुआत में हमसे वादा किया गया था कि हमारी पसंद के इलाके में पुनर्वास होगा और पर्याप्त मुआवजा मिलेगा। हमें मुआवजा दिया गया, लेकिन पुनर्वास को लेकर कुछ नहीं कहा जा रहा।’
डॉक्टर शशिधर कहते हैं, ‘विश्वनाथ मंदिर के आसपास जिन लोगों को मुआवजा मिला उनमें ज्यादातर बड़े सेठ हैं जिनके पुराने घर हैं। दलितों के घर भी उनकी तुलना में छोटे हैं ऐसे में उन्हें मिलने वाला मुआवजा भी कम है। सबसे बड़ी बात यह है कि दलित समुदाय के लोग अपना घर छोड़ना भी नहीं चाहते थे क्यों कि इसका सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ेगा। वे यहां स्वाभिमान के साथ जीवन यापन कर रहे थे। उनके सामने नए गांवों में जाकर घर बसाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।’
वाराणसी डिविजन के कमिश्नर दीपक अग्रवाल कहते हैं, ‘यह अधिग्रहण जबर्दस्ती नहीं किया गया था। सरकार संपत्ति खरीद रही है। यह दो पक्षों के बीच आपसी समझौता है। अगर कोई विशेष मामला है तो वे मेरे पास आ सकते हैं। हम नई दरों के मुताबिक मुआवजे का भुगतान कर रहे हैं। बाजार कीमतों से करीब दोगुने मुआवजे को मंजूरी दी गई है।’
2014 में स्वघोषित गंगा मां के लाल बनकर वाराणसी पहुंचे नरेंद्र मोदी को जनता ने भारी बहुमत से जिताया था। लेकिन मोदी ने बाबा विश्वनाथ के नाम पर काशी के विध्वंस का जिस तरह से बीड़ा उठाया है उससे जनता नाराज है। काशी में दुकानदारों ने अपनी दुकानों पर पैंफ्लेट लगवा लिए हैं जिसमें लिखा है, 'एक ही भूल, कमल का फूल, मोदी जी एक काम करो, पहले रोटी का इंतेजाम करो'। ये पैंफ्लेट दुकानदारों की बर्बादी की कहानी कहते नजर आते हैं।
जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मणिकर्णिका घाट और ललिता घाट के बीच स्थित दलित बस्ती में रहने वाले रचित कनौजिया कभी भी अपने आशियाने की ऐसी तस्वीर नहीं देखना चाहते थे। इस क्षेत्र में उनका परिवार करीब छह पीढ़ियों से रह रहा था। अरसे से जिसे वे अपना घर कहते थे, अब उसका अस्तित्व ही नहीं रहा। अब जो वहां बचा था, वह सिर्फ टूटे हुए घरों का मलबा है। कनौजिया कहते हैं कि इस जगह को आनंद वन के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन काशीवासियों में अब कोई आनंद रहा ही नहीं।
काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट ने मार्च में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को रास्ता देने के लिए लोगों से अपने घर छोड़ने को कहा था। इस प्रोजेक्ट का मकसद यात्रियों को काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा के घाटों तक पहुंचने के लिए सीधा रास्ता उपलब्ध कराना है। कनौजिया का घर उन 230 घरों में शामिल है, जिन्हें गिरा दिया गया। शहर से करीब 10 किमी दूर रह रहे कनौजिया कहते हैं, ‘हमें कहा गया था कि मुआवजा दिया जाएगा और हमारी बात सुनी जाएगी, लेकिन जो मुआवजा मिला, उससे हम खुश नहीं हैं। हमें शहर से दूर ले जाकर गांवों में बसा दिया गया। जब से घर टूटे हैं, रोजगार भी चला गया। अगर सरकार नौकरी दे नहीं सकती तो हमें हमारे रोजगार से दूर भी नहीं करना चाहिए।’
मंदिर ट्रस्ट के सीईओ विशाल सिंह कहते हैं, ‘मूल मकसद नदी से मंदिर तक के रास्तों की चौड़ाई बढ़ाना था, ताकि श्रद्धालुओं को सहूलियत हो। मकान मालिकों को घर की कीमत का दोगुना और किराएदारों को अधिकतम 10-10 लाख रुपए मुआवजा दिया गया।’ बता दें कि जलासेन घाट की इस दलित बस्ती में लोग कई तरह के व्यवसाय करते थे। इनसे पुक्का महल (मध्यकालीन दौर में गंगा के पश्चिमी घाटों के किनारे बनी कॉलोनी) में रहने वाले लोगों की दैनिक जरूरतें पूरी होती थीं। बीएचयू में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. रामाज्ञा शशिधर के मुताबिक, यहां रहने वालों में मल्लाह, डोम आदि समुदायों की आमदनी गंगा किनारे होने वाले कामों से ही जुड़ी है।
सेवानिवृत्त कर्मचारी आरपी सिंह बताते हैं, ‘दलित कभी भी काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास नहीं रहे, इसलिए यहां उनकी जड़ें उतनी मजबूत नहीं हैं। वाराणसी के आसपास के ग्रामीण इलाकों में आज भी दलित और उच्च जाति के लोग अलग-अलग रहते हैं।’
बीजेपी कार्यकर्ता रजनीश सिंह कहते हैं कि कॉरिडोर के चलते किसी को समस्या नहीं होगी। उन्होंने कहा, ‘मैं आपको चुनौती देता हूं। आपको ऐसा एक भी शख्स नहीं मिलेगा, जिसे अपना घर टूटने को लेकर किसी भी तरह का दुख होगा।’ वहीं, कनौजिया कहते हैं, ‘शुरुआत में हमसे वादा किया गया था कि हमारी पसंद के इलाके में पुनर्वास होगा और पर्याप्त मुआवजा मिलेगा। हमें मुआवजा दिया गया, लेकिन पुनर्वास को लेकर कुछ नहीं कहा जा रहा।’
डॉक्टर शशिधर कहते हैं, ‘विश्वनाथ मंदिर के आसपास जिन लोगों को मुआवजा मिला उनमें ज्यादातर बड़े सेठ हैं जिनके पुराने घर हैं। दलितों के घर भी उनकी तुलना में छोटे हैं ऐसे में उन्हें मिलने वाला मुआवजा भी कम है। सबसे बड़ी बात यह है कि दलित समुदाय के लोग अपना घर छोड़ना भी नहीं चाहते थे क्यों कि इसका सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ेगा। वे यहां स्वाभिमान के साथ जीवन यापन कर रहे थे। उनके सामने नए गांवों में जाकर घर बसाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।’
वाराणसी डिविजन के कमिश्नर दीपक अग्रवाल कहते हैं, ‘यह अधिग्रहण जबर्दस्ती नहीं किया गया था। सरकार संपत्ति खरीद रही है। यह दो पक्षों के बीच आपसी समझौता है। अगर कोई विशेष मामला है तो वे मेरे पास आ सकते हैं। हम नई दरों के मुताबिक मुआवजे का भुगतान कर रहे हैं। बाजार कीमतों से करीब दोगुने मुआवजे को मंजूरी दी गई है।’