ज़मीन के नीचे अभी भी सोने के बड़े भंडार छिपे होने के बावजूद यह इलाक़ा विकसित नहीं हो पाया है। सभी खदानें बंद कर दी गई हैं, और बेरोज़गारी बहुत अधिक है।
कोलार गोल्ड फील्ड शहर में चुनाव प्रचार के दौरान सीपीआई की उम्मीदवार ज्योति बसु (बीच में)।
भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के लिए कर्नाटक में कोलार गोल्ड फील्ड्स (केजीएफ) अपार संपत्ति का स्रोत था। एक अनुमान के मुताबिक, वे इस इलाके की खदानों से कम से कम 400 टन (400,000 किलोग्राम) सोना लूटने में कामयाब रहे। हालांकि, ज़मीन के नीचे अभी भी सोने के बड़े भंडार छिपे होने के बावजूद यह इलाका विकसित नहीं हो पाया है। सभी खदानें बंद कर दी गई हैं, और बेरोज़गारी बहुत अधिक है। जिले का मुख्यालय, कोलार शहर से एक घंटे की बस यात्रा की दूरी पर है, केजीएफ इलाका किसी नई कहानी की तलाश में नज़र आता है।
खदान मजदूर सीटू यूनियन का हिस्सा थे, और केएस वासन जैसे यूनियन नेताओं के कारण, यह इलाका 1962 के विधानसभा चुनावों तक कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ था। सीपीआई का प्रतिनिधित्व करते हुए, वासन खुद 1951 में विधायक बने थे। इसके बाद, एमसी नरसिम्हन और एस राजगोपाल ने क्रमशः 1957 और 1962 में पार्टी के लिए सीट जीती थी।
हालांकि, 1964 में पार्टी के विभाजन और 2001 में खदानों के बंद होने के बाद, वामपंथी इस इलाके में अपनी पकड़ बनाए रखने में असमर्थ रहे हैं। टीएस मणि ने 1985 में सीपीआई (एम) की तरफ से वापसी की। लेकिन इसके साथ ही रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI), इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC), बीजेपी और यहां तक कि एआईएडीएमके भी यहां राजनीतिक जगह बनाने में कामयाब रही है।
इस निर्वाचन क्षेत्र में मिलीजुली आबादी है। यहां अधिकांश निवासी तमिल भाषी हैं। 2008 के परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इस इलाके में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 42.41 प्रतिशत है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 1 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है। यह एक एससी आरक्षित सीट है।
विकल्प
वर्तमान विधानसभा चुनाव में भाकपा ने पहली बार एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति बसु को उम्मीदवार बनाया है। सीपीआई और सीपीआई (एम) दोनों ने केजीएफ निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार खड़े किए हैं। ये सीट तीन इलाकों - खदान क्षेत्र, गैर-खदान और गांव से बनी है।
सीपीआई (एम) के उम्मीदवार थंगराज पी (48) ने 2008 से यहां हर विधानसभा चुनाव लड़ा है। वे कोलार शहर नगरपालिका परिषद में एक निर्वाचित पार्षद भी हैं। उनके दादा खान मजदूर थे, और उनकी मां सीटू खदान मजदूर यूनियन की सक्रिय सदस्य थीं। वे बीएससी एलएलबी स्नातक हैं।
थंगराज पी. केजीएफ सीट से माकपा के उम्मीदवार
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "पिछली बार कांग्रेस ने बहुत पैसा खर्च कर इस सीट को जीता था। बीजेपी भी ऐसा ही करती है। इसने लोगों की उम्मीदों को बदल दिया है। जब हम चुनाव प्रचार करने जाते हैं, तो वे हमसे पूछते हैं कि हम वोट के बदले कितना पैसा देंगे।" हम वोट के एवज़ में पैसे नहीं देते हैं। पिछली बार, हमारे पूरे चुनाव अभियान में मात्र 5 लाख रुपये खर्च हुए थे। हम लोगों से पार्टी के इतिहास के बारे में बात करते हैं। हम बीजीएमएल और बीईएमएल के मजदूरों के संघर्ष में साथ खड़े थे। हम इस बात के लिए आंदोलन कर रहे हैं कि ट्रेन सुविधाओं में वृद्धि हो, पीने के पानी मिले, और 2001 में अपनी नौकरी गंवाने वाले बीजीएमएल श्रमिकों को काम मिले। यहां बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है। भाजपा सरकार ने कर्नाटक में राम मंदिर के लिए 200 करोड़ रुपये जुटाने का वादा किया है। जबकि उद्योगों को लाने के लिए आवंटन की जरूरत है।"
वर्तमान में, सीटू यूनियन में बीईएमएल, ग्राम पंचायत मजदूर, ऑटो चालक, आंगनवाड़ी मजदूर, और बीसी ऊटा नकरारा संघ (मध्याह्न भोजन कार्यकर्ता) के सदस्य हैं।
केजीएफ शहर और खान के इलाकों के अंदर, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के एस राजेंद्रन लोकप्रिय और पसंदीदा व्यक्ति हैं। दो बार के विधायक रह चुके हैं और शहर में स्थानीय लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं।
23 साल का राकेश रसोई के बर्तनों की दुकान में सेल्समैन है। उनका कहना है कि उन्होंने एसएसएलसी (दसवीं कक्षा) उत्तीर्ण कर ली है, लेकिन शहर में रोजगार के अवसरों में कमी है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "यहां कुछ भी नहीं है। कोई नौकरी नहीं, कोई उद्योग नहीं। केवल बीईएमएल (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) है। इलाके में गुंडागर्दी और गांजे की खपत बढ़ रही है।"
जब उनसे पूछा गया कि वह इस बार किसे वोट देने जा रहे हैं, तो राकेश का जवाब था: "एसआर"। पहले तो यह स्पष्ट नहीं था कि वह किस पार्टी का जिक्र कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह एक "जय भीम पार्टी" है। यानी एस राजेंद्रन, जिसे एसआर के नाम से भी जाना जाता है, शहर भर के अधिकांश कामकाजी वर्ग की ज़ुबान पर उनका ही नाम है।
इस न्यूज़क्लिक रिपोर्टर का बीईएमएल तमिल मंद्रम (तमिल एसोसिएशन) में बीईएमएल मजदूरों के एक समूह से सामना हुआ। बीईएमएल के एक कर्मचारी, 45 वर्षीय दयाल ने कहा कि, "एसआर हमारे लिए लड़ेंगे। वे इलाके के विकास के लिए फंड दिलवा सकते हैं। वे दो बार विधायक रहे और एक अनुभवी वकील हैं। उनके पास बहुत ज्ञान है। वे इलाके में एक आपातकालीन अग्निशमन सेवा, सड़क अवसंरचना, और एक केएसआरटीसी बस डिपो लाए हैं।"
बीईएमएल तमिल मंद्रम के बाहर बीईएमएल कर्मचारी नज़र आ रहे हैं।
कोलार में बीईएमएल प्लांट अर्थ मूवर उपकरण का निर्माण और संयोजन करता है। वहां 1,318 स्थायी कर्मचारी हैं। इसके अलावा, लगभग 2,000 ठेका कर्मचारी भी हैं जो कंपनी के निजीकरण को लेकर चिंतित हैं।
बीईएमएल के 58 वर्षीय कर्मचारी कार्तिकेयन ने कहा कि, "हमें यहां एक औद्योगिक गलियारे की जरूरत है। हमें एक सरकारी मेडिकल कॉलेज और एक इंजीनियरिंग कॉलेज की जरूरत है। शहर आईटीआई ट्रेड सर्टिफिकेट धारकों, डिप्लोमा धारकों और इंजीनियरिंग स्नातकों से भरा हुआ है, लेकिन कोई उद्योग नहीं है।" बीजीएमएल चला गया, और अब केवल बीईएमएल बचा है। युवाओं को ठेके पर नौकरी मिल रही है। वे 12,000 रुपये प्रति माह पर कैसे जीवित रहेंगे? यह इलाका विद्युतीकृत होने वाला पहला इलाका था। ब्रॉड गेज यहां पहले आई। खदान मजदूरों ने इस शहर को बनाने में अपनी जान जोखिम में डाली थी। जब वे खदानों में जाते, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं होती थी कि वे जीवित बाहर लौटेंगे। इस तरह हमारे बुजुर्गों ने शहर का निर्माण किया है।
जब अटल बिहारी वाजपेयी ने 2001 में कंपनी को बंद करने का फैसला किया था तब भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (बीजीएमएल) में 3,500 कर्मचारी थे। सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम होने के नाते, बीजीएमएल को बंद कर दिया गया था क्योंकि निकाले गए सोने की बिक्री ऑपरेशन के खर्चों से अधिक थी।
खदान मजदूरों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के रूप में एकमुश्त भुगतान किया गया था। दी गई राशि को अपर्याप्त माना गया, और मजदूरों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में समझौते को चुनौती दी थी।
खदान के पूर्व कर्मचारी गंदगी में रह रहे हैं, उनके परिवार झुग्गियों में रहते हैं, उनके पास इसका भी पट्टा नहीं है। सीपीआई और सीपीआई (एम) दोनों ने पूर्व-खान श्रमिकों के लिए पट्टे के लिए लड़ने का वादा किया है।
सीपीआई (एम) के थंगा राज ने कहा कि, "1940 से, कोलार में लाल झंडा का आंदोलन था। यूनाइटेड पार्टी ने 1964 तक सीपीआई के रूप में चुनाव लड़ा था। उसके बाद, सीपीआई (एम) ने चुनाव लड़ना जारी रखा। हमने सीपीआई (एम) की तरफ से स्थानीय निकाय चुनाव भी लड़े और जीते हैं। राज्य में, सीपीआई, एसयूसीआई (सी), आरपीआई-के, और सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) सहित सात दलों ने संयुक्त रूप से काम करने की कोशिश की है। इस बार एक ही सीट पर दो वामपंथी उम्मीदवार हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।'
सीपीआई ने तमिलनाडु के विधायक टी रामचंद्रन और केरल से राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम को अपना स्टार प्रचारक बनाया है।
बेरोज़गारी
स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजाना कम से कम 20,000 लोग बेंगलुरु से आते-जाते हैं। ये लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, लेकिन अर्ध-कुशल श्रमिक भी हैं जो बेंगलुरु जैसे महंगे शहर में किराए पर घर नहीं लेना पसंद करते हैं। आईटी हब 100 किमी दूर है और लोग हर दिन ट्रेन से दो घंटे की यात्रा करते हैं। यह प्रतिदिन कम से कम चार घंटे की ट्रेन यात्रा के बराबर है। नौकरी की कमी के अन्य संकेतक भी हैं।
टाइपराइटिंग कोचिंग क्लास
शहर के बीचों-बीच एक आकर्षक विशेषता नज़र आती है जो टाइपराइटर पर टाइपिंग कक्षाएं प्रदान करता है। केंद्र, जिसे 'वाणी विलास कॉमर्स एंड कंप्यूटर एजुकेशन' के नाम से जाना जाता है, केजीएफ के युवाओं को टाइपिंग कक्षाएं प्रदान करता है, जो प्रति माह 350 रुपये चार्ज करता है। यह एक साल का कोर्स है।
बेरोजगारी के बीच, युवाओं को केजीएफ में टाइपराइटिंग कौशल सीखने और इस्तेमाल करने की उम्मीद है।
टाइपिंग केंद्र में लगभग 30 टाइपराइटर और 12 कंप्यूटर हैं। कंप्यूटर टाइपिंग कक्षाएं 500 रुपये प्रति माह से थोड़ी अधिक महंगी हैं। कक्षाएं प्रतिदिन 45 मिनट चलती हैं। तेजी से तकनीकी प्रगति के युग में, कोलार के युवा अभी भी टाइपराइटर का इस्तेमाल सीखने के लिए नामांकन कर रहे हैं। ये केंद्र दिन भर छात्रों से गुलजार रहता है जो एक अलग युग में फंसे इलाके के बारे में बताता है।
19 वर्षीय बी.कॉम द्वितीय वर्ष के छात्र सुदीप कुमार की एक मां है जो पास के शहर बांगरपेट में दर्जी का काम करती है। उसने उसे टाइपिंग सीखने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि यह उसे भविष्य में एक करियर दिला सकता है। जब उनसे पूछा गया कि एक साल का टाइपराइटर कोर्स पूरा करने के बाद उन्हें किस तरह की नौकरी मिलने की उम्मीद है, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि "मुझे नहीं पता।"
Courtesy: Newsclick
अनुवाद- महेश कुमार
कोलार गोल्ड फील्ड शहर में चुनाव प्रचार के दौरान सीपीआई की उम्मीदवार ज्योति बसु (बीच में)।
भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के लिए कर्नाटक में कोलार गोल्ड फील्ड्स (केजीएफ) अपार संपत्ति का स्रोत था। एक अनुमान के मुताबिक, वे इस इलाके की खदानों से कम से कम 400 टन (400,000 किलोग्राम) सोना लूटने में कामयाब रहे। हालांकि, ज़मीन के नीचे अभी भी सोने के बड़े भंडार छिपे होने के बावजूद यह इलाका विकसित नहीं हो पाया है। सभी खदानें बंद कर दी गई हैं, और बेरोज़गारी बहुत अधिक है। जिले का मुख्यालय, कोलार शहर से एक घंटे की बस यात्रा की दूरी पर है, केजीएफ इलाका किसी नई कहानी की तलाश में नज़र आता है।
खदान मजदूर सीटू यूनियन का हिस्सा थे, और केएस वासन जैसे यूनियन नेताओं के कारण, यह इलाका 1962 के विधानसभा चुनावों तक कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ था। सीपीआई का प्रतिनिधित्व करते हुए, वासन खुद 1951 में विधायक बने थे। इसके बाद, एमसी नरसिम्हन और एस राजगोपाल ने क्रमशः 1957 और 1962 में पार्टी के लिए सीट जीती थी।
हालांकि, 1964 में पार्टी के विभाजन और 2001 में खदानों के बंद होने के बाद, वामपंथी इस इलाके में अपनी पकड़ बनाए रखने में असमर्थ रहे हैं। टीएस मणि ने 1985 में सीपीआई (एम) की तरफ से वापसी की। लेकिन इसके साथ ही रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI), इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC), बीजेपी और यहां तक कि एआईएडीएमके भी यहां राजनीतिक जगह बनाने में कामयाब रही है।
इस निर्वाचन क्षेत्र में मिलीजुली आबादी है। यहां अधिकांश निवासी तमिल भाषी हैं। 2008 के परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इस इलाके में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 42.41 प्रतिशत है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 1 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है। यह एक एससी आरक्षित सीट है।
विकल्प
वर्तमान विधानसभा चुनाव में भाकपा ने पहली बार एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति बसु को उम्मीदवार बनाया है। सीपीआई और सीपीआई (एम) दोनों ने केजीएफ निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार खड़े किए हैं। ये सीट तीन इलाकों - खदान क्षेत्र, गैर-खदान और गांव से बनी है।
सीपीआई (एम) के उम्मीदवार थंगराज पी (48) ने 2008 से यहां हर विधानसभा चुनाव लड़ा है। वे कोलार शहर नगरपालिका परिषद में एक निर्वाचित पार्षद भी हैं। उनके दादा खान मजदूर थे, और उनकी मां सीटू खदान मजदूर यूनियन की सक्रिय सदस्य थीं। वे बीएससी एलएलबी स्नातक हैं।
थंगराज पी. केजीएफ सीट से माकपा के उम्मीदवार
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "पिछली बार कांग्रेस ने बहुत पैसा खर्च कर इस सीट को जीता था। बीजेपी भी ऐसा ही करती है। इसने लोगों की उम्मीदों को बदल दिया है। जब हम चुनाव प्रचार करने जाते हैं, तो वे हमसे पूछते हैं कि हम वोट के बदले कितना पैसा देंगे।" हम वोट के एवज़ में पैसे नहीं देते हैं। पिछली बार, हमारे पूरे चुनाव अभियान में मात्र 5 लाख रुपये खर्च हुए थे। हम लोगों से पार्टी के इतिहास के बारे में बात करते हैं। हम बीजीएमएल और बीईएमएल के मजदूरों के संघर्ष में साथ खड़े थे। हम इस बात के लिए आंदोलन कर रहे हैं कि ट्रेन सुविधाओं में वृद्धि हो, पीने के पानी मिले, और 2001 में अपनी नौकरी गंवाने वाले बीजीएमएल श्रमिकों को काम मिले। यहां बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है। भाजपा सरकार ने कर्नाटक में राम मंदिर के लिए 200 करोड़ रुपये जुटाने का वादा किया है। जबकि उद्योगों को लाने के लिए आवंटन की जरूरत है।"
वर्तमान में, सीटू यूनियन में बीईएमएल, ग्राम पंचायत मजदूर, ऑटो चालक, आंगनवाड़ी मजदूर, और बीसी ऊटा नकरारा संघ (मध्याह्न भोजन कार्यकर्ता) के सदस्य हैं।
केजीएफ शहर और खान के इलाकों के अंदर, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के एस राजेंद्रन लोकप्रिय और पसंदीदा व्यक्ति हैं। दो बार के विधायक रह चुके हैं और शहर में स्थानीय लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं।
23 साल का राकेश रसोई के बर्तनों की दुकान में सेल्समैन है। उनका कहना है कि उन्होंने एसएसएलसी (दसवीं कक्षा) उत्तीर्ण कर ली है, लेकिन शहर में रोजगार के अवसरों में कमी है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, "यहां कुछ भी नहीं है। कोई नौकरी नहीं, कोई उद्योग नहीं। केवल बीईएमएल (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) है। इलाके में गुंडागर्दी और गांजे की खपत बढ़ रही है।"
जब उनसे पूछा गया कि वह इस बार किसे वोट देने जा रहे हैं, तो राकेश का जवाब था: "एसआर"। पहले तो यह स्पष्ट नहीं था कि वह किस पार्टी का जिक्र कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह एक "जय भीम पार्टी" है। यानी एस राजेंद्रन, जिसे एसआर के नाम से भी जाना जाता है, शहर भर के अधिकांश कामकाजी वर्ग की ज़ुबान पर उनका ही नाम है।
इस न्यूज़क्लिक रिपोर्टर का बीईएमएल तमिल मंद्रम (तमिल एसोसिएशन) में बीईएमएल मजदूरों के एक समूह से सामना हुआ। बीईएमएल के एक कर्मचारी, 45 वर्षीय दयाल ने कहा कि, "एसआर हमारे लिए लड़ेंगे। वे इलाके के विकास के लिए फंड दिलवा सकते हैं। वे दो बार विधायक रहे और एक अनुभवी वकील हैं। उनके पास बहुत ज्ञान है। वे इलाके में एक आपातकालीन अग्निशमन सेवा, सड़क अवसंरचना, और एक केएसआरटीसी बस डिपो लाए हैं।"
बीईएमएल तमिल मंद्रम के बाहर बीईएमएल कर्मचारी नज़र आ रहे हैं।
कोलार में बीईएमएल प्लांट अर्थ मूवर उपकरण का निर्माण और संयोजन करता है। वहां 1,318 स्थायी कर्मचारी हैं। इसके अलावा, लगभग 2,000 ठेका कर्मचारी भी हैं जो कंपनी के निजीकरण को लेकर चिंतित हैं।
बीईएमएल के 58 वर्षीय कर्मचारी कार्तिकेयन ने कहा कि, "हमें यहां एक औद्योगिक गलियारे की जरूरत है। हमें एक सरकारी मेडिकल कॉलेज और एक इंजीनियरिंग कॉलेज की जरूरत है। शहर आईटीआई ट्रेड सर्टिफिकेट धारकों, डिप्लोमा धारकों और इंजीनियरिंग स्नातकों से भरा हुआ है, लेकिन कोई उद्योग नहीं है।" बीजीएमएल चला गया, और अब केवल बीईएमएल बचा है। युवाओं को ठेके पर नौकरी मिल रही है। वे 12,000 रुपये प्रति माह पर कैसे जीवित रहेंगे? यह इलाका विद्युतीकृत होने वाला पहला इलाका था। ब्रॉड गेज यहां पहले आई। खदान मजदूरों ने इस शहर को बनाने में अपनी जान जोखिम में डाली थी। जब वे खदानों में जाते, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं होती थी कि वे जीवित बाहर लौटेंगे। इस तरह हमारे बुजुर्गों ने शहर का निर्माण किया है।
जब अटल बिहारी वाजपेयी ने 2001 में कंपनी को बंद करने का फैसला किया था तब भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (बीजीएमएल) में 3,500 कर्मचारी थे। सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम होने के नाते, बीजीएमएल को बंद कर दिया गया था क्योंकि निकाले गए सोने की बिक्री ऑपरेशन के खर्चों से अधिक थी।
खदान मजदूरों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के रूप में एकमुश्त भुगतान किया गया था। दी गई राशि को अपर्याप्त माना गया, और मजदूरों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में समझौते को चुनौती दी थी।
खदान के पूर्व कर्मचारी गंदगी में रह रहे हैं, उनके परिवार झुग्गियों में रहते हैं, उनके पास इसका भी पट्टा नहीं है। सीपीआई और सीपीआई (एम) दोनों ने पूर्व-खान श्रमिकों के लिए पट्टे के लिए लड़ने का वादा किया है।
सीपीआई (एम) के थंगा राज ने कहा कि, "1940 से, कोलार में लाल झंडा का आंदोलन था। यूनाइटेड पार्टी ने 1964 तक सीपीआई के रूप में चुनाव लड़ा था। उसके बाद, सीपीआई (एम) ने चुनाव लड़ना जारी रखा। हमने सीपीआई (एम) की तरफ से स्थानीय निकाय चुनाव भी लड़े और जीते हैं। राज्य में, सीपीआई, एसयूसीआई (सी), आरपीआई-के, और सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) सहित सात दलों ने संयुक्त रूप से काम करने की कोशिश की है। इस बार एक ही सीट पर दो वामपंथी उम्मीदवार हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।'
सीपीआई ने तमिलनाडु के विधायक टी रामचंद्रन और केरल से राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम को अपना स्टार प्रचारक बनाया है।
बेरोज़गारी
स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजाना कम से कम 20,000 लोग बेंगलुरु से आते-जाते हैं। ये लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, लेकिन अर्ध-कुशल श्रमिक भी हैं जो बेंगलुरु जैसे महंगे शहर में किराए पर घर नहीं लेना पसंद करते हैं। आईटी हब 100 किमी दूर है और लोग हर दिन ट्रेन से दो घंटे की यात्रा करते हैं। यह प्रतिदिन कम से कम चार घंटे की ट्रेन यात्रा के बराबर है। नौकरी की कमी के अन्य संकेतक भी हैं।
टाइपराइटिंग कोचिंग क्लास
शहर के बीचों-बीच एक आकर्षक विशेषता नज़र आती है जो टाइपराइटर पर टाइपिंग कक्षाएं प्रदान करता है। केंद्र, जिसे 'वाणी विलास कॉमर्स एंड कंप्यूटर एजुकेशन' के नाम से जाना जाता है, केजीएफ के युवाओं को टाइपिंग कक्षाएं प्रदान करता है, जो प्रति माह 350 रुपये चार्ज करता है। यह एक साल का कोर्स है।
बेरोजगारी के बीच, युवाओं को केजीएफ में टाइपराइटिंग कौशल सीखने और इस्तेमाल करने की उम्मीद है।
टाइपिंग केंद्र में लगभग 30 टाइपराइटर और 12 कंप्यूटर हैं। कंप्यूटर टाइपिंग कक्षाएं 500 रुपये प्रति माह से थोड़ी अधिक महंगी हैं। कक्षाएं प्रतिदिन 45 मिनट चलती हैं। तेजी से तकनीकी प्रगति के युग में, कोलार के युवा अभी भी टाइपराइटर का इस्तेमाल सीखने के लिए नामांकन कर रहे हैं। ये केंद्र दिन भर छात्रों से गुलजार रहता है जो एक अलग युग में फंसे इलाके के बारे में बताता है।
19 वर्षीय बी.कॉम द्वितीय वर्ष के छात्र सुदीप कुमार की एक मां है जो पास के शहर बांगरपेट में दर्जी का काम करती है। उसने उसे टाइपिंग सीखने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि यह उसे भविष्य में एक करियर दिला सकता है। जब उनसे पूछा गया कि एक साल का टाइपराइटर कोर्स पूरा करने के बाद उन्हें किस तरह की नौकरी मिलने की उम्मीद है, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि "मुझे नहीं पता।"
Courtesy: Newsclick
अनुवाद- महेश कुमार