झारखंड: वाम संगठनों का जन मुद्दों को लेकर राजभवन पर हल्ला बोल!

Written by अनिल अंशुमन | Published on: March 3, 2023
"सभी वाम संगठनों ने एक स्वर में कहा कि 2014 में जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है, तब से आदिवासी, दलित व पिछड़ों पर व्यापक हमले बढ़े हैं और सरकार इसे रोकने में नाकाम रही है।"



प्रदेश की राजधानी में आयोजित हो रहे केंद्र सरकार के महत्वकांक्षी आयोजन ‘जी-20 समिट’ की चकाचौंध से भले ही रांची की सड़कें जगमगा गईं हैं लेकिन ऐसे तमाम शहरों से लेकर गावों तक में बसने वाले लोगों की जीवन दशा की बेहतरी का सवाल हमेशा की तरह हाशिए पर ही है।

उक्त संदर्भों में 28 फरवरी को इसी राजधानी में वामपंथी जन संगठनों द्वारा जनता के ज्वलंत सवालों को लेकर राजभवन के सामने किया गया संगठित प्रतिवाद-प्रदर्शन कार्यक्रम का अपना एक महत्व है।

आदिवासी-दलित व रैयतों पर बढ़ते उत्पीड़न के साथ-साथ इनके अधिकारों व इसे संरक्षित करने वाले संविधान तक को कुचलने की सत्ता नियोजित कवायदों के खिलाफ उक्त प्रतिवाद-प्रदर्शन का कार्यक्रम हुआ।

आदिवासी अधिकार मंच झारखंड, दलित शोषण मुक्ति मंच, झारखंड राज्य किसान सभा, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति तथा अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन के संयुक्त तत्वाधान में राजभवन के सामने एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम किया गया।

इसके माध्यम से रांची जिला स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर विस्तारण के नाम पर मनमाने ढंग से स्थानीय ग्रामीण व आदिवासियों की रैयत/बंदोबस्त ज़मीन की जबरन लूट का मुद्दा भी प्रमुखता के साथ उठाया गया। सनद रहे कि भाजपा सरकार की अति विशिष्ट योजना के तहत जगह-जगह स्थापित किए गए “केंद्रीय विश्वविद्यालय” का लाभ न तो प्रदेश व जिला को और न ही कहीं किसी स्थानीय को हासिल है।

धरना-प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सभी वाम संगठनों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर से कहा कि, “2014 में जब से केंद्र की सत्ता में मोदी सरकार आई है, तब से आदिवासी, दलित व पिछड़ों पर व्यापक हमले बढ़े हैं और सरकार इसे रोकने में नाकाम रही है। दोषियों को सज़ा नहीं मिलने व उलटे उन्हें सत्ता संरक्षण मिलने के कारण तमाम तरह की आपराधिक शक्तियों में 'कानून का भय' बिलकुल समाप्त हो गया है। दूसरी ओर मोदी सरकार की एक के बाद एक करके थोपी जा रही जनविरोधी नीतियों से समाज के हर स्तर के लोग बुरी तरह त्रस्त हैं। 'नई शिक्षा नीति' लाकर मोदी सरकार दलित-पिछड़ों और गरीबों के बच्चों को बौद्धिक स्तर पर मजबूत बनने के साथ साथ पढ़ने-पढ़ाने के चंद उपलब्ध अवसरों को भी छीन लेने पर आमादा है। प्रयोग के तौर पर बीएचयू जैसे शिक्षा के महत्वपूर्ण संस्थान में “मनुस्मृति आधारित पाठ्यक्रम” लागू करने की योजना बनाकर नए सिरे से दलितों व पिछड़ों के साथ बीते ज़मानों के तौर-तरीकों वाले शोषण-उत्पीड़न का प्रशिक्षण देना चाहती है। वहीं, केंद्र की सरकार ने देश की सभी सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण कर दलित-पिछड़ों व वंचित समुदाय के लोगों का आरक्षण भी समाप्त सा कर दिया है। बाबा साहेब आंबेडकर जैसों द्वारा निर्मित संविधान में छेड़छाड़ कर आरएसएस के मनुवादी संविधान को थोपने की पुरज़ोर साज़िश हो रही है जिससे सभी समाज के लोगों का भविष्य संकटपूर्ण हो जाएगा। उक्त सभी पहलुओं को लेकर एक व्यापक और संगठित प्रतिवाद समय की मांग बन गई है।”

इस आयोजन के माध्यम से यह भी आह्वान किया गया कि गांव-गांव से आदिवासी-दलितों व गरीबों को संगठित कर राजभवन से लेकर सभी स्तरों पर जन कार्यक्रम के माध्यम से ज्ञापन देने का सिलसिला शुरू किया जाए। इसके माध्यम से आदिवासी-दलितों को वन पट्टा दिए जाने, बंदोबस्त भूमि को सही तरीके से ऑनलाइन दर्ज़ किए जाने व सीएनटी एक्ट का उल्लंघन करके ज़मीन लूटने वालों के खिलाफ सख्त कारवाई करने इत्यादि की मांगें प्रमुखता से उठाई जाएं। साथ ही आदिवासी-दलित व पिछड़ों के विकास के लिए बनाई गई सभी योजना-उपयोजनाओं की विकास-राशी को उनके हित में खर्चा न करके अन्यत्र खर्च करने की संगठित आर्थिक-लूट की परिपाटी पर फ़ौरन रोक लगवाने तथा चतरा, लोहरदगा, लातेहार, दुमका, जामताड़ा व पूर्वी सिंहभूम जैसे इलाकों के जंगल निवासियों पर आए-दिन वन विभाग द्वारा किए जा रहे सभी फर्जी मुकदमों को वापस लेने की मांगों को भी प्रमुखता के साथ उठाया जाए।

धरना-प्रदर्शन की ओर से महामहिम राज्यपाल को एक ज्ञापन भी दिया गया। जिसके माध्यम से निम्न मांगे की गईं :

1. सभी गैरमजरुवा ज़मीनों पर बसे गरीबों को ज़मीन बंदोबस्त कर उन्हें उस ज़मीन की लगान रसीद निर्गत कर उनकी ज़मीनों का ऑनलाइन पंजीकरण किया जाए।

2. खतियान रसीद इत्यादि बनाने में व्याप्त भारी गड़बड़ियों व अशुद्धियों को ठीक करने के लिए पंचायत स्तर पर सरकारी कैंप लगाए जाएं।

3. जंगली हाथियों द्वारा जान-माल की क्षति के लिए 10 लाख मुआवज़ा और फसल क्षति के लिए प्रति डिसमिल 100/- की दर से मुआवज़े की गारंटी की जाए।

4. झारखंड सरकार यथाशीघ्र पंचायत स्तर पर धान खरीद के लिए केंद्रों का निर्माण करे व न्यूनतम खरीद मूल्य लागू करने की गारंटी करे।

5. निजी क्षत्रों में आरक्षण प्रक्रिया को जल्द से जल्द प्रभावी बनाया जाए तथा एसटी-एससी के सभी बैकलॉग रिक्तियों के साथ तमाम बहालियों को अविलंब भरा जाए।

उक्त मांगपत्र राज्यपाल महोदय को देते हुए यह भी अपील की गई कि वे यथाशीघ्र हस्तक्षेप कर इन्हें लागू कराने का प्रयास करें।

कार्यक्रम को उक्त सभी वाम संगठनों के नेताओं के अलावा गावों से आए ज़मीनी कार्यकर्ताओं ने भी संबोधित करते हुए अपने-अपने क्षेत्र की स्थितियों से अवगत काराया। इसके माध्यम से केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों की वजह से समाज के निचले स्तर के गरीबों की दुर्दशा को उजागर किया गया।

नि:संदेह इस धरना-प्रदर्शन के द्वारा राज्यपाल को जनता के ज्वलंत सवालों की मांगों के यथासंभव निराकरण हेतु उन्हें मांगपत्र प्रस्तुत किया गया। लेकिन यह भी गौरतलब है कि जिस केंद्र की सरकार ने अपने खास प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें राज्यपाल नियुक्त किया है, देखने वाली बात होगी कि महामहिम राज्यपाल एक गैर भाजपा शासन वाले प्रदेश की जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरते हैं। साथ ही इस पहलू को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि भले ही हेमंत सोरेन की सरकार इस समय ‘जी-20 समिट’ के भव्य आयोजन को सफल बनाने में लगी हुई है, समय रहते अपने प्रदेश की जनता विशेषकर आदिवासी-दलित व गरीबों को उनके जीवन संकटों से कब तक निज़ात दिलाएगी। क्योंकि उसने भी अपने प्रदेश की जनता से कुछ वादे किए हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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