मध्यप्रदेश के बडवानी में जागृत आदिवासी दलित संगठन के हजारों आदिवासी नए कृषि कानूनों और विद्युत संशोधन अधिनियम 2020 के खिलाफ सड़कों पर उतरे। बुधवार 9 दिसंबर को उन्होंने 'खेती करो पेट के लिए, मत करो सेठ के लिए' नारे के साथ देशभर में चल रहे कृषि कानून विरोधी आंदोलनों के साथ एकजुटता दिखाई। किसान-मज़दूरों के मुद्दों को लेकर पाटी नाका से रैली निकाली गई और पुराने कलेक्टर ऑफ़िस पर सभा आयोजित किया गया।
आदिवासी किसान मजदूरों ने नए कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि सरकार को सभी किसानों को किसान आयोग के सिफारिश अनुसार फसल की लागत का डेढ़ गुना भाव सुनिश्चित करना था, लेकिन वह कर्जे में डूबे किसानों को कंपनी और व्यापारियों के मुंह में धकेल पूरी तरह किसानों को एक बार फिर कंपनी राज की ओर ले जा रही है।
आदिवासी महिला पुरुष किसानों ने यह भी कहा कि नए कृषि कानून मंडी व्यवस्था को दरकिनार कर सरकारी खरीदी और राशन व्यवस्था को बंद करने के संकेत देते हैं और इसके साथ नया विद्युत संशोधन विधेयक सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों मे बेच उनको आम जनता से मनचाहे दामों पर पैसा वसूलने की पूरी छूट दे रही है।
प्रधानमंत्री, केंद्र और राज्य कृषि मंत्री और राज्यपाल के नाम पर लिखे ज्ञापन में आदिवासी किसान मजदूरों ने सरकार के नाम लिखे ज्ञापन में नई शिक्षा व्यवस्था का भी विरोध किया और कहा कि सरकार द्वारा स्कूलों को बंद कर हमारे बच्चों का भविष्य भी अंधकार में डाल दिया गया है। आंदोलनकारियों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा को बंद कर स्कूलों को वापस चालू करने की मांग सामने रखी।
मध्य प्रदेश सरकार के 37000 घन किलोमीटर के वनों के प्रस्तावित निजीकरण को लेकर भी आदिवासियों द्वारा ख़ासा विरोध किया गया। उनका कहना है कि हम अपनी जल जंगल जमीन को निजी हाथों में नहीं जाने देंगे। आने वाले दिनों में निमाड के अन्य आदिवासी जिलों में भी देशभर में छेड़े जा रहे कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में जुड़ने की संभावना है।
आदिवासी किसान मजदूरों ने नए कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि सरकार को सभी किसानों को किसान आयोग के सिफारिश अनुसार फसल की लागत का डेढ़ गुना भाव सुनिश्चित करना था, लेकिन वह कर्जे में डूबे किसानों को कंपनी और व्यापारियों के मुंह में धकेल पूरी तरह किसानों को एक बार फिर कंपनी राज की ओर ले जा रही है।
आदिवासी महिला पुरुष किसानों ने यह भी कहा कि नए कृषि कानून मंडी व्यवस्था को दरकिनार कर सरकारी खरीदी और राशन व्यवस्था को बंद करने के संकेत देते हैं और इसके साथ नया विद्युत संशोधन विधेयक सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों मे बेच उनको आम जनता से मनचाहे दामों पर पैसा वसूलने की पूरी छूट दे रही है।
प्रधानमंत्री, केंद्र और राज्य कृषि मंत्री और राज्यपाल के नाम पर लिखे ज्ञापन में आदिवासी किसान मजदूरों ने सरकार के नाम लिखे ज्ञापन में नई शिक्षा व्यवस्था का भी विरोध किया और कहा कि सरकार द्वारा स्कूलों को बंद कर हमारे बच्चों का भविष्य भी अंधकार में डाल दिया गया है। आंदोलनकारियों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा को बंद कर स्कूलों को वापस चालू करने की मांग सामने रखी।
मध्य प्रदेश सरकार के 37000 घन किलोमीटर के वनों के प्रस्तावित निजीकरण को लेकर भी आदिवासियों द्वारा ख़ासा विरोध किया गया। उनका कहना है कि हम अपनी जल जंगल जमीन को निजी हाथों में नहीं जाने देंगे। आने वाले दिनों में निमाड के अन्य आदिवासी जिलों में भी देशभर में छेड़े जा रहे कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में जुड़ने की संभावना है।