दाऊदी बोहरा धर्मगुरू के दरबार में मोदीः बेहूदगी की हद

Written by इरफान इंजीनियर | Published on: September 25, 2018
दाऊदी बोहरा - जो कि शिया मुसलमानों का एक उपपंथ है - के मुखिया द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बोहरा धार्मिक समागम को संबोधित करने का निमंत्रण देना, और प्रधानमंत्री द्वारा उसे स्वीकार करना, दोनों ही अत्यंत अजीब और बेहूदा है। प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश के इंदौर में 14 सितंबर, 2018 को मोहर्रम के अवसर पर आयोजित बोहरा समागम को संबोधित किया।



मोदी एक दक्षिणपंथी हिन्दू श्रेष्ठतावादी पार्टी के नेता हैं, जिसका यह मानना है कि मुसलमान ‘हिन्दुओं की भूमि‘ में विदेशी हैं और उनके लिए केवल दो ही उचित स्थान हैं - पाकिस्तान या कब्रिस्तान।
मोहर्रम मुसलमानों के लिए शोक का अवसर होता है। वे इस दौरान इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। इमाम हुसैन ने इस्लाम के सिद्धांतों पर कायम रहते हुए, उम्मायद वंश के आततायी खलीफा याजिद के प्रति निष्ठा की शपथ लेने से इंकार कर दिया था।

नरेन्द्र मोदी वही व्यक्ति हैं जो सन् 2002 में गुजरात सरकार के मुखिया थे। उस समय, दाऊदी बोहराओं सहित बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया था। मुख्यमंत्री बतौर उन्होंने मुसलमानों के कत्लेआम को उचित ठहराया था। उन्होंने कहा था कि यह कत्लेआम, गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग में 58 कारसेवकों की मौत की प्रतिक्रिया था।

मोदी सरकार ने कारसेवकों की बुरी तरह जली हुई लाशों का पोस्टमार्टम खुले रेल्वे यार्ड में करवाया और फिर, उन्हें अंतिम संस्कार के लिए उनके परिवारजनों  को सौंपने की बजाए, हिन्दू संगठनों के नेताओं को सौंप दिया। इन लाशों को एक जुलूस में गोधरा से अहमदाबाद ले जाया गया। गुजरात में जो कुछ हुआ, उससे मानवता शर्मसार हुई। इस कत्लेआम के मुख्य प्रायोजक को मोहर्रम के अवसर पर आमंत्रित करना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता।

बोहरा धर्मगुरू ने प्रधानमंत्री को क्यों आमंत्रित किया?

बोहरा धर्मगुरू का आर्थिक साम्राज्य अरबों डालर का है। उनका परिवार जिस तरह का ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता है उसे देखकर मध्यकालीन राजा भी हीन भावना के शिकार हो जाते। दुनिया के सबसे रईस परिवार भी बोहरा धर्मगुरू के सामने कुछ नहीं हैं। उनकी आमदनी का स्त्रोत हैं वे ‘कर‘ जो उनका प्रशासन, जिसे ‘कोठार‘ कहा जाता है, आरोपित और जबरदस्ती वसूल करता है। इन करों में शामिल हैं जकात, सिला, फितरा, नजर, मुकम, हुकुन नफ्स, शाबिल इत्यादि जिन्हें सामूहिक रूप से वजेबात कहा जाता है। मध्यमवर्गीय परिवार उनके कोष में हर साल कुछ लाख रूपये देते हैं।

अगर कोठार द्वारा आरोपित कर नहीं चुकाए जाते हैं तो उसके तीन नतीजे होते हैं - पहला, कोठार द्वारा संचालित मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों में प्रवेश पर रोक, संबंधित व्यक्ति के परिवार में विवाह संबंधी अनुष्ठान करने से इंकार और परिवार में मौत की स्थिति में शव को दफन न करने देना। बोहराओें को धार्मिक समारोहों और जन्म व मृत्यु से जुड़े रस्मो-रिवाजों को करने के लिए कोठार की अनुमति, जिसे रजा कहा जाता है, हासिल करनी होती है। यह रजा तभी दी जाती है जब परिवार के पास ग्रीन कार्ड हो। और यह ग्रीन कार्ड तभी मिलता है जब वजेबात का एक-एक पैसा चुका दिया गया हो।

इस लेखक की मां की मृत्यु पर भी उससे ग्रीन कार्ड मांगा गया। जब उसने बताया कि उसने एक पैसा भी कर के रूप में नहीं चुकाया है तब उसे बोहरा समाज के कब्रिस्तान में अपनी मां को दफन करने की अनुमति नहीं दी गई। जो लोग कोठार के विरूद्ध आवाज उठाते हैं या टैक्स के रूप में जमा किए गए धन का हिसाब-किताब पूछते हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाता है।

यही सजा उन लोगों के लिए भी निर्धारित है जो कोठार के फरमानों को मानने से इंकार कर देते हैं। इन फरमानों में यह बताया जाता है कि बोहराओं को किसे वोट देना है, कौन से अखबार और पत्रिकाएं नहीं पढ़ना है और कौन सी नौकरियां नहीं करना है। उदाहरणार्थ, बोहरों को बाम्बे मर्केटाइल कोआपरेटिव बैंक में नौकरी करने की इजाजत नहीं है। चूंकि बोहरा संख्या की दृष्टि से एक छोटा समुदाय है और गैर-बोहराओं से उनका सामाजिक मेलजोल न के बराबर रहता है, इसलिए सामाजिक बहिष्कार उनके लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत होता है। जरूरत पड़ने पर कोठार गुंडों और हिंसा का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाता। बोहरा सुधारवादी नेता डॉ. असगर अली इंजीनियर पर छःह बार जानलेवा हमले हुए थे और 13 फरवरी, 2000 को उनके घर और कार्यालय को आग लगाकर पूरी तरह नष्ट कर दिया गया था।

जयप्रकाश नारायण की पहल पर नाथवानी आयोग गठित किया गया और उससे यह कहा गया कि वह कोठार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों और अनाचारों व बोहराओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करे। इस आयोग ने अपनी रपट में कोठार को ‘राज्य के अंदर राज्य‘ बताया। कोठार द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारां के उल्लंघन को समुदाय के सुधारवादी तबकों द्वारा चुनौती दी जाती रही है। उन्होंने समय-समय पर केन्द्र सरकार व महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों का ध्यान, कोठार द्वारा विभिन्न कानूनों के खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन की ओर आकर्षित किया।

बोहरा धर्मगुरू का यह विशाल साम्राज्य, राज्य के अंदर राज्य के रूप में तभी काम कर सकता है जब वह मानवाधिकारों और देश के कानूनों का उल्लंघन करे। इस साम्राज्य को बनाए रखने के लिए धर्मगुरू और उनके दरबारियों को सरकार की सुरक्षा और संरक्षण की ज़रूरत होती है। इसे हासिल करने के लिए धर्मगुरू, शासक दल को उदारतापूर्वक दान देते हैं और उन्हें बोहराओं के वोट दिलवाने का आश्वासन भी। यह धनराशि इतनी बड़ी होती है कि जो लोग बोहरा सुधारवादी आंदोलन से सहानुभूति भी रखते हैं, वे भी इसे स्वीकार करने का लालच छोड़ नहीं पाते। जिस समय मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, उस समय जयप्रकाश नारायण द्वारा नियुक्त नाथवानी आयोग की रपट के साथ सुधारवादी बोहरा उनसे मिले थे।

प्रधानमंत्री ने सुधारवादियों के प्रति सहानुभूति तो व्यक्त की परंतु जनता पार्टी की सरकार ने इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की। इसी तरह, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों ने भी कुछ नहीं किया। सुधारवादियों को अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार से बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि वह सरकार मुसलमानों के वोटों पर निर्भर नहीं थी। परंतु जब सुधारवादी वाजपेयी से मिले तो उन्होंने भी बोहरा धर्मगुरू के विरूद्ध कोई कार्यवाही करने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी।

बाल ठाकरे अपने घर से बहुत कम बाहर निकलते थे परंतु वे भी मुंबई के मलाबार हिल्स इलाके में धर्मगुरू के आलीशान निवास में गए, जहां उनका अभिनदंन किया गया। वह भी 1992-93 के मुंबई दंगों के ठीक बाद। धर्मगुरू अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए ‘टाईगर‘ के प्रसन्न रखना चाहते थे और टाईगर को अपनी ‘देशभक्ति‘ के बावजूद उनके घर जाने से कोई परहेज न था।

बोहरा व्यवसायियों की मेहनत की कमाई के इस धन का उपयोग धर्मगुरू बोहराओं के हितों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि कोठार के हितों की रक्षा के लिए करते हैं। अन्य समुदायों की तुलना में बोहरा समुदाय में व्यवसायियों का प्रतिशत बहुत अधिक है। जाहिर है कि वे भी जीएसटी और नोटबंदी से प्रभावित हुए हैं। इस कारण और इसलिए भी क्योंकि भाजपा अल्पसंख्यकों की विरोधी है, कोई भी बोहरा शायद ही भाजपा को मत देना चाहे।

इसके बावजूद, धर्मगुरू ने प्रधानमंत्री को कार्यक्रम में आमंत्रित किया। वे प्रधानमंत्री के सभी सार्वजनिक समारोहों में बोहराओं को भेजते रहे हैं। उनके निर्देश पर न्यूयार्क के मेडिसन स्क्वेयर में नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में बोहरा शामिल हुए थे।

जब देश का प्रधानमंत्री किसी धर्मगुरू के दरबार में हाजिरी लगाता है तब किस नौकरशाह की हिम्मत होगी कि वह उस धर्मगुरू के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही करे। इससे धर्मगुरू का अपने समुदाय पर दबदबा भी बढ़ता है और वे अपराजेय दिखने लगते हैं। जो लोग उनके आदेशों का पालन नहीं करना चाहते, उनके पास एक ही रास्ता होता है और वह यह कि वे सामाजिक बहिष्कार का सामना करें और अपने सभी रिश्तदारों और मित्रों के लिए अजनबी बन जाएं। कब-जब उन्हें हिंसा का सामना भी करना पड़ता है, जैसा कि डॉ. असगर अली इंजीनियर और अन्यों के साथ हुआ।

अल्लाह और सत्य में अपनी निष्ठा के कारण, डॉ. इंजीनियर एक दिलेर और मजबूत इरादे वाले व्यक्ति थे। परंतु सभी लोग तो ऐसे नहीं हो सकते। अधिकांश व्यवसायी व्यावहारिक होते हैं और अगर उन्हें लगता है कि कुछ रकम देकर वे सुरक्षित रह सकते हैं तो उन्हें इसमें कोई समस्या नहीं दिखती। कई बड़े बोहरा व्यवसायी उनके लिए निर्धारित कर से भी अधिक धनराशि वजेहात के रूप में देते हैं। इसके बदले उन्हें समाज में बेहतर दर्जा और रूतबा प्रदान किया जाता है।

मोदी ने बोहरा समुदाय की तारीफ क्यों की?

हिन्दुत्ववादी हमेशा से मुसलमानां को विदेशी, अलगाववादी, विघटनकारी, आतंकवादी और हिन्दू संस्कृति का शत्रु बताते आए हैं। मध्यमार्गी हिन्दुत्ववादी चाहते हैं कि मुसलमानों का जबरदस्ती ‘हिन्दूकरण‘ कर दिया जाए और मुस्लिम संस्कृति की सभी निशानियां मिटा दी जाएं। अतिवादी हिन्दुत्ववादियों का यह मानना है कि मुसलमानों के लिए इस देश में कोई जगह नहीं है। या तो उनका सफाया कर दिया जाना चाहिए अथवा उन्हें अन्य मुस्लिम देशों, विशेषकर पाकिस्तान, में बसने के लिए मजबूर कर दिया जाना चाहिए।

मोदी ने बोहरा समुदाय की खुलकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि बोहरा ईमानदारी से व्यवसाय करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इमाम हुसैन की शिक्षाएं शांति और न्याय को बढ़ावा देने वाली हैं। धर्मगुरू की तारीफ करते हुए मोदी ने कहा कि उन्होनें समुदाय मे शांति, सद्भाव, सत्याग्रह और देशभक्ति के मूल्यों को स्थापित किया है। इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए मोदी ने यह भी कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे इसी समुदाय का हिस्सा हैं और उनके दरवाजे हमेशा उनके इस परिवार के लिए खुले हैं।

हिन्दू श्रेष्ठतावादियों में जो लोग व्यवहारिक हैं, वे यह जानते हैं कि देश के सत्रह करोड़ मुसलमानों का सफाया करना असंभव है। उन्होंने इस समस्या का एक हल ढूंढ निकाला है। उनकी कोशिश यह है कि मुसलमानों को उनके अलग-अलग पंथों के आधार पर विभाजित कर दिया जाए और फिर एक-एक कर उनसे निपटते हुए उनके हिन्दूकरण का प्रोजेक्ट शुरू किया जाए। इसी नीति के अंतर्गत, शियाओं को सुन्नियों के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। शिया यह दावा कर रहे हैं कि बाबरी मस्जिद की भूमि शिया वक्फ संपत्ति है और वे उस भूमि पर राममंदिर के निर्माण की अनुमति देकर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को समाप्त करने के लिए तैयार हैं।

कई आरएसएस नेता यह मांग करते आए हैं कि संघ को मुसलमानों के ‘भारतीयकरण‘ को प्रोत्साहन देना चाहिए और उन्हें ‘भारतीयकृत‘ मुसलमानों द्वारा अल्लाह की इबादत करने और अन्य धार्मिक अनुष्ठान संपादित करने से कोई आपत्ति नहीं होगी। ‘भारतीयकरण‘ से आरएसएस नेताओं का आशय है मुसलमानों को अरब देशों के प्रभाव से मुक्त करना। संघ के एक नेता राजीव मल्होत्रा कहते हैं कि ‘राष्ट्रीयकृत मुसलमानों‘ को इस्लाम के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्रों से अपने संबंध विच्छेद कर लेने चाहिए और उनके ज्ञान का स्त्रोत केवल उनकी पितृभूमि होनी चाहिए। इस परिभाषा के अनुसार, बोहरा समुदाय और उसके मुखिया पूरी तरह से राष्ट्रीयकृत हैं और इसलिए उन्हें देशभक्त बताया जाता है।

दाऊदी बोहरा समुदाय का मुख्यालय मुंबई में है और अधिकांश बोहरा गुजराती भाषी हैं। बोहरा धर्मगुरू भी अपनी तकरीरें गुजराती में देते हैं जिनमें कुछ अरबी शब्द शामिल होते हैं। मोदी ने जिस परिवार की बात कही वह गुजराती भाषियों का परिवार है। शिया मुस्लिम समुदाय के एक छोटे से गुजराती भाषी तबके को देशभक्त बताना किसी भी तरह से उचित नहीं है। इसका अर्थ यह है कि सभी गैर-बोहरा और गैर-गुजराती मुस्लिम विदेशी हैं, अरबी संस्कृति से जुड़े हुए हैं और इसलिए देशभक्त नहीं हैं।

तमिल, बांग्ला, मलयालम, असमिया और उर्दू बोलने वाले भारतीय मुसलमान, बोहराओें, शियाओं और गुजराती भाषी मुसलमानों से कुछ कम देशभक्त नहीं हैं। मुस्लिम समुदाय को इस तरह से बांटने के खतरनाक नतीजे हो सकते हैं। उर्दू मुसलमानों की भाषा नहीं है। वह एक भारतीय भाषा है और उसकी जड़ें स्थानीय संस्कृति में हैं। भारत का कोई मुसलमान अरब देशों से प्रेरणा ग्रहण नहीं करता। हां, हिन्दुओं और अन्य समुदायों की तरह, मुसलमानों पर भी पश्चिमी, अरबी और फारसी संस्कृति का प्रभाव है। गजलें, गुजराती सहित कई भारतीय भाषाओं में लिखी जाती हैं। कई अंग्रेजी, अरबी और फारसी शब्द भारतीय भाषाओं का हिस्सा बन गए हैं और उनके बिना ये भाषाएं अधूरी होंगीं।

बोहरा महिलाएं और बोहरा धर्मगुरू

मोदी सरकार का यह दावा है कि तीन तलाक के मुद्दे को उसने इसलिए उठाया क्योंकि वह मुस्लिम महिलाओं की भलाई चाहती है। मोदी ने कई बार कांग्रेस की इस बात के लिए आलोचना की है कि वह केवल मुस्लिम पुरूषों का तुष्टिकरण करती है। बोहरा धर्मगुरू, समुदाय की महिलाओं द्वारा शिक्षा प्राप्त करने को हतोत्साहित करते हैं। वे महिलाओं को पर्दे में रहने पर मजबूर करते हैं और बोहराओं की एक अलग पहचान बनाने के लिए उन्होंने समुदाय की महिलाओं के लिए काले बुर्के प्रतिबंधित कर दिए हैं। बोहरा महिलाओं द्वारा नौकरी करना भी उन्हें मंजूर नहीं है। एक वीडियो में उन्हें यह कहते हुए दिखाया गया है कि अगर महिलाएं पुरूषों की बात न मानें, तो उन्हें महिलाओं को घर से बाहर कर देना चाहिए।

एक प्रधानमंत्री, जिसका नारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ‘ है, वह भला इस तरह की मानसिकता वाले धर्मगुरू द्वारा आयोजित धार्मिक समारोह में कैसे हिस्सा ले सकता है? क्या प्रधानमंत्री का मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने का दावा खोखला है? यह स्पष्ट है कि हिन्दुत्व का केवल एक सिद्धांत है - ऊँची जातियों का प्रभुत्व स्थापित करना और एक ऐसे एकाधिकारवादी सांस्कृतिक राज्य की स्थापना करना, जो ऊँची जातियों के विशेषाधिकारों की रक्षा करे।

(अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)

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