लॉकडाउन से पहले मुंबई में राजमिस्त्रि के सहायक के रुप में काम करने वाले 35 वर्षीय इंसाफ अली सोमवार की सुबह 1500 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर मुंबई से उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में अपने मथुकनवा गांव पहुंचे थे। जब वह मुंबई से निकले थे तो उनके पास केवल पांच हजार रुपये बचे हुए थे। इसके बाद पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो 14 दिन के लिए क्वारंटीन में रख लिया था जहां सोमवार की शाम उनकी मौत हो गई।
अब उनकी 32 वर्षीय पत्नी सलमा बेगम और परिवार केवल उनके कोरोनावायरस के टेस्ट (पोस्टमॉर्टम तभी होगा जब अली कोरोना निगेटिव आएंगे) के परिणाम से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी मौत क्यों हुई। सलमा कहती हैं कि मोबाइल फोन की बैटरी खत्म होने से पहले अली ने बताया था कि वह केवल बिस्कुल से जीवन जी रहे हैं।
सलमा कहती हैं कि वह अपने माता पिता के घर से लौटने के बाद अली को नहीं देख पाईं। उनके लौटने से पहले ही अली का शव निकाल लिया गया था। उनका छह साल का बेटा इरफान है। अली के परिवार में बाकि उनके माता पिता और भाई हैं जिन्हें क्वारंटीन किया गया है। अली के दो बड़े भाई भी प्रवासी मजदूर हैं और वह अभी पंजाब में फंसे हुए हैं।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, सलमा बताती हैं कि अली 13 अप्रैल को मुंबई से निकला था, उन्होंने बताया था कि पैंसे की तंगी से गुजर रहा हूं। उन्हें हफ्तों तक कोई काम नहीं मिला था। अली ने कहा था कि गांव में वह कम से कम आसपास के परिचित लोगों के कुछ व्यवस्था कर लेंगे।
इससे पहले कि वह लौटती अली की मौत हो चुकी थी। सलमा कहती हैं, 'वह 10 अन्य लोगों के साथ पैदल चलकर या ट्रक वाले को 3000 रुपये देकर झांसी आए। वहां से वह बहराइच के लिए पैदल ही चले, इसके बाद रविवार की रात पुलिस ने पकड़ लिया और वापस जाने को कहा। उन्होंने अन्य लोगों को छोड़कर पुलिस को चकमा देक रात के लिए एक घाट में छिप गए। उसके बाद उनका मोबाइल बंद हो गया और मैं उनसे संपर्क नहीं कर पायी। मैने उन सभी लोगों को फोन किया जिनके साथ वह निकले थे लेकिन किसी को कुछ पता नहीं था। फिर सोमवार कि सुबह उन्होंने मुझे फोनकर मथुकनवा गांव वापस आने के लिए कहा।'
फोन पर बात करते ही सलमा टूट गईं, सलमा ने कहती हैं, वह कहते रहे कि कैसे वह गांव वापस आना चाहते हैं लेकिन गांव पहुंचने के बाद कुछ घंटों के ज्यादा नहीं रह सके।
अली की भाभी अमीना बानो (40 वर्षीय) कहती हैं कि उन्हें यह नहीं बताया जा रहा है कि अली को कब दफनाया जाएगा या स्कूल में क्वारंटीन से बाहर कब जा सकते हैं। अमीना ने कहा, कुछ लोग कह रहे हैं कि हमें 14 दिन तक यहां रहना होगा, कुछ का कहना है कि टेस्ट का परिणाम आने के बाद ही हमें जाने दिया जाएगा।
श्रावस्ती के पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार सिंह ने कहा कि गांव के क्वारंटीन सेंटर में कुछ नाश्ता करने के बाद अली की मौत हो गई। उनका शव मोर्चरी में रखा गया है और उनका कोविड-19 टेस्ट का नमूना लखनऊ भेजा गया है उनके परिवार के सदस्यों को क्वारंटीन किया गया है क्योंकि अली की मृत्यु के बद उन्होंने शव को छुआ था। संक्रमण के जोखिम को देखते हुए पोस्टमार्टम केवल उन्हीं शवों के किए जा रहे हैं जो कोरोना टेस्ट में निगेटिव निकल रहे हैं। पुलिस अधीक्षक ने स्वीकार किया कि वे अली की मृत्यु का सही कारण नहीं बता सकते।
संबंधित खबर : 96% प्रवासी मजदूरों को नहीं मिला सरकार से राशन, 90% को नहीं मिली लॉकडाउन के दौरान मजदूरी- सर्वे
उत्तर प्रदेश ने अन्य राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को वापस लाना शुरु कर दिया और उन्हें कम से कम 14 दिनों तक के लिए क्वारंटीन किया जा रहा है। जाहिर तौर पर राज्य सरकार की ओर से बनाए गए चेक पोस्ट से बचकर अली अपने गांव पहुंचे थे।
अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी कहते हैं कि वे केवल अन्य राज्य सरकारों से कोर्डिनेशन कर लोगों को वापस ला रहे हैं। लोगों के छिपकर आने के कुछ मामले इसलिए होते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश की एक विशाल सीमा है, कुछ गांव मार्गों से होकर गुजरती है। लेकिन जो पकड़ा जता है उसे क्वारंटीन में डाला जाता है।
अब उनकी 32 वर्षीय पत्नी सलमा बेगम और परिवार केवल उनके कोरोनावायरस के टेस्ट (पोस्टमॉर्टम तभी होगा जब अली कोरोना निगेटिव आएंगे) के परिणाम से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि उनकी मौत क्यों हुई। सलमा कहती हैं कि मोबाइल फोन की बैटरी खत्म होने से पहले अली ने बताया था कि वह केवल बिस्कुल से जीवन जी रहे हैं।
सलमा कहती हैं कि वह अपने माता पिता के घर से लौटने के बाद अली को नहीं देख पाईं। उनके लौटने से पहले ही अली का शव निकाल लिया गया था। उनका छह साल का बेटा इरफान है। अली के परिवार में बाकि उनके माता पिता और भाई हैं जिन्हें क्वारंटीन किया गया है। अली के दो बड़े भाई भी प्रवासी मजदूर हैं और वह अभी पंजाब में फंसे हुए हैं।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, सलमा बताती हैं कि अली 13 अप्रैल को मुंबई से निकला था, उन्होंने बताया था कि पैंसे की तंगी से गुजर रहा हूं। उन्हें हफ्तों तक कोई काम नहीं मिला था। अली ने कहा था कि गांव में वह कम से कम आसपास के परिचित लोगों के कुछ व्यवस्था कर लेंगे।
इससे पहले कि वह लौटती अली की मौत हो चुकी थी। सलमा कहती हैं, 'वह 10 अन्य लोगों के साथ पैदल चलकर या ट्रक वाले को 3000 रुपये देकर झांसी आए। वहां से वह बहराइच के लिए पैदल ही चले, इसके बाद रविवार की रात पुलिस ने पकड़ लिया और वापस जाने को कहा। उन्होंने अन्य लोगों को छोड़कर पुलिस को चकमा देक रात के लिए एक घाट में छिप गए। उसके बाद उनका मोबाइल बंद हो गया और मैं उनसे संपर्क नहीं कर पायी। मैने उन सभी लोगों को फोन किया जिनके साथ वह निकले थे लेकिन किसी को कुछ पता नहीं था। फिर सोमवार कि सुबह उन्होंने मुझे फोनकर मथुकनवा गांव वापस आने के लिए कहा।'
फोन पर बात करते ही सलमा टूट गईं, सलमा ने कहती हैं, वह कहते रहे कि कैसे वह गांव वापस आना चाहते हैं लेकिन गांव पहुंचने के बाद कुछ घंटों के ज्यादा नहीं रह सके।
अली की भाभी अमीना बानो (40 वर्षीय) कहती हैं कि उन्हें यह नहीं बताया जा रहा है कि अली को कब दफनाया जाएगा या स्कूल में क्वारंटीन से बाहर कब जा सकते हैं। अमीना ने कहा, कुछ लोग कह रहे हैं कि हमें 14 दिन तक यहां रहना होगा, कुछ का कहना है कि टेस्ट का परिणाम आने के बाद ही हमें जाने दिया जाएगा।
श्रावस्ती के पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार सिंह ने कहा कि गांव के क्वारंटीन सेंटर में कुछ नाश्ता करने के बाद अली की मौत हो गई। उनका शव मोर्चरी में रखा गया है और उनका कोविड-19 टेस्ट का नमूना लखनऊ भेजा गया है उनके परिवार के सदस्यों को क्वारंटीन किया गया है क्योंकि अली की मृत्यु के बद उन्होंने शव को छुआ था। संक्रमण के जोखिम को देखते हुए पोस्टमार्टम केवल उन्हीं शवों के किए जा रहे हैं जो कोरोना टेस्ट में निगेटिव निकल रहे हैं। पुलिस अधीक्षक ने स्वीकार किया कि वे अली की मृत्यु का सही कारण नहीं बता सकते।
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अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी कहते हैं कि वे केवल अन्य राज्य सरकारों से कोर्डिनेशन कर लोगों को वापस ला रहे हैं। लोगों के छिपकर आने के कुछ मामले इसलिए होते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश की एक विशाल सीमा है, कुछ गांव मार्गों से होकर गुजरती है। लेकिन जो पकड़ा जता है उसे क्वारंटीन में डाला जाता है।