देश के इतिहास में संघियों के पिटने और जेल जाने की अगर कोई वाकया है, तो वह सिर्फ इमरजेंसी के दौर का है। लिखित माफी की भी कुछ कहानियां हैं। लेकिन यह सच है कि समाजवादियों के साथ संघियों ने भी इमरजेंसी के दौरान इंदिरा सरकार की प्रताड़ना सही।
इतिहास बोध आजकल एक विलुप्तप्राय चीज़ है। लेकिन पुराने पत्रकारों से बात कीजिये तो पता चलेगा कि इमरजेंसी के दौरान सरकार ने किस तरह चुन-चुन कर अपने दुश्मनों निशाना बनाया था। समाजवादी तो ज्यादातर फक्कड़ थे, लेकिन इमरजेंसी का विरोध कर रहे कई आरएसएस समर्थकों के पास भरपूर पैसा था। सरकार ने ऐसे कई लोगो से इमरजेंसी के दौरान सबकुछ छीनकर उन्हे सड़क पर ला दिया। ज़ाहिर सी बात है स्वभाव से घनघोर प्रतिक्रियावादी संघियों में इंदिरा गांधी को लेकर नफरत होनी चाहिए थी। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि उनकी नफरत इंदिरा से नहीं बल्कि नेहरू से है।
आखिर ऐसा क्यों है, इस पर बात करने से पहले बहुत संक्षेप में इस बात की चर्चा ज़रूरी है कि आखिर नेहरू ने क्या किया और इंदिरा ने क्या किया। नेहरू ने इस देश में मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी की स्थापना की। बी. आर. अंबेडकर से लेकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी तक अलग-अलग विचारधारा वाले लोगो को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में आरएसएस के खिलाफ बने माहौल फायदा उठाकर इसे पूरी तरह मिटाने की कोशिश नहीं की बल्कि बैन हटने पर उसे 26 जनवरी के पैरेड तक में आमंत्रित किया। निजी आस्था के मामले में नेहरू एक जनेउधारी कर्मकांडी ब्राहण थे। लेकिन उन्होने भारत को हिंदू पाकिस्तान बनने से रोका और उन तमाम संस्थाओं की नींव रखी जो आज भी इस देश को चला रही हैं।
दूसरी तरफ इंदिरा गांधी ने अपने पिता की बनाई संस्थाओं को एक-एक करके कमज़ोर किया। कोर्ट का एक फैसला खिलाफ गया तो पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी और देश की जनता से मौलिक अधिकार तक छीन लिये। आज जो वंशवादी राजनीति हर पार्टी में मौजूद है, उसका सूत्रपात एक तरह इंदिरा जी किया। पहले एक बेटे को उत्तराधिकारी और डीफेक्टो पीएम बनाया और उसकी मृत्यु के बाद दूसरे को भी ज़बरदस्ती राजनीति में ले आईं। इमरजेंसी से कोई सबक ना लेते हुए सत्ता में वापसी के बाद भी उन्होने विरोधियों के दमन की नीति अपनाई और कई चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त किया।
फिर आखिर क्या वजह है कि बुरी तरह पीटने और जेल भेजने वाली इंदिरा गांधी संघ से जुड़े बहुत से लोगो के लिए दुर्गा हैं और पंडित नेहरू विलेन? वजह पूरी तरह वैचारिक है। संघ और बीजेपी हिंसा पर आधारित जिस उग्र राष्ट्रवाद में आस्था रखते हैं, उसकी जनक इंदिरा गांधी ही थी। उन्होने यह रास्ता दिखाया कि देशभक्ति के नाम पर कुछ भी किया जा सकता है। राजनीतिक विरोधियों पर देशद्रोही का टैग चिपकाने का फॉर्मूला इंदिरा जी ने इस देश को दिया और मोदी जी बता रहे हैं कि ये नुस्खा आज भी कारगर है। पाकिस्तान के दो टुकड़े करना पुरानी दिल्ली में पकड़-पकड़कर मुसलमानों की नसबंदी, इतिहास के दो ऐसे आख्यान हैं, जिन्हे याद करते ही संघी इमरजेंसी के दौरान पड़ी लाठियों के चोट भूल जाते हैं।
सोशल मीडिया पर गांधी और नेहरू के चरित्रहनन के लिए धुआंधार कैंपेन जारी है। लेकिन देख लीजिये आज इमरजेंसी के खिलाफ संघी ब्रिगेड की तरफ से कितने पोस्ट किये गये हैं? ओजस्वी भाषण देनेवाले बीजेपी नेता आज के दिन भी लोकतंत्र की मजबूती के लिए कुछ ओजस्वी बातें कर सकते थे। लेकिन उन्हे पता है कि अगर बात लोकतंत्र की मजबूती की करेंगे तो वे खुद कमज़ोर हो जाएंगे। इसलिए जख्म कितने भी गहरे हों, संघियों के दिल में इंदुजी हमेशा रहेंगी और उनके बाप को वे हमेशा कोसते रहेंगे क्योंकि नेहरू ने एक ऐसी मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी बना दी है, जिसे लाख चाहकर भी `बनाना रिपब्लिक’ में बदल पाना संभव नहीं है।
इतिहास बोध आजकल एक विलुप्तप्राय चीज़ है। लेकिन पुराने पत्रकारों से बात कीजिये तो पता चलेगा कि इमरजेंसी के दौरान सरकार ने किस तरह चुन-चुन कर अपने दुश्मनों निशाना बनाया था। समाजवादी तो ज्यादातर फक्कड़ थे, लेकिन इमरजेंसी का विरोध कर रहे कई आरएसएस समर्थकों के पास भरपूर पैसा था। सरकार ने ऐसे कई लोगो से इमरजेंसी के दौरान सबकुछ छीनकर उन्हे सड़क पर ला दिया। ज़ाहिर सी बात है स्वभाव से घनघोर प्रतिक्रियावादी संघियों में इंदिरा गांधी को लेकर नफरत होनी चाहिए थी। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि उनकी नफरत इंदिरा से नहीं बल्कि नेहरू से है।
आखिर ऐसा क्यों है, इस पर बात करने से पहले बहुत संक्षेप में इस बात की चर्चा ज़रूरी है कि आखिर नेहरू ने क्या किया और इंदिरा ने क्या किया। नेहरू ने इस देश में मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी की स्थापना की। बी. आर. अंबेडकर से लेकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी तक अलग-अलग विचारधारा वाले लोगो को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में आरएसएस के खिलाफ बने माहौल फायदा उठाकर इसे पूरी तरह मिटाने की कोशिश नहीं की बल्कि बैन हटने पर उसे 26 जनवरी के पैरेड तक में आमंत्रित किया। निजी आस्था के मामले में नेहरू एक जनेउधारी कर्मकांडी ब्राहण थे। लेकिन उन्होने भारत को हिंदू पाकिस्तान बनने से रोका और उन तमाम संस्थाओं की नींव रखी जो आज भी इस देश को चला रही हैं।
दूसरी तरफ इंदिरा गांधी ने अपने पिता की बनाई संस्थाओं को एक-एक करके कमज़ोर किया। कोर्ट का एक फैसला खिलाफ गया तो पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी और देश की जनता से मौलिक अधिकार तक छीन लिये। आज जो वंशवादी राजनीति हर पार्टी में मौजूद है, उसका सूत्रपात एक तरह इंदिरा जी किया। पहले एक बेटे को उत्तराधिकारी और डीफेक्टो पीएम बनाया और उसकी मृत्यु के बाद दूसरे को भी ज़बरदस्ती राजनीति में ले आईं। इमरजेंसी से कोई सबक ना लेते हुए सत्ता में वापसी के बाद भी उन्होने विरोधियों के दमन की नीति अपनाई और कई चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त किया।
फिर आखिर क्या वजह है कि बुरी तरह पीटने और जेल भेजने वाली इंदिरा गांधी संघ से जुड़े बहुत से लोगो के लिए दुर्गा हैं और पंडित नेहरू विलेन? वजह पूरी तरह वैचारिक है। संघ और बीजेपी हिंसा पर आधारित जिस उग्र राष्ट्रवाद में आस्था रखते हैं, उसकी जनक इंदिरा गांधी ही थी। उन्होने यह रास्ता दिखाया कि देशभक्ति के नाम पर कुछ भी किया जा सकता है। राजनीतिक विरोधियों पर देशद्रोही का टैग चिपकाने का फॉर्मूला इंदिरा जी ने इस देश को दिया और मोदी जी बता रहे हैं कि ये नुस्खा आज भी कारगर है। पाकिस्तान के दो टुकड़े करना पुरानी दिल्ली में पकड़-पकड़कर मुसलमानों की नसबंदी, इतिहास के दो ऐसे आख्यान हैं, जिन्हे याद करते ही संघी इमरजेंसी के दौरान पड़ी लाठियों के चोट भूल जाते हैं।
सोशल मीडिया पर गांधी और नेहरू के चरित्रहनन के लिए धुआंधार कैंपेन जारी है। लेकिन देख लीजिये आज इमरजेंसी के खिलाफ संघी ब्रिगेड की तरफ से कितने पोस्ट किये गये हैं? ओजस्वी भाषण देनेवाले बीजेपी नेता आज के दिन भी लोकतंत्र की मजबूती के लिए कुछ ओजस्वी बातें कर सकते थे। लेकिन उन्हे पता है कि अगर बात लोकतंत्र की मजबूती की करेंगे तो वे खुद कमज़ोर हो जाएंगे। इसलिए जख्म कितने भी गहरे हों, संघियों के दिल में इंदुजी हमेशा रहेंगी और उनके बाप को वे हमेशा कोसते रहेंगे क्योंकि नेहरू ने एक ऐसी मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी बना दी है, जिसे लाख चाहकर भी `बनाना रिपब्लिक’ में बदल पाना संभव नहीं है।