मोदीनामिक्स के छात्रों की भारत की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की खुमारी अभी उतरी भी नही होगी कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे से एक बुरी खबर आ गयी है खबर यह है कि जून 2018 में व्यापार घाटा, नवंबर 2014 के बाद सबसे अधिक रहा है यानी देश के व्यापार घाटे ने पाँच सालो के उच्चतम स्तर को पार कर लिया है.
आप को फिर बोर करने जा रहा हूँ क्योंकि एक बार फिर आर्थिकी के महत्वपूर्ण हिस्से व्यापार घाटे की बात कर रहा हूँ.
आयात और निर्यात का अंतर व्यापार घाटा कहलाता है ओर इस व्यापार घाटे में चीन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2017-18 में बढ़कर $62.8 बिलियन पहुँच गया है जो 2016-17 में $51 बिलियन था केंद्रीय वाणिज्य, उद्योग एवं नागरिक उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु ने स्वयं स्वीकार किया है कि चीन से बढ़ता व्यापार घाटा खतरनाक स्तर तक पुहंच चुका है.
ऐसी स्थिति में भी मोदी सरकार एक ऐसे समझौते पर आगे बढ़ रही है इसे आरसीईपी कहा जाता हैं RCEP एक मेगा मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है. इसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 16 देश शामिल हैं इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना हैं माना जा रहा है कि इस क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के कारण व्यापार घाटे की और खराब हो सकती है क्योंकि इस समझौते के अंतर्गत बड़े स्तर पर टैरिफों का उन्मूलन किया जाना है जिससे भारतीय बाज़ारों में चीनी माल की बाढ़ आ सकती है.
इसी कड़ी में बैंक ऑफ चाइना को भारत के रिजर्व बैंक ने भारत मे काम करने की अनुमति दी है भारत सरकार के चीन से व्यापार घाटे को कम करने के तमाम प्रयासों को बैंक ऑफ चाइना प्रभावित कर सकता है यह बैंक चीनी आयातकाें को सुविधाएं देना, चीनी कंपनियों को भारत में काम करने हेतु वित्त उपलब्ध कराना, भारत में चीनी आयातों को और बढ़ावा देने का काम भी कर सकता है.
चीन से भारत को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि उसके पास जो भी संसाधन हैं उन्हें वह आक्रामक तरीके से इस्तेमाल करता है अमेरिका में भी वह यही खेल खेल चुका है पहले अमेरिका ने भी चीनी कम्पनियों और बैंकों को पहले खुलकर काम करने का मौका दिया ओर देखते ही देखते अमेरिका के बाजार चीन के उत्पादों से पाट दिए गए। चीन के कारोबारियों ने धन अमेरिका से कमाया लेकिन निवेश अपने देश में ही किया। अमेरिका और चीन में व्यापार असंतुलन बढ़ गया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था डावांडोल होने लगी। यही कारण रहा कि अमेरिका अब लगातार चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा रहा हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले बुधवार को ही 6000 चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाया है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट भी हमे यही बताती है कि अनिवासी द्वारा अपने देश को पैसा भेजने में और विदेशी मुद्रा भंडार में अनिवासियों के योगदान के मामले में चीनी कारोबारी सबसे अव्वल हैं। ऐसे में बैंकिंग सेक्टर में चीन का आना कई ऐसे सवाल खड़े कर रहा है रिसोर्स, टेक्नॉलजी और अग्रेसिव रणनीति के मामले में हमारे सरकारी बैंक अभी बैंक ऑफ चाइना जैसे बड़े खिलाड़ी से बहुत पीछे है,अगर उनका मार्केट शेयर गिरा तो यह देश की इकॉनमी के लिए ठीक नहीं होगा ओर यह सिर्फ हमारा आकलन नही है यही आशंका बैंकिंग क्षेत्र के दिग्गजों ने भी जताई है.
आप को फिर बोर करने जा रहा हूँ क्योंकि एक बार फिर आर्थिकी के महत्वपूर्ण हिस्से व्यापार घाटे की बात कर रहा हूँ.
आयात और निर्यात का अंतर व्यापार घाटा कहलाता है ओर इस व्यापार घाटे में चीन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2017-18 में बढ़कर $62.8 बिलियन पहुँच गया है जो 2016-17 में $51 बिलियन था केंद्रीय वाणिज्य, उद्योग एवं नागरिक उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु ने स्वयं स्वीकार किया है कि चीन से बढ़ता व्यापार घाटा खतरनाक स्तर तक पुहंच चुका है.
ऐसी स्थिति में भी मोदी सरकार एक ऐसे समझौते पर आगे बढ़ रही है इसे आरसीईपी कहा जाता हैं RCEP एक मेगा मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है. इसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 16 देश शामिल हैं इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना हैं माना जा रहा है कि इस क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के कारण व्यापार घाटे की और खराब हो सकती है क्योंकि इस समझौते के अंतर्गत बड़े स्तर पर टैरिफों का उन्मूलन किया जाना है जिससे भारतीय बाज़ारों में चीनी माल की बाढ़ आ सकती है.
इसी कड़ी में बैंक ऑफ चाइना को भारत के रिजर्व बैंक ने भारत मे काम करने की अनुमति दी है भारत सरकार के चीन से व्यापार घाटे को कम करने के तमाम प्रयासों को बैंक ऑफ चाइना प्रभावित कर सकता है यह बैंक चीनी आयातकाें को सुविधाएं देना, चीनी कंपनियों को भारत में काम करने हेतु वित्त उपलब्ध कराना, भारत में चीनी आयातों को और बढ़ावा देने का काम भी कर सकता है.
चीन से भारत को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि उसके पास जो भी संसाधन हैं उन्हें वह आक्रामक तरीके से इस्तेमाल करता है अमेरिका में भी वह यही खेल खेल चुका है पहले अमेरिका ने भी चीनी कम्पनियों और बैंकों को पहले खुलकर काम करने का मौका दिया ओर देखते ही देखते अमेरिका के बाजार चीन के उत्पादों से पाट दिए गए। चीन के कारोबारियों ने धन अमेरिका से कमाया लेकिन निवेश अपने देश में ही किया। अमेरिका और चीन में व्यापार असंतुलन बढ़ गया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था डावांडोल होने लगी। यही कारण रहा कि अमेरिका अब लगातार चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा रहा हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले बुधवार को ही 6000 चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाया है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट भी हमे यही बताती है कि अनिवासी द्वारा अपने देश को पैसा भेजने में और विदेशी मुद्रा भंडार में अनिवासियों के योगदान के मामले में चीनी कारोबारी सबसे अव्वल हैं। ऐसे में बैंकिंग सेक्टर में चीन का आना कई ऐसे सवाल खड़े कर रहा है रिसोर्स, टेक्नॉलजी और अग्रेसिव रणनीति के मामले में हमारे सरकारी बैंक अभी बैंक ऑफ चाइना जैसे बड़े खिलाड़ी से बहुत पीछे है,अगर उनका मार्केट शेयर गिरा तो यह देश की इकॉनमी के लिए ठीक नहीं होगा ओर यह सिर्फ हमारा आकलन नही है यही आशंका बैंकिंग क्षेत्र के दिग्गजों ने भी जताई है.