असमानता झेल रहे भारतीय समाज में गृह युद्ध के आसार

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: October 7, 2020
दुनिया के कई देश गृह युद्ध की भयावहता से गुजर चुके हैं और आज भी गुजर रहे हैं, जिसमें रवांडा मिश्र लीबिया, यूगांडा अफगानिस्तान, इरान, ईराक सहित और भी बहुत सारे देशों को देखा जा सकता है. किसी भी देश में गृह युद्ध एक दिन का परिणाम नहीं होता है, समाज में वर्षों से चली आ रही असमानता व अत्याचार के समावेश के विरोध में उठ रही आवाज व उस आवाज को लगातार सत्ता पक्ष द्वारा निर्ममता से कुचलने का परिणाम गृह युद्ध के रूप में सामने आता है. सन 1994 में अकेले रवांडा (जो अफ्रीका का एक देश है) में गृह युद्ध का अंजाम ये है कि 100 दिनों के भीतर दो जाति (हुतू व तुत्सी) के 10 लाख लोग मारे गए और 2.5 लाख महिलाओं का बलात्कार किया गया इससे गृह युद्ध की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. किसी भी लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष देश में जिसका अपना संविधान हो, उसका गृह युद्ध की ओर बढ़ना उस देश की जनता के लिए विनाशक साबित होता है.



हर देश में गृह युद्ध के अलग अलग कारण देखे गए हैं, पर भारत में सदियों से चली आ रही सामाजिक, आर्थिक असमानता जो वर्तमान संघ की सरकार में पहले से भी अधिक मजबूत हुई है और जिसे लागु करवाने के लिए आज राजनितिक नीतियों का सहारा लिया जा रहा है. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखे गए संविधान को आज बदलने की कोशिश की जा रही है ताकि हिंदुत्व पे आधारित संघ के एजेंडे पर भाजपा की सरकार काम कर सके और देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सके. ये भारतीय समाज के लिए खतरनाक है. भारत में असमानता के अलावे धार्मिक व जातीय उन्माद अपने चरम पे है.  

देश में महिलाओं, बूढों बच्चों, दलित अल्पसंख्यकों सहित आदिवासियों की सुरक्षा संकट में है. कत्लेआम और हत्या का आलम ये है कि हर 3 मिनट पे भारत के किसी न किसी हिस्से में अलग अलग वजहों से एक इन्सान की जान जा रही है जो लगातार असंतोष को पैदा कर रही है. देश के युवाओं में अशिक्षा व बेरोजगारी को लेकर गहरा असंतोष है. देश की ये समस्याएँ पहले भी रही हैं और उसे ख़त्म करने के लिए विरोध की आवाज भी रही है. यही एक लोकतान्त्रिक देश की विशेषता है, पर आज संघ की सरकार द्वारा सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ देश भर से उठ रही आवाज को हमेशा के लिए मौन कर दिया जा रहा है. सरकार के विरोध में उठ रहे आवाज को सख्त कानून के तहत या तो जेलों में कैद कर दिया जा रहा है या हमेशा के लिए खामोश कर दिया जा रहा है.

एक लोकतान्त्रिक देश में समाज की बेहतरी के लिए सत्ता के विरोध में उठ रही आवाज को निरंकुशता से दबाना, दो धर्मों के बीच झूठे अफवाह फैलाकर खुनी दंगे करवाना, साजिशन, शिक्षा और रोजगार की मांग कर रहे युवाओं पे दमन करना, सत्ता के ख़िलाफ़ बोलने वाले दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी, रोहित वेमुला, गौरी लंकेश सहित देश हित में लिखने और बोलने वाले लोगों की हत्या करवाना आम बात हो गयी है. आज देश के अन्नदाता किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं, किसान विरोधी बिल को संसद में पारित करवाकर किसानों को सड़कों पर उतरने के लिए विवश कर दिया गया है.  मजदूर भूखो मरने की स्थिति में है. लेबर बिल के रूप में लाए गए फरमान ने कर्मचारियों, मजदूरों की जिन्दगी को पूंजीपतियों के सामने गिरवी रखने का काम किया है. देश में ऐसी अनगिनत समस्याएँ हैं जिसमें गिनती कम पर जाएगी पर समझने की बात ये है कि समस्याओं की झड़ी लगा देने वाला ये सिलसिला रुकने का नाम क्यूँ नहीं ले रहा?  

आलम यह है कि आज मौत, बलात्कार, आत्महत्या, लुट, बच्चों व् महिलाओं की तश्करी सहित तमाम तरह के अपराध का सामान्यीकरण कर दिया गया है और ये भी एक दिन में संभव नहीं हुआ है, संघ के वर्षों की तैयारी के बाद आज वे सत्ता में आकर अपनी “एक राष्ट्र, एक धर्म, एक शासक” वाली मनुवादी नीतियों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. उतनी ही रोष के साथ समाज के तमाम तबके से विरोध की आवाज गूंज रही है. अधिकार और न्याय के लिए मांग कर रही आवाम के बीच लगातार दंगे भड़काने और अफवाहों के द्वारा आपसी रंजिस में फ़साने के अपने पुराने एजेंडे को संघ सिद्दत से लागू कर रहा है जिसे वर्तमान में हाथरस की घटना में भी देखा जा सकता है. समाज में लगातार बढ़ता दमन और विरोध का टकराव गृह युद्ध की तरफ बढ़ने की ओर संकेत देता है. 
 
किसी भी देश में एकल निरंकुश शासन की शुरुआत वहां के आर्थिक संसाधनों पे कब्ज़ा करके व् देश की जनता को तमाम संसाधनों से दूर करके होता है आज भारत में संघ की सरकार उसी राह पे है, किसानो को जमीन, आदिवासियों को जंगल, मजदूरों को काम, व्यापारियों को व्यापार, बच्चों को स्कूल, युवाओं को विश्वविद्यालय से बेदखल कर पूंजीपतियों की दलाली करके देश के तमाम संशाधनों को विश्व के पूंजीपतियों के हाथों बेचा जा रहा है. देश के संसाधनों को WTO, .MF वर्ल्ड बैंक (जिसमें अमेरिका की 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है) के पास गिरवी रखते हुए संघ की सरकार भूल गयी है कि इतिहास हर काम का हिसाब मांगता है। इतिहास गवाह है कि विश्व भर में जनता के रोष से उपजा आन्दोलन बड़े से बड़े निरंकुश शासक को नेस्तनाबूत करने की ताकत रखता है भारत में असमानता व शोषण के ख़िलाफ़ उठती हुई आन्दोलन की आवाज गली, मोहल्ले, चौक, चोराहे से होती हुई सड़कों तक आ पहुची है और सत्ता पक्ष का उसी रफ़्तार से आन्दोलन को कुचलने का निरंकुश प्रयास जारी है टकराव का ये मंजर आने वाले गृह युद्ध की ओर इशारा करती है।
  
आज सताधारी मनुवादी, रुढ़िवादी सरकार से एक तरफ लोकतान्त्रिक देश के लोकतंत्र को खतरा है, धर्म निरपेक्ष देश के धर्मनिरपेक्षिता को खतरा है तो दूसरी तरफ देश भर के तरक्की पसंद प्रगतिशील लोग अपने जान की परवाह किए बिना रुढ़िवादी ताकतों को रोकने के लिए एक जुट हो रहे हैं आने वाला समय तय करेगा कि रुढ़िवादी ताकतें समाज पे हावी होती है या रुढ़िवादी प्रयासों को विफल बनाने में जुटे संघर्षशील लोग देश की संबैधानिक मूल्यों को अछुन्न रख पाते हैं जो भी हो गृहयुद्ध के नजदीक पहुचता भारतीय समाज भविष्य का भारत तैयार करेगा.

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