ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में साल दर साल फिसलता भारत

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: July 25, 2022
देश और दुनिया में नारी अधिकार की बातें वर्षों से की जा रही हैं लेकिन भारत जैसे देश में आज भी नारीवाद और नारी अधिकार के साथ सम्पूर्ण न्याय नहीं हुआ है. आज भी भारत में महिलाओं को सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक अधिकारों के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अलग-अलग आकड़ों पर आधारित वैश्विक स्तर पर जारी रिपोर्ट में साल दर साल बिगड़ती भारत की तस्वीर सामने आ रही है. हालाँकि भारत विश्व गुरु बनने व दुनिया भर में भारत के विकास मॉडल का डंका बजवाने में व्यस्त रहा है लेकिन ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 विकास की पोल खोलती नजर आती है. इस रिपोर्ट नें दुनिया भर में जेंडर आधारित भेदभाव की मौजूदा स्थिति से जुड़े आंकड़े को पेश किया है.


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वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत दुनिया के अंतिम 11 देशों में शामिल है जहाँ सबसे ज्यादा लैंगिक असमानता मौजूद है. कुल 146 देशों में से भारत का स्थान 135वां है. लैंगिक असमानता के मामले में भारत केवल अफगानिस्तान और पकिस्तान से आगे है बाकी सभी अन्य पड़ोसी देशों की स्थिति भारत से बेहतर है. दक्षिण एशिया के देशों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में भारत का स्थान तीसरा है, अन्य देश जैसे बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार से काफी पीछे हैं. इस रिपोर्ट में बांग्लादेश को सबसे बेहतर 71वें स्थान पर बताया गया है. साल 2021 की इस रिपोर्ट में भारत 140 वें स्थान पर था. वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक, राजनीतिक आर्थिक अवसर में प्राथमिकता, स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनकी स्थति के आधार पर तय होती है. इस रिपोर्ट में लैंगिक असमानता को 0 से 100 स्केल पर स्कोर किया जाता है. इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में व्याप्त लैंगिक असमानता को दूर करने में मानव समाज को 132 साल लग जाएंगे लेकिन दक्षिण एशिया में मौजूद असामनता को ख़त्म करने में लगभग 197 साल लग जाएंगे.

शिक्षा के क्षेत्र में महिलाऐं 
दुनिया भर में शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति बदलती और बेहतर होती नजर आ रही है. 2019 से शिक्षा में लैंगिक अंतर को अलग से देखा जाने लगा है. पिछले 5 सालों से वैश्विक स्तर पर तृतीयक शिक्षा में महिलाओं के नामांकन में बढ़ोतरी हुई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. इंफॉरमेशन एंड कम्यूनिकेश टेक्नोलॉजी (आईसीटी), इंजीनियरिंग व साइंस और तकनीकि शिक्षा में जेंडर गैप आज भी बना हुआ है. कोरोना महामारी के बाद ऑनलाइन शिक्षा में ग्लोबल स्तर पर बढ़ोतरी हुई है. शिक्षा प्राप्त करने के क्षेत्र में भारत 146 देशों में से 107वें पायदान पर है. 

आर्थिक क्षेत्रों में अवसर की असमानता 
आर्थिक अवसर की बात अगर महिलाओं के लिए की जाए तो भारत में ये अवसर बहुत ही सीमित हैं. आर्थिक स्तर पर लैंगिक असमानता में भारत का स्थान 143वां है. इस रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक अवसरों में मौजूद यह खाई बहुत ही व्यापक है. इसे ख़त्म करने में 151 साल का समय लगेगा. 146 देशों में भारत का यह स्थान महिलाओं की आर्थिक रूप से ख़राब स्थिति को बताने के लिए काफी है. रिपोर्ट में मौजूदा सामाजिक संरचना को एक बड़ी बाधा बताया गया है.

राजनीतिक क्षेत्र में व्याप्त लैंगिक असमानता 
दुनिया भर में राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ लैंगिक असमानता सबसे अधिक देखी जाती है. वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार राजनीति के क्षेत्र में मौजूद लैंगिक असामनता को ख़त्म करने के लिए दुनिया को 155 साल का लम्बा समय लगेगा. हालाँकि पिछले कई सालों में सार्वजानिक क्षेत्र के दफ्तरों व राज्यों के कई पदों पर महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. वर्तमान में भारत की प्रथम नागरिक के रूप में महिला ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली लेकिन आज पद की गरिमा और उसके मूल्यों से अधिक राजनीतिक प्रभाव का असर दिखाई देता है. राज्य प्रमुख और मंत्री पद पर भी महिलाओं के नंबर में वृद्धि दर्ज की गयी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत 48वें पायदान पर है. 

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत 
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के स्वास्थ्य के रैंकिग में भारत दुनिया भर के देशों में सबसे ख़राब स्थिति में है. 146 देशों की रैंकिंग में भारत सबसे निचले पायदान पर है. साल 2021 की रिपोर्ट में भारत 156 देशों में से 155वें स्थान पर था. कोरोना महामारी के कारण चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था और सामने आती लापरवाही व सरकारी अव्यवस्था के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र के हालात और भी बदतर हो गए हैं. भारत समेत दक्षिण एशिया के लगभग सभी देश स्वास्थ्य के मामले में विश्व में सबसे ख़राब स्थिति में हैं. 

ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट में महिलाओं के लिए उभरते नए संकट का भी जिक्र किया गया है. इसमें कार्यक्षेत्र में महिलाओं के साथ हो रहे असामनता को एक नया संकट बताया गया है. हालाँकि महिलाओं की संख्या का प्रतिशत कार्यक्षेत्र में सीमित है बावजूद इसके उन्हें असमानता का सामना करना पड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार सालों से चले आ रहे संरचनात्मक बंधन, सामाजिक और तकनीकि परिवर्तन के साथ आर्थिक कारणों को मुख्य वजह बताया गया है. कोरोना महामारी को इसमें एक अतिरिक्त बाधा बताया गया है. इसके अलावे इस रिपोर्ट नें यह भी माना है कि राजनीतिक और जलवायु परिवर्तनों के वजह से महिलाऐं सबसे अधिक प्रभावित होती है. कार्यक्षेत्र में महिलाओं के समान वेतन और कौशल तकनीक तक उनकी पहुंच को सुगम करने की बात पर जोर देने को कहा गया है.

वैश्विक स्तर पर जारी इस रिपोर्ट में भारत की हर क्षेत्र में बदतर होती स्थिति को दिखाया गया है. राजनीतिक, आर्थिक या किसी भी कार्यस्थल में महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. महामारी से गुजरते समय में भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे निचले पायदान पर चले जाना देश के स्वास्थ्य व्यवस्था की भयावह तस्वीर को पेश करती है. मौजूदा सरकार के ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ व महिला सुरक्षा के दावों का सच बयान करती हुई इस रिपोर्ट ने भारत को आइना दिखाया है. हालाँकि सरकार यह दावा करती आई है कि ऐसी रिपोर्ट दुनिया में उनकी छवि ख़राब करने के लिए लायी जाती है लेकिन समाज का सच और महिलाओं के हालात फिलहाल अपरिवर्तनशील नजर आ रहे हैं. 

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