CJP का प्रभाव! CJP की कानूनी टीम ने रंजिना बीबी की मदद की, सभी बाधाओं को पार करके उनकी नागरिकता साबित की

Written by CJP Team | Published on: August 26, 2024


रंजिना बीबी ने धुबरी विदेशी मामलों के न्यायाधिकरण में एक साल लंबी लड़ाई के बाद विजय की घोषणा की, जहां उन्हें हाल ही में भारतीय घोषित किया गया और उनकी नागरिकता की निलंबन को पलटा गया

असम के रामराईकुटी के एक गांव में 34 वर्षीय रंजीना बीबी अपने परिवार-अपने पति, अनवर और तीन बच्चों के साथ रहती हैं। रंजीना बीबी की शादी कम उम्र में हुई थी और बाद में क़ानूनी उम्र तक पहुंचने के बाद उन्होंने असम की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराया था। अनवर एक देसी मुस्लिम व्यक्ति है जो अपने बच्चों के बेहतर भविष्य और शिक्षा देने के लिए पश्चिम बंगाल में एक आरा मिल में काम करता था। लेकिन यह सपना तब चकनाचूर हो गया जब एक रेफरेंस केस का नोटिस उनके पास पहुंचा जिसमें रंजीना पर उस क्षेत्र में एक अवैध अप्रवासी होने का आरोप लगाया गया जहां उनके पूर्वज पीढ़ियों से रह रहे थे।

यह नोटिस एक रेफरेंस केस था। एक डरावना दस्तावेज़ जिसे रंजीना मुश्किल से समझ पाईं। वह रातों में जागती रहीं, उन शब्दों से परेशान रहीं जिन्हें वह मुश्किल से समझ पाती थी। उन्होंने सोचा, "मेरे पिता और दादा इसी ज़मीन पर पैदा हुए और मरे, और उनके नाम 1966 की मतदाता सूची में थे। उन्हें इससे ज़्यादा और क्या सबूत चाहिए?"



रंजीना बीबी कौन थी?

रंजीना का जन्म पश्चिम बंगाल के कूचबिहार ज़िले के एक गांव भलाभुत में हुआ था और बाद में उन्होंने अनवर से शादी कर ली और असम में बस गईं। उनके पिता, इब्राहिम एस.के. और उनके दादा, तसर एस.के. भी पश्चिम बंगाल में पैदा हुए थे। उनके नाम 1966 की मतदाता सूची में मौजूद थे और उनके पास वर्ष 1971 से पहले ज़मीन थी। फिर भी, इनमें से कोई भी बात उस सरकार के लिए मायने नहीं रखती थी जो रंजीना जैसे अल्पसंख्यकों को उनके धर्म और उपनाम के आधार पर निशाना बनाने पर अड़ी थी।

मुस्लिम आबादी की मौजूदगी के कारण असम के धुबरी ज़िले को खुलेआम "मिनी बांग्लादेश" कहकर विवादित बयान देने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में इस राज्य में अब यह साफ हो गया है कि असम में हाशिए पर पड़े लोगों को निशाना बनाना नौकरशाही से कहीं ज़्यादा है। बल्कि, यह रंजिना जैसे समुदायों को हाशिए पर रखने और आतंकित करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है। लेकिन इस व्यवस्थागत अन्याय के सामने उम्मीद की एक किरण थी सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी)। सीजेपी रंजिना जैसे लोगों के लिए जीवन रेखा बन गई है। ये टीम डर और निराशा में डूबे लोगों को क़ानूनी सहायता और परामर्श दे रही है।

रंजीना बीबी की नागरिकता साबित करने की क़ानूनी लड़ाई

सीजेपी ने रंजीना और उनके परिवार से संपर्क किया और उनके सबसे बुरे समय में उनके साथ खड़ी रही। पहले तो रंजीना राज्य और रेफरेंस केस नोटिस के ख़िलाफ़ लड़ने से बहुत डरी हुई थी। उसने अदालती लड़ाइयों में परिवारों को क़र्ज और दुख में घसीटे जाने की बातें सुनी थीं। लेकिन सीजेपी असम टीम के अटूट समर्थन ने उसे फिर से हिम्मत बंधाई।

एडवोकेट इश्कंदर आज़ाद के नेतृत्व में सीजेपी असम की लीगल टीम ने रंजीना के मामले को सावधानीपूर्वक तैयार किया। हालांकि, टीम जानती थी कि सही दस्तावेज़ होना तो बस शुरुआत थी। अहम काम दस्तावेज़ों को सही तरीक़े से पेश करना, विश्वसनीय गवाह ढूंढ़ना और धुबरी विदेशी न्यायाधिकरण को रजीना बीबी की ओर से उठाए गए तर्कों के मेरिट के बारे में समझाना था। यह रंजीना के लिए ख़ास तौर से चुनौतियों से भरा था क्योंकि वह दूसरे राज्य में पैदा हुई थी और उनके पिता का काफ़ी पहले निधन हो चुका था। उनकी बुज़ुर्ग मां जो मुश्किल से चल पाती थीं केवल वही पिछली पीढ़ी को साबित करने की एक लिंक के तौर पर थीं। लेकिन सीजेपी ने हिम्मत नहीं हारी। लीगल टीम ने ज़रूरी गवाहों को सामने लाया, जटिल क़ानूनी चक्रव्यूह को पार किया और सुनिश्चित किया कि रंजिना की बात सुनी जाए।

आखिरकार, टीम के प्रयासों का परिणाम मिला क्योंकि रंजिना का मामला Tribunal में ही जीत लिया गया, और वह अब अपने परिवार से अलग होकर  डिटेंशन सेंटर  में डाले जाने के खतरे से मुक्त हो गईं।  

अब रंजिना सुकून के साथ अपने बच्चों को होमवर्क में मदद करने और अपने घर को संभालने में अपना वक़्त बिताती हैं जिसे वह महीनों से नहीं जानती थीं। आंखों में आंसू लिए सीजेपी टीम से रंजिना कहती हैं “ऐसा लगता है जैसे एक भारी बोझ उतर गया है।” वह आगे कहती हैं,“मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ नहीं है, लेकिन मैं प्रार्थना करती हूं कि ईश्वर सीजेपी को उनके काम के लिए आशीर्वाद दें। उन्हें हमारे जैसे लोगों के लिए लड़ना कभी बंद नहीं करना चाहिए।”



असम राज्य प्रभारी नंदा घोष और धुबरी ज़िला वॉलंटियर हबीबुल बेपारी रंजिना को आदेश की प्रति सौंपी। रंजिना के शब्दों में, उनकी यह जीत सीजेपी की असम टीम के कड़ी मेहनत का नतीजा है।

इसके साथ ही एक और “बीबी” (असम में मुस्लिम विवाहित महिला के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्रचलित उपनाम) अपने परिवार से अलग होने के डरावने सपने से बच गई। एक और पत्नी, मां, बहन और बेटी को राज्य की क्रूरता से बचा लिया गया। ऐसी दुनिया में जहां न्याय अक्सर पहुंच से बाहर लगता है ऐसे में रंजिना की कहानी एक रिमाइंडर है कि साहस, एकजुटता और सही समर्थन के साथ सबसे हाशिए पर पड़ी आवाज़ें भी जीत सकती हैं।

ऑर्डर की कॉपी नीचे पढ़ सकते हैं:

 

बाकी ख़बरें