देश की जेलों की भयावह तस्वीर : अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या का बढ़ना चिंताजनक

Written by Navnish Kumar | Published on: September 8, 2020
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जेलों में कैदियों की स्थिति आदि को लेकर जारी हालिया आंकड़े कोरोना संकट में भयावह स्थिति को दर्शाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जेलों में क्षमता से बहुत ज्यादा तक कैदी रखे जा रहे हैं। पूरे देश मे यह आंकड़ा, क्षमता का 118.5% हैं। 



एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसम्बर 2019 तक भारत की विभिन्न जेलों में 4,78,600 कैदी बंद थे, जबकि जेलों के पास केवल 4,03,700 कैदियों को ही रखे जाने की क्षमता हैं। यानि कैदियों की संख्या जेल की क्षमता का 118.5% थी, जो 2010 के बाद सबसे अधिक है। हालांकि 2018 के मुकाबले यह संख्या करीब एक प्रतिशत ही बढ़ी है। 2018 में यह 117.6% थी तो 2019 में बढ़कर 118.5% हो गया हैं। 5 साल पहले 2015 में यह आंकड़ा 114% था। 

कई राज्यों की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हैं। सबसे अधिक भीड़ देश की राजधानी दिल्ली की जेलों में हैं। दिल्ली में क्षमता के 174.9% तक ज्यादा कैदी रखे गए हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की जेलों में क्रमश: 167.9% और 159% कैदी हैं। मेघालय 157.4%, मध्य प्रदेश 155.3%, सिक्किम 153.8%, महाराष्ट्र 152.7%, छत्तीसगढ़ 150.1% और जम्मू-कश्मीर में क्षमता के 126.8% कैदी हैं। कोरोना काल में यह आंकड़े काफी चिंताजनक हैं।


लेकिन इससे भी बड़ी व चौंकाने वाली खबर यह हैं कि जेलों में बंद भीड़ में 70% कैदी अंडर ट्रायल (विचाराधीन) कैदी हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 69.05 फीसदी कैदी अंडर ट्रायल हैं, 30.11 फीसदी दोषी हैं जबकि 0.67% बंदी हैं। 

हालांकि 2018 के मुकाबले देश में कैदियों की संख्या 3.32 फीसदी बढ़ी है। सबसे ज्यादा उप्र में एक लाख कैदी हैं। मप्र में 44,603 और बिहार में 39,814 कैदी हैं। 2019 में 18 लाख लोगों को कैद किया गया, जिसमें से 3 लाख लोगों को अभी भी जमानत नहीं मिल सकी है। 

2019 में जेल में कुल 1,775 कैदियों की मौत हुई है। इनमें से 1,544 की प्राकृतिक, 165 की अप्राकृतिक और 66 की मौत के कारण पता नहीं चल पाया। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों की प्राकृतिक मौत हुई है, उनमें 1,466 कैदी बीमार थे, 78 की मौत ज्यादा उम्र की वजह से हुई है। अप्राकृतिक मौत में सबसे ज्यादा मामला सुसाइड का है। 2019 में 116 कैदियों ने सुसाइड किया है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कैदियों की मौत हुई है। 

दूसरी ओर, 2019 में कुल 121 कैदियों को मौत की सजा दी गई। इनमें यूपी में 27, मध्य प्रदेश में 17 और कर्नाटक में 14 कैदी शामिल हैं। जबकि, 77 हजार 158 को आजीवन कारावास की सजा और 20 हजार 763 को 10 साल से ज्यादा की सजा दी गई। यही नहीं, भारत में 5,608 विदेशी कैदी भी जेल में हैं। इनमें 4,776 पुरुष और 832 महिला हैं।  2,171 दोषी व 2,979 अंडर ट्रायल हैं जबकि 40 बंदी हैं। 

एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, जेलों में दलित, मुस्लिम और आदिवासी कैदियों की संख्या, आबादी में उनके अनुपात से कहीं ज्यादा है। मसलन, जनगणना के अनुसार देश में दलितों की आबादी 16 फीसदी है, जबकि एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो 21.7% दोषी दलित जेलों में बंद हैं। 

इसी तरह आदिवासियों में दोषी कैदी 13.6% और 10.5% कैदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि इनकी आबादी 8.6% है। ओबीसी 34.9% जेलों में कैद हैं, जबकि इनकी आबादी 40% के आसपास है। जबकि, बाकी दूसरी जातियों का आंकड़ा 29.6% है। मुस्लिम वर्ग की बात करें तो 16.6 फीसदी दोषी कैदी जेलों में बंद हैं और 18.7 फीसदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि, देश में मुस्लिमों की आबादी 14.2% है। वहीं हिंदुओं की बात करें तो करीब 74 फीसदी दोषी जेलों में कैद हैं। 

देश में सबसे ज्यादा दलित कैदी यूपी में हैं। इसके बाद मप्र और पंजाब का नंबर हैं। सबसे ज्यादा आदिवासी कैदी मप्र में हैं जबकि सबसे ज्यादा मुसलमान यूपी की जेलों में बंद हैं।

जानकारों के अनुसार, देश में जितने कैदी दोषी साबित होने के बाद सज़ा भुगत रहे हैं उसके 2.29 गुणा कैदी अंडरट्रायल हैं यानी विचाराधीन हैं। विचाराधीन कैदियों की संख्या का बढ़कर, दोषी यानि सजायाफ्ता कैदियों से दो गुणे से ज्यादा होना बताता है कि अदालतों में अभियुक्त को दोषी सिद्ध करने का काम सुस्त है।

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