हत्या के पहले अपने आख़िरी संपादकीय में संघ की आलोचना की थी गौरी लंकेश ने

Written by Anuj Shrivastava | Published on: September 5, 2018

गौरी लंकेश की हत्या को आज एक साल हो गया है. गिरफ़्तार आरोपी श्री राम सेना और सनातन संस्था जैसे कट्टरपंथी संगठनों का करीबी है. 5 सितम्बर 2017 की शाम गोली मार कर गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई थी.

Gauri lankesh

 

बंगलुरु से निकलने वाली साप्ताहिक पत्रिका लंकेश में बतौर संपादक कार्य करने वाली गौरी लंकेश को कन्नड़ की क्रांतिकारी पत्रकार कहा जाता था. 5 सितम्बर 2017 की शाम बंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर स्थित उनके घर पर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी. इस तरह वे नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी जैसे दक्षिणपंथ के आलोचक प्रगतिशील भारतीय पत्रकारों और लेखकों के वर्ग में शामिल हो गईं जिनकी 2013 के बाद हत्या कर दी गई.
 

घटनाक्रम

कट्टरपंथी हिन्दुत्व के आलोचक के तौर पर लंकेश अपने लिए बहुतेरे दुश्मन बना लिए थे. कट्टरपंथी हिन्दू संगठन जिन्हें दंगाई कहना अब ज़रा भी ग़लत नहीं लगता, गौरी लंकेश उनकी तीखी आलोचक थीं. धर्म के नाम समाज में जो ज़हर घोला जा रहा है उस पर लंकेश मुखर होकर बात रखती थीं.

5 सितंबर 2017 की शाम काम ख़त्म कर गौरी लंकेश ऑफिस से घर के लिए निकलीं थीं. राजराजेश्वरी नगर के अपने घर में वो अकेले ही रहा करती थीं. घर के सामने गाड़ी खाड़ी कर वो दरवाज़ा खोलने को बढ़ीं तभी एक मोटरसाइकल आई, उसपर सवार नकाबपोश ने लंकेश पर गोलियां दागनी शुरू कर दीं. उन्हें सीने पर दो और सर पर एक गोली मारी गई थी. 55 साल की साहसी पत्रकार गौरी लंकेश की मौके पर ही म्रृत्यु हो गई.

तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तुरंत उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए और एक विशेष जांच दल का गठन किया. इस जाँच दल की कमान अतिरिक्त पुलिस आयुक्त बीके सिंह और उपायुक्त एमएम अनुचेत को दी गई. कुछ छुटपुट जानकारियों के अलावा कुछ ठोस पता नहीं लग प् रहा था. लगभग एक लाख फ़ोन कॉल्स की जाँच की गई और हज़ारों संदिग्धों से पूछताछ की गई.

 

पहली गिरफ़्तारी

गौरी लंकेश हत्या मामले में एसआईटी ने लम्बी पूछताछ के बाद 18 फ़रवरी को ग़ैरकानूनी तरीके से हथियार और विस्फोटक सामग्री रखने के आरोप में केटी नवीन कुमार नाम के व्यक्ति को हिरासत में लिया. केटी नवीन पर गौरी लंकेश के हत्यारों को हथियार मुहैय्या करने और उन्हें ट्रेनिंग देने का शक है. नवीन कुमार कथित तौर पर आर्म्स डीलर है. इस मामले में दाख़िल चार्टशीट में नवीन कुमार का 12 पेज का क़बूलनामा भी शामिल है.
 

एसआईटी ने 650 पेज का आरोप पत्र दायर किया था जिसमें नवीन कुमार आरोपी है. एसआईटी ने नवीन कुमार को आईपीसी की धाराओं 302 (हत्या), 120 बी (आपराधिक साजिश), 118 (साजिश छिपाना) और 114 (अपराध के लिए उकसाना) और शस्त्र अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोपी बनाया है.


कड़ियां जुड़ती गईं और 25 वर्ष का परशुराम वाघमारे पुलिस के हाथ लगा. उत्तरी कर्नाटक के बीजापुर ज़िले के सिंधगी कस्बे में ये एक छोटी सी दुकान चलाता है. श्री राम सेना और सनातन संस्था जैसे कट्टरपंथी संगठनों से इसके सम्बन्ध होने की बात कही जा रही है. श्रीराम सेना के संस्थापक प्रमोद मुत्लिक ने गौरी लंकेश के हत्यारों का अपने संगठन से सम्बन्ध होने से इनकार किया और कहा कि वाघमारे आरएसएस का का कार्यकर्ता है. अब तक इस मामले में 9 आरोपियों की गिरफ़्तारी हो चुकी है.
 

एसआईटी के मुताबिक, परशुराम वाघमारे ने गौरी लंकेश को गोली मारी थी. नवीन कुमार ने इस हमले के लिए हथियार उपलब्ध कराए थे और अमोल काले नाम के व्यक्ति ने इस पूरी प्लान की रूपरेखा तैयार की थी. मोहन नायक नामक व्यक्ति पर ये आरोप है कि उसने बेंगलुरु के अपने घर में इन सभी आरोपियों को छुपा कर रखा था

 
गौरी लंकेश के आख़िरी संपादकीय से...
गौरी लंकेश सत्ता विरोधी स्वर का प्रतिनिधित्व करती थीं. वे सरकार से त्रस्त लोगों की पीड़ा को अपनी पत्रिका में स्वर देती थीं. उनकी विचारधारा उनका लेखन जिससे वो सत्ता पर सवाल उठाती थीं, धर्म के नाम पर हो रहा पाखण्ड उजागर करती थीं, वाही उनकी ह्त्या का कारण बना. हर अंक में गौरी 'कंडा हागे' नाम से कॉलम लिखती थीं , जिसका मतलब होता है 'जैसा मैंने देखा'.
हत्या होने से पहले लिखे गए अपने आख़िरी संपादकीय में गौरी ने कट्टर हिंदुत्ववादी संगठनों एवं संघ की झूठे समाचार(फ़ेक न्यूज़) बनाने तथा लोगों में फैलाने के लिए आलोचना की थी.
 
"इस हफ्ते के अंक में मेरे दोस्त डॉ वासु ने गोएबल्स की तरह इंडिया में फेक न्यूज़ बनाने की फैक्ट्री के बारे में लिखा है. झूठ के ऐसे कारखाने ज़्यादातर मोदी भक्त ही चलाते हैं. झूठ के कारखानों से जो नुकसान हो रहा है मैं उसके बारे में अपने संपादकीय में बताने का प्रयास करूंगी. अभी परसों ही गणेश चतुर्थी थी. उस दिन सोशल मीडिया में एक झूठ फैलाया गया. फैलाने वाले संघ के लोग थे. ये झूठ क्या है? झूठ ये है कि कर्नाटक सरकार जहां बोलेगी वहीं गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करनी है, उसके पहले दस लाख जमा करना होगा, मूर्ति की ऊंचाई कितनी होगी, इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी, दूसरे धर्म के लोग जहां रहते हैं उन रास्तों से विसर्जन के लिए नहीं ले जा सकते हैं. पटाखे वगैरह नहीं छोड़ सकते हैं. संघ के लोगों ने इस झूठ को खूब फैलाया. ये झूठ इतना ज़ोर से फैल गया कि अंत में कर्नाटक के पुलिस प्रमुख आर के दत्ता को प्रेस बुलानी पड़ी और सफाई देनी पड़ी कि सरकार ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है. ये सब झूठ है. इस झूठ का स्रोत जब हमने पता करने की कोशिश की तो वो जाकर पहुंचा पोस्टकार्ड नाम की वेबसाइट पर. यह वेबसाइट पक्के हिन्दुत्ववादियों की है. इसका काम हर दिन फ़ेक न्यूज़ बनाकर सोशल मीडिया में फैलाना है."
 
गौरी ने लंकेश पत्रिका के जरिए 'कम्युनल हार्मनी फोरम' को काफ़ी बढ़ावा दिया. लंकेश पत्रिका को उनके पिता ने 40 साल पहले शुरू किया था और इन दिनों वो इसका संचालन कर रही थीं.

 
हत्या के पहले गौरी के दो आख़िरी त्वीट्स

हत्या होने के कुछ समय पहले किये अपने ट्वीट में गौरी लंकेश ने फ़ेक न्यूज़ के बारे में बात करते हुए लिखा था कि ''हम लोग कुछ फर्जी पोस्ट शेयर करने की ग़लती करते हैं. आइए एक-दूसरे को चेताएं और एक-दूसरे को एक्सपोज़ करने की कोशिश न करें.''

अपने आख़िरी ट्वीट में गौरी ने लिखा, ''मुझे ऐसा क्यों लगता है कि हममें से कुछ लोग अपने आपसे ही लड़ाई लड़ रहे हैं. हम अपने सबसे बड़े दुश्मन को जानते हैं. क्या हम सब प्लीज़ इस पर ध्यान लगा सकते हैं.''

लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रया आई. जावेद अख्तर ने अपने ट्वीट में लिखा, ''दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी और अब गौरी लंकेश. अगर एक ही तरह के लोग मारे जा रहे हैं तो किस तरह के लोग हत्यारे हैं?

 
मारे जा रहे हैं धर्म और अंधविश्वास के खिआफ़ बोलने वाले
कर्नाटक के धारवाड़ में स्थित कलबुर्गी के घर पर दो नौजवान मोटरसाइकिल से आए. एक ने उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया. उसने ख़ुद को कलबुर्गी का छात्र बताया. दोनों के बीच थोड़ी देर तक बात हुई. उसके बाद कलबुर्गी को गोली मार दी गई. और फिर हत्यारा मोटरसाइकिल पर इंतज़ार कर रहे अपने दोस्त के साथ वहाँ से निकल भागा.

डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर ने 1989 में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना की. चमत्कार, ज्योतिष, रूढ़ि-परंपरा, अंधविश्वास के ख़िलाफ़ निरन्तर संघर्ष करते रहे. 20 अगस्त 2013 अज्ञात लोगों द्वारा पुणे में सुबह की सैर के दौरान गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.
गोविन्द पन्सारे को 16 फरवरी  2015 को कोल्हापुर में गोली मारी गई थी और उसी साल 20 फरवरी को उनकी मौत हो गई.

पेरूमल मुरुगन ने ख़ुद ही अपनी मौत की घोषणा कर दी थी. उनके तमिल उपन्यास ‘मधोरुबगन’ का कट्टरपंथियों ने विरोध किया और उनके ख़िलाफ़ कोर्ट में मुकद्दमा दायर कर दिया. उन्हें मानसिक तौर पर इस हद तक तक परेशान किया गया जिससे हताश होकर उन्होंने अपने अन्दर के ‘लेखक की मौत’ की घोषणा कर दी थी. अपने फेसबुक पर उन्होंने पोस्ट डाली और लिखा कि ‘लेखक पेरुमल मुरुगन मर चुका है.’हालांकि 2016 में हाईकोर्ट ने मुरुगन के पक्ष में फ़ैसला दिया, कहा कि वो डरे नहीं और फिर से लिखना शुरू करें. इसके बाद उन्होंने अपना कविता संग्रह ‘कायर के गीत’ नाम से प्रकाशित किया.

संघी सरकार में बद्तर हो गई है परिस्थिति

यूं तो धर्म के नाम पर राजनीति कोई नई बात नहीं है पर साल 2014 में आई नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने सारी हदें पार कर दी हैं. इस सरकार का चरित्र किसी लोकतान्त्रिक सरकार का चरित्र कतई नहीं लगता. धर्म की आड़ में हिंसा और हर तरह के कुकर्म करने वालों को ये सरकार बढ़ावा दे रही है. भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाएं बेतहाशा बढ़ गई हैं. लोक विरोधी नीतियां जबरन और लगातार थोपी जा रही हैं. हर वो आवाज़ जो ग़रीबों, ज़रूरतमंदो के अधिकारों की बात करती है, दबा जी जाती है. हर वो आवाज़ जो सरकार की ग़लत नीतियों को उजागर करती है, शान्त कर दी जाती है. हाल ही में हुई सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी भी ऐसी ही घटना है. सिर्फ़ सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं इस सरकार को जो कोई भी राह का रोड़ा लगता है ये उसे रास्ते से हटा देती है. अमित शाह के ख़िलाफ़ चल रहे मामले में सुनवाई करने वाले जज लोया की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. इस सरकार के कार्यकाल में लगातार जातीय अलगाव बढ़ रहा है. देश में दलित और सवर्ण की के नाम पर फूट बढ़ती ही जा रही है.

इस समय की शायद ये ही सबसे बड़ी ज़रुरत है कि हमें देश की तमाम गौरी लंकेशों के साथ खड़ा होना होगा. उन्हें बचाना भी होगा और उन्हें मज़बूत भी करना होगा. हर हिंसा की हमें भर्त्सना करनी होगी और उसके पीछे के उद्देश्य के प्रति आमजन को सतर्क करना होगा.

भारत का लोकतंत्र सहमती और असहमति दोनों के बराबर सम्मान से ही बना है और इसी सम्मान के बूते ही ज़िन्दा बच पाएगा. असहमति और दुश्मनी का अंतर हमें समझना होगा, न सिर्फ़ समझना होगा बल्कि इतनी अच्छी तरह से समझना होगा कि हर तानाशाह प्रवृत्ति के सनकी को ये बात भलीभांति मालूम हो जाए कि कितने भी और कैसे भी हथकण्डे आजमा ले पर वो भारत के लोकतंत्र के सिर पर चढ़कर नहीं बैठ पाएगा.

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