"झारखंड में डेमोग्राफी बदलाव के भ्रामक दावों से भाजपा, आदिवासियों के बीच अपनी दरकती राजनीतिक जमीन बचा पाएगी? या वह, समाज बांटने के अपने फेल हो चुके नफरती एजेंडे वाली राजनीति को लेकर एक बार फिर जनता के बीच बेनकाब हो चली है? आईये, जानते हैं क्या है भाजपा नेताओं के दावे और क्या कहते हैं आंकड़े और सच्चाई?"
क्या हैं भाजपा नेताओं के दावे?
पिछले कुछ दिनों से भाजपा और उसके प्रमुख नेता लगातार बयान दे रहे हैं कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठी आ रहे हैं, आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है, आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, ज़मीन हथिया रहे हैं, लव जिहाद, लैंड जिहाद कर रहे हैं आदि। बोला जा रहा है कि झारखंड बनने के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 16% कम हो गई है और मुसलमानों की 13% बढ़ी है। झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तो संसद में बयान दिया है कि 2000 में संथाल परगना में आदिवासी 36% थे और अब 26% हैं जिसके जिम्मेवार बांग्लदेशी घुसपैठिये (मुसलमान) हैं। यही नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक जनसभा में कहा कि झारखंड में आए घुसपैठिए नौकरियां और जमीन हड़पने के लिए आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं।
ये सभी दावे तथ्य से परे, झूठ हैं और समाज को बांटने वाली भाजपाई राजनीति के नफरती एजेंडे का एक हिस्सा हैं, जिसे लेकर वह एक फिर से बेनकाब हो चली है। दुःख की बात यह है कि अधिकांश मीडिया भी बिना तथ्यों को जांचे ये दावे फैला रही है। जबकि तथ्य और सच्चाई इस प्रकार हैं;
क्या झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है?
1951 की जनगणना के अनुसार झारखंड क्षेत्र में 36% आदिवासी थे। वहीं, 1991 में राज्य में 27.67% आदिवासी थे और 12.18% मुसलमान। आखिरी जनगणना (2011) के अनुसार, राज्य में 26.21% आदिवासी थे और 14.53% मुसलमान। वहीं, संथाल परगना में आदिवासियों का अनुपात 2001 में 29.91% से 2011 में 28.11% हुआ है। यानी भाजपा नेताओं का 16% और 10% का दावा सरासर झूठ हैं।
दरअसल, भाजपा नेता और झारखंड राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी ने कहा था, ‘‘झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इसलिए हम बांग्लादेशी घुसपैठ, जनसांख्यिकी परिवर्तन और भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दों पर सरकार से जवाब चाहते हैं।’’
विधानसभा के मानसून सत्र में बाउरी ने आरोप लगाया कि झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय जनसंख्या घट रही है, जबकि बांग्लादेशी घुसपैठियों की आबादी में वृद्धि हुई है, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर चुप है। उन्होंने कहा, ‘‘1951 में संथाल परगना में जनजातीय आबादी 44% थी, जो 2011 की जनगणना में घटकर 28% रह गई। दूसरी ओर उस समय 9% मुस्लिम आबादी आज बढ़कर 22% हो गई। हम सरकार से जवाब मांगेंगे कि उसने संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय आबादी की सुरक्षा के लिए क्या किया।’’
वहीं, झारखंड के गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में दिए अपने बयान में कहा, कि विपक्ष हमेशा यही बोलता रहता है संविधान खतरे में है पर सच तो ये है संविधान नहीं, इनकी राजनीति खतरे में है। उन्होंने कहा झारखंड बिहार से अलग होकर जब अलग राज्य बना तब संथाल परगना क्षेत्र में 2000 में 36% आदिवासी जनसंख्या थी जो अब घटकर 26% रह गई है। उन्होंने सदन में सबसे पूछा ये 10% आबादी कहा खो गई? सदन में इसको लेकर कोई बात नहीं करता।
खास यह है कि आदिवासियों के जनसांख्यिक अनुपात में व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई। सवाल है क्यों हुई? इसके तीन प्रमुख कारण रहे हैं– मसलन...
(1) इस दौरान आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी झारखंड में आये, खासकर, शहरों एवं माइनिंग व कंपनियों के क्षेत्रों में। उदहारण के लिए, रांची में आदिवासियों का अनुपात 1961 में 53.2% से घटकर के 1991 में 43.6% हो गया था। वहीं, झारखंड क्षेत्र में अन्य राज्यों से 1961 में 10.73 लाख प्रवासी, 1971 में 14.29 लाख प्रवासी और 1981 में 16.28 लाख प्रवासी आये थे जिनमें अधिकांश उत्तरी बिहार व आस-पास के अन्य राज्यों के थे। हालांकि इनमें से अधिकांश काम के बाद वापिस चले गए थे लेकिन अनेक बस भी गए थे। नौकरियों में स्थानीय को प्राथमिकता न मिलने के कारण, पांचवी अनुसूची प्रावधान व आदिवासी-विशेष कानून सही से लागू न होने के कारण अन्य राज्यों के गैर-आदिवासी यहां बसते चले गए।
(2) आदिवासी दशकों से विस्थापन, और रोज़गार के अभाव में लाखों की संख्या में पलायन करने, को मजबूर हो रहे हैं जिसका कि सीधा असर उनकी जनसंख्या वृद्धि दर पर पड़ता है। केंद्र सरकार की 2017 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच राज्य के 15-59 वर्ष उम्र के लगभग 50 लाख लोगों ने पलायन किया था।
(3) दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अन्य गैर-आदिवासी समूहों से कम है। 1951-91 के बीच आदिवासियों की जनसंख्या की वार्षिक घातीय वृद्धि दर (annual exponential growth rate) 1.42 थी, जबकि पूरे झारखंड का 2.03 था। अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों का मृत्यु दर अन्य समुदायों से अधिक है।
क्या झारखंड में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं?
भाजपा नेता अपने मन मुताबिक, देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या, कभी 12 लाख बोलते हैं, तो कभी 20 लाख। 'घुसपैठिये' कहने से उनका निशाना मुसलमानों पर रहता है। लेकिन, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार लगातार संसद में बयान देती आ रही है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या संबंधित कोई आंकड़े नहीं हैं। अगर संथाल परगना में केवल मुसलमानों की आबादी पर गौर करें, तो 2001 से 2011 के बीच कुल आबादी के अनुपात में हुई 2.15% की वृद्धि दर्शाती है कि बांग्लादेश से आकर बसने वाले मुसलमानों की संख्या दावों की तुलना में बहुत ही कम होगी (अगर हुई भी तो)।
क्या झारखंड में लव जिहाद हो रहा है?
एक तरफ़ भाजपा नेता लव जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग कर, सांप्रदायिकता फैला रहे हैं, दूसरी ओर, मोदी सरकार ने संसद में जवाब दिया है कि कानून में लव जिहाद नाम का कुछ नहीं है एवं केंद्रीय जांच एजेंसियों ने ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया है। यहां गौर करने की बात यह है कि किसी भी धर्म या समुदाय के व्यक्ति को किसी भी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से शादी करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार है। हालांकि 2013 के एक शोध के अनुसार, झारखंड में केवल 5.7% शादियां ही अंतर-धार्मिक (हर धर्म के परिप्रेक्ष में) होती हैं।
क्या आदिवासियों की ज़मीन की लूट हो रही है?
दशकों से CNT व SPT का उल्लंघन कर गैर-आदिवासी, आदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे हैं। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के शहरी इलाके इसका स्पष्ट प्रमाण है। जबकि 'लैंड जिहाद' जैसे सांप्रदायिक शब्दों का प्रयोग कर भाजपा सच्चाई से भटकाने की कोशिश कर रही है।
क्या है भाजपा की राजनीति?
एक तरफ़ भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर मोदी व रघुवर दास सरकार ने अडानी पावर प्लांट परियोजना के लिए आदिवासियों की ज़मीन का जबरन अधिग्रहण किया था। यही नहीं, झारखंड को घाटे में रखकर अडानी को फायदा पहुँचाने के लिए, राज्य की ऊर्जा नीति को बदला गया और संथाल परगना को अँधेरे में रखकर बांग्लादेश को बिजली भेजी गई है।
भाजपा, आदिवासियों की जनसंख्या अनुपात में कमी के, मूल कारणों पर, बात न कर, गलत आंकड़े पेश करके केवल धार्मिक सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण करना चाहती है। एक ओर भाजपा आदिवासियों की जनसंख्या के लिए चिंता जता रही है, वहीं दूसरी ओर, झारखंड सरकार द्वारा पारित सरना कोड, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व खतियान आधारित स्थानीयता की नीति पर न केवल चुप्पी साधे हुए है बल्कि इन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती रही है। मोदी सरकार जाति जनगणना से भी भाग रही है जिससे समुदायों व विभिन्न जातियों की वर्तमान स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
भाजपा की चुनावी रणनीति?
झारखंड में तीन माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। जिसमें भाजपा की नजर, राज्य की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों पर है और इसके लिए वह पार्टी के बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है।
खास है कि झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटें ही भाजपा के पास हैं। जबकि हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा को 14 में से 8 सीटों पर जीत मिली है लेकिन अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 5 लोकसभा सीटों में से वो, किसी पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जेल से बाहर आने के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं और आदिवासियों के बीच जा कर, पार्टी के लिए समर्थन जुटा रहे हैं।
झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं। इसके अलावा एक मनोनीत विधायक भी है।
गठबंधन सीटें
एनडीए 26
इंडिया 47
अन्य 09
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीजेपी में एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा कि मुस्लिम और आदिवासी हमें बहुत ज्यादा वोट नहीं देते जबकि जमीनों का अवैध ट्रांसफर और शादियों के मुद्दे से हमें मदद मिल सकती है।
बीजेपी नेता के मुताबिक, विधानसभा चुनाव में पार्टी ऐसी शादियों को और घुसपैठियों व आदिवासियों के बीच जमीन के ट्रांसफर को रोकने के लिए कानून बनाने को मुद्दा बना सकती है।
यही कारण है कि भाजपा, चुनाव की एक रणनीति के तौर पर संथाल परगना के इलाके में ‘घुसपैठ’ और ‘डेमोग्राफिक चेंज’ को मुद्दा बना रही है।
झारखंड आंदोलन के मूल मुद्दे?
यही नहीं, गौर करें तो... आदिवासियों के जिन मुद्दों को इसमें रेखांकित किया गया है, वे झारखंड आंदोलन के मूल मुद्दे थे। अगर भाजपा इन मुद्दों को स्वीकार नहीं कर रही है, तो वो आंदोलन पर भी सवाल कर रही है। 'लोकतंत्र बचाओ अभियान' राज्य सरकार से मांग करता है कि गलत आंकड़ों को पेश कर सांप्रदायिकता फैलाने वालों पर तुरंत कार्यवाई करें, एवं उक्त मूल मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा शुरू करें।
लोकतंत्र बचाओ अभियान के ओर से... अफ़जल अनीस, अजय एक्का, अंबिका यादव, अमृता बोदरा, अंबिता किस्कू, अलोका कुजूर, अरविंद अंजुम, बासिंग हस्सा, भरत भूषण चौधरी, भाषण मानमी, बिनसाय मुंडा, चार्ल्स मुर्मू, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, एमिलिया हांसदा, हरि कुमार भगत, ज्याँ द्रेज, ज्योति कुजूर, कुमार चन्द्र मार्डी, किरण, लीना, लालमोहन सिंह खेरवार, मानसिंग मुंडा, मेरी निशा हंसदा, मंथन, मुन्नी देवी, नंदिता भट्टाचार्य, प्रवीर पीटर, रिया तूलिका पिंगुआ, पकू टुडु, रामचंद्र मांझी, राजा भारती, रमेश जेराई, रेशमी देवी, रोज़ खाखा, रोज मधु तिर्की, शशि कुमार, संदीप प्रधान, सिराज दत्ता, सुशील मरांडी, सेबेस्टियन मरांडी, संतोष पहाड़िया, टॉम कावला, विनोद कुमार।
...संबंधित आंकड़ों का ज़िला-वार विवरण झारखंड जनाधिकार महासभा के इस ट्वीट में देख सकते हैं:
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क्या हैं भाजपा नेताओं के दावे?
पिछले कुछ दिनों से भाजपा और उसके प्रमुख नेता लगातार बयान दे रहे हैं कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठी आ रहे हैं, आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है, आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, ज़मीन हथिया रहे हैं, लव जिहाद, लैंड जिहाद कर रहे हैं आदि। बोला जा रहा है कि झारखंड बनने के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 16% कम हो गई है और मुसलमानों की 13% बढ़ी है। झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तो संसद में बयान दिया है कि 2000 में संथाल परगना में आदिवासी 36% थे और अब 26% हैं जिसके जिम्मेवार बांग्लदेशी घुसपैठिये (मुसलमान) हैं। यही नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक जनसभा में कहा कि झारखंड में आए घुसपैठिए नौकरियां और जमीन हड़पने के लिए आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं।
ये सभी दावे तथ्य से परे, झूठ हैं और समाज को बांटने वाली भाजपाई राजनीति के नफरती एजेंडे का एक हिस्सा हैं, जिसे लेकर वह एक फिर से बेनकाब हो चली है। दुःख की बात यह है कि अधिकांश मीडिया भी बिना तथ्यों को जांचे ये दावे फैला रही है। जबकि तथ्य और सच्चाई इस प्रकार हैं;
क्या झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है?
1951 की जनगणना के अनुसार झारखंड क्षेत्र में 36% आदिवासी थे। वहीं, 1991 में राज्य में 27.67% आदिवासी थे और 12.18% मुसलमान। आखिरी जनगणना (2011) के अनुसार, राज्य में 26.21% आदिवासी थे और 14.53% मुसलमान। वहीं, संथाल परगना में आदिवासियों का अनुपात 2001 में 29.91% से 2011 में 28.11% हुआ है। यानी भाजपा नेताओं का 16% और 10% का दावा सरासर झूठ हैं।
दरअसल, भाजपा नेता और झारखंड राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी ने कहा था, ‘‘झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इसलिए हम बांग्लादेशी घुसपैठ, जनसांख्यिकी परिवर्तन और भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दों पर सरकार से जवाब चाहते हैं।’’
विधानसभा के मानसून सत्र में बाउरी ने आरोप लगाया कि झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय जनसंख्या घट रही है, जबकि बांग्लादेशी घुसपैठियों की आबादी में वृद्धि हुई है, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर चुप है। उन्होंने कहा, ‘‘1951 में संथाल परगना में जनजातीय आबादी 44% थी, जो 2011 की जनगणना में घटकर 28% रह गई। दूसरी ओर उस समय 9% मुस्लिम आबादी आज बढ़कर 22% हो गई। हम सरकार से जवाब मांगेंगे कि उसने संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय आबादी की सुरक्षा के लिए क्या किया।’’
वहीं, झारखंड के गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में दिए अपने बयान में कहा, कि विपक्ष हमेशा यही बोलता रहता है संविधान खतरे में है पर सच तो ये है संविधान नहीं, इनकी राजनीति खतरे में है। उन्होंने कहा झारखंड बिहार से अलग होकर जब अलग राज्य बना तब संथाल परगना क्षेत्र में 2000 में 36% आदिवासी जनसंख्या थी जो अब घटकर 26% रह गई है। उन्होंने सदन में सबसे पूछा ये 10% आबादी कहा खो गई? सदन में इसको लेकर कोई बात नहीं करता।
खास यह है कि आदिवासियों के जनसांख्यिक अनुपात में व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई। सवाल है क्यों हुई? इसके तीन प्रमुख कारण रहे हैं– मसलन...
(1) इस दौरान आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी झारखंड में आये, खासकर, शहरों एवं माइनिंग व कंपनियों के क्षेत्रों में। उदहारण के लिए, रांची में आदिवासियों का अनुपात 1961 में 53.2% से घटकर के 1991 में 43.6% हो गया था। वहीं, झारखंड क्षेत्र में अन्य राज्यों से 1961 में 10.73 लाख प्रवासी, 1971 में 14.29 लाख प्रवासी और 1981 में 16.28 लाख प्रवासी आये थे जिनमें अधिकांश उत्तरी बिहार व आस-पास के अन्य राज्यों के थे। हालांकि इनमें से अधिकांश काम के बाद वापिस चले गए थे लेकिन अनेक बस भी गए थे। नौकरियों में स्थानीय को प्राथमिकता न मिलने के कारण, पांचवी अनुसूची प्रावधान व आदिवासी-विशेष कानून सही से लागू न होने के कारण अन्य राज्यों के गैर-आदिवासी यहां बसते चले गए।
(2) आदिवासी दशकों से विस्थापन, और रोज़गार के अभाव में लाखों की संख्या में पलायन करने, को मजबूर हो रहे हैं जिसका कि सीधा असर उनकी जनसंख्या वृद्धि दर पर पड़ता है। केंद्र सरकार की 2017 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच राज्य के 15-59 वर्ष उम्र के लगभग 50 लाख लोगों ने पलायन किया था।
(3) दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अन्य गैर-आदिवासी समूहों से कम है। 1951-91 के बीच आदिवासियों की जनसंख्या की वार्षिक घातीय वृद्धि दर (annual exponential growth rate) 1.42 थी, जबकि पूरे झारखंड का 2.03 था। अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों का मृत्यु दर अन्य समुदायों से अधिक है।
क्या झारखंड में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं?
भाजपा नेता अपने मन मुताबिक, देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या, कभी 12 लाख बोलते हैं, तो कभी 20 लाख। 'घुसपैठिये' कहने से उनका निशाना मुसलमानों पर रहता है। लेकिन, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार लगातार संसद में बयान देती आ रही है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या संबंधित कोई आंकड़े नहीं हैं। अगर संथाल परगना में केवल मुसलमानों की आबादी पर गौर करें, तो 2001 से 2011 के बीच कुल आबादी के अनुपात में हुई 2.15% की वृद्धि दर्शाती है कि बांग्लादेश से आकर बसने वाले मुसलमानों की संख्या दावों की तुलना में बहुत ही कम होगी (अगर हुई भी तो)।
क्या झारखंड में लव जिहाद हो रहा है?
एक तरफ़ भाजपा नेता लव जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग कर, सांप्रदायिकता फैला रहे हैं, दूसरी ओर, मोदी सरकार ने संसद में जवाब दिया है कि कानून में लव जिहाद नाम का कुछ नहीं है एवं केंद्रीय जांच एजेंसियों ने ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया है। यहां गौर करने की बात यह है कि किसी भी धर्म या समुदाय के व्यक्ति को किसी भी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से शादी करने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार है। हालांकि 2013 के एक शोध के अनुसार, झारखंड में केवल 5.7% शादियां ही अंतर-धार्मिक (हर धर्म के परिप्रेक्ष में) होती हैं।
क्या आदिवासियों की ज़मीन की लूट हो रही है?
दशकों से CNT व SPT का उल्लंघन कर गैर-आदिवासी, आदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे हैं। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के शहरी इलाके इसका स्पष्ट प्रमाण है। जबकि 'लैंड जिहाद' जैसे सांप्रदायिक शब्दों का प्रयोग कर भाजपा सच्चाई से भटकाने की कोशिश कर रही है।
क्या है भाजपा की राजनीति?
एक तरफ़ भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर मोदी व रघुवर दास सरकार ने अडानी पावर प्लांट परियोजना के लिए आदिवासियों की ज़मीन का जबरन अधिग्रहण किया था। यही नहीं, झारखंड को घाटे में रखकर अडानी को फायदा पहुँचाने के लिए, राज्य की ऊर्जा नीति को बदला गया और संथाल परगना को अँधेरे में रखकर बांग्लादेश को बिजली भेजी गई है।
भाजपा, आदिवासियों की जनसंख्या अनुपात में कमी के, मूल कारणों पर, बात न कर, गलत आंकड़े पेश करके केवल धार्मिक सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण करना चाहती है। एक ओर भाजपा आदिवासियों की जनसंख्या के लिए चिंता जता रही है, वहीं दूसरी ओर, झारखंड सरकार द्वारा पारित सरना कोड, पिछड़ों के लिए 27% आरक्षण व खतियान आधारित स्थानीयता की नीति पर न केवल चुप्पी साधे हुए है बल्कि इन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती रही है। मोदी सरकार जाति जनगणना से भी भाग रही है जिससे समुदायों व विभिन्न जातियों की वर्तमान स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
भाजपा की चुनावी रणनीति?
झारखंड में तीन माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। जिसमें भाजपा की नजर, राज्य की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों पर है और इसके लिए वह पार्टी के बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है।
खास है कि झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटें ही भाजपा के पास हैं। जबकि हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा को 14 में से 8 सीटों पर जीत मिली है लेकिन अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 5 लोकसभा सीटों में से वो, किसी पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जेल से बाहर आने के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं और आदिवासियों के बीच जा कर, पार्टी के लिए समर्थन जुटा रहे हैं।
झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं। इसके अलावा एक मनोनीत विधायक भी है।
गठबंधन सीटें
एनडीए 26
इंडिया 47
अन्य 09
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीजेपी में एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा कि मुस्लिम और आदिवासी हमें बहुत ज्यादा वोट नहीं देते जबकि जमीनों का अवैध ट्रांसफर और शादियों के मुद्दे से हमें मदद मिल सकती है।
बीजेपी नेता के मुताबिक, विधानसभा चुनाव में पार्टी ऐसी शादियों को और घुसपैठियों व आदिवासियों के बीच जमीन के ट्रांसफर को रोकने के लिए कानून बनाने को मुद्दा बना सकती है।
यही कारण है कि भाजपा, चुनाव की एक रणनीति के तौर पर संथाल परगना के इलाके में ‘घुसपैठ’ और ‘डेमोग्राफिक चेंज’ को मुद्दा बना रही है।
झारखंड आंदोलन के मूल मुद्दे?
यही नहीं, गौर करें तो... आदिवासियों के जिन मुद्दों को इसमें रेखांकित किया गया है, वे झारखंड आंदोलन के मूल मुद्दे थे। अगर भाजपा इन मुद्दों को स्वीकार नहीं कर रही है, तो वो आंदोलन पर भी सवाल कर रही है। 'लोकतंत्र बचाओ अभियान' राज्य सरकार से मांग करता है कि गलत आंकड़ों को पेश कर सांप्रदायिकता फैलाने वालों पर तुरंत कार्यवाई करें, एवं उक्त मूल मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा शुरू करें।
लोकतंत्र बचाओ अभियान के ओर से... अफ़जल अनीस, अजय एक्का, अंबिका यादव, अमृता बोदरा, अंबिता किस्कू, अलोका कुजूर, अरविंद अंजुम, बासिंग हस्सा, भरत भूषण चौधरी, भाषण मानमी, बिनसाय मुंडा, चार्ल्स मुर्मू, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, एमिलिया हांसदा, हरि कुमार भगत, ज्याँ द्रेज, ज्योति कुजूर, कुमार चन्द्र मार्डी, किरण, लीना, लालमोहन सिंह खेरवार, मानसिंग मुंडा, मेरी निशा हंसदा, मंथन, मुन्नी देवी, नंदिता भट्टाचार्य, प्रवीर पीटर, रिया तूलिका पिंगुआ, पकू टुडु, रामचंद्र मांझी, राजा भारती, रमेश जेराई, रेशमी देवी, रोज़ खाखा, रोज मधु तिर्की, शशि कुमार, संदीप प्रधान, सिराज दत्ता, सुशील मरांडी, सेबेस्टियन मरांडी, संतोष पहाड़िया, टॉम कावला, विनोद कुमार।
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