विधानसभा सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक के सवाल पर सरकार ने लिखित में जवाब देकर सीवर सफाई के दौरान जान गंवाने वाले कर्मचारियों को दिए जाने वाले मुआवज़े के बारे में बताया।
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI
वैसे तो गुजरात में पिछले कई सालों से भाजपा का एकछत्र राज है, और वाकई में ये ‘राज’ ही है, क्योंकि प्रजा के हालात जो दिखाए जाते हैं उससे वास्तविकता कोसों दूर है। इस प्रजा में हालात तो सभी की ख़राब हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तबका मज़दूर अब भी अपनी आख़री सांसों की कीमत के लिए तरस रहा है।
इसका जीता-जागता उदाहरण सच्चाई के रूप में तब सामने आया जब विधानसभा में कांग्रेस के विधायक इमरान खेड़ावाला ने सवाल किया कि गटर की सफाई करने वाले मज़दूरों की अगर मौत हो जाती है, तो उनके परिवार को सरकार की ओर से मुआवज़ा कितना दिया जाता है।
इस सवाल का सरकार ने लिखित में जवाब दिया, जिसमें मालूम हुआ कि पछले दो सालों में 11 मज़दूरों की मौत गटर में सफाई के दौरान हुई है, और अभी तक महज़ 5 परिवारों को ही मुआवज़ा दिया गया है। जबकि 6 पीड़ित परिवारों को अभी तक कोई मुआवज़ा राशि नहीं मिली है।
वैसे तो इस बात से हर कोई वाकिफ़ है, कि मज़दूर अपनी जान को पूरी तरह से जोख़िम में डालकर इसीलिए सीवर में उतरने के लिए मज़बूर होते हैं क्योंकि उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं होती है, इसके बाद जब उनकी मौत हो जाती है, और दो साल बीत जाने के बाद भी उन्हें मुआवज़ा नहीं मिलता, तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है, कि उनके परिवार की मौजूदा स्थिति क्या होगी?
ख़ैर... यहां पर ये जान लेते हैं कि सरकार ने अपने लिखित जवाब में क्या बताया है?
इमरान खेड़ावाला के सवाल का जवाब देते हुए कहा गया कि साल 2021 से 2022 तक 7 सफाईकर्मियों की मौत हुई है। जिनमें से 5 परिवार के सदस्यों को 50 लाख रुपये की सहायता दी गई है। यानी हर एक मृतक मज़दूर के परिवार को 10 लाख रुपये की मदद की गई है।
सरकार की ओर से ये भी बताया गया कि साल 2021 से 2023 तक कुल 6 सफाई कर्मचारियों के परिवारों को सहायता राशि मिलनी बाकी है। जिसमें प्रति परिवार 10 लाख रुपये दिए जाने हैं, जबकि साल 2022 और 2023 में कुल 4 सफाईकर्मियों की मौत होने की जानकारी सामने आई है। इन लोगों को अभी तक सहायता राशि का भुगतान नहीं किया गया है।
साल 2019 में हुई थी 7 मज़दूरों की मौत
वडोदरा के एक होटल में गटर की सफाई करने आए सात मजदूरों की सांस रुकने से मौत हो गई थी, घटना के बाद पता चला था कि जो गटर बनाया था वह अवैध था, लोगों ने पहले शिकायत की थी लेकिन वह बंद नहीं हुआ था।
इस घटना में पहले एक मजदूर साफ करने के लिये अंदर उतरा था लेकिन वह वापिस नहीं आया। उसको बाहर निकालने के लिये छह और मजदूर गटर में चले गये। सातों मजदूरों की जहरीली गैस से मौत हो गई।
1993 से सीवर में उतरने से गुजरात में 122 लोगों की हुई मौत
साल 2019 में नेशनल सफ़ाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें बताया गया था कि 1993 से 2018 तक गुजरात में सीवर में उतरने के कारण 122 लोगों की मौत हो चुकी है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2019 में सीवर में उतरकर मरने वालों में गुजरात दूसरे नंबर पर था। भारत में सफाई कर्मचारियों की सीवर में उतरकर मरने वालों की संख्या लगभग 676 था। जबकि तमिलनाडू में लगभग 194 मौतें हुई हैं।
वैसे तो हमेशा से कहा जाता रहा है कि अब सीवर की सफाई का मशीनी करण किया जाएगा, लेकिन ये ‘अब’ न जाने पिछले कितने सालों से ज़मीन भविष्य ही बना हुआ है।
हालांकि साल 2023-24 के बजट में ऐसा पहली बार हुआ है जब सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन सफाई को पूरी तरह मशीनीकृत करने के लिए फंड का प्रावधान किया गया है। बजट में सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन की सफाई के लिए 100 करोड़ रुपये का आवंटन नमस्ते मिशन यानि नेशनल एक्शन प्लान फॉर मैक्नाइज्ड सेनिटेशन इकोसिस्टम योजना के लिए किया गया है। इससे जरिए ना केवल इस काम को पूरी तरह मशीनीकृत किया करने का दावा किया गया है कि बल्कि देश के हर शहर और कस्बे तक पहुंचाने की व्यवस्था की करने की बात कही गई है।
औसत तौर पर देश में हर पांचवें दिन एक सीवर सफाई कर्मचारी की मौत देशभर में होती है, हर साल 130 से ज्यादा सीवर सफाई कर्मचारी उसकी दमघोंटू जहरीली गैस से सीवर में फंसकर मारे जाते हैं या सीवर की दूसरी दिक्कतों से। इसे लेकर लंबे समय से आवाज उठाई जाती रही है लेकिन हैरानी की बात है कि हमारे देश में सीवर और सीवेज सफाई सिस्टम अब भी पूरी तरह पुराने तौर तरीकों से चल रहा है। अदालती आदेशों के बावजूद इसका मशीनीकरण या आटोमेशन नहीं हो पाया है।
जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट और अदालतें सीवर की मैन्युअल यानि मानव आधारित सफाई को गैरकानूनी ठहरा चुकी हैं।
आपको बता दें कि ऐतिहासिक तौर पर हमारे देश में गंदगी को साफ करने का काम कुछ जातियों पर थोपा जाता रहा है, दुर्भाग्य ये है कि हम अब भी उसी व्यवस्था पर टिके हुए हैं। हालांकि भारत में 1990 में इसके खिलाफ कानून बेशक बन चुका है लेकिन इसके बाद भी मैन्युअल सीवेज सफाई का काम जारी है और पूरे देश में चल रहा है, मौतें भी बदस्तूर जारी हैं।
इसके अलावा कई रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि हमारे देश में करीब 70 फीसदी सीवेज लाइनों की सफाई आमतौर पर होती ही नहीं है।
ख़ैर... हमारे देश में बजट तो पास हुआ है, लेकिन ये धरातल पर कब और कैसे उतरेगा ये बड़ी बात है। क्योंकि इसी देश में बड़े-बड़े बजट पास हुए हैं और सरकार जाते ही फेल भी हो गए हैं। लेकिन हालात जस के तस ही रह जाते हैं।
Courtesy: Newsclick
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI
वैसे तो गुजरात में पिछले कई सालों से भाजपा का एकछत्र राज है, और वाकई में ये ‘राज’ ही है, क्योंकि प्रजा के हालात जो दिखाए जाते हैं उससे वास्तविकता कोसों दूर है। इस प्रजा में हालात तो सभी की ख़राब हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तबका मज़दूर अब भी अपनी आख़री सांसों की कीमत के लिए तरस रहा है।
इसका जीता-जागता उदाहरण सच्चाई के रूप में तब सामने आया जब विधानसभा में कांग्रेस के विधायक इमरान खेड़ावाला ने सवाल किया कि गटर की सफाई करने वाले मज़दूरों की अगर मौत हो जाती है, तो उनके परिवार को सरकार की ओर से मुआवज़ा कितना दिया जाता है।
इस सवाल का सरकार ने लिखित में जवाब दिया, जिसमें मालूम हुआ कि पछले दो सालों में 11 मज़दूरों की मौत गटर में सफाई के दौरान हुई है, और अभी तक महज़ 5 परिवारों को ही मुआवज़ा दिया गया है। जबकि 6 पीड़ित परिवारों को अभी तक कोई मुआवज़ा राशि नहीं मिली है।
वैसे तो इस बात से हर कोई वाकिफ़ है, कि मज़दूर अपनी जान को पूरी तरह से जोख़िम में डालकर इसीलिए सीवर में उतरने के लिए मज़बूर होते हैं क्योंकि उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं होती है, इसके बाद जब उनकी मौत हो जाती है, और दो साल बीत जाने के बाद भी उन्हें मुआवज़ा नहीं मिलता, तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है, कि उनके परिवार की मौजूदा स्थिति क्या होगी?
ख़ैर... यहां पर ये जान लेते हैं कि सरकार ने अपने लिखित जवाब में क्या बताया है?
इमरान खेड़ावाला के सवाल का जवाब देते हुए कहा गया कि साल 2021 से 2022 तक 7 सफाईकर्मियों की मौत हुई है। जिनमें से 5 परिवार के सदस्यों को 50 लाख रुपये की सहायता दी गई है। यानी हर एक मृतक मज़दूर के परिवार को 10 लाख रुपये की मदद की गई है।
सरकार की ओर से ये भी बताया गया कि साल 2021 से 2023 तक कुल 6 सफाई कर्मचारियों के परिवारों को सहायता राशि मिलनी बाकी है। जिसमें प्रति परिवार 10 लाख रुपये दिए जाने हैं, जबकि साल 2022 और 2023 में कुल 4 सफाईकर्मियों की मौत होने की जानकारी सामने आई है। इन लोगों को अभी तक सहायता राशि का भुगतान नहीं किया गया है।
साल 2019 में हुई थी 7 मज़दूरों की मौत
वडोदरा के एक होटल में गटर की सफाई करने आए सात मजदूरों की सांस रुकने से मौत हो गई थी, घटना के बाद पता चला था कि जो गटर बनाया था वह अवैध था, लोगों ने पहले शिकायत की थी लेकिन वह बंद नहीं हुआ था।
इस घटना में पहले एक मजदूर साफ करने के लिये अंदर उतरा था लेकिन वह वापिस नहीं आया। उसको बाहर निकालने के लिये छह और मजदूर गटर में चले गये। सातों मजदूरों की जहरीली गैस से मौत हो गई।
1993 से सीवर में उतरने से गुजरात में 122 लोगों की हुई मौत
साल 2019 में नेशनल सफ़ाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें बताया गया था कि 1993 से 2018 तक गुजरात में सीवर में उतरने के कारण 122 लोगों की मौत हो चुकी है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2019 में सीवर में उतरकर मरने वालों में गुजरात दूसरे नंबर पर था। भारत में सफाई कर्मचारियों की सीवर में उतरकर मरने वालों की संख्या लगभग 676 था। जबकि तमिलनाडू में लगभग 194 मौतें हुई हैं।
वैसे तो हमेशा से कहा जाता रहा है कि अब सीवर की सफाई का मशीनी करण किया जाएगा, लेकिन ये ‘अब’ न जाने पिछले कितने सालों से ज़मीन भविष्य ही बना हुआ है।
हालांकि साल 2023-24 के बजट में ऐसा पहली बार हुआ है जब सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन सफाई को पूरी तरह मशीनीकृत करने के लिए फंड का प्रावधान किया गया है। बजट में सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन की सफाई के लिए 100 करोड़ रुपये का आवंटन नमस्ते मिशन यानि नेशनल एक्शन प्लान फॉर मैक्नाइज्ड सेनिटेशन इकोसिस्टम योजना के लिए किया गया है। इससे जरिए ना केवल इस काम को पूरी तरह मशीनीकृत किया करने का दावा किया गया है कि बल्कि देश के हर शहर और कस्बे तक पहुंचाने की व्यवस्था की करने की बात कही गई है।
औसत तौर पर देश में हर पांचवें दिन एक सीवर सफाई कर्मचारी की मौत देशभर में होती है, हर साल 130 से ज्यादा सीवर सफाई कर्मचारी उसकी दमघोंटू जहरीली गैस से सीवर में फंसकर मारे जाते हैं या सीवर की दूसरी दिक्कतों से। इसे लेकर लंबे समय से आवाज उठाई जाती रही है लेकिन हैरानी की बात है कि हमारे देश में सीवर और सीवेज सफाई सिस्टम अब भी पूरी तरह पुराने तौर तरीकों से चल रहा है। अदालती आदेशों के बावजूद इसका मशीनीकरण या आटोमेशन नहीं हो पाया है।
जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट और अदालतें सीवर की मैन्युअल यानि मानव आधारित सफाई को गैरकानूनी ठहरा चुकी हैं।
आपको बता दें कि ऐतिहासिक तौर पर हमारे देश में गंदगी को साफ करने का काम कुछ जातियों पर थोपा जाता रहा है, दुर्भाग्य ये है कि हम अब भी उसी व्यवस्था पर टिके हुए हैं। हालांकि भारत में 1990 में इसके खिलाफ कानून बेशक बन चुका है लेकिन इसके बाद भी मैन्युअल सीवेज सफाई का काम जारी है और पूरे देश में चल रहा है, मौतें भी बदस्तूर जारी हैं।
इसके अलावा कई रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि हमारे देश में करीब 70 फीसदी सीवेज लाइनों की सफाई आमतौर पर होती ही नहीं है।
ख़ैर... हमारे देश में बजट तो पास हुआ है, लेकिन ये धरातल पर कब और कैसे उतरेगा ये बड़ी बात है। क्योंकि इसी देश में बड़े-बड़े बजट पास हुए हैं और सरकार जाते ही फेल भी हो गए हैं। लेकिन हालात जस के तस ही रह जाते हैं।
Courtesy: Newsclick