गुजरात दंगों से जुड़े मामलों को लेकर अदालती लड़ाई लड़ने वाली मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने ‘काउंटरव्यू’ से कहा कि उनके संगठन, सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने गोधरा कांड के बाद गुजरात में फैले दंगे में मरने वालों की सही संख्या पता करने की कोशिश की है। उनके संगठन के मुताबिक गोधरा कांड के बाद 28 फरवरी 2002 से बड़े पैमाने पर फैले दंगे में 1,926 लोगों की मौत हुई है।
गुजरात के दंगे
गुजरात सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक दंगों में 1,044 लोगों की मौत हुई थी। इनमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू थे। तीस्ता सीतलवाड़ के मुताबिक इस भयावह दंगे की 15वीं बरसी पर उनका संगठन एक बड़ी कवायद में लगा है। वह मृतकों की संख्या के बारे में राज्य सरकार के फर्जीवाड़े को उजागर करना चाहता है और मृतकों और लापता हुए लोगों की सही संख्या सामने लाना चाहता है।
2002 के दंगों के बारे में ‘काउंटरव्यू’ को भेजे एक नोट में तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा है कि एक बार मृतकों और लापता लोगों के बारे में आंकड़े इकट्ठा हो जाने के बाद इस मामले को संसद में विपक्षी सदस्यों के जरिये उठाया जाएगा ताकि पार्लियामेंट अपने रिकार्ड में इसे ठीक कर सके।
सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस की इस सबसे अहम उपलब्धि के बारे में सीतलवाड़ ने कहा- वर्ष 2002 में गुजरात में हुए नरसंहार की साजिश रचने वाले 157 आरोपियों के खिलाफ मुकदमे चले और इनमें से 142 को आजीवन कारावास मिला। गुजरात दंगों के सिलसिले में एक दर्जन से अधिक मुकदमों में इतने लोगों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने में कामयाबी हासिल हुई। हालांकि हाई कोर्ट की अपील में इनमें से 19 को छोड़ दिया गया। लेकिन सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने इनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है।
सीतलवाड़ ने कहा कि 2002 से ज्यादातर आपराधिक मुकदमे पहली सत्र अदालत में पूरे होने को हैं। सीजेपी जिन अन्य मामलों में अदालती लड़ाई लड़ रहा है - वे हैं बिलकीस बानो, एरल, घोड़ासार और सेसान मामले। ये भी फैसले की दहलीज तक पहुंच चुके हैं। हालांकि उन्हें अफसोस है कि पंढरवाड़ा और किड़ियाड़ नरसंहार के मामलों में अदालती लड़ाई को पुलिस ने छोड़ दिया। (यहां एक टेंपो के अंदर 61 मुस्लिमों को जला कर मार डाला गया था)।
सीतलवाड़ ने कहा सीजेपी जिन मामलों में अदालत में लड़ रहा है वो हाई कोर्ट में हैं। सरदारपुरा मामले की सुनवाई हो चुकी है। नरोदा पटिया में सुनवाई शुरू हो चुकी है। हालांकि उन्हें इस बात से नाराजगी है कि एसआईटी ने दंगों में बचे लोगों के बारे में सोचना बिल्कुल छोड़ दिया है।
सीतलवाड़ ने कहा, जाकिया जाफरी मामले में पहली बार आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की गई ताकि गुजरात में इतने भयावह पैमाने पर हुए नरसंहार के लिए प्रशासनिक की ओर से किए अपराध को साबित किया जाए। अभी भी यह मामला लंबित है। इस मामले ने पुलिस से लेकर गुजरात हाई कोर्ट और फिर मजिस्ट्रेट कोर्ट तक लंबी पीड़ादायक यात्रा की है और अब इसकी सुनवाई गुजरात हाई कोर्ट में हो रही है।
तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा जाकिया जाफरी मामले को लेकर सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस पर राज्य की एजेंसिंयों के काफी कुत्सित हमले हुए। उनके और उनके पति जावेद आनंद के अलावा सिटीजन फॉर पीस एंड जस्टिस के पदाधिकारियों पर हमले हुए। तीस्ता सीतलवाड़ और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने जितना ज्यादा अदालती लड़ाई लड़ी, उतनी ही तेजी पर उन पर हमले भी हुए।
भारतीय इतिहास में इस तरह के सामूहिक अपराध के लिए नेतृत्व को जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य करने वाली अपनी इस कानूनी लड़ाई की बारे में वह कहती हैं- गुजरात में इस तरह का सामूहिक अपराध का दौर 28 फरवरी 2002 से चलता रहा और जब अटल बिहारी वाजपेयी ने 5-6 मई, 2002 तक राज्य के हालात का जायजा लेने के लिए केपीएस गिल को भेजा तब तक भी कम नहीं हुआ।
तीस्ता का कहना है- पिछले दस महीनों में उनके ऊपर राज्य की एजेंसिंयों के हमले बहुत ज्यादा बढ़ गए। गुजरात पुलिस और प्रशासन उन्हें धमकी देने, अपमानित करने और उन्हें फंसाने की एक के बाद एक कई कोशिश की। उनके खिलाफ फर्जी मामले बनाए गए और उन्हें जेल भेजने की धमकी दी गई। उन्होंने कहा- इसी तरह की कोशिश गुजरात के पुलिस अफसरों- आरबी श्रीकुमार (रिटायर्ड आईपीएस) राहुल शर्मा और संजीव भट्ट (आईपीएस) के खिलाफ हुई। सिर्फ इसलिए कि वे अपनी संवैधानिक ड्यूटी निभा रहे थे।
तीस्ता का कहना है- यह कोशिश गुजरात दंगों के शिकार लोगों को अदालती मदद की उनकी कोशिश से ध्यान हटाने कि लिए किया गया। तीस्ता को अपनी सुरक्षा के लिए अदालती रास्ता अख्तियार करना पड़ा। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इसके लिए तैयार रहना भी पड़ता है। अहम बात यह है कि गुजरात दंगों के मामलों को आपराधिक साजिश के दायरे में लाने की कोशिश काफी जद्दोजहद भरी रही है। इस संबंध में नरोदा पाटिया मामले में 28 अगस्त, 2012 को जज ज्योत्सना याज्ञनिक की ओर से सुनाया गया फैसला ऐतिहासिक है। उन्होंने अपने फैसले से साफ तौर पर इस नरसंहार के पीछे आपराधिक साजिश को स्थापित कर दिया।
हालांकि गुलबर्ग सोसाइटी मामले में 17 जून, 2016 को जज पीबी देसाई की ओर से सुनाए गए फैसले को लेकर निराशा हुई। उन्होंने नहीं माना कि गुलबर्ग सोसाइटी का दंगा, आपराधिक साजिश था। जैसा कि तनवीर भाई जाफरी ने कहा- मानो 12,000-15,000 लोगों का हुजूम वहां चाय-समोसे लिए उमड़ा हो।
सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस समर्थित रूपाबेन मोदी और साइराबेन सांधी ने 3 फरवरी, 2017 को इस फैसले के खिलाफ अपनी अपील में कहा कि एसआईटी ने साफ तौर पर कहा था कि वह इस फैसले को चुनौती देगी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
गुजरात के दंगे
गुजरात सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक दंगों में 1,044 लोगों की मौत हुई थी। इनमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू थे। तीस्ता सीतलवाड़ के मुताबिक इस भयावह दंगे की 15वीं बरसी पर उनका संगठन एक बड़ी कवायद में लगा है। वह मृतकों की संख्या के बारे में राज्य सरकार के फर्जीवाड़े को उजागर करना चाहता है और मृतकों और लापता हुए लोगों की सही संख्या सामने लाना चाहता है।
2002 के दंगों के बारे में ‘काउंटरव्यू’ को भेजे एक नोट में तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा है कि एक बार मृतकों और लापता लोगों के बारे में आंकड़े इकट्ठा हो जाने के बाद इस मामले को संसद में विपक्षी सदस्यों के जरिये उठाया जाएगा ताकि पार्लियामेंट अपने रिकार्ड में इसे ठीक कर सके।
सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस की इस सबसे अहम उपलब्धि के बारे में सीतलवाड़ ने कहा- वर्ष 2002 में गुजरात में हुए नरसंहार की साजिश रचने वाले 157 आरोपियों के खिलाफ मुकदमे चले और इनमें से 142 को आजीवन कारावास मिला। गुजरात दंगों के सिलसिले में एक दर्जन से अधिक मुकदमों में इतने लोगों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने में कामयाबी हासिल हुई। हालांकि हाई कोर्ट की अपील में इनमें से 19 को छोड़ दिया गया। लेकिन सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने इनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है।
सीतलवाड़ ने कहा कि 2002 से ज्यादातर आपराधिक मुकदमे पहली सत्र अदालत में पूरे होने को हैं। सीजेपी जिन अन्य मामलों में अदालती लड़ाई लड़ रहा है - वे हैं बिलकीस बानो, एरल, घोड़ासार और सेसान मामले। ये भी फैसले की दहलीज तक पहुंच चुके हैं। हालांकि उन्हें अफसोस है कि पंढरवाड़ा और किड़ियाड़ नरसंहार के मामलों में अदालती लड़ाई को पुलिस ने छोड़ दिया। (यहां एक टेंपो के अंदर 61 मुस्लिमों को जला कर मार डाला गया था)।
सीतलवाड़ ने कहा सीजेपी जिन मामलों में अदालत में लड़ रहा है वो हाई कोर्ट में हैं। सरदारपुरा मामले की सुनवाई हो चुकी है। नरोदा पटिया में सुनवाई शुरू हो चुकी है। हालांकि उन्हें इस बात से नाराजगी है कि एसआईटी ने दंगों में बचे लोगों के बारे में सोचना बिल्कुल छोड़ दिया है।
सीतलवाड़ ने कहा, जाकिया जाफरी मामले में पहली बार आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की गई ताकि गुजरात में इतने भयावह पैमाने पर हुए नरसंहार के लिए प्रशासनिक की ओर से किए अपराध को साबित किया जाए। अभी भी यह मामला लंबित है। इस मामले ने पुलिस से लेकर गुजरात हाई कोर्ट और फिर मजिस्ट्रेट कोर्ट तक लंबी पीड़ादायक यात्रा की है और अब इसकी सुनवाई गुजरात हाई कोर्ट में हो रही है।
तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा जाकिया जाफरी मामले को लेकर सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस पर राज्य की एजेंसिंयों के काफी कुत्सित हमले हुए। उनके और उनके पति जावेद आनंद के अलावा सिटीजन फॉर पीस एंड जस्टिस के पदाधिकारियों पर हमले हुए। तीस्ता सीतलवाड़ और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने जितना ज्यादा अदालती लड़ाई लड़ी, उतनी ही तेजी पर उन पर हमले भी हुए।
भारतीय इतिहास में इस तरह के सामूहिक अपराध के लिए नेतृत्व को जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य करने वाली अपनी इस कानूनी लड़ाई की बारे में वह कहती हैं- गुजरात में इस तरह का सामूहिक अपराध का दौर 28 फरवरी 2002 से चलता रहा और जब अटल बिहारी वाजपेयी ने 5-6 मई, 2002 तक राज्य के हालात का जायजा लेने के लिए केपीएस गिल को भेजा तब तक भी कम नहीं हुआ।
तीस्ता का कहना है- पिछले दस महीनों में उनके ऊपर राज्य की एजेंसिंयों के हमले बहुत ज्यादा बढ़ गए। गुजरात पुलिस और प्रशासन उन्हें धमकी देने, अपमानित करने और उन्हें फंसाने की एक के बाद एक कई कोशिश की। उनके खिलाफ फर्जी मामले बनाए गए और उन्हें जेल भेजने की धमकी दी गई। उन्होंने कहा- इसी तरह की कोशिश गुजरात के पुलिस अफसरों- आरबी श्रीकुमार (रिटायर्ड आईपीएस) राहुल शर्मा और संजीव भट्ट (आईपीएस) के खिलाफ हुई। सिर्फ इसलिए कि वे अपनी संवैधानिक ड्यूटी निभा रहे थे।
तीस्ता का कहना है- यह कोशिश गुजरात दंगों के शिकार लोगों को अदालती मदद की उनकी कोशिश से ध्यान हटाने कि लिए किया गया। तीस्ता को अपनी सुरक्षा के लिए अदालती रास्ता अख्तियार करना पड़ा। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इसके लिए तैयार रहना भी पड़ता है। अहम बात यह है कि गुजरात दंगों के मामलों को आपराधिक साजिश के दायरे में लाने की कोशिश काफी जद्दोजहद भरी रही है। इस संबंध में नरोदा पाटिया मामले में 28 अगस्त, 2012 को जज ज्योत्सना याज्ञनिक की ओर से सुनाया गया फैसला ऐतिहासिक है। उन्होंने अपने फैसले से साफ तौर पर इस नरसंहार के पीछे आपराधिक साजिश को स्थापित कर दिया।
हालांकि गुलबर्ग सोसाइटी मामले में 17 जून, 2016 को जज पीबी देसाई की ओर से सुनाए गए फैसले को लेकर निराशा हुई। उन्होंने नहीं माना कि गुलबर्ग सोसाइटी का दंगा, आपराधिक साजिश था। जैसा कि तनवीर भाई जाफरी ने कहा- मानो 12,000-15,000 लोगों का हुजूम वहां चाय-समोसे लिए उमड़ा हो।
सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस समर्थित रूपाबेन मोदी और साइराबेन सांधी ने 3 फरवरी, 2017 को इस फैसले के खिलाफ अपनी अपील में कहा कि एसआईटी ने साफ तौर पर कहा था कि वह इस फैसले को चुनौती देगी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।