‘गुजरात हाईकोर्ट’ ने दिया सर्व-धर्म-समभाव का अतुलनीय उदाहरण

Written by sabrang india | Published on: May 9, 2019
गुजरात हाईकोर्ट ने यह सिद्ध कर दिया कि संविधान की नजर में सभी व्यक्ति व सभी धर्म एक समान हैं। मुजाहिद नफ़ीस की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने सभी धर्मों के पवित्र स्थानों को प्रदेश के "पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड" में शामिल करने का आदेश दिया है।

माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी के कन्वेनर मुजाहिद नफ़ीस ने गुजरात सरकार और पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। मुजाहिद नफ़ीस ने यह आरोप लगाया कि गुजरात राज्य में सरकार द्वारा गठित गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड एक ही धर्म के स्थानों को जनता के टैक्स के पैसे से लाभान्वित कर रहा है। बोर्ड द्वारा किये जा रहे इस पक्षपात के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में मुजाहिद नफ़ीस ने जनहित याचिका (PIL- 201/2018) दायर की गयी थी।    

नफ़ीस ने अपनी याचिका में कहा था कि "पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड" के गठन के वक्त अंबाजी, पाली थाना, सोमनाथ, डाकोर, गिरनार व द्वारका ही ‘पवित्र यात्राधाम’ की सूची में शामिल थे। आज की तारीख में 358 हिन्दू मंदिर सूची में शामिल कर लिए गए हैं”। नफ़ीस ने बताया कि आरटीआई के कानून के तहत उन्हें यह जानकारी मिली है। साथ ही यह दावा किया कि पूरे प्रदेश में लगभग 338 अन्य धर्मों जैसे जैन, ईसाई, बौद्ध, इस्लाम से जुड़े धार्मिक स्थल हैं परंतु सूची में एक भी शामिल नहीं किए गए हैं।     

नफ़ीस ने भारत के संविधान की धारा 14, 16, 21, 25 और 226 का हवाला देते हुए कहा कि धर्म-निरपेक्ष सरकार किसी  धर्म विशेष के लोगों के हित के लिए ही कार्य नहीं करती है। संविधान ने सभी धर्मों को एक समान अधिकार व सम्मान दिया है। प्रदेश सरकार द्वारा ऐसा करना संविधान के दिये हुए अधिकारों के हनन के समान है। साथ ही कहा कि आवाम से मिले कर के रूप में धनराशि से किसी एक ही धर्म के लोगों को लाभान्वित नहीं किया जा सकता है।      

मुजाहिद नफ़ीस ने गुजरात हाई कोर्ट से हिन्दू धर्म के अतिरिक अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों को सूची में शामिल करने की मांग की है।

गुजरात हाई कोर्ट ने मुजाहिद नफ़ीस के तर्कों को ध्यान में रखते हुए पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड को  सभी धर्मों के पवित्र स्थानों को "पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड" में शामिल करने का न सिर्फ आदेश दिया है। बल्कि इस सम्बन्ध में की गई कार्यवाई पर सुधार को 14 जून को हाई कोर्ट में बताया जाए।

गुजरात हाई कोर्ट का यह निर्णय एक ओर सर्वधर्म समभाव के चरित्र को बल दे रहा है। वहीं दूसरी ओर न्याय प्रणाली पर समाज के वंचित वर्गों का विश्वास ओर मजबूत करने का काम भी कर रहा है।

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