ग्राउंड रिपोर्ट: बनारस के बुनकरों ने बयां किया दर्द, बोले- नोटबंदी, GST से मोदी ने छीन ली रोजी-रोटी

Written by sabrang india | Published on: April 23, 2019
बनारस जहां की कला और संस्कृति विश्वप्रसिद्ध है, बनारस की संस्कृति के साथ यहां के बुनकरों के द्वारा बनाए जाने वाली बनारसी साड़ी पूरे विश्व में एक अलग ही पहचान बनाए हुए हैं आज बनारसी साड़ी बनाने वाले बद से बदतर हो गए हैं। जी हां, आपने सही सुना ये वही बुनकर हैं जिन्होंने 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना सांसद चुनकर दिल्ली की सत्ता दिलाई थी लेकिन 5 वर्ष बीतने के बाद भी आज इनकी स्थिति बिगड़ती ही जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस सरकार से इन्हें काफी उम्मीदें थी उस सरकार ने इन्हें मात्र कागजों पर बड़ी योजनाओं और सौगातों की बौछार की लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं।

कहने को तो वाराणसी में करीब 70000 बुनकर अपने इस हुनर से देश-विदेश में अपनी अलग छाप छोड़ते हैं लेकिन इनके हालात इतने बदतर हैं कि यह आज एक हफ्ते की रोटी के लिए मोहताज हो गए हैं। यूं तो सरकार ने बुनकरों के हालात को सुधारने के लिए कई बड़ी योजनाओं की सौगात देने का दावा किया लेकिन नोटबंदी और जीएसटी की मार ने बुनकरों की कमर ऐसी तोड़ी है कि वह आज तक संभल नही पाए हैं। वाराणसी के प्रचीन लल्लापुरा इलाका जहां के 12 मुहल्लों में हिन्दू और मुस्लिम परिवार के लोग बुनकरी कर अपनी आजीविका चलाते हैं। इस मुहल्ले में दिन रात हथकरघे की आवाज आपके कानो में गूंजती सुनाई देगी। इन खटपट की आवाजों के पीछे बुनकरों के दर्द की आवाज़ भले ही दब जाती हो लेकिन जब भूख और बदहाली के शिकार बुनकर सामने आते हैं और अपना दर्द बयां करते हैं तो उनकी आंखों से आंसू निकल आते हैं। 

वाराणसी के लल्लापुरा इलाके बारहों तंजीम के सरदार हाशिम ने इस दर्द को बयां करते हुए बताया कि आज के दौर में बुनकरों की स्थिति ऐसी हो गई है कि वह दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल से कर पा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि 2014 से पहले जो सरकार थी उसमें बुनकर समाज एक प्रकार से माने तो स्ट्रगल कर रहा था लेकिन 2014 में जब मोदी सरकार बनी तो भूल कर समाज को यह उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी वाराणसी के सांसद चुनकर दिल्ली जा रहे हैं और प्रधान मंत्री बन रहे हैं तो वाराणसी का प्रतिनिधित्व करते हुए उनके दुख दर्द को समझेंगे और उनके लिए कुछ करेंगे, लेकिन इन्होंने सत्ता की कुर्सी पर काबिज होते ही सबसे पहली चोट बुनकर समाज को नोटबंदी के रूप में दे दी। जिससे उसे उभरने में समय लगता तब तक उन्होंने जीएसटी का बोझ डालकर बुनकरों को पूरी तरह बरबाद करने का काम किया। 

सरदार हाशिम ने बताया कि कहने को बुनकरों के लिए इस सरकार ने वाराणसी में ट्रेड फैसिलिटी सेंटर बनाया है लेकिन वह हाथी के दांत की तरह साबित हो रहा है क्योंकि ट्रेन फैसिलिटी सेंटर में ना तो कोई विदेशी मेहमान जल्दी आता है और ना ही छोटे बुनकरों को वहां अलॉटमेंट हो पाता है। हां यह सही है कि जो बिचौलिए बुनकर हैं वह इसका भरपूर फायदा उठाते हैं। यही नहीं हासिम ने बताया कि बुनकरों के लिए सरकार ने 59 मिनट में लोन देने की बात कही थी लेकिन आज तक वाराणसी शहर में उनके जानकारी के अनुसार एक भी बुनकर को कोई लोन नहीं मिला। सरदार हाशिम ने यह भी बताया कि बुनकर में प्रयुक्त होने वाले उपकरण से लेकर धागे तक पर जीएसटी लगाया जाता है। इसके बावजूद जो साड़ियां तैयार होती हैं उस पर अलग से जीएसटी लगाया जाता है जिससे हमें कई गुना नुकसान सहना पड़ता है क्योंकि जो साड़ी हम लोग मार्केट में बेचते हैं वह वापस भी आता है। जब वह वापस आता है तो हमें दोबारा उस पर जीएसटी लगाकर बेचना पड़ता है जिससे हमें नुकसान ही सहना पड़ता है।

हासिम भी नहीं बल्कि बुनकर समाज से जुड़े जुनैद, शहनवाज, बजुद्दीन, इनाम उल हक जैसे तमाम बुनकर हैं जिन्होंने मौजूदा सरकार से काफी उम्मीदें जताई थी लेकिन उन्हें निराश ही हाथ लगी। वाराणसी के बुनकर परिवार के कई ने हो नौजवान ऐसे भी हैं जो 2014 के बाद गुणकारी के क्षेत्र में इसलिए थे क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी के प्रतिनिधि होने के नाते सुधार लाएंगे लेकिन स्थिति सुधरने की बजाय और भी बदतर होती चली गई और जो नौजवान जो अपने उज्जवल भविष्य की कामना लेकर बुनकारी का रास्ता चुना उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

बाकी ख़बरें