गोरखपुर : ज़मीन की मांग के आंदोलन में दलित नेता, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गिरफ़्तार

Written by स्वदेश कुमार सिन्हा | Published on: October 11, 2023
गरीब, मज़दूर, भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन के बाद गोरखपुर पुलिस ने की कार्रवाई। 



दलित, पिछड़ा, मुस्लिम, गरीब मज़दूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ ज़मीन देने की मांग को लेकर कमिश्नर कार्यालय में दस अक्टूबर को पूरे दिन चले "डेरा डालो, घेरा डालो आंदोलन" के बाद रात को पुलिस ने अंबेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला सहित कई नेताओं को हिरासत में ले लिया। आंदोलन में वक्ता के बतौर आए लेखक-पत्रकार डाॅ सिद्धार्थ को भी हिरासत में लिया गया है और पूर्व डीआईजी दलित चिंतक एसआर दारापुरी को रामगढ़ थाने ले जाया गया है। पुलिस अंंबेडकर जन मोर्चा के नेताओं, लेखक-पत्रकार डाॅ सिद्धार्थ के बारे में कुछ भी नहीं बता रही है कि उन्हें कहां रखा गया है।

अंंबेडकर जन मोर्चा पिछले तीन वर्षो से दलित, पिछड़ा, मुस्लिम गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन दिलाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही है। इसी के तहत "10 अक्टूबर को कमिश्नर कार्यालय पर डेरा डालो, घेरा डालो आंदोलन" का ऐलान किया गया था। आंदोलन में हजारों लोग आए। इनमें महिलाओं की संख्या सर्वाधिक थी। पूरा कमिश्नर कार्यालय परिसर लोगों से भर गया। पूरे दिन वक्ता इस मुद्दे पर बोलते रहे। शाम को ज्ञापन देने के बाद आंदोलन समाप्त होना था लेकिन देर शाम तक कोई अधिकारी ज्ञापन लेने नहीं आया तो सभी लोग कमिश्नर कार्यालय में जमे रहे। देर रात अधिकारी कमिश्नर कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन लेकर कार्यवाही का आश्वासन दिया।

ज्ञापन दिए जाने के बाद आंदोलन में शामिल होने आए लोग जाने लगे तभी कमिश्नर कार्यालय से ही पुलिस लेखक-पत्रकार डाॅ सिद्धार्थ और अंंबेडकर जनमोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला के घर पहुंच गई और घर में घुसकर तलाशी ली। इधर कमिश्नर कार्यालय से लौट रहे श्रवण कुमार निराला को पैडलेगंज में पुलिस ने घेर लिया। उस वक्त निराला के साथ सैकड़ों लोग थे। आधी रात बाद सभी लोगों को देवरिया बाईपास के पास हिरासत में ले लिया गया और बस से कौडीराम ले जाया गया। उसके बाद से पता नहीं चला कि हिरासत में लिए गए लोग कहां है? आंदोलन में वक्ता के बतौर आए पूर्व डीआईजी एवं दलित चिंतक एसआर दारापुरी तारामंडल स्थित एक होटल में रूके हुए थे। आज सुबह वहां पुलिस पहुंच गयी और उन्हें रामगढ़ताल थाने ले गई है।

दलित, पिछड़ा, मुस्लिम गरीब मज़दूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग को लेकर कमिश्नर कार्यालय में 10 अक्टूबर को पूरे दिन चले डेरा डालो, घेरा डालो आंदोलन के बाद रात और आज सुबह हिरासत में लिए गए पूर्व आईजी एवं दलित चिंतक एसआर दारापुरी,दलेखक-पत्रकार डाॅ सिद्धार्थ, अम्बेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला सहित 13 नामजद और 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ कैंट थाने में F.I.R. दर्ज की गई है।

इन लोगों के खिलाफ सरकारी काम काज में बाधा डालने, तोड़-फोड़ करने, निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में आईपीसी की धारा 147, 188, 342, 332, 353, 504, 506, दंड विधि संशोधन अधिनियम 1932 की धारा 7, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 की धारा 3 ओर विद्युत अधिनियम 2033 की धारा 138 के तहत केस दर्ज किया गया है।

यह F.I.R. कमिश्नर गोरखपुर के नाजिर राजेश कुमार शर्मा द्वारा दर्ज कराई गई है। तहरीर में कहा गया है:-‘10 अक्टूबर की सुबह 10 बजे कमिश्नर कार्यालय परिसर में श्रवण कुमार निराला, ऋषि कपूर आनंद, सीमा गौतम, राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. रामू सिद्धार्थ, नीलम बौद्ध, सविता बौध, निर्देश सिंह, अयूब अंसारी, दारापुरी, जयभीम प्रकाश, देवी राम, सुधीर कुमार झा अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जबरन कार्यालय परिसर में घुस गए और कार्यालय से बिजली का तार जोड़कर बिजली चोरी करते हुए माईक लगाकर जनसभा करने लगे। मना करने पर इन लोगों ने मेरे साथ धक्का मुक्की की जिससे मैं गिर गया। ये लोग कार्यालय में घुस गए और हम लोगों को गालियां देते हुए सरकारी दस्तावेज फाड़ दिए सरकारी फूल के गमलों को तोड़ दिए।'

अभी तक मिली जानकारी के अनुसार एसआर दारापुरी, डॉ रामू सिद्धार्थ, श्रवण कुमार निराला, ऋषि कपूर सहित आधा दर्जन से अधिक लोग गिरफ्तार हैं।

आंदोलन के प्रवक्ता ने बताया कि यह सारा प्रोग्राम प्रशासन की अनुमति लेकर किया गया था और शाम को प्रशासन को ज्ञापन भी दिया गया। कोई हंगामा भी नहीं हुआ इसके बावज़ूद इस तरह की गिरफ़्तारियां यह बताती हैं कि अब सरकार और उसकी एजेंसियां किस तरह संविधान के ख़िलाफ़ काम कर रही हैं। आज देश भर में जन आंदोलनों को कुचला जा रहा है। लेखकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन और गिरफ़्तारियां हो रही हैं। यह घटना भी उसी की एक कड़ी है।


(लेखक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं।) 

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