पहले भी बहुत बार लिख चुका हूँ आज फिर लिख रहा हूँ ....देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है उर्जित पटेल का इस्तीफा देने का अर्थ यह है कि पानी अब गले तक पुहंच चुका है अब इस बात मे कोई शंका नही बची है कि मोदी सरकार की नजर भारतीय रिजर्व बैंक 3.6 लाख करोड़ रुपए पर है। मोदी सरकार रिजर्व बैंक के इस आपात फंड से अपना वित्तीय घाटा पूरा करना चाहती है.
आप इसे एक सामान्य इस्तीफा मान रहे हैं है तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं इस इस्तीफे से पूरी दुनिया मे जो संदेश गया है वह यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़े संकट में है ओर रिजर्व बैंक भी इसे संभालने में नाकाम रहा है इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास कमजोर हो जाएगा और दुनिया में भारत को लेकर नकारात्मक इमेज बनेगी,कुछ दिन पहले डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य इसी संकट के बारे में बता रहे थे जब उन्होंने कहा था कि ''जो सरकारें केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं वहां के बाज़ार तत्काल या बाद में भारी संकट में फंस जाते हैं. अर्थव्यवस्था सुलगने लगती है और अहम संस्थाओं की भूमिका खोखली हो जाती है.'' अर्जेंटीना में 2010 में ठीक ऐसा ही हुआ था अर्जेंटीना के केंद्रीय बैंक के गवर्नर को जमा पूंजी सरकार को देने के लिए मज़बूर किया गया था. अर्जेंटीना को डिफ़ॉल्टर तक होना पड़ा था.
उर्जित का इस्तीफा बतला रहा है कि भारत मे अर्जेंटीना वाले हालात की पुनरावृत्ति हो रही है हालांकि ओर भी बहुत से कारण है जिससे लगता है कि उर्जित का इस्तीफा देना अब मजबूरी बन गयी थी लेकिन इसका सबसे बड़ा तात्कालिक कारण यह लग रहा कि सरकार को किसी भी कीमत पर दो लाख करोड़ की तुरंत जरूरत है दरअसल भारत का गैर बैंकिंग सेक्टर (NBFC) और हाउसिंग फायनेंस कंपनियां (HFC) लिक्विडिटी क्रंच की समस्या से बुरी तरह से जूझ रहा है आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) ने गत 26 अक्टूबर को चिठ्ठी लिखी थी कि यदि आने वाले 6 सप्ताह में बाजार में (डेट मार्केट) पर्याप्त पैसों की आपूर्ति नहीं की गई तो कई नॉन-बैंकिंग फायनेंस और हाउसिंग फायनेंस कंपनियों के सामने डिफॉल्ट होने का खतरा पैदा हो जाएगा। DEA ने अपने पत्र में इस स्थिति से बचने के लिए बाजार में अविलंब अतिरिक्त फंड मुहैया कराने की बात कही है, DEA के मुताबिक, NBFC और HFC को दिसंबर, 2018 के अंत तक तकरीबन 2 लाख करोड़ रुपये का लोन चुकता करना है
अब आपको साफ समझ मे आ जाएगा कि क्यों सरकार उर्जित पटेल पर दबाव बना रही थी........
आप इसे एक सामान्य इस्तीफा मान रहे हैं है तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं इस इस्तीफे से पूरी दुनिया मे जो संदेश गया है वह यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक बड़े संकट में है ओर रिजर्व बैंक भी इसे संभालने में नाकाम रहा है इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास कमजोर हो जाएगा और दुनिया में भारत को लेकर नकारात्मक इमेज बनेगी,कुछ दिन पहले डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य इसी संकट के बारे में बता रहे थे जब उन्होंने कहा था कि ''जो सरकारें केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं वहां के बाज़ार तत्काल या बाद में भारी संकट में फंस जाते हैं. अर्थव्यवस्था सुलगने लगती है और अहम संस्थाओं की भूमिका खोखली हो जाती है.'' अर्जेंटीना में 2010 में ठीक ऐसा ही हुआ था अर्जेंटीना के केंद्रीय बैंक के गवर्नर को जमा पूंजी सरकार को देने के लिए मज़बूर किया गया था. अर्जेंटीना को डिफ़ॉल्टर तक होना पड़ा था.
उर्जित का इस्तीफा बतला रहा है कि भारत मे अर्जेंटीना वाले हालात की पुनरावृत्ति हो रही है हालांकि ओर भी बहुत से कारण है जिससे लगता है कि उर्जित का इस्तीफा देना अब मजबूरी बन गयी थी लेकिन इसका सबसे बड़ा तात्कालिक कारण यह लग रहा कि सरकार को किसी भी कीमत पर दो लाख करोड़ की तुरंत जरूरत है दरअसल भारत का गैर बैंकिंग सेक्टर (NBFC) और हाउसिंग फायनेंस कंपनियां (HFC) लिक्विडिटी क्रंच की समस्या से बुरी तरह से जूझ रहा है आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) ने गत 26 अक्टूबर को चिठ्ठी लिखी थी कि यदि आने वाले 6 सप्ताह में बाजार में (डेट मार्केट) पर्याप्त पैसों की आपूर्ति नहीं की गई तो कई नॉन-बैंकिंग फायनेंस और हाउसिंग फायनेंस कंपनियों के सामने डिफॉल्ट होने का खतरा पैदा हो जाएगा। DEA ने अपने पत्र में इस स्थिति से बचने के लिए बाजार में अविलंब अतिरिक्त फंड मुहैया कराने की बात कही है, DEA के मुताबिक, NBFC और HFC को दिसंबर, 2018 के अंत तक तकरीबन 2 लाख करोड़ रुपये का लोन चुकता करना है
अब आपको साफ समझ मे आ जाएगा कि क्यों सरकार उर्जित पटेल पर दबाव बना रही थी........