संकट में आरबीआई, उर्जित पटेल का इस्तीफा

Written by Nadim S. Akhter | Published on: December 10, 2018
आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया है। ये तो होना ही था। विपक्ष को सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया। लेकिन ये अच्छा नहीं हुआ। इससे दुनियाभर में भारत के आर्थिक स्थायित्व पे संदेह बढ़ेगा। मेसेज ये गया कि देश के सेंट्रल बैंक पर सरकार का बहुत ज्यादा दबाव है और वह अपनी मनमानी पर तुली हुई है। सब जानते हैं कि आरबीआई के केश रिज़र्व पर सरकार की नज़र थी और वह उद्योगों को लोन देने की प्रक्रिया आसान बनाने को कह रही थी, जिसका आरबीआई विरोध कर रहा था।



मतलब ये हुआ कि भारत की इकनॉमिक पालिसी डांवाडोल है। गिरते विकास दर, महंगाई और बढ़ती बेरोज़गारी पे आरबीआई गोवर्नर का इस्तीफा कोढ़ में खाज के समान है। नोटबन्दी के बाद सरकार पहले से ही घिरी हुई थी, अब आरबीआई की स्वायत्तता पे सवाल उठेंगे और सरकार पे तोहमत है। सीधे। निवर्तमान उर्जित पटेल को भी मौजूदा सरकार ही लेकर आयी थी। इससे पहले वाले आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन से विवाद के बाद। तो क्या सरकार का अपना आदमी ही बागी हो गया?? नहीं। उर्जित पटेल अपना काम कर रहे थे। राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में । टकराव यहीं था। सो देश के आर्थिक हालात के लिए ये अच्छे संकेत कतई नहीं हैं। संदेश ये जा रहा है कि केंद्र सरकार आरबीआई में अपना puppet governer बिठाना चाहती है, जो चुनावी साल की उसकी ज़रूरतों के मुताबिक काम करे। पर आरबीआई सरकार की ज़रूरतों के मुताबिक काम नहीं करता। वह देश के आर्थिक हालात के मद्देनजर बैंकों को निर्देश देता है, उनको रेगुलेट करता है, मार्केट में पैसा छोड़ता है और फिर उसी अनुपात में खींच भी लेता है ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर रहे।

लेकिन केंद्र सरकार भी झुकने को तैयार नहीं थी। सो उर्जित पटेल को जाना पड़ा। कोई मुझे बताएगा कि क्या वित्त मंत्री अर्थशास्त्री हैं?? वकील हैं ना!! फिर आरबीआई के गवर्नर और दूसरे डिप्टी गवर्नर जो कर रहे थे, सही ही कर रहे होंगे ना! वे अपनी फील्ड के विशेषज्ञ हैं। सरकार को चाहिए था कि उनको अपना काम करने देते। उर्जित पटेल को जाना पड़ा ये देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकारें आती-जाती रहती हैं पर अर्थव्यवस्था एक बार पटरी से उतरी तो संभलने में वर्षों लग जाते हैं। सरकार को आरबीआई को विश्वास में लेकर कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए था, जो हमेशा होता है।

आगे ऊपर वाला ही मालिक है। बहुत बड़ा डैमेज हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाजार और निवेशकों में बहुत गलत संदेश गया है इससे। ये एकदम हेडऑन collision है। किसी भी देश के लिए। मैं तो बहुत mild करके लिख रहा हूँ। आने वाले दिनों में आप अखबार और मैगज़ीन में आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा इसका विश्लेषण पढ़ लेना। समझ आ जायेगा। बाजार और अर्थव्यवस्था विश्वास व इक़बाल पे चलते हैं। जिसकी साख नहीं, ना उसे कोई कर्ज़ देगा और ना ही भरोसा करेगा। उल्टे उसके पास जमा अपना पैसा निकाल लेगा। आरबीआई क्राइसिस के चलते अंतराष्ट्रीय बाजार में देश के साथ भी यही होने वाला है। जब central bank ही स्वतंत्र नहीं है तो फिर देश का मालिक भगवान भी नहीं, यही मेसेज है। सो अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो मुझे आने वाले दिनों में देश में मंदी के आसार दिख रहे हैं। यानी बेरोज़गारी और महंगाई अभी और बढ़ेगी। सरकार इसका डैमेज कंट्रोल क्या और कैसे करेगी, उसे देश को बताना चाहिए।

और आखिर में एक बात और। क्या भावी आरबीआई गवर्नर सरकार के हाथ की कठपुतली होंगे?? संदेश तो यही जा रहा है। इस पे पूरी दुनिया की नज़र होगी क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी, जिस पे पिछले एक-दो वर्षों में लगाम लग गयी है। क्यों लगी, ये आपको पता है। दुर्भाग्यपूर्ण है ये सब कुछ।

 

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