कर्ज में डूबी हुई रुचि सोया के अधिग्रहण के लिए बाबा रामदेव ने 5700 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी, लेकिन अडानी ने उसे पीछे छोड़ते हुए 6000 करोड़ की बोली लगा दी है.
आखिकार रूचि सोया में ऐसा क्या विशेष है जो अडानी उसे ज्यादा कीमत देकर भी खरीदने के लिए उत्सुक नजर आ रहा है, देश का व्यापार उद्योग मूल रूप से बंदरगाहों पर डिपेंड होता है ओर देश के सभी प्रमुख निजी बंदरगाह अडानी के कब्जे में है, रुचि सोया के देशभर में करीब 13 से 14 रिफाइनिंग संयंत्र हैं, जिनमें से 5 बंदरगाहों पर हैं, रुचि सोया की सालाना रिफाइनिंग क्षमता 33 लाख टन है खाद्य तेल उद्योग के एक अधिकारी बताते हैं कि बंदरगाहों पर संयंत्र होना बहुत अहम होता है बंदरगाहों पर रिफाइनिंग संयंत्र होने से कंपनियों के लिए आयातित खाद्य तेल को रिफाइन करना आसान हो जाता है। देश में 70 फीसदी खाद्य तेल का आयात होता है। इसलिए अगर बंदरगाहों पर पहले से चालू इकाइयां मौजूद हैं तो अन्य कंपनियां इसे अधिग्रहीत करने की कोशिश करेंगी, यानी इस लिहाज से भी यह सौदा अडानी के फायदे का ही है
अडानी ने कुछ सालों पहले सिंगापुर की ‘विल्मर कम्पनी’ के साथ मिलकर एक संयुक्त उपक्रम गठित किया था अब यह खाद्य तेल में इंडिया का नंबर वन ब्रांड हो गया है यदि यह रूचि सोया को हासिल कर लेता है तो ईडिबल ऑयल में इसका एकाधिकार हो जाएगा
लेकिन बात सिर्फ खाद्य तेल की इंडस्ट्री पर एकाधिकार की नही है पिछले दिनों खबर आयी कि ईरान की सबसे बड़ी चावल कंपनी मोहसिन को अडानी ग्रुप ने वहां की शिरिनसाल कंपनी संग मिलकर 550 लाख डॉलर में खरीद लिया है, मोहसिन कंपनी भारत का सबसे ज्यादा बासमती चावल खरीदती थी वही भारत के चावल निर्यातकों का मोहसिन कंपनी पर करोड़ो बकाया हैं अकेले उत्तर प्रदेश से ही 40 हजार करोड़ से अधिक का चावल निर्यात होता है। इसमें से ज्यादातर बासमती चावल ईरान जाता है। इस सौदे के बाद अडानी ग्रुप देश में ही खरीद कर चावल का निर्यात करेगा ईरान में अडानी चाबहार पोर्ट के निर्माण में रुचि दिखा रहा है ईरान एक वर्ष में भारत से लगभग 10 लाख टन चावल खरीदता है। इसमें मोहसिन की हिस्सेदारी 30-35 फीसद है
यानी यहाँ से भी दोहरा फायदा .........लेकिन कहानी अभी यहाँ खत्म नही होती अडानी विल्मर के संयुक्त उपक्रम का मुख्य उद्देश्य दलहन पैदा करने वाले राज्यों के किसानों से दलहन खरीदकर बाज़ार में बेचना था हालांकि इस खेल में उसे शुरुआत में परेशानियों का सामना करना पड़ा पर मोदी सरकार के आते ही उसने मोदी जी पर अपने प्रभाव का उपयोग करके एक सरकारी आदेश जारी करवाया
इस आदेश में तीन प्रकार के दलहनों यानी अरहर, मूँग और उरद के प्रचुर संचयन और भंडारण संबंधी अत्यधिक सीमा के नियमों को हटा दिया गया
इसके बाद इस उपक्रम ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों के अलावा दलहन को केन्या तन्ज़ानिया और मोजाम्बिक जैसे अफ्रीकी मुल्कों से 55 रू प्रति किलो की बेहद कम कीमतों पर खरीदकर 1000 करोड़ किलो से अधिक दलहन का भंडारण शुरू कर दिया। इस दलहन को बाज़ार में 220 रुपये प्रति किलो तक पर बेचा जाने लगा। इससे डेढ़ लाख करोड़ से भी ज़्यादा का मुनाफ़ा पीटा गया
कुल मिलाकर दाल चावल और तेल, इसके अलावा भारत के पावर सेक्टर में भी एकाधिकार, यानी जब चाहेंगे दाम बढ़ा कर अच्छा खासा मुनाफ़ा निकाल लेंगे
अडानी ओर अम्बानी की कम्पनियां नए जमाने की ईस्ट इंडिया कम्पनी साबित होगी।
आखिकार रूचि सोया में ऐसा क्या विशेष है जो अडानी उसे ज्यादा कीमत देकर भी खरीदने के लिए उत्सुक नजर आ रहा है, देश का व्यापार उद्योग मूल रूप से बंदरगाहों पर डिपेंड होता है ओर देश के सभी प्रमुख निजी बंदरगाह अडानी के कब्जे में है, रुचि सोया के देशभर में करीब 13 से 14 रिफाइनिंग संयंत्र हैं, जिनमें से 5 बंदरगाहों पर हैं, रुचि सोया की सालाना रिफाइनिंग क्षमता 33 लाख टन है खाद्य तेल उद्योग के एक अधिकारी बताते हैं कि बंदरगाहों पर संयंत्र होना बहुत अहम होता है बंदरगाहों पर रिफाइनिंग संयंत्र होने से कंपनियों के लिए आयातित खाद्य तेल को रिफाइन करना आसान हो जाता है। देश में 70 फीसदी खाद्य तेल का आयात होता है। इसलिए अगर बंदरगाहों पर पहले से चालू इकाइयां मौजूद हैं तो अन्य कंपनियां इसे अधिग्रहीत करने की कोशिश करेंगी, यानी इस लिहाज से भी यह सौदा अडानी के फायदे का ही है
अडानी ने कुछ सालों पहले सिंगापुर की ‘विल्मर कम्पनी’ के साथ मिलकर एक संयुक्त उपक्रम गठित किया था अब यह खाद्य तेल में इंडिया का नंबर वन ब्रांड हो गया है यदि यह रूचि सोया को हासिल कर लेता है तो ईडिबल ऑयल में इसका एकाधिकार हो जाएगा
लेकिन बात सिर्फ खाद्य तेल की इंडस्ट्री पर एकाधिकार की नही है पिछले दिनों खबर आयी कि ईरान की सबसे बड़ी चावल कंपनी मोहसिन को अडानी ग्रुप ने वहां की शिरिनसाल कंपनी संग मिलकर 550 लाख डॉलर में खरीद लिया है, मोहसिन कंपनी भारत का सबसे ज्यादा बासमती चावल खरीदती थी वही भारत के चावल निर्यातकों का मोहसिन कंपनी पर करोड़ो बकाया हैं अकेले उत्तर प्रदेश से ही 40 हजार करोड़ से अधिक का चावल निर्यात होता है। इसमें से ज्यादातर बासमती चावल ईरान जाता है। इस सौदे के बाद अडानी ग्रुप देश में ही खरीद कर चावल का निर्यात करेगा ईरान में अडानी चाबहार पोर्ट के निर्माण में रुचि दिखा रहा है ईरान एक वर्ष में भारत से लगभग 10 लाख टन चावल खरीदता है। इसमें मोहसिन की हिस्सेदारी 30-35 फीसद है
यानी यहाँ से भी दोहरा फायदा .........लेकिन कहानी अभी यहाँ खत्म नही होती अडानी विल्मर के संयुक्त उपक्रम का मुख्य उद्देश्य दलहन पैदा करने वाले राज्यों के किसानों से दलहन खरीदकर बाज़ार में बेचना था हालांकि इस खेल में उसे शुरुआत में परेशानियों का सामना करना पड़ा पर मोदी सरकार के आते ही उसने मोदी जी पर अपने प्रभाव का उपयोग करके एक सरकारी आदेश जारी करवाया
इस आदेश में तीन प्रकार के दलहनों यानी अरहर, मूँग और उरद के प्रचुर संचयन और भंडारण संबंधी अत्यधिक सीमा के नियमों को हटा दिया गया
इसके बाद इस उपक्रम ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों के अलावा दलहन को केन्या तन्ज़ानिया और मोजाम्बिक जैसे अफ्रीकी मुल्कों से 55 रू प्रति किलो की बेहद कम कीमतों पर खरीदकर 1000 करोड़ किलो से अधिक दलहन का भंडारण शुरू कर दिया। इस दलहन को बाज़ार में 220 रुपये प्रति किलो तक पर बेचा जाने लगा। इससे डेढ़ लाख करोड़ से भी ज़्यादा का मुनाफ़ा पीटा गया
कुल मिलाकर दाल चावल और तेल, इसके अलावा भारत के पावर सेक्टर में भी एकाधिकार, यानी जब चाहेंगे दाम बढ़ा कर अच्छा खासा मुनाफ़ा निकाल लेंगे
अडानी ओर अम्बानी की कम्पनियां नए जमाने की ईस्ट इंडिया कम्पनी साबित होगी।