मोदी जी के अंदर जरा सी भी शर्म बची हुई है तो उन्हें तुरंत प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. भारतीय रिजर्व बैंक की एनुअल जनरल रिपोर्ट आई है जिसमे यह बिल्कुल साफ कर दिया गया है कि नोटबंदी के दौरान बंद हुए लगभग सभी पुराने नोट वापस आ चुके हैं 99.3 फीसदी से भी ज्यादा पुराने नोट रिजर्व बैंक के पास लौट आए हैं.
8 नवंबर, 2016 को 15,417.93 अरब रुपये की वैल्यू के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट सर्कुलेशन में थे. इसके बाद इनमें से जितने नोट वापस आए हैं, उनकी कुल वैल्यू 15,310.73 अरब रुपये है.
यानी सिर्फ 0.7 फीसदी ही नोट वापस नही आये हैं क्या सिर्फ 0.7 फीसदी ही काला धन था ? यानी यह तो ऐसा ही है जैसे चूहे मारने के लिए खड़ी फसल आग लगा दी जाए.
उन नदियो में बहाए गए नोटो का क्या हुआ,नेपाल आदी देशो मे जमा रकम का क्या हुआ , जो करोड़ों रुपये भरे सूटकेस मिले थे वह कहा गए यह भी नही पता चल सका.
लोग नोटबंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए, कई लोग लाइनों में मर गए, व्यापार धंधों का जो नुकसान हुआ है उसका कोई हिसाब ही नही है कई कम्पनियां ओर छोटे उद्योग दीवालिया हो गये लाखों लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठे, बड़े पैमाने पर मजदूर ओर गरीब लोग शहरों से गांवों की ओर पलायन करने पर मजबूर हो गए, मध्यम और छोटे व्यापारी इस चोट से उबर ही नही पाए.
सरकार ने कहा था कि नोटबन्दी का मुख्य मकसद कालाधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है लेकिन कितने काले धन वालो को पकड़ा गया इसका कोई जवाब ढाई सालो में मोदी सरकार नही दे पाई है ?
अब सबसे बड़ी बात सुनिए जो आपको जरूर समझनी चाहिए , नोटबंदी के बाद 2016-17 में रिजर्व बैंक ने 500 और 2,000 रुपये के नए नोट तथा अन्य मूल्य के नोटों की छपाई पर 7,965 करोड़ रुपये खर्च किए है और कई सौ करोड़ रुपया एटीएम में इन नए नोटो को केलिब्रेट करने के लिए लगाया गया यानी सोने से घड़ावन महंगी पड़ी है.
इस नोटबन्दी का यही हासिल हुआ कि भाजपा के भव्य कार्यालय बन गए है और गरीब की सालो से इकठ्ठा की गई पूंजी एक झटके में स्वाहा हो गई, गृहणियों की बचत बर्बाद हो गयी, बच्चों ने अपनी गुल्लकें फोड़ दी अर्थव्यवस्था दसियो साल पीछे चली गई.