बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन आखिर क्यों टूटा ?

Written by Girish Malviya | Published on: June 20, 2018
मोदी के हनुमान राम माधव कहे जाते हैं जब 2015 में जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने की बात उठी तो राम माधव ने कश्मीर जाकर गठबंधन की संभावनाएं टोटलनी आरम्भ कर दी , बात उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस से भी की लेकिन कुछ जम नही पाया लेकिन पीडीपी में एक ऐसा नेता मौजूद था जो उत्तर और दक्षिण ध्रुव कही जाने वाली बीजेपी और पीडीपी को साथ लाने में राम माधव के साथ कंधे से कंधा मिलाने को तैयार हो गया उसका नाम था हसीब द्राबू,



हसीब द्राबू ही वो शख्स था जिसने राम माधव के साथ दिल्ली जाकर इस गठबंधन को अमली जामा पहनाया पीडीपी में द्राबू (57) की हैसियत वरिष्ठ नेता की थी द्राबू को पीडीपी की कोर टीम का हिस्सा माना जाता था ओर उसे इस बात का इनाम भी मिला 2015 में जम्मू-कश्मीर के वित्तमंत्री बना दिया गया और उन्होंने ही धारा 370 के तहत राज्य के पास विशेष दर्जा होने के बावजूद उन्होंने बीजेपी सरकार की जीएसटी योजना को लागू करवाने में भी बड़ी भूमिका निभाई

जब भी इस गठबंधन पर संकट के बादल मंडराने लगते द्राबू ओर राम माधव की चर्चाओं के दौर शुरू हो जाते , पिछले साल जब जम्मू कश्मीर में भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह का दौरा प्लान किया गया तब भी राम माधव और अविनाश राय खन्ना ओर हसीब द्राबू ने सारी गोटियां बिठाई थी

जब भाजपा के मंत्री चंदर प्रकाश ने गद्दारों और पत्थरबाजों का इलाज गोलियों से करने संबंधी बात कह दी थी तो भाजपाई मंत्री के इस बयान से पीडीपी नाराज हो गई थी तब द्राबू ने ही बात संभाली थी

इससे पहले जब हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने पर हालात बहुत बिगड़ गए थे तब भी राम माधव ओर द्राबू ने बात संभाली थी , लेकिन मार्च 2018 में पीडीपी ने वित्त मंत्री हसीब द्राबू को एक झटके में असम्मानजनक तरीके से बरखास्त कर दिया, प्रत्यक्ष तौर पर उन्हें हटाए जाने की वजह उनका वह विवादास्पद बयान बताया गया, जो उन्होंने नई दिल्ली में कुछ राजनयिकों के सामने दिया था,

उन्होंने कहा कि 'जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक मसले की तरह नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि ये एक ऐसा समाज है जो अपनी सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है

महबूबा मुफ्ती तीन साल पूरे होने के बावजूद अपने साथ किये गए कई वादों को पूरा नही किये जाने से असन्तुष्ट थी महबूबा से भाजपा ने एनएचपीसी की दुलहस्ती और उड़ी बिजली परियोजना की राज्य को वापसी तथा ''सभी अंदरूनी और बाहरी पक्षों के साथ बातचीत'' जैसे कई वादे किए थे जिसे पूरा करने का कोई इरादा दिख नही रहा था इसके अलावा महबूबा मुफ्ती गठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम के एजेंडे को छोड़कर अपने कोर कट्टर एजेंडे की राजनीति की तरफ वापस आना चाहती थी ताकि घाटी में पार्टी की तेजी से गिरती साख को बचाया जा सके

इसलिए पहला कदम उसने हसीब द्राबू की छुट्टी कर के उठाया, द्राबू का खुद कहना था कि उनको हटाने का फैसला स्तब्ध करने वाला था.

पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''द्राबू को बर्खास्त करके महबूबा ने उस व्यक्ति को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है जिसने पीडीपी और भाजपा के गठबंधन की शर्तों का मसौदा तैयार किया था.

इसके अलावा कठुआ में जो स्टैंड महबूबा ने लिया था उससे भी यह साफ हो गया कि अब भाजपा की दबाव की राजनीति के आगे वह झुकने को तैयार नही है

वैसे इस गठबंधन टूटने की एक ओर खास वजह तो यह भी थी कि मोदी सरकार को अपने खुफिया सूत्रों से रिपोर्ट मिली थी कि जम्मू में लोग अब बीजेपी के खिलाफ हो गए हैं, वो जम्मू क्षेत्र में मुस्लिम प्रवासियों के आ जाने से बेहद गुस्से में हैं कठुआ, सुंदरबनी, नोवशेरा जैसे इलाको जनता का एन्टी बीजेपी रुख साफ दिख रहा था इसलिए इस गठबंधन को यदि कायम रखा जाता तो जम्मू की लोकसभा सीटों से बीजेपी को 2019 में शर्तिया हार जाना था, घाटी में बढ़ती हिंसा ओर पत्रकार शुजात हुसैन की हत्या बीजेपी के लिए एक तात्कालिक कारण बना और उसने गठबंधन तोड़ने में देर नहीं लगाई.

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