बेशर्म बहानों की आग में झुलसता कश्मीर

Published on: July 27, 2016
हसीब द्रबु की पत्नी रूही नाज़की टाटा में एक्स्कूटिव के पद पर काम कर चुकी हैं। हाल ही में वे झेलम के किनारे पर 'चाय जय' शुरू करने श्रीनगर में लौटीं। कश्मीरी उग्रवादी बुरहान वानी की हत्या के बाद समूचे कश्मीर में जन-उभार पर सरकारी के रुख को उन्होंने अनैतिक, त्रासद और गलत बताया। उनके पति हसीब द्रबु चूंकि पीडीपी और भाजपा सरकार की मुखिया महबूबा मुफ्ती के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री हैं, इसलिए उनकी सशक्त बातों को फेसबुक पर ज्यादा तवज्जो मिली।


इस साल की शुरुआत में उस चाय-हाउस का उद्घाटन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने किया था। हालांकि रूही नाज़की एक व्यवसाय करती हैं, लेकिन जनता से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय जाहिर करने के लिए अपनी निजी क्षमता के दायरे में सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही हैं। उनके फेसबुक पोस्ट ने इस बात का एक सशक्त चित्र खींचा कि कश्मीर में सरकार की प्रतिक्रिया के खिलाफ असंतोष की तीव्रता और निराशा कितने गहरे पैमाने पर फैली हुई है। भारतीय सेना की ओर से किए गए पैलेट गोलीबारी के शिकार होकर सौ से ज्यादा कश्मीरी युवकों और युवतियों की आंखें जिंदगी भर के लिए पूरी तरह से या करीब-करीब चली गईं। रूही नाज़की पीडीपी के वरिष्ठ विचारक और शिक्षा मंत्री नईम अख्तर, राजस्व मंत्री बशारत बुखारी और कश्मीर घाटी में मौजूदा पुलिस का नेतृत्व करने वाले पुलिस महानिदेशक सैयद जावेद मुजतबा गिलानी की रिश्ते में बहन भी हैं।

नाजकी लिखती हैं- “उन्हें हर हाल में रुकने की जरूरत है, ताकि हम यह मान सकें कि यह जरूरी नहीं है कि हरेक चुनी हुई सरकार सत्ता में आते ही गैरजिम्मेदार और केवल एक पत्थर के खंभे की तरह हो जाए! कश्मीर में हर सफल सरकार ने अपने पहले की सत्ता से अलग तरह से नहीं सोचा-समझा। हमारे नेताओं को सभी चीजों को भयानक, अदृश्य और बेआवाज शक्ल में तब्दील करने की जरूरत नहीं है।”

“मुमकिन है कि है कि उनका पीछे हटने से नाइंसाफी फिलहाल नहीं रुके। लेकिन यही सब कुछ नहीं है। उनके लिए अपने विरोध को दर्ज करना ज्यादा मायने रखता है। हमेशा की तरह अपराध में साझीदार नहीं होने के लिए... खामोशी के साथ इंतजार और चुपचाप देखने के रिवायत को तोड़ने के लिए... अपनी अंतरात्मा की आवाज को बनाए रखने के लिए... अगर इंसाफ नहीं तो सच के साथ के लिए...!” नाज़की ने सरकार पर यह कहते हुए सवाल उठाया कि “हमलोग हर वक्त के बहानों से तंग आ चुके हैं। यह अनैतिक है, त्रासद और गलत है। पिछले दिनों कश्मीर में जो हुआ वह भयानक तौर पर गलत है। बच्चों तक का बर्बर कत्ल, विरोध प्रदर्शन करने वालों की आंखों की रोशनी आपराधिक तौर पर हमेशा के लिए छीन लेना और एक समूची आबादी को बेशर्म तरीके से घुटने के लिए छोड़ देना..! अगर यह पिछले दो दशक या इससे ज्यादा से हो रहा है, तब भी यह गलत ही है। कश्मीर को जलने से बचाने के लिए कई एजेंसियां काम कर रही हैं, तब भी यह गलत है। यह गलत है कि कोई हमारे सामने तमाम बहाने परोस रहा है।”

“और सबसे बुनियादी रूप में, सबसे शर्मनाक और घातक तरीके से गलत है। यह कश्मीर के बच्चों के साथ हुआ, जो हमारे देश के उन सुरक्षा बलों के हाथों गलियों में मारे गए, जिसने उनके युवा शरीर में पैलेट डाले। यह एक लोकतांत्रिक देश में हुआ कि एक समूची आबादी को बिना किसी बुनियादी जरूरतों, बिना फोन, अखबारों के कई दिनों तक के लिए बंधक बना लिया गया। और यह एक बार फिर एक चुनी हुई लोकप्रिय सरकार की आंखों के सामने हो रहा है।”

सरकार की प्रतिक्रिया को अस्वीकार्य बताते हुए नाज़की इसे फिर से दुरुस्त करने की जरूरत पर जोर देती हैं- “सत्ता को गलत कामों को दुरुस्त करने में लगाने या फिर पूरी तरह छोड़ देने की जरूरत है। हमें भावी पीढ़ियों के लिए विश्वास पर ध्यान देना चाहिए था, ताकि वे अब सच के चेहरे के तौर पर जाने जाएं। उनका सच, हमारा सच। वे यह कर सकते हैं। और उन्हें यह करना भी चाहिए..!”


 

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