मेघालय में कोयला खदान में फंसे 15 श्रमिकों को मौत की कगार पर पहुंचाने का जिम्मेदार कौन?

Written by Girish Malviya | Published on: December 29, 2018
मेघालय में कोयला खदान में फंसे 15 श्रमिक मौत की कगार पर पुहंच गए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यह घटना पहली घटना नही है! साल 2014 में भी ऐसे ही खदानों में पानी भर जाने से 15 मजदूरों की मौत हो गई थी. उससे पहले भी इन खदानों में ऐसी मौते होती रही है.



2014 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय की शिलांग खंडपीठ ने मेघालय के साउथ गारो हिल्स जिले में 15 कोयला खनिकों की मौत पर एक जनहित याचिका दर्ज की गयी थी, उस वक्त उच्च न्यायालय ने मेघालय के महाधिवक्ता के.एस. क्यानजिंग से मुख्य सचिव से राज्य सरकार से यह जानकारी इकट्ठी करने के लिए कहा था कि उसने इस त्रासदी की वजह बनी परिस्थितियों की जांच के लिए क्या कदम उठाए है?

अदालत ने इस सम्बंध में रिपोर्ट भी मांगी थी कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार क्या कदम उठा रही है? उस वक्त भी मेघालय सरकार को राहत और बचाव कार्य देरी से शुरू करने को लेकर कोर्ट ने लताड़ लगाई थी.

लेकिन कुछ नही हुआ किसी को कोई फर्क नही पड़ा, अंततः NGT ने 2014 इस तरह के खनन रोक लगा दी थी उस वक्त एनजीटी ने अपने फैसले के दस्तावेज़ में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है और भारत जैसे सबसे बड़े लोकतंत्र में आर्थिक हित सहित किसी भी तरह के हित को जीवन के अधिकार के ऊपर तरजीह नहीं दी जा सकती है.

दरअसल मेघालय में कोयला खनन उद्योग कामगारों को चूहे की तरह बनाकर माइनिंग का काम करवाया जाता है. इसी कारण से इसे रैट माइनिंग के नाम से जाना जाता है इस तरह से कोयले का खनन किया जाना अवैज्ञानिक ओर अमानवीय है इस अवैज्ञानिक तरीके से कोयला खनन के कारण जैंतिया हिल्स के इलाके मे नदियों व जल स्रोतों के पानी में अम्लता बढ़ रही है इस तरह के खनन में सबसे ज्यादा बच्चों से काम लिया जाता है. क्यो वो इन छिद्रों में आसानी से घुस जाते हैं इस प्रकार बाल मजदूरी और सुरक्षा से जुड़े नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से बच्चों से काम कराया जाता रहा है. NGT में रोक लगने से पूर्व एक NGO ने दावा किया कि जयंतियां पहाड़ियों में चल रहे कोयला खनन में करीब 70 हजार बच्चे काम करते थे, लेकिन इस रोक का वास्तव में कोई असर नही हुआ आज भी अवैध रूप से यह खनन जारी है.

आज एक बार फिर मेघालय के सत्तारूढ़ एनपीपी-भाजपा के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कह रहे हैं कि उनकी सरकार 2014 से प्रतिबंधित इन कोयला खदानों को कानूनी वैधता और नियमित किए जाने के समर्थन में है, इधर संसद में कोयला खदान का मालिक कांग्रेस सांसद विंसेंट पाल सदन में आवाज उठा रहा है कि ऐसी खदानों को वैध बनाने के लिए सरकार कानून बना दे यानी इस मामले में दोनों दल एकमत है.

वैसे जब 2014 में 15 श्रमिक मारे गए थे तब तो सब सरकारी सरंक्षण में ही हो रहा था तब आपने क्या कर लिया था? यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा सच तो यह हैं कि कोई मरे या कोई जिये............. पूंजीपति उसमे अपना फायदा ढूंढ ही लेते हैं.

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