अनुसूचित जनजाति व अन्य परम्परागत वन निवासी समुदाय के वनाधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 देश का पहला ऐतिहासिक कानून है जो वनाश्रित समुदायों और आदिवासियों पर सदियों से हो रहे ऐतिहासिक अन्याय को न सिर्फ स्वीकारता है बल्कि उससे निजात दिलाकर आदिवासी व वन निवासियों की ज़िन्दगी में आजादी का सूरज लाने की बात करता है। उनके वन भूमि पर दखल (काबिज-काश्त व लघु वन उपज आदि) के अधिकारों को मान्यता देता है। संसद से सर्व सम्मति से पास वनाधिकार कानून की प्रस्तावना में ही वनाश्रित समुदायों पर ऐतिहासिक अन्याय होने और उससे निजात की बात मोटे हरफों में लिखी हैं लेकिन इस सब के बावजूद सोनभद्र हो या चित्रकूट, लखीमपुर हो या फिर उत्तराखंड और (कैमूर) बिहार हो। वनाश्रित समुदायों व आदिवासियों की आजीविका पर बार बार, लगातार वन विभाग के हमले जारी हैं तो आखिर क्यों?
क्या वन विभाग देश की संसद और देश के कानून से भी बड़ा है? सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा है जिसने वन भूमि पर से किसी भी तरह की बेदखली पर रोक लगाई हुई है। अगर नहीं, तो फिर वन विभाग बार बार देश के आदिवासी समाज का उत्पीड़न करने से बाज क्यों नहीं आ रहा है।
ताजा मामला चित्रकूट मानिकपुर के रानीपुर वन्यजीव विहार का है जहां वन विभाग के रेंजर आदि के द्वारा ऊंचाडीह पंचायत के कोल आदिवासी समुदाय के परिवारों जो दसियों साल से सामूहिक खेती करते आ रहे हैं, की आलू आदि की फसलों को उजाड़ दिया गया। उनके आवासों को आग के हवाले कर दिया गया है। यही नहीं, महिलाओं के विरोध करने पर उनको बुरी बुरी गाली दिया और मुकदमे में फसाने की धमकी दी गई। लोगो का कहना है कि दरअसल कोरोना काल में वन विभाग यह काम वन भूमि खाली कराने के लिए कर रहा है।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य माता दयाल बताते हैं कि यही काम सकरौहा गांव में सेंचुरी विभाग द्वारा समुदाय की बोई फसल में गड्ढे खोदना शुरू किया कि महिलाओ द्वारा विरोध करने पर उनकी झोपड़ियों में सेंचुरी रेंजर द्वारा आग लगा दिया जो जलकर राख हो गई। पुरुषों को दौड़ा दौड़ा कर मारने की कोशिश की गई जिन्होंने भागकर जान बचाई। यहां भी वन विभाग आदिवासियों समुदाय के लोगों द्वारा परम्परागत रूप से दखल की गई भूमि पर से उन्हें उजाडना चाहता है। जबकि वन विभाग से लेकर ज़िला प्रशासन तक जानता है कि मानिकपुर क्षेत्र के इन कोल आदिवासियों के पास आजीविका का यही एकमात्र जरिया है।
वन विभाग द्वारा खराब की गई आलू की फसल
समुदाय के लोगों ने जनजाति मंत्रालय भारत सरकार व उप्र के मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव उप्र सरकार, प्रमुख सचिव वन, प्रमुख सचिव न्याय व प्रमुख सचिव समाज कल्याण विभाग को भी लिखा है। अनुसूचित जाति जनजाति आयोग भारत सरकार व राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ डीएम, एसएसपी व कमिश्नर चित्रकूट को भी पत्र भेजकर वन विभाग की दादागिरी से अवगत कराया है और वनाधिकार के तहत मालिकाना हक दिए जाने की मांग की है। साथ ही रानीपुर वन्यजीव विहार और वन अधिकारियों के बार बार के उत्पीड़न पर कार्रवाई की मांग की है।
उन्होंने कहा कि वे सब ग्राम ऊचाडीह पंचायत ब्लाक मानिकपुर तहसील मानिकपुर के कोल आदिवासी हैं और उक्त गांव में कई पीढियों से निवास कर रहे हैं। अनुसूचित जनजाति व अन्य परम्परागत वनाश्रित समुदाय के वनाधिकारो की मान्यता अधिनियम 2006 व नियम 2007 के तहत गांव के रकबा 7.44 हेक्टेयर भूमि पर कौशिल्या, सुमन व अन्य परिवार सामूहिक खेती करके अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं। सभी के पास खेती के लिए अन्य कोई जमीन नही है। इसके बावजूद उन्हें इस भूमि से बेदखली का कुचक्र रानीपुर वन्यजीव विहार के रेंजर आदि अधिकारी कर रहे हैं तथा दखल भूमि पर गड्ढा खुदवाने की धमकी दे रहे हैं। जो कि वनाधिकार कानून की धारा 7 का खुला उल्लंघन है।
उलटी पड़ी झोंपड़ी
प्रार्थीगणों के दावा है कि प्रपत्र भरकर तैयार हैं पर कोरोना महामारी के कारण उपखण्डीय समिति के समक्ष नहीं जमा कर पाए हैं। न ही वह सब इस महामारी के कारण, बाहर काम करने के लिये भी जा पा रहे हैं, जिससे परिवार को पालन पोषण करने के लिए यही जमीन का एकमात्र जरिया बचा है।
गत 29 नवम्बर को उपरोक्त रेंजर ने अपने सिपाईयों के साथ आकर हमारी आलू की फसल को नष्ट कर दिया। जिससे हम समस्त सात परिवार बहुत ही दुखी हैं। हमारी दखल की गई भूमि पर अपनी पौधशाला भी लगाये हुए हैं और हमारी झोपडियों को आग लगाकर स्वाहा कर दिया गया है। आजकल वह सब अपने परिवार सहित घनी सर्दी में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वनाधिकार के तहत दखल की गई भूमि पर हमारा संवैधानिक अधिकार है। इस बात पर रेंजर द्वारा गाली गलौच के साथ पीटने और फर्जी मुकदमा दर्जकर जेल भेजने की धमकी दी गई है।
बर्बाद की गई झोंपड़ी
वन विभाग द्वारा किया गया यह कृत्य भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त गरिमामय जीवन जीने के मूलभूत अधिकार से भी हमें वंचित करता है। वन विभाग द्वारा बिना किसी पूर्व सुचना एवं नोटिस के हम लोगों की फसल नुकसान पहुंचाना हमारी झोपड़ियो को जलाना पूर्ण रूप से असंवैधानिक है। अतः श्रीमान जी से निवेदन है कि उक्त घटना का अति शीघ्र संज्ञान लेते हुए, दोषियों के खिलाफ कार्यवाई करे एवं वनाधिकार अधिनियम 2006 का अनुपालन करते हुए, हम पीड़ित परिवार को उस जमीन पर मालिकाना हक दिलाने की कृपा करें ताकि उन्हें न्याय मिल सके।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय उप महासचिव रोमा कहती हैं कि उप्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप पर आदिवासी समुदाय के लोगो को न्याय दिलाना सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि महामारी के समय मे लोगों को घर से बेघर करना, उनके साथ गाली गलौच आदि अभद्रता करना और फसल का नुकसान करना लोगों के संवैद्यानिक अधिकारों का उल्लंघन है। दोषियों को कड़ी सजा मिले।
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ताजा मामला चित्रकूट मानिकपुर के रानीपुर वन्यजीव विहार का है जहां वन विभाग के रेंजर आदि के द्वारा ऊंचाडीह पंचायत के कोल आदिवासी समुदाय के परिवारों जो दसियों साल से सामूहिक खेती करते आ रहे हैं, की आलू आदि की फसलों को उजाड़ दिया गया। उनके आवासों को आग के हवाले कर दिया गया है। यही नहीं, महिलाओं के विरोध करने पर उनको बुरी बुरी गाली दिया और मुकदमे में फसाने की धमकी दी गई। लोगो का कहना है कि दरअसल कोरोना काल में वन विभाग यह काम वन भूमि खाली कराने के लिए कर रहा है।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य माता दयाल बताते हैं कि यही काम सकरौहा गांव में सेंचुरी विभाग द्वारा समुदाय की बोई फसल में गड्ढे खोदना शुरू किया कि महिलाओ द्वारा विरोध करने पर उनकी झोपड़ियों में सेंचुरी रेंजर द्वारा आग लगा दिया जो जलकर राख हो गई। पुरुषों को दौड़ा दौड़ा कर मारने की कोशिश की गई जिन्होंने भागकर जान बचाई। यहां भी वन विभाग आदिवासियों समुदाय के लोगों द्वारा परम्परागत रूप से दखल की गई भूमि पर से उन्हें उजाडना चाहता है। जबकि वन विभाग से लेकर ज़िला प्रशासन तक जानता है कि मानिकपुर क्षेत्र के इन कोल आदिवासियों के पास आजीविका का यही एकमात्र जरिया है।
वन विभाग द्वारा खराब की गई आलू की फसल
समुदाय के लोगों ने जनजाति मंत्रालय भारत सरकार व उप्र के मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव उप्र सरकार, प्रमुख सचिव वन, प्रमुख सचिव न्याय व प्रमुख सचिव समाज कल्याण विभाग को भी लिखा है। अनुसूचित जाति जनजाति आयोग भारत सरकार व राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ डीएम, एसएसपी व कमिश्नर चित्रकूट को भी पत्र भेजकर वन विभाग की दादागिरी से अवगत कराया है और वनाधिकार के तहत मालिकाना हक दिए जाने की मांग की है। साथ ही रानीपुर वन्यजीव विहार और वन अधिकारियों के बार बार के उत्पीड़न पर कार्रवाई की मांग की है।
उन्होंने कहा कि वे सब ग्राम ऊचाडीह पंचायत ब्लाक मानिकपुर तहसील मानिकपुर के कोल आदिवासी हैं और उक्त गांव में कई पीढियों से निवास कर रहे हैं। अनुसूचित जनजाति व अन्य परम्परागत वनाश्रित समुदाय के वनाधिकारो की मान्यता अधिनियम 2006 व नियम 2007 के तहत गांव के रकबा 7.44 हेक्टेयर भूमि पर कौशिल्या, सुमन व अन्य परिवार सामूहिक खेती करके अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं। सभी के पास खेती के लिए अन्य कोई जमीन नही है। इसके बावजूद उन्हें इस भूमि से बेदखली का कुचक्र रानीपुर वन्यजीव विहार के रेंजर आदि अधिकारी कर रहे हैं तथा दखल भूमि पर गड्ढा खुदवाने की धमकी दे रहे हैं। जो कि वनाधिकार कानून की धारा 7 का खुला उल्लंघन है।
उलटी पड़ी झोंपड़ी
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गत 29 नवम्बर को उपरोक्त रेंजर ने अपने सिपाईयों के साथ आकर हमारी आलू की फसल को नष्ट कर दिया। जिससे हम समस्त सात परिवार बहुत ही दुखी हैं। हमारी दखल की गई भूमि पर अपनी पौधशाला भी लगाये हुए हैं और हमारी झोपडियों को आग लगाकर स्वाहा कर दिया गया है। आजकल वह सब अपने परिवार सहित घनी सर्दी में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वनाधिकार के तहत दखल की गई भूमि पर हमारा संवैधानिक अधिकार है। इस बात पर रेंजर द्वारा गाली गलौच के साथ पीटने और फर्जी मुकदमा दर्जकर जेल भेजने की धमकी दी गई है।
बर्बाद की गई झोंपड़ी
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अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय उप महासचिव रोमा कहती हैं कि उप्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप पर आदिवासी समुदाय के लोगो को न्याय दिलाना सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि महामारी के समय मे लोगों को घर से बेघर करना, उनके साथ गाली गलौच आदि अभद्रता करना और फसल का नुकसान करना लोगों के संवैद्यानिक अधिकारों का उल्लंघन है। दोषियों को कड़ी सजा मिले।
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