वन अधिकारियों ने आदिवासी कार्यकर्ताओं को अपहरण कर पीटा, दर्ज किया झूठा केस, दोषियों पर कार्रवाई की मांग

Written by Navnish Kumar | Published on: September 9, 2020
मध्य प्रदेश वन विभाग की गुंडागर्दी एक बार फिर सामने आई है। बुरहानपुर जिले के वन विभाग द्वारा कोर्ट में आए वन अधिकार दावेदार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को अवैध रूप से अपहरण कर रेंज ऑफिस में रातभर बंद रख बर्बरतापूर्व मारपीट की गई जबकि इसी जिले में वन अमले के संरक्षण में बड़े पैमाने पर वन की अवैध कटाई की जा रही है तथा कोर्ट से उठाए गए आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश जमरे एवं प्यारसिंह वास्कले द्वारा कटाई के सम्बन्ध में जानकारी निकाल प्रशासन से शिकायत भी करते आये हैं। ये आदिवासी कार्यकर्ता वन अधिकार अधिनियम और आदिवासियों के कानूनी अधिकारों के बारे में लगातार प्रचार करने में सक्रिय रहते हैं और इन्हें यह कहते हुए मारा गया कि 'तुम लोग ज्यादा कानून-कानून कर रहे हो इस क्षेत्र में!'



इन पर कई मगढ़ंत झूठे प्रकरण बना कर अगले दिन कोर्ट में पेश किया गया और कैलाश जमरे रातभर हुए मारपीट के कारण कोर्ट में ही बेहोश हो गए, 6 दिन अस्पताल में भर्ती रहे। इनके आलावा उन्हीं के गाँव रहमानपुर के दो अन्य आदिवासी जबर सिंग और सोमला को पहले उठाया गया था और उनकी जमानत लेने जब कैलाश और प्यार सिंह कोर्ट पहुंचे तो उन्हें वहां से वन अमले ने अपहरण कर लिया था। 

कैलाश जमरे एवं प्यार सिंह वास्कले द्वारा लगातार क्षेत्र में चल रही कटाई के बारे में जानकारी निकालने की कोशिश की जा रही थी और वे संगठन अन्य कार्यकर्ताओं के साथ उन्होंने 27 सितंबर 2020 को कलेक्टर ऑफिस में राजनैतिक ताकतों एवं वन विभाग की मिली-भगत से चल रहे अवैध कटाई के बारे में कलेक्टर से शिकायत भी की थी। यह उस जिले की घटना है जहां पर पिछले साल वन विभाग द्वारा पात्र दावेदारों के खेतों पर सिवल गाँव में जेसीबी चलाकर फसलों को नष्ट किया गया था एवं दावेदारों पर अवैध फायरिंग की गई थी। वन विभाग केवल गरीब आदिवासियों पर ही बल प्रयोग करता नजर आ रहा है और जो दलाल राजनैतिक संरक्षण एवं वन विभाग की मिलीभगत के साथ अवैध कटाई कर रहे हैं, उनपर 2 महीने से कोई भी कार्यवाही नहीं की गई है। 

घटनाक्रम रहमानपुर निवासी एवं वन अधिकार दावेदार कैलाश जमरे एवं प्यारसिंह वास्कले रविवार 30 अगस्त को जिला न्यायालय अपने गाँव के साथियों की जमानत लेने आए थे। मामले में आरोपी जबर सिंह और सोमला को झूठे केस में फंसाकर उन्हें शनिवार 29 अगस्त को बाज़ार से ही उठा लिया गया था। वकील के माध्यम से पता चला कि उनपर गैर जमानती धाराओं में फर्जी केस लगाए गए हैं। इन सभी धाराओं के अंतर्गत जबरसिंह एवं चमारसिंह के खिलाफ कोई भी जप्ती या सबूत नहीं पेश किया गया जिसके बावजूद न्यायालय द्वारा ज़मानत अर्जी को खारिज कर उन्हें खंडवा जेल भेजा गया। 

जमानत की सुनवाई के बाद कैलाश एवं प्यार सिंह को न्यायालय से ही खकनार रेंज के रेंजेर अभय सिंह तोमर सहित अन्य वन अमले द्वारा उठाया गया। कैलाश एवं प्यार सिंह न केवल वन अधिकार दावेदार हैं परन्तु सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। उन्होंने क्षेत्र एवं गाँव में कई ग्रामों में राशन, जाति प्रमाण पत्र सम्बंधित समस्याओं को लेकर, वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन एवं कानून सम्बन्धी मुद्दों में गाँव-गाँव में घूमकर कानून के प्रचार-प्रसार का काम किया है। 

30 अगस्त के रात को गांववालों को पता चला कि वन अमले उन्हें ले गए हैं तो 15 किलोमीटर पैदल चल कर वे खकनार थाने पर शिकायत करने पहुंचे, जहां उनकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर उन्हें उल्टा गलत जानकारी के साथ गुमराह किया गया कि कैलाश और प्यारसिंह को बुरहानपुर भेज दिया गया है और उनकी जानकारी लेने आए लोगो पर ही केस दर्ज करने की धमकी दी गई।

इस बीच कैलाश एवं प्यार सिंह को रेंज ऑफिस में ले जाकर रखा गया और उनके साथ बहुत मारपीट की गई। उनको कथित तौर पर खकनार रेंजर अभय सिंह तोमर, रूपा मोरे, नाकेदार सोलंकी, बोरदली रेंज के डोंगरसिंह कनासे, एक रेंजर एवं अन्य वन अमले द्वारा बारी-बारी कर हाथ पैर पकड़कर लठ से कमर के नीचे यह कह कर पीटा गया कि 'तु ही खकनार रेंज में संगठन चलाता है और ज्यादा कानून करता है।' इससे साफ़ है कि कैलाश भाई और प्यार सिंह के ऊपर संगठन में रहकर कानूनी अधिकारों का प्रचार करने का ही बदला लिया गया है।

मारपीट से बदहाल हुए कैलाश कोर्ट में आते-आते कमजोरी से बेहोश हो गए। न्यायालय परिसर में बेहोशी के बाद कैलाश को छोड़कर ज्यादातर वन विभाग का अमला डर के मारे भाग खड़ा हुआ था। कैलाश को जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उनके परिवार के अनुसार, उनपर ध्यान नहीं दिया गया और डॉक्टरों द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणियां होती रहीं। एमएलसी के बारे में न ही कैलाश, न उनके घर वालों को कोई भी जानकारी मिली। जिला अस्पताल में डॉक्टरों की उदासीनता और नियमित जांच न होने से परेशान होकर कैलाश के परिवार वालों ने उनको एक प्राइवेट अस्पताल (All Is Well Hospital) में भर्ती करने पर मजबूर हो गए, भले ही ज्यादा पैसे लगते हो। अस्पताल ले जाने के बाद उनसे लगभग 5 दिन कुछ भी खाया नहीं गया और वह केवल ड्रिप के सहारे जिंदा थे और अभी भी बिना टेका लिए चल नहीं पा रहे हैं।

वन विभाग द्वारा केवल कुछ विशेष धाराओं में आरोपियों को बंधक बनाने का अधिकार है, जो कि इस मामले में लागू नहीं है। जमानत में पूछताछ करने के लिए कोर्ट में दंड प्रक्रिया संहिता के धारा 167 के तहत आवेदन लगाना अनिवार्य है। किसी भी हालत में शारीरिक उत्पीड़न एवं प्रताड़ना करना सख्त रूप से मना है। किसी भी गिरफ्तारी में किसी परिवार के सदस्य अथवा कोई आरोपी के जान पहचान वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी की विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए। न केवल यह सारी जानकारी इनके घर वालों अथवा गाँव वालों को नहीं दी गई, बल्कि उल्टा गाँववालों को भ्रामक जानकारी दी गई।

जिला कलेक्टर द्वारा संवेदनशीलता दिखाते हुए कैलाश के अस्पताल का खर्च में आर्थिक सहायता दी गई है, जिसके लिए हम आभारी है, परन्तु दोषियों पर कार्यवाही अभी तक नहीं हुई है।
 जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा जिम्मेदार वन अमले एवं अधिकारीयों पर तुरंत दंडात्मक कार्यवाही की मांग शासन-प्रशासन के सामने रखी गई है, जिसके न होने पर बुरहानपुर सहित निमाड़ क्षेत्र के अन्य जिलों के आदिवासियों द्वारा आन्दोलन छेड़ने की चेतावनी दी गई है।

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