जंगल बचाने की दिशा में गोंड आदिवासियों का बड़ा फैसला: शव जलाने के बजाय दफनाएंगे

Written by Navnish Kumar | Published on: March 11, 2021
खुद को शिक्षित और सभ्य कहने वाले समाज अभी जिस पर्यावरण की रक्षा की बाबत कुछ सोच नहीं पाए हैं, उस दिशा में आदिवासी समाज ने एक बार फिर पहल की है। पर्यावरण (जंगल) बचाने को गोंड़ आदिवासियों ने फैसला किया है कि गोंड समाज में अब शवों को जलाया नहीं जाएगा, बल्कि दफनाया जाएगा। ऐसा करने से लकड़िया बचेंगी। जंगल नहीं कटेंगे।


प्रतीकात्मक फोटो

दरअसल, पिछले कुछ सालों में जिस तेज़ी से पेड़ कटे हैं और शवों को जलाने में बड़ी संख्या में लकड़ी का उपयोग होता है। ऐसे में पेड़ों को बचाने के दृष्टिकोण से इसे बड़ी पहल ही कहा जाएगा। हालांकि इससे अंतिम संस्कार को लेकर एक नई बहस जरूर शुरू हो सकती है।

मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज के नेता बीपीएस नेताम बताते हैं कि आदिवासियों में शुरू से ही शवों को दफनाने की परंपरा थी लेकिन हिंदु धर्म के प्रभाव में आकर कुछ इलाकों में शवों को जलाया जाता है। अब इस फ़ैसले से उन पर भी असर पड़ेगा।

खास है कि आदिवासी समाज पर्यावरण को लेकर न सिर्फ सजग रहा है बल्कि प्रकृति प्रेम, आदिवासी संस्कृति व परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा हैं। क्योंकि इनका विश्वास है कि धरती, पानी और हवा, इन सब पर ईश्वर का नियंत्रण होता है। 

यही नहीं, छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) में आयोजित गोंड़ महासभा व युवक युवती महासम्मेलन में कई और प्रगतिशील फैसले भी लिए गए हैं जो पूरे देश के खुद को सभ्य समाज कहने वालों के लिए अनुकरणीय हो सकते हैं।

मसलन, गोंड़ महासम्मेलन में सामाजिक और पारिवारिक कार्यक्रमों में शराब पर भी पाबंदी का प्रस्ताव पारित किया गया। शराब का इस्तेमाल आदिवासी समाज में हमेशा से होता रहा है। यह उनकी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। उनके अपने पर्व पर भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। वह अपने देवताओं को भी इसे अर्पित करते आए हैं। गोंड आदिवासियों के महासम्मेलन में अपना लिखित 'संविधान' बनाया है, जिसमें उन्होंने अपनी दहेज आदि की कई तरह की कुरीतियों पर रोक लगाने का संकल्प लिया है। 

गोंड आदिवासियों ने तय किया है कि अब से किसी भी त्योहार या कार्यक्रम में उनका समुदाय शराब का उपभोग नहीं करेगा। यही नहीं, जो ऐसा करता हुआ पाया जाएगा, उस पर दो हजार से पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा। उस आदिवासी समाज के लिए यह बहुत क्रांतिकारी और प्रगतिशील बदलाव है, जिसमें देवताओं पर शराब चढ़ाना उनकी परंपरा में शामिल रहा है। लेकिन,अब इस समाज ने तय किया है कि वो अपने देवताओं पर शराब की जगह महुआ के फूल चढ़ाएंगे। गौरतलब है कि आदिवासी इलाकों में महुआ से बनी देसी शराब का खूब इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि जंगलों में इसके पेड़ बहुतायत से उपलब्ध हैं।

गोंड अनुसूचित जनजाति दुनिया के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है। यह जनजाति मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पाई जाती है। गोंडों की अपनी चार मुख्य उपजातियां भी हैं। राज गोंड, मदिया गोंड, धुर्वे गोंड और खटुलवार गोंड। लेकिन युवक युवती सम्मेलन में उपजातियों के इस विभाजन को भी समाप्त करने का प्रगतिशील फ़ैसला लिया गया है। 

गोंड महासम्मेलन में जो इनका अपनी रीति-रिवाजों से संबंधित 60 पेज का 'संविधान' तैयार किया गया है, उसमें शराब ही नहीं, दहेज लेने पर भी पूर्ण पाबंदी की बात शामिल है। यह तय हुआ है कि वधु को सिर्फ पांच प्रकार के बर्तन भेंट किए जाएंगे। इसके साथ ही शादियों के मौके पर मेहमानों की संख्या भी निश्चित कर दी है, जिसमें 50 से ज्यादा गेस्ट नहीं जुटेंगे और तिलक कार्यक्रम के मौके के लिए यह तादाद 20 निश्चित कर दी गई है।

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